नैंसी के नौ साल
अभी उसका मात्र सफलतापूर्वक गर्भाधान हुआ है । माँ बनने में तो अभी नौ माह का लम्बा समय शेष है । गर्भाधान करते ही प्रसन्नता से नैंसी का रोम-रोम पुलकित हो उठा है । वह चाहती है कि उसकी प्रसन्नता में उसका पूरा परिवार भी सम्मिलित हो । ऐसा हो, तो विवाह के आठ वर्ष पश्चात् गर्भाधान की प्रसन्नता का उसका अभूतपूर्व आनंद कई गुना बढ़ जाएगा। उसके कोमल निष्कलुष हृदय से बार-बार भावनाओं का ज्वार उठकर उसको सास की ओर बहाकर ले जाता कि वह स्वयं के गर्भवती होने की सूचना दे ! नैंसी चाहती है कि अपनी सास के हृदय में एक बार उस सुख-संतोष का संचार कर दे, जिसके लिए वह वर्षों से तड़प रही थी । किंतु, अज्ञात-सा भयग्रस्त एक चिर-परिचित मौन स्वर भयंकर चेतावनी के रूप में जटिल और अनसुलझी पहेली उसके समक्ष प्रस्तुत करके उसके बढ़ते कदमों को रोक देता है और वह अपनी प्रसन्नता के क्षणों में अकेली रह जाती है। वह बार-बार उस दृश्य की कल्पना का आनंद लेने लगती है, जिसमें उसकी सास दादी बनने की सूचना पाते ही भावविह्वल होकर उसको सीने से लगा लेती है ; उनकी आँखों में आँसू छलकने लगते हैं और बाँझ कहकर बहू के साथ अपने कटु-व्यवहार के लिए पश्चाताप के भाव चेहरे पर उभर आते हैं । अपनी कल्पना में ही सास के चेहरे पर पश्चाताप के भाव देखकर नैंसी के हृदय में क्षमा-भाव तथा मस्तिष्क में अतीत के वे कष्टदायी स्मृति-चित्र अंकित होने लगे, जिनके कारण उसने अपने आठ वर्ष के वैवाहिक जीवन को अभिशप्त अनुभव किया था । इन आठ वर्षों में वह पूरे परिवार का तिरस्कार और अपमान सहते हुए सासू माँ का गाली गरल बहुत ही सहजता से यह सोचकर पीती रही थी -
"सब मेरे ही शारीरिक दोषों का परिणाम है । इनका कोई दोष नहीं है । यह चाहत तो मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि उसकी वंश-वल्लरी फूलती-फलती रहे और आंगन में किलकारी गूँजती रहे !"
इन आठ वर्षों में नैंसी की सास ने दादी बनने की अपनी मनोकामना पूर्ण कराने के लिए कितने देवी-देवताओं से मनौती मांगी है ; कितने डॉक्टर्स से बहू का परीक्षण और इलाज करवाया है ; कितने हकीम-वैद्यों की जड़ी-बूटियों का सेवन बहू को कराया ; कितने मुल्ला-मौलवियों, भक्तों और तांत्रिकों से झाड़-फूँक कराई इसका हिसाब लगा पाना असंभव नहीं, तो कठिन अवश्य है । सासू माँ की इस लग्न और परिश्रम की तुलना में नैंसी को उनकी गालियाँ तथा तिरस्कारपूर्ण व्यवहार कई बार प्रसादस्वरूप प्रतीत होते थे, क्योंकि वह स्वयं भी बाँझपन के लांछन से मुक्त होकर माँ बनने का सौभाग्य प्राप्त करना चाहती थी ; समाज में माँ होने के गौरवपूर्ण स्थान पर पदासीन होना चाहती थी और उस कोमल भाव को अपने हृदय में अनुभूत करना चाहती थी, जिसकी की गरिमामयी अनुभूति एक स्त्री अपनी कोख से बच्चे को जन्म देकर उसको स्तनपान कराके करती है ।
चिकित्सकों के परामर्श के अनुसार ही पथ्य, परहेज और औषध-सेवन के बावजूद पिछले आठ वर्षों से नैंसी गर्भधारण नहीं कर सकी थी । पिछले तीन महीने से नैंसी का इलाज एक ऐसे हकीम से चल रहा है, जो अपने दवाखाने में तैयार दवाइयों के सेवन मात्र से छह महीने में बांझपन दूर करके शर्तिया गर्भाधान की गारंटी देता है । नैंसी की सास को पूर्ण विश्वास है कि हकीम जी से पूरा इलाज कराने के पश्चात् उनकी बहू वंश-वृद्धि का शुभ समाचार अवश्य सुनाएगी । दूर-दूर तक हकीम जी के चमत्कार के चर्चे सुनकर ही नैंसी की सास उसे हकीम जी के पास लेकर गयी थी । अब तक हकीम जी से इलाज कराते हुए तीन महीने का समय बीत चुका है, इसलिए नैंसी के मन में आया, अपने गर्भाधान का शुभ समाचार सासू माँ को देकर उनके विश्वास को सिद्ध करके उनके हृदय में सुख का संचार कर दे, परन्तु अनसुलझी-अनबूझ पहेली की मूक अरूप चेतावनी के अज्ञात भय ने उसके कदमों को वहीं रोक दिया और उसका पूरा परिवार इस शुभ समाचार के महत् सुख से वंचित रह गया ।
नैंसी का गर्भस्थ भ्रूण धीरे धीरे विकास को प्राप्त होने लगा है । भ्रूण के विकास के साथ-साथ नैंसी की शारीरिक दशा और रुचि में भी परिवर्तन हो होने लगा है । दिन-भर उसकी अलसायी काया और बढ़ती हुई दुर्बलता को देखकर सासू माँ उसको जाँच कराने के लिए अस्पताल लेकर गयी । वहाँ पर ज्ञात हुआ, बहू माँ बनने वाली है । नैंसी के गर्भवती होने की सूचना प्राप्त होते ही उसकी सास के दोनों हाथ जुड़कर दृष्टि आकाश की ओर उठ गयी और होंठ बड़बड़ाने लगे -
"प्रभु तेरी लाख-लाख किरपा है ! तेरा लाख-लाख धन्यवाद है ! तूने मेरी सुन ली ! मेरे बेटे का वंश आगे बढ़ जाए, इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं चाहिए !"
नैंसी की सास ने अस्पताल से ही पूरे परिवार को यह शुभ समाचार सुना दिया । उन्होंने पूरे पड़ोस में मिठाई बाँटी, परन्तु उनकी प्रसन्नता में उनका बेटा नैंसी का पति रेयान सम्मिलित नहीं हो पाया । रेयान ने फोन करके माँ को सूचना दी थी कि अपने ऑफिस के किसी कार्य हेतु वह दो दिन के लिए शहर से बाहर जा रहा है, इसलिए घर पर आ कर उनकी खुशी में शामिल नहीं हो पाएगा । दो दिन पश्चात् रेयान घर वापस लौटा है । उसके चेहरे पर तनाव बढ़ा हुआ है । वह सीधा नैंसी के कमरे में पहुँचा । नैंसी के निकट पहुँचकर एक क्षण तक उसको घूरकर देखा, फिर बिना कुछ कहे-सुने उसके कान पर झन्नाटेदार थप्पड़ जड़ दिया और दूसरा थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठाते हुए कहा -
"मेरे जीवन में और इस घर में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है !" पहला थप्पड़ नैंसी पर अचानक पड़ा था, इसलिए वह सहन कर गयी, किंतु अब तक वह समझ चुकी है । उसने रेयान का उठा हुआ हाथ पकड़कर नीचे झटककर कहा-
"मिस्टर रेयान, यह घर मेरा घर भी है ! मैं इस घर में तुम्हारी दया पर निर्भर होकर नहीं, अपने अधिकारों के बल पर रह रही हूँ ! और आगे भी रहती रहूँगी ! आज मैं तुम्हें क्षमा कर रही हूँ, अगली बार नहीं करूँगी ! आज के बाद तुमने मुझ पर हाथ उठाने का प्रयास किया, अथवा अन्य किसी प्रकार से अपनी सीमाओं का उल्लंघन करके मेरे अधिकारों का हनन करने का प्रयास किया, तो तुम्हें गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे ! याद रखना, मैं चुपचाप सहन करने वाली नहीं हूँ !"
"मैं इस बच्चे को जन्म नहीं लेने दूँगा !"
"यह सोचने की भूल मत करना, वरना कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रहोगे !"
रेयान नैंसी के कमरे से वापस लौट आया । माँ को उसके चेहरे पर पिता बनने के शुभ समाचार को लेकर किसी प्रकार का उत्साह नहीं दीख रहा है । शुभ अवसर के प्रतिकूल बेटे का व्यवहार देखकर माँ चिंतित है । मां ने बेटे की उदासी का कारण जानने का प्रयास किया है । रेयान ने माँ को बताया, नैंसी का होने वाला बच्चा उसका नहीं है, क्योंकि पिछले तीन महीने से नैंसी के साथ उसका शारीरिक संबंध स्थापित नहीं हुआ है । रेयान के शब्दों में इसके उदासी का कारण सुनते ही माँ का पारा चढ़ गया । वाणी को कठोर करते हुए माँ ने रेयान से कहा -
"तू मेरी गंगा-सी पवित्र बहू पर लांछन लगा रहा है !"
"माँ ! जिस गंगा में हर दिन अनगिनत अपवित्र-पापी लोग डुबकी लगाते हैं, वह पवित्र कैसे रह सकती है ?"
रेयान का तर्क सुनकर माँ ने उसे उपेक्षा की दृष्टि से देखा और बोली -
"जो व्यक्ति गंगा मैया की पवित्रता पर सवाल उठा सकता है, अपनी पत्नी के चरित्र पर संदेह करने में उसको क्या संकोच होगा !"
उस दिन के पश्चात् माँ ने रेयान की आँखों में चमक, होठों पर मुस्कान और चेहरे पर प्रसन्नता नहीं देखी । किंतु, बेटे के शब्दों पर विश्वास करके बहू के चरित्र पर संदेह करना उनकी आत्मा को स्वीकार्य नहीं है क्योंकि पिछले आठ वर्षों में माँ ने नैंसी के चरित्र पर संदेह का कभी कोई कारण नहीं देखा है ।
ज्यों-ज्यों समय आगे बढ़ रहा है, एक ओर पूरा परिवार प्रसन्नता है, तो दूसरी ओर नैंसी के प्रति रेयान की उपेक्षा और उदासीनता बढ़ती जा रही है । परिणामस्वरुप नैंसी और रेयान के दांपत्य संबंध में कटुता आने लगी है । दिन-प्रतिदिन दोनों में झगड़ा होने लगा है ।
इसी प्रकार क्लेश कष्ट के वातावरण में नौ महीने बीत गये हैं, परंतु रेयान के व्यवहार में किसी प्रकार का सकारात्मक परिवर्तन नहीं हुआ है । न ही परिवार में किसी को यह ज्ञात हो सका है कि रेयान के इस नकारात्मक व्यवहार के पीछे क्या समस्या अथवा कारण है ?
शीघ्र ही एक दिन वह शुभ क्षण आ गया है, जिसकी प्रतीक्षा नैंसी और उसका परिवार नौ माह से कर रहा था । प्रसव-पीड़ा आरंभ हुई और बहुत ही सहज-प्राकृतिक ढंग से नैंसी ने एक बहुत ही सुंदर सुकोमल बच्चे को जन्म दिया । वह अद्वितीय अमूल्य गौरवमयी क्षण नैंसी के जीवन का साक्षी बन गया, जब उसने माँ होने की अभूतपूर्व गरिमामयी अनुभूति की । रेयान इन महत्वपूर्ण गौरवमय क्षणों का भी साक्षी नहीं बना । वह परिवार के साथ रहकर परिवार की प्रसन्नता में सम्मिलित नहीं हुआ । इस बार भी उसने ऑफिस के आवश्यक कार्य हेतु दो दिन तक घर से बाहर रहने का बहाना कर दिया है ।
दो दिन पश्चात् रेयान घर लौटा है । अब भी उसके हृदय में वात्सल्य की उमंग नहीं है । न ही व्यवहार में मृदुता है । बेटे की भाव-भंगिमा को देखकर माँ को उसके हृदय की पीड़ा का एहसास हो रहा है, परंतु उसकी पीड़ा के कारण का कुछ भी अनुमान नहीं कर पा रही है । माँ ने बहू की गोद से लेकर नवजात कन्या-शिशु को उसके पिता रेयान की ओर बढ़ाया -
"जब से दुनिया में आयी है, बच्ची की नजरें आठों दिशाओं में अपने पापा को तलाश रही हैं, पर पापा को काम से फुर्सत ही नहीं है !" रेयान ने माँ को शब्दों में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी । बच्ची पर दृष्टि डालने बिना ही उसने अपना भावशून्य चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया और बच्ची की ओर से पीठ करके खड़ा हो गया । माँ ने एक बार पुनः आग्रहपूर्वक कहा -
"ले बेटा ! बच्ची को अपनी गोद में ले ! साक्षात लक्ष्मी का अवतार है !" इस बार भी वह कुछ नहीं बोला, बच्चे पर दृष्टि डाले बिना ही बाहर निकल गया है ।
बाहर रहकर सारा दिन व्यतीत करके देर रात रेयान घर लौटा और प्रातः सुबह शीघ्र ही अपने ऑफिस के लिए निकल गया है । इसी प्रकार तनाव पूर्ण वातावरण में दस दिन बीत गये । दसवें दिन बच्ची के नामकरण संस्कार का आयोजन किया गया । माँ ने रियान को को समझाने का प्रयास किया -
"बेटा, तेरे मन में क्या चल रहा है ? इस नन्ही-सी बच्ची से किस बात का गुस्सा है तुझे ? ब्याह के नौ बरस बाद बाप बना है, फिर भी अपनी बच्ची के लिए तेरे दिल में प्यार नहीं उमड़ता ! अपनी औलाद का मुँह भी नहीं देखा है अभी तूने, गोद में लेना तो दूर की बात है !"
"घृणा है मुझे इस बच्चे से !" कहते-कहते रेयान की आँखों से आग बरसने लगी ।
"घृणा है ? इस नवजात बच्ची से ? कैसा निर्मोही बाप है रे तू ?"
"मैंने आपसे पहले भी कहा है, मैं इसका बाप नहीं हूँ ! आपको मेरी बातों पर भरोसा नहीं है, तो बच्ची का डी.एन.ए. टेस्ट करा सकती हो ! सच्चाई खुद-ब-खुद सबके सामने आ जाएगी !" पिछले नौ महीने से संचित-सुरक्षित रियान के हृदय की कटुता ने अब बरसना आरंभ कर दिया था ।
"तू इसका बाप नहीं है, तो फिर कौन है इसका बाप ? माँ ने क्रोधयुक्त वाणी में कहा ।
"इस प्रश्न का उत्तर तो इसकी माँ ही ज्यादा बेहतर दे सकती हैं ! मैं तो केवल यह जानता हूँ, मैं इस बच्ची का बाप नहीं हूँ ! बच्ची के प्रति घृणा की मुद्रा बनाते हुए रेयान ने पुनः विष वमन किया । इस बार माँ को अपने बेटे की आँखों में सच्चाई दिखाई दी । उसके चेहरे पर निरंतर घृणा, क्रोध, असंतोष, पीड़ा तथा विवशता के मिश्रित भाव देखकर माँ का हृदय बेटे के प्रति सहानुभूति तथा बहू के प्रति क्रोध से आपूरित होने लगा है ।
नैंसी अपने कमरे में लेटी हुई माँ-बेटे का वार्तालाप सुन रही है । माँ का क्रोध उत्तरोत्तर क्षण-प्रतिक्षण बढ़ता जा रहा है । नैंसी को अपने कमरे की ओर आती हुई सासू माँ पदचाप सुनाई पड़ती हैं । नैंसी के कमरे में आकर माँ क्रोधावेश में बोली -
"किसका पाप मेरे बेटे के सिर मँढा है तूने ?" क्षणभर तक नैंसी गूढ़-गंभीर दृष्टि से सास की आँखों में झाँकती रही । तत्पश्चात् आत्मविश्वासपूर्वक बोली -
"पाप नहीं, पुण्य कहिए !"
"सच-सच बता नैंसी, किसकी है यह बच्ची, जिसे... ?" कुछ विनम्र होते हुए सास ने वास्तविकता जानने का प्रयास किया । नैंसी ने सास के वाक्य को बीच में ही काटते हुए कहा -
"मेरी है यह बच्ची ! नौ महीने तक गर्भ में रखकर अपने रक्त से सींचा है मैंने इस बच्ची को ! अपनी बच्ची पर किसी की भी टेढ़ी दृष्टि मुझे सहन नहीं होगी, मम्मी जी ! यह ध्यान रखना !"
"मैं पूछती हूँ, मेरे बेटे रेयान का बच्चा कहकर तू किसका बीज अपनी कोख में रखकर नौ महीने से हमें छलती आ रही है ? रेयान कह रहा है, यह बच्चा उसका नहीं है । पिछले साल भर से उसका तेरे साथ ...!"
"मम्मी जी ! किसी दुकान से बीज लेकर किसान फसल उगाता है, तो फसल किसान की होती है, दुकानदार की नहीं !"
"नैंसी ! साफ-साफ कह दे, यह बच्ची मेरे रेयान की नहीं है ! किसी ... !" सास के प्रश्न का कोई स्पष्ट उत्तर न देकर नैंसी मुँह ढककर लेट गयी । माँ का समर्थन पाकर अगले दिन सुबह दस बजे रेयान ने नैंसी के हाथ में तलाक-पत्र थमाते हुए कहा -
"इस पर हस्ताक्षर करो ! नौ महीने तक किसी परपुरुष का पाप पेट में पालती रही और मेरे बूढ़े माँ-बाप को छलती रही । तुम-सी निर्लज्ज औरत के साथ अब मैं एक पल भी नहीं रहना चाहता ! तुम्हारे लिए मेरे जीवन में और इस घर में कोई जगह नहीं है !" रेयान के निकट ही उसकी माँ उपस्थित है । माँ ने कहा -
"नैंसी ! या तो बच्चे की डी.एन.ए. जाँच कराके सिद्ध कर दे कि बच्ची का पिता रेहान है, वरना तलाक के कागज तेरे सामने हैं ! सास का आदेश सुनकर नैंसी अर्थपूर्ण दृष्टि से मुस्कुराते हुए रियान की ओर देखकर बोली -
"मैं अपनी बच्ची की डी.एन.ए. जाँच नहीं कराऊँगी !" यह कहकर उसने तलाक-पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए पुनः कहा - "मैं स्वयं भी अपना शेष जीवन ऐसे नपुंसक के साथ व्यतीत नहीं करना चाहूँगी, जो बहुत चतुराई से छद्म प्रेम का बाना ओढ़कर आठ वर्ष तक मुझे छलता रहा ; मेरे ऊपर बाँझ का ठप्पा लगाकर स्वयं मस्ती से निर्दोष बना घूमता रहा है !"
"नैंसी ! मैं तेरी एक-एक बात पर भरोसा करती हूँ ! मुझे तेरे चरित्र पर पूरा भरोसा है ! बस, एक बार तेरे मुँह से सच्चाई सुनना चाहती हूँ ! सास ने सच्चाई जानने के लिए नैंसी से विनम्र आग्रह किया ।
"मम्मी जी ! यह सच्चाई तो आपको आपका बेटा ही बेहतर बता सकता है, आठ वर्ष तक सती-सावित्री कहलाने वाली नैंसी गर्भधारण करते ही एकाएक अपवित्र और चरित्रहीन कैसे हो गयी ? क्यों आपके बेटे को अपने ऊपर इतना विश्वास है कि मेरे बच्चे का बाप यह नहीं, कोई और है ?" कहते हुए नैंसी ने आत्मविश्वास की दृष्टि से रेयान की ओर देखा ।
"नैंसी, बेटी ! मैंने तुमसे पूछा है ! तुम मुझे बताओ, ऐसा क्या हुआ था, जिससे तुम दोनों के बीच इतनी कड़वाहट आ गयी, और यह निरीह-निर्दोष नन्ही-सी बच्ची उसका दंड भोग रही है !" नैंसी के प्रति माँ का विनम्र आग्रह देखकर रेयान के हृदय में अपराध-बोध का क्षणिक उदय हुआ । एक क्षणोपरांत उसने अत्यंत शीघ्रता से उग्रता धारण करते हुए कहा -
"मैं इसे अपना नाम नहीं दूँगा !"
"मैं अपने बच्ची की सिंगल-मदर बनने में सक्षम हूँ ! मैं स्वयं नहीं चाहती, तुम जैसे घटिया पुरुष को इस बच्ची का पिता होने का गौरव प्राप्त हो !" नैंसी ने रेयान पर घृणित दृष्टि डालकर कहा । अपने बेटे के लिए नैंसी के कठोर वचन सुनकर माँ का हृदयविदीर्ण हो गया, फिर भी उन्होंने नैंसी से सच्चाई जानने का अपना आग्रह दोहराया ।
आंगन में यज्ञ-वेदी पर मंत्रोच्चारण करते हुए पंडित जी का कई बार आदेश हो चुका है - बच्ची को गोद में लेकर पति-पत्नी यथाशीघ्र आएँ, विलम्ब करने पर शुभ मुहूर्त निकल जाएगा !" पंडित जी की आज्ञा का पालन करने के लिए नैंसी सास के चरणों पर झुक गयी । सास का हाथ अपने सिर पर आभास करके नैंसी को संतोष हुआ । आशीर्वाद प्राप्त करके वह खड़ी हुई, तो उसकी आँखों में आँसू थे । उसने बच्ची को गोद में उठाते हुए कहा -
"मम्मी जी ! स्वामी जी पुकार रहे हैं, शुभ मुहूर्त बीता जा रहा है ! पहले बेबी का नामकरण करा लें ? उसके बाद आप कहेंगी, तो मैं आपको सच्चाई अवश्य बताऊँगी ! पर सच सुनना आपके लिए इतना सहज नहीं होगा !" नैंसी के शब्दों को सुनकर उसकी सास किंकर्तव्यविमूढ़-सी खड़ी रही । किसी अज्ञात अनहोनी की आशंका तथा भय के साथ उनकी आँखों में विश्वास-अविश्वास, क्रोध-विनम्रता जैसे विरोधी भावों का आविर्भाव-तिरोभाव हो रहा है । नैंसी बच्चे को गोद मे लिए हुए कमरे से बाहर निकल कर यज्ञ वेदी पर आकर बैठ गयी । धीरे-धीरे भारी कदमों से चलते हुए सास भी आकर उसके पीछे बैठ गयी । उनकी भाव-भंगिमा से चेहरे पर तनाव स्पष्ट चमक रहा है । बेटे के विवाह के पूरे नो वर्ष पश्चात् घर-आंगन में बच्चे की किलकारी गूंजी थी, इसलिए खुशी के इस अवसर पर घर में उत्सव का वातावरण था । बड़ी संख्या में मित्रों-नातेदारों को बुलाया गया था । उन सभी की दृष्टि एकाएक रेयान की माँ के तनावयुक्त चेहरे पर जा टिकी । इस समय किसी ने उनके तनाव का कारण जानने की धृष्टता करने का साहस तो कोई नहीं कर सका, परंतु वहाँ पर उपस्थित प्रत्येक जिज्ञासु स्त्री-पुरुष के होंठ तनाव के संभावित कारणों पर चर्चा करने के लिए फड़कने लगे हैं । इसी समय स्वामी जी का आदेश हुआ -
"बच्चे के पिता को बुलाइए !" पंडित जी का आदेश सुनकर नैंसी ने सास की आँखों में देखा और उसी अनुक्रम से सास की दृष्टि आदेशात्मक मुद्रा में रियान की दृष्टि से जा टकरायी । माँ की दृष्टि का तात्पर्य समझते ही रेयान ने नकारात्मकता धारण कर ली -
"मैं यज्ञ में नहीं बैठ सकता !"
"वत्स ! वधू के साथ आपका बैठना अनिवार्य है ! पति-पत्नी की संयुक्त आहुति से ही यज्ञ संपन्न होता है ! पंडित जी ने रेयान को समझाते हुए कहा ।
"गुरुजी, नैंसी से मेरा तलाक हो चुका है ! अब मैं उसका पति नहीं हूँ ! रेयान का उत्तर सुनकर स्वामी जी क्षणभर के लिए हत्प्रभ हो गये । तदुपरांत नैंसी और रेयान को दृष्टि लक्ष्य करके गंभीर वाणी में बोले -
"कोई बात नहीं ! बच्ची के हितार्थ माता-पिता को अपने अहंभाव और कटुता का परित्याग कर देना चाहिए ! पंडित जी का परामर्श नैंसी को हितकारी लगा । अब तक अपने हाथ में पकड़े हुए तलाक-पत्र फाड़कर उसने यज्ञाग्नि में डाल दिये और अर्थपूर्ण दृष्टि से रियान की ओर देखकर मुस्कुराते हुए बोली -
"आकर बैठ जाइए ! स्वामी जी का परामर्श आपके और आपके परिवार के हितार्थ है !"
"हाँ बेटा ! स्वामी जी का आदेश कभी गलत नहीं होता ! माँ ने रेयान को समझाते हुए कहा ।
"मैं इस बच्ची ... !" रेयान ने कुछ कहना चाहा, परंतु नैंसी ने बीच में ही टोक दिया । वह जानती थी, रेयान क्या कहना चाहता है ? उसने रेयान के शब्द 'बच्ची' को बीच में काटते हुए कहा -
"बस ! आगे एक भी शब्द मत बोलना ! अन्यथा तुम जानते हो, कहने को मेरे पास भी बहुत कुछ है ! शायद आपसे भी कहीं अधिक, जिसे मित्रों-रिश्तेदारों के सामने मेरे मुँह से सुनकर आप आहत हो सकते हैं !" कहते हुए नैंसी के होठों पर मुस्कुराहट, वाणी में गंभीरता तथा मुद्रा में भयावह चेतावनी थी ।
पिछले आठ वर्ष से स्वामी अखंडानंद का प्रभाव यहाँ के स्थानीय लोगों में सिर चढ़कर बोल रहा था । स्वयं रेयान भी स्वामी जी अखंडानंद का परम भक्त है । सभी भक्तों की भाँति अपनी समस्याएँ प्रायः स्वामी जी को बताता है और समय-समय पर उन समस्याओं के समाधान हेतु स्वामी जी का मार्गदर्शन प्राप्त करता रहा है । इस विषय में भी रेयान ने अनेक बार स्वामी जी से चर्चा की थी । तब स्वामी हर बार यही कहा था -
"रेयान, पिछले कई वर्षों से तुम बच्चा गोद लेने के इच्छुक थे । जिस बच्चे को तुम गोद लेते, वह भी तुम्हारा अपना रक्तांश नहीं होता ! आज, जब तुम्हारी पत्नी को अपने गर्भ से बच्चे को जन्म देकर मातृत्व-सुख प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, तुम उसकी पवित्रता पर प्रश्न उठाकर उसके मार्ग को कंटकाकीर्ण मत बनाओ !"
"स्वामी जी, मेरी पत्नी के गर्भ में पल रहा बच्चा मेरा नहीं है । किसका है ? मुझे और मेरे परिवार को उसका अनुमान तक नहीं है ! नैंसी ने किसी परपुरुष के साथ मिलकर मुझे धोखा दिया है, इसलिए मैं उसके बच्चे को अपना नाम नहीं देना चाहता हूँ !" रेयान ने अपना असंतोष और विद्रोह प्रकट करते हुए स्वामी जी से कहा था ।
"रेयान, भले ही पत्नी के गर्भ में पल रहे भ्रूण को तुम अपना अंश स्वीकार नहीं करते हो, परंतु तुम्हारी पत्नी का तो वह अपना है ! दत्तक संतान तुम दोनों की ही अपनी नहीं होती, फिर भी उसको तुम अपना नाम देने के लिए तत्पर थे, तब अपनी पत्नी के गर्भस्थ शिशु को अपनाने में संकोच करना कल्याणकारी नहीं है ! बच्चे को निसंकोच स्नेहपूर्वक स्वीकार करो, इसी में तुम्हारा कल्याण है !" स्वामी अखंडानंद जी ने रेयान पर अपने उपदेशों का अपेक्षित प्रभाव न देखकर पुनः कहना आरंभ किया-- "तुमने कभी महाभारत पढ़ा है ? जब शांतनु के वंश पर संकट आ पड़ा था, तब उसकी पत्नी सत्यवती ने अपने विवाहपूर्व पाराशर ऋषि से उत्पन्न अपने पुत्र वेदव्यास को बुलाकर अपनी वंश वृद्धि के लिए उससे प्रार्थना की थी । तत्पश्चात् वेदव्यास के संयोग के फलस्वरुप ही शांतनु के पुत्र विचित्रवीर्य की कनिष्ठा विधवा अंबालिका ने पांडु तथा बड़ी विधवा रानी अंबिका ने धृतराष्ट्र नामक पुत्र को जन्म देकर उस वंश-वल्लरी को पल्लवित किया था !" स्वामी अखंडानंद जी के समझाने पर रेयान ने प्रकटतः विद्रोह बंद कर दिया था, किंतु उसके चित् में शांति का निरंतर अभाव बना रहा । अपनी पत्नी के गर्भ से उत्पन्न उसी बच्चे के नामकरण-अवसर पर रेयान आज पुनः उसी प्रकार स्वामी जी के समक्ष किंकर्तव्यमूढ़ अवस्था में खड़ा है, जैसे आठ माह पहले खड़ा था । एक ओर स्वामी जी का परामर्श और माँ का आदेश था ; पत्नी की चेतावनी थी, तो दूसरी स्त्री की अस्मिता पर प्रश्नचिन्ह लगाता रेयान का पुरुषोचित अहंभाव । और इन दोनों के बीच में दम तोड़ता हुआ विवश मृदु वात्सल्य भाव, जो मनुष्य-मात्र होने के नाते रेयान के हृदय में उमंगित हो रहा था ।
कुछ क्षणों तक रेयान विचार-मग्न मुद्रा में पाषाण-प्रतिमा की भाँति निश्चल खड़ा रहा । अंत में कुछ क्षणोंपरांत उसने हथियार डाल दिये और वह यज्ञ में भाग लेने के लिए पत्नी के पार्श्व में आकर बैठ गया । स्वामी जी ने यज्ञ संपन्नता की दिशा में मंत्रोच्चारण आरंभ कर दिया । जब तक यज्ञ संपन्न हुआ रेयान वहीं बैठा रहा, किंतु एक क्षण के लिए भी उसके चेहरे से तनाव नहीं हटा । पुत्र को तनावग्रस्त देखकर माँ की व्यग्रता बढ़ रही है ।
यज्ञ संपन्न होते ही माँ नैंसी से उस सच्चाई को जानने का प्रयास कर रही है, जिससे उसके बेटे की जीवन में निराशा और उदासी भर गयी है और जिस सच्चाई को सहजतापूर्वक सुन सकने की चुनौती नैंसी उन्हें कुछ देर पहले दे चुकी है।
"उस सच को सुन सकेंगी आप ?" नैंसी ने एक बार पुनः इस प्रकार प्रश्नात्मक मुद्रा में कहा, मानो वह निश्चय कर लेना चाहती है कि उसे सच कहना चाहिए अथवा नहीं ?
"हाँ, जरूर सुन सकूँगी !"
"तो ठीक है, सुनिए ! एक वर्ष तक हमारा दाम्पत्य-जीवन बहुत प्रेम से व्यतीत हुआ । इस एक वर्ष में आपकी दादी बनने की इच्छा बलवती हुई और आपने अपनी इच्छा मेरे समक्ष प्रकट की । अपनी इच्छापूर्ति के लिए आपने एक के बाद एक कई डॉक्टर्स से मेरी प्रजनन क्षमता की शारीरिक जाँच करायी । मुझे पूर्णतया स्वस्थ पाकर सभी डॉक्टर्स मेरे पति की जाँच कराने का परामर्श देते थे, परन्तु रेयान कोई न कोई बहाना करके जाँच के विषय को टलाते रहते थे । मेरे माता-पिता के बहुत आग्रह करने पर एक बार रेयान ने स्वयं जाँच कराके अपनी जाँच-रिपोर्ट हमें डॉक्टर को दिखाने के लिए दी । उसके बाद जब भी कभी डॉक्टर ने रेयान की जाँच कराने के लिए कहा, आपने हर बार वही जाँच-रिपोर्ट रेयान की प्रजनन-क्षमता के प्रमाण-पत्र के रूप में डॉक्टर्स के सामने रखी । हर अगले डॉक्टर के पास जाने पर मेरी हर बार नई जाँच हुई, फिर रेयान की जाँच हर बार नई क्यों नहीं हुई ? मेरी प्रजनन-क्षमता पर संदेह करके मेरी जाँच पर जाँच होती रही । उसी क्रम में बाँझपन का क्रूर ठप्पा मेरे प्रेमपूर्ण दांपत्य जीवन को खोखला करता रहा । आप के तानों ने मुझे कभी इतना आहत नहीं किया, जितना कि बाप नहीं बन पाने की पीड़ा में रेयान के उच्छवासों से निकलती हुई ठंडी आहों-कराहों ने किया था । धीरे-धीरे मैं नैंसी से 'बाँझ' संज्ञा में परिवर्तित हो गयी । पाँच-छह वर्ष तक डॉक्टर बदल-बदलकर मेरे बाँझपन का उपचार कराती रही । उनके उपचार से जब मैं निराश हो गयी, तब मैंने रेयान से अनुरोध किया कि कानूनी प्रक्रिया से किसी अनाथ बच्चे को गोद लेकर हम अपना परिवार बढ़ा लें ! रेयान ने मेरा अनुरोध स्वीकार कर लिया, लेकिन आपने यह कहकर मेरा अनुरोध अस्वीकार कर दिया कि जिस बच्चे का यह भी पता नहीं कि उसके शरीर में किसका रक्त संचरण हो रहा है ; जिसका न गोत्र ज्ञात है, न वंश ज्ञात है, आप एसे बच्चे को अपने बेटे को उत्तराधिकारी नहीं बनाएँगी । आपके कठोर स्पष्ट नकारात्मक निर्णय से मेरा मनोबल धराशायी हो गया और मैं पूर्णरुप से टूट गयी । उस समय मुझे प्रतिक्षण इसी अपराध-बोध का नाग डँसता रहता था कि मैं आपको इस परिवार का उत्तराधिकारी कैसे दूँ ? नहीं दे सकती थी !
धीरे-धीरे समय आगे बढ़ता गया और हमारे वैवाहिक-जीवन में नीरसता का अंश भी बढ़ता गया । अपनी वर्तमान परिस्थितियों में पहाड़-से नीरस जीवन को देख-सोचकर मैं भय से काँपने लगती थी । ऐसी स्थिति में मेरे पास समय काटने का एक ही सशक्त साधन था - पुस्तकें और स्वाध्याय ।
मेरी स्वाध्याय की रुचि के चलते एक वर्ष पहले एक दिन अलमारी में पुस्तक ढूँढते हुए मुझे अचानक एक अप्रत्याशित जाँच-रिपोर्ट मिली, जो यह प्रमाणित करती थी कि रेयान पिता बनने में सर्वथा अक्षम है । उस रिपोर्ट को देखकर मुझे बहुत क्रोध आया, परंतु मैं चुप रही । उस घटना के पश्चात् मैंने अपनी तसल्ली के लिए परिवार में किसी को बताए बिना रेयान के वीर्य की जाँच गुप्त रुप से करायी । इस जाँच का भी वही परिणाम था, जिसे आठ वर्षों तक रेयान ने मुझसे छिपाया था । शायद यही कारण रहा होगा कि वह मेरे अनुरोध घर अनाथ बच्चा गोद लेने के लिए तैयार हो जाता था । चूँकि आपको इस विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं था, इसलिए आप मेरे बाँझपन का उपचार कराती रही । रियान की जाँच-रिपोर्ट देखने के बाद आठ वर्षों तक उसके द्वारा बोला जाता रहा झूठ मेरे सामने था । मेरे मन में उसके झूठे व्यक्तित्व के प्रति वितृष्णा का भाव भर गया । मैंने उसी क्षण अपने ऊपर लगे बाँझपन के धब्बे को धोने का निश्चय कर लिया । अब मेरे समक्ष यह यक्ष प्रश्न था, गर्भधारण कैसे किया जाए ? एक बार सोचा, कृत्रिम गर्भधारण कराना उचित होगा ! किंतु, अगले ही क्षण मेरे अंतः से आवाज आयी - मैं प्राकृतिक ढंग से गर्भधारण क्यों न करूँ ? उस रेयान के लिए, जिसने निर्दोष नैंसी 'बाँझ' बनाकर समाज रूपी चील-कौवों को नौंच डालने के लिए सौंप दी ! उसी क्षण मैंने निश्चय कर लिया, मैं प्राकृतिक ढंग से गर्भाधारण करूँगी ! अपने निश्चय को कार्य-रुप में परिणत करने के लिए मैंने आपके परिवार के प्रत्येक सदस्य सहित अन्य लाखों लोगों द्वारा पूज्य स्वामी जी अखंडानंद से संपर्क करके सहयोग का निवेदन किया । एक पूज्य सत्पुरुष का निस्वार्थ सहयोग प्राप्त करने के अपने प्रयास में शत-प्रतिशत सफलता प्राप्त करने का शुभ पारितोष आपके समक्ष है !
"झूठ कह रही हो तुम ! अपने स्वामी जी इतना नीचे नहीं गिर सकते ; सवामी जी ऐसा पाप-कर्म कभी नहीं कर सकते !" नैंसी की सास ने क्रोधावेश से काँपती वाणी में कहा ।
"उचित कहती हैं आप ! स्वामी जी कभी कोई अनुचित कार्य नहीं कर सकते ! यहाँ भी उन्होंने एक स्त्री को उसके बाँझपन से मुक्ति दिलाकर उसकी अस्मिता की रक्षा करने का बहुत बड़ा पुण्य-कर्म किया है !" नैंसी के ससुर ने आगे बढ़कर कहा, जो अभी तक मौन बैठे थे ।
नैंसी के मुख से सच सुनकर उसकी सास निस्तेज हो गयी है । अब वह सोच नहीं पा रही हैं, क्या करें ? क्या न करें ? नैंसी ने पुनः कहना आरंभ किया - मम्मी जी, रेयान के कपटाचरण के फलस्वरूप उसके प्रति मेरे अन्तःकरण में वितृष्णा होने के पश्चात् मैं यह घर छोड़कर जाना चाहती थी, परंतु मेरे प्रति आपके स्नेह और आपके प्रति मेरी श्रद्धा तथा कर्तव्य-बोध ने मुझे रोक लिया था । चूँकि आप इस आंगन में बच्चे की किलकारियाँ सुनने के लिए तड़प रही थी, इसलिए प्रसव से पहले मेरे कदम इस घर को छोड़कर बाहर नहीं जा सके थे । अब आपको सारा सच ज्ञात हो चुका है, एक सच को छोड़कर । वह सच यह है कि मेरी पवित्रता का प्रमाण माँगकर एक स्त्री की अस्मिता का हरण करने वाले कपटाचारी रेयान के साथ अब मेरा और मेरी बच्ची का कोई संबंध नहीं है ! आप चाहें, तो इस बच्ची के साथ अपना संबंध रख सकती हैं !"
"नैंसी, मैंने तुझे कभी बेटी से कम नहीं माना है ! रेयान के साथ तेरा संबंध कैसा भी रहे, तेरे साथ और तेरी बच्ची के साथ मेरा रिश्ता ऐसा ही रहेगा, जैसा तू चाहेगी ! बेटी, तू पवित्र है, पवित्र थी और पवित्र ही रहेगी, क्योंकि पवित्रता शरीर का नहीं आत्मा का गुण है ! सास के अंतिम शब्दों से भाव-विह्वल होकर नैंसी की आँखों में आँसू और होंठों पर मुस्कुराहट फैल गयी । उसके मुख से केवल एक ही शब्द 'जी, मम्मी जी !' निसृत हुआ।