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तपती चाँदनी

तपती चाँदनी

इतनी खूबसूरत पत्नी पाकर महेश खुशी से फूला नहीं समा रहा था। महेश का मन तो काम पर जाने को भी नहीं करता था, चाँदनी ही जबर्दस्ती उसको तैयार करके समय से कार्यालय भेजती और कहती, “काम नहीं करोगे तो घर कैसे चलेगा, मैं तो हमेशा यहीं रहूँगी तुम्हारी बनकर तुम्हारे पास।” और महेश मज़ाक मे कह दिया करता, “चाँदनी तुम इतनी खूबसूरत हो, डर लगता है कोई तुम्हें मुझसे लूटकर न ले जाए, मुझे अपने भाग्य पर भरोसा नहीं है।” चाँदनी बस इतना बोल कर, “चलो हटो, पता नहीं क्या-क्या बोलते रहते हो,” और धकेल कर महेश को निकालती कार्यालय जाने के लिए बाहर निकाल देती।

महेश पूना की एक आइ टी कंपनी में मुख्य कार्यकारी अधिकारी के पद पर कार्यरत था और पूना की एक पॉश कॉलोनी में दो शयनकक्ष वाला फ्लैट लेकर रह रहा था।

महेश को रोज ही अपना काम जल्दी से जल्दी खत्म करके घर जाने की जल्दी रहती थी लेकिन काम इतना था कि वह जल्दी निकल ही नहीं पाता था, घर पहुँचने तक रात हो ही जाती थी, चाँदनी तब तक दरवाजे पर ध्यान टिकाये प्रतीक्षा करती रहती थी।

आज चाँदनी और भी सुंदर लग रही थी, काम करते हुए जब इधर उधर पूरे घर में घूमती तो उसकी पायल की छन छन पूरे घर को संगीतमय बना रही थी। महेश बोला, “तुम्हारा नाम तो चाँद होना चाहिए, चाँदनी तो तुम्हारे रूप की इस घर में फैल रही है।” महेश चाँदनी को अपने बाहुपाश मे लेने ही वाला था कि तभी दरवाजे की घंटी बज गयी।

“अरे यार! अब इस समय कौन आ गया, रोमांस का सारा मजा किरकिरा कर दिया।” महेश बड़बड़ाते हुए दरवाजे की तरफ बढ़ा और चाँदनी मुंह चिढ़ाती हुई रसोई में चली गयी।

दरवाजा खोला तो देखा बचपन का मित्र रमेश दरवाजे पर खड़ा था। रमेश लंबा चौड़ा, सुंदर डील डॉल वाला, खासम खास मित्र या यों कहिए कि दोनों की दांत काटी रोटी जैसी मित्रता थी। महेश ने अपनी दोनों बाहें फैला कर रमेश का स्वागत किया, रमेश ने भी महेश को कस कर अपनी बाहों मे जकड़ लिया। दोनों अंदर आकर बैठ गए और बैठते ही महेश ने शिकायती अंदाज में पूछा, “अच्छा बता तू मेरी शादी में क्यो नहीं आया?” रमेश बोला, “भाई इसीलिए ही अब तुम्हें और भाभी को मुबारकबाद देने आया हूँ, हाँ, भाभी है कहाँ, कहाँ छुपा रखा है, मैंने सुना है बहुत खूबसूरत है।”

“हाँ हाँ, जो तूने सुना है सही सुना है, मैं अभी मिलवाता हूँ तुझे चाँदनी से।” और महेश ने आवाज लगाई, “चाँदनी देखो तो कौन आया है?”

चाँदनी रसोई से निकल कर अपने कपड़े और बाल ठीक करके बैठक में आ गयी। महेश परिचय कराने लगा, “यह है तुम्हारी भाभी चाँदनी और यह तुम्हारा इकलौता देवर, मेरा बचपन का दोस्त रमेश है।” चाँदनी ने हाथ जोड़ कर नमस्ते की और फिर चाय नाश्ता लेने रसोई में चली गयी।

रमेश बोला, “महेश तू तो बड़ा भाग्यशाली निकला, इतनी खूबसूरत बीवी मिली है तुझे, चाँदनी तो वास्तव में चाँदनी ही है।” तब तक चाँदनी चाय नाश्ता लेकर आ गयी और तीनों बैठक में ही बैठ कर चाय पीने लगे। चाय के साथ साथ बातें भी करते जा रहे थे।

रमेश बोला, “भाभी आप तो पूरे दिन बोर हो जाती होंगी, यह महेश तो है ही बड़ा बोर, कहीं घुमाने भी नहीं ले जाता होगा, लेकिन चिंता न करो अब तुम्हारा देवर आ गया है, अब आपको बोर नहीं होने देगा इसी सप्ताहांत पर हम तीनों महाबलेश्वर घूमने चलेंगे।”

इस तरह रमेश उन दोनों को लेकर हर सप्ताह कहीं न कहीं घूमने का कार्यक्रम बना ही लेता। चाँदनी को भी इस तरह घूमने जाना अच्छा लगने लगा। कभी कभी रमेश दिन मे भी, जब महेश अपने कार्यालय में होता था, महेश के घर आ जाया करता और चाँदनी से बातचीत करने में पूरा दिन वहीं निकाल देता लेकिन महेश के आने से पहले ही कोई न कोई बहाना करके निकल जाता था।

चाँदनी को पता भी नहीं चला कि वह कब और कैसे रमेश की तरफ आकर्षित होने लगी, जिस दिन रमेश नहीं आता उस दिन चाँदनी बेचैन हो उठती।

उस दिन भरी बारिश हो रही थी, रमेश पूरी तरह भीग गया था, चाँदनी ने तौलिया और महेश का कुर्ता पाजामा देकर रमेश को कपड़े बदलने के लिए कहा। बाहर घनघोर बारिश हो रही थी, बिजली कड़क रही थी, बादल गरज रहे थे, अचानक बिजली इतना ज़ोर से कड़की लगा जैसे वहीं पर गिर गयी हो, चाँदनी दर गयी और डरकर रमेश से लिपट गयी। रमेश अभी अपने गीले कपड़े उतार कर तौलिये से पोंछ ही रहा था कि अचानक यह सब हो गया और तौलिया उसके हाथ से छूट गया। रमेश ने चाँदनी को अपनी बाहों में भर लिया, और दोनों ही खुद पर काबू न रख सके, अतः सारी मर्यादाएं तोड़ कर आपस में एक हो गए। फिर तो दोनों ने रोजाना ही पूर्ण रूप से मिलना शुरू कर दिया जैसे ही महेश निकलता तो रमेश घर पर आ जाता और पूरा दिन वहीं बिता कर साँय को महेश के आने से पहले ही निकल जाता।

महेश को बहुत दिनों बाद कार्यालय के काम से निबट कर जल्दी घर जाने का मौका मिला तो वह बड़ी खुशी खुशी घर के लिए निकल गया, न जाने कहाँ कहाँ चाँदनी के साथ घूमने की बात सोच ही रहा था कि घर आ गया। महेश अपनी चाबी से घर का दरवाजा खोलकर जैसे अंदर घुसा तो रमेश को चाँदनी के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख कर सन्न रह गया।

महेश के मन में आया कि ज़ोर से शोर मचाऊँ लेकिन वह कर न सका और दबे पाँव घर से बाहर निकल कर दरवाजा बंद कर दिया। इस समय महेश की स्थिति पागलों जैसी हो रही थी, उसके मन में बहुत से बुरे विचार आ रहे थे और वह जाकर नहर के किनारे अकेला में बैठ गया।

आज महेश को चाँदनी में भी तपन महसूस हो रही थी, वही शीतल चाँदनी उसको तपती हुई लग रही थी, उसका मन कर रहा था कि नहर में कूद कर अपने प्राण त्याग दूँ या घर जाकर उन दोनों के प्राण ले लूँ। बेचैन मन के साथ वह कब तक वहाँ बैठा रहा पता ही नहीं चला, चारों तरफ सन्नाटा था और उसका मन भी शांत हो चुका था क्योंकि उसने एक ऐसा निर्णय ले लिया था जो सबको चौंका देने वाला था।

बहुत देर से घर पहुंचा, पत्नी से हमेशा की तरह उससे लिपट कर स्वागत किया लेकिन आज उसको यह सब पराया पराया सा लग रहा था। किसी तरह रात काटी और सुबह होते ही उसने रमेश को फोन करके बुला लिया। घर के दरवाजे खिड़कियाँ सब बंद करके और चाँदनी, रमेश को अपने सामने बिठाकर बोला, “देखो! जो मैं पूछूंगा सच सच बताना, शायद इसमे ही हम तीनों की भलाई हो, क्या तुम दोनों एक दूसरे से इतना प्यार करते हो कि एक दूसरे के बिना रह नहीं सकते?”

महेश के इतना पुछने पर दोनों की आंखे नीचे झुक गयी और दोनों ही शर्म से जमीन में धँसने लगे दोनों को मौन देखकर महेश ने कहा, “अगर तुम दोनों एक दूसरे से प्यार करते हो एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते तो मैं चाँदनी को तलाक देकर तुम दोनों की शादी करवा देता हूँ, यही हम तीनों के लिए अच्छा भी रहेगा।”

चाँदनी और रमेश समझ चुके थे कि महेश सब कुछ जान गया है अतः दोनों ने चुप रहने में ही भलाई समझी। महेश ने चाँदनी की शादी रमेश से करवा दी और भारी मन से पूना छोड़ कर बेंगलुरु चला गया, जहां पर उसने नई कंपनी में नौकरी कर ली लेकिन दूसरी शादी नहीं की। कोई अगर इस बारे में बात भी करता तो महेश मना कर देता था, शादी, विवाह, पत्नी, मित्र इन सब पर से उसका विश्वास उठ चुका था।

सुबह की गुनगुनी धूप, सर्दी का मौसम, महेश बाल्कनी में बैठ कर चाय पी रहा था, चाय की चुसकियों के बीच में अखबार की मुख्य मुख्य खबरें भी देख रहा था कि एक खबर पढ़ कर चौंक गया, “अवैध सम्बन्धों के चलते पत्नी और मित्र का कत्ल” खबर का विस्तार पढ़ा जो इस तरह था, “रमेश को शक था कि उसकी पत्नी के उसके मित्र के साथ अवैध संबंध हैं, और एक दिन उसने दोनों को रंगे हाथों पकड़ भी लिया। रमेश यह सदमा सह नहीं सका और उसने उसी क्षण दोनों को गोली मार दी। दोनों का कत्ल करने के बाद रमेश ने स्वयं पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में यर्वदा जेल भेज दिया गया।”

महेश अखबार और चाय वहीं छोड़ कर जल्दी से तैयार हुआ और पूना यर्वदा जेल पहुँच गया रमेश से मिलने के लिए। सभी औपचरिकताए पूरी करने के बाद उसको रमेश से मिलने की अनुमति मिली।

रमेश आज भी अपनी नजरें जमीन में गड़ाए था, उसका साहस नहीं हो रहा था महेश की तरफ देखने का, फिर महेश ने उसकी ठुड्डी के नीचे हाथ लगाकर उसका चेहरा ऊपर उठाया और उसकी नजरों में नजरें डाल कर कहा, “रमेश! जिस जगह तू आज खड़ा है, मैं बहुत साल पहले आ सकता था तुम दोनों का कत्ल करके, रिवौल्वर मेरे पास भी था, मैं उस समय नहर में कूद कर अपनी जान भी दे सकता था लेकिन जब मैंने सोचा कि किसके लिए मैं अपनी जान दूँ या किसको मार कर उम्र भर जेल में रहूँ, क्या उनके लिए जिन पर मैंने भरोसा किया? जिनको मैंने प्यार किया? जिन्होने मेरे साथ विश्वासघात किया? और मेरी आत्मा से आवाज आई कि जो तेरे हैं ही नहीं, जो तुझे अपना न सके उनके लिए क्यों मारना चाहता है और उनको मार कर जेल की चारदीवारी में क्यो सड़ना चाहता है? तुम्हारे साथ तो वही हुआ जो तुमने मेरे साथ किया था तब मैंने वह फैसला लिया था यह सोच कर कि शायद हम तीनों के लिए अच्छा होगा, मेरे लिए तो अच्छा ही रहा।” इतना कहकर महेश वापस मुड़ गया बेंगलुरु आने के लिए।

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