डायन Pawnesh Dixit द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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डायन

परिप्रेक्ष्य / स्वीकृति

‘प्रस्तुत कहानी में चित्रित किये गए सभी दृश्य, घटनाएं ,पात्र, कहानी का शीर्षक, सभी काल्पनिक हैं इनका किसी क्षेत्र विशेष में घटी सजीव घटना से कोई सरोकार नहीं है यदि इन घटनाओं, पात्रों, दृश्यों का किसी सजीव घटना से सम्बन्ध पाया जाता है तो ये महज संयोग मात्र होगा| इसमें लेखक का कोई उत्तरदायित्व नहीं होगा | कहानी की विषय वस्तु, संवाद, आदि लेखक के स्वतंत्र विचार हैं | पाठकों से अनुरोध है लेखक का कहानी को मनोरंजन के साथ साथ उन्हें उद्देश्य से भी अवगत कराना है | ‘

***

“डायन”

उस अनजान शहर में उसे पहचानने वाला कोई नहीं था फिर भी अनायास ही उसके मुहँ से अपनी पुरानी ज़िन्दगी की कुछ यादें ताज़ी हो गयी थी और अलका को उसने बता दिया था कि पुराने शहर के लोग उसे डायन कहकर बुलाते थे कोई पत्थर मारता, कोई गन्दा पानी फेंकता,कोई थूक के भाग जाता | वैसे वो चाहती नहीं थी कि ये बातें वो किसी को भी बताये फिर भी आज अलका ने उसके दिल को छु लिया था मानो या कुरेद दिया था जो वो रोक न सकी | वो जब नयी -नयी आयी थी इस बस्ती में कोई भी उससे ज्यादा बात नहीं करता था और वो खुद भी ज्यादा किसी से घुलती मिलती नहीं थी उसी के मोहल्ले में रहने वाली अलका को ये नागवार गुज़रा एक इंसान होने के नाते और अपने समाजसेवक होने के फर्ज के नाते सो आज जाकर वह उसकी दिल की परतें खोलने में कामयाब हो सकी थी और जान गयी थी उसकी उदासी का कारण |वह अपने अतीत की यादों से निकल नहीं पा रही थी,डॉक्टरों के काफी प्रयास के बाद वह अपनी बदहाल हालत से बमुश्किल ही निकल पायी थी | उसके सीने में आज भी वही दर्द था वही गंदेपन का अहसास, वही सड़ांध जिसकी गंध उसके शरीर में संक्रमण की तरह फ़ैल चुकी थी |

अब गलती वो ये कर बैठी कि उसने ये सच्चाई अलका को बता दी बिना सोचे कि वह कितनी विश्वसनीय है फिर भी उसके अंतर्मन में विश्वास था और फिर अलका का बात करने का अंदाज़ और आँखों से शायद ,उसे सही लगा तभी तो आज वह बोल पड़ी कि हाँ!! हाँ !!मैं डायन हूँ | मुझे जीने का कोई अधिकार नहीं मुझे ख़तम कर दो! इतना कहककर उसके आँसूं छलक पड़े |

अलका ने उसे सांत्वना दी कि वो चिंता न करे वह किसी को भनक तक नहीं होने देगी उसके अतीत के बारे में और जो मदद वह उसे दे सकती है वो हरसंभव प्रयास करेगी लेकिन वो जानना चाहती थी कैसे हुआ ये सब उसके साथ?? उसके पीछे कौन लोग ज़िम्मेदार हैं ?? कई मुलाकातों के बाद उसे विश्वास हो गया था कि अलका उसकी बात किसी से नहीं कहेगी एक दिन उसने अपनी कहानी सुनानी शुरु की – उसका नाम डायन ही रख दिया गया था बचपन से ही उसे अपने गाँव-मे बच्चों बूढ़ों से केवल तिरस्कार ही मिला था कभी उसके कपड़े फाड़ दिए जाते तो कभी कीचड़ से सान दिए जाते और एक बार तो मज़ाक-मज़ाक में कुछ लोगों ने उसके मुहं पर कालिख तक पोत दी थी|

बताते बताते रुआंसी हो उठी!!, अलका ने उसे फ़ौरन सीने से लगाया और प्यार से पूछा कि आखिर क्यूँ उसे वो लोग डायन कहते थे ऐसा क्या किया था उसने जो आज वो इस बदसुलूकी की पीड़ित बनी | सभ्य और समझदार मनुष्यों का यही गुण होता है कि व्यक्ति की हीनता वाली बात बातचीत के किसी भी भावनात्मक स्तर पर हो उसे शांत और नरम भाव से ही पूछते हैं |वह उनकी तेज़ आवाज़ या चिल्लाहट को अपनी निजता का हनन इतनी जल्दी नहीं मानते और उस परिस्थति में भी अपने आपको शांत रखते हैं जैसा अलका ने वहां दिखाया था |

फिर सिसकते हुए उसने बताया कि मैडम मेरे शरीर पर एक जगह पीला दाग है मैं गाँव में पैदा हुयी वहीं पली बड़ी वहां न तो डॉक्टर है न अस्पताल और फिर मेरे घर में कौन इतना पढ़ा लिखा था जो मुझे ले जाकर दिखाता अस्पताल में कि ये कहीं कोई रोग तो नहीं है ,तो बन गयी मनगढ़ंत कहानियां और ताने मिलने लगे सुबह शाम के | माँ बाप का पता होता तो शायद एक उम्मीद थी कि मुझे भी सर उठाकर जीने का मौका मिल सकता था मुझे तो एक देवीस्वरूप बूढ़ी माँ ने १५ साल तक पाला वही बताती है कि मेरी माँ को गाँव वालों ने पीट पीट कर मार डाला और मेरे पिता इस सदमे को सहन न कर सके और वो पागल हो गए |

अलका ये सब कहानी बड़े ध्यान से सुन रही थी वह जान गयी थी कि वह लड़की अपने बुरे अतीत में खोते हुए बड़ी मुश्किल से सब कुछ बताती जा रही थी | अतः बीच में बोलकर उसे बाधित करना उचित नहीं समझा,

मैं कुछ दिनों तक वहां रहती रही फिर बंजारों की तरह कभी इस गाँव कभी उस गाँव, मुझे अच्छे से याद है मेरी माँ जिन्होंने मुझे पाला था चल बसी तब मैं १५ साल की थी और अपने नाम को लेकर घुट चुकी थी कि लोग क्यूँ मुझे डायन कहते हैं? अब मेरा ये पांचवा गाँव है आज तक किसी ने इतने प्यार से पूछा ही नहीं तो मैं बताती ही क्या ? बस गालियाँ ही खाने को मिलीं आपको देखकर कुछ अपनापन सा लगा तो इतना सब बता बैठी!!

लेकिन आप यहाँ से निकलने के बाद यही कहियेगा कि मैं एक डायन से ही मिलने गयी थी वैसे भी अब ये गाँव छोड़ने का वक़्त आ गया है | यहाँ के भूखे मर्दों की हवस का शिकार हूँ इसके पहले मैं छोड़ दूं ये गाँव, बोलते-बोलते उसकी आँखें लाल होती जा रही थीं चेहरा मुरझाया भी था पर आज अजीब सी गंभीरता भी उसके चेहरे पर थी; अलका का एक बात पूछने का मन था कि कैसे वह डॉक्टर से मिली और उसे क्या रोग था? किसने उसकी मदद की? पर अब इस मसले पर ज्यादा पूछना उसे उचित नहीं लगा क्यूंकि वो समाजसेविका के अतिरिक्त एक इंसान भी थी जिसने एक तड़पती इंसानी रूह को आज छुआ था|

वह संभवतः समझ गयी थी उस बूढ़ी माँ की भूमिका हो न हो उसने या उसकी सोच और समझ ने उस डायन को इस दकियानूसी, रूढ़िवादी पागलपन अभिशापित, त्रासित जीवन से जीने का मार्ग सुझाया था जिसकी बदौलत आज वो जिंदा थी | जाते जाते अलका ने उससे ये जरूर कह दिया कि यदि वह चाहे तो अपना अच्छा सा नाम रखकर पुरानी ज़िन्दगी को भूलकर नयी ज़िंदगी की शुरुआत कर सकती है|पर इतना सब दिले दास्तान कहने के बाद वह तो अब जान चुकी थी कि नाम में क्या रखा है असल पहचान किसी भी नाम की उसके खुद के काम से होती है | नए गाँव जाकर वह भी कोई अच्छा रोजगार तलाशेगी सोचते सोचते वह सो गयी |