“ सपना “
लोग कहते हैं कि गरीब परिवार में जन्म लेने से ही सपने देखने का अधिकार भी छिन जाता है पर सोहन हमेशा से ही एक सपना देखा करता था हवाइजहाज़ उड़ाने का | अभी उम्र ही कितनी थी उसकी जिस उम्र में लड़के पढने स्कूल जाते हैं वह अपने पिता के काम में हाथ बटाता था | मोहल्ले के लड़कों के संग कभी गुल्ली डंडा खेलता तो कभी कंचे तो कभी क्रिकेट | बड़ा ही उत्साही और आत्मविश्वासी था हर खेल में जीतता था | सभी दोस्तों का वह चहेता था | बिना उसके वह कहीं नहीं जाते थे वह अपने माँ और पिता का बहुत आदर करता था खेत भूमि ज्यादा होने के कारण ही उसके पिता ने उसे पढने नहीं भेजा था | बचपन से ही वह अपने पिता के साथ खेत में उनका हाथ बटाता था |
हवाईजहाज़ में बैठने का ख्याल उसके दिमाग में आसमां में हवाईजहाज़ उड़ते हुए देखकर आया था | बेचारा गाँव में रहता था न तो मोटर गाड़ी, न बस न रेल, बस ज्यादातर सफ़र बैलगाड़ी या तान्गागाड़ी में कटता था | तो एक दिन आसामान में उड़ते हुए हवाईजहाज को देखकर मन हिलोरे मार ही गया और सबसे बड़ा अरमान यही रख लिया अपने मन में - एक दिन बहुत से पैसे जमा करके हवाईजहाज़ का टिकेट लेकर उसमें बैठूँगा ||
सोते-जागते, उठते, बैठते, घूमते, दौड़ते, पूरे दिन में ७- से ८ बार उसका मन हवाईजहाज़ में बैठ जाता था | बस सोचकर ही वह इतना खुश हो जाता था जैसे सचमुच वह एक मिनट पहले हवाईजहाज की सैर करके आ रहा हो | अब धीरे धीरे उसकी उम्र शादी लायक हो चली थी घरवालों को चिंता होने लगी कि उसके लिए सुकन्या कहाँ से ढूँढी जाए एक तो सोहन पढ़ा लिखा नहीं था दूजा कोई बहुत बड़ी जमीन जायदाद भी नहीं थी कि चित्रलेखा, प्रियंवदा जैसी राजकुमारी गले में वरमाला डाल दे |
किस्मत से एक रिश्ता उसके लिए बहुत अच्छा आया लड़की पढ़ी लिखी थी | सोहन भी बहुत खुश था | कल उसको दूल्हा बनना था लेकिन आज रात में टिमटिमाते तारों को देखा तो सबसे पहले एक ही ख्याल आया कि हवाईजहाज में भी एक दिन बैठना है | पहले पहल ये नहीं याद आया कि नयी ज़िन्दगी शुरु होने जा रही है या अर्धांगिनी कैसी होगी घर कहाँ होगा नौकरी क्या
होगी वैगरह | उसका हवाईजहाज़ में बैठना एक जूनून बन गया था बस कभी कम पैसों के चलते कभी घर की परेशानियों के चलते पूंजी नहीं जुटा पा रहा था कि हवाई सैर करे | लेकिन उमंग में कोई कमी नहीं थी |
५ साल में उड़ने का सपना देखकर जितना रोमांच होता था १८ की उम्र में भी उतना ही रोमांच था | शादी हो गयी धूम धाम से, सुन्दर सी कमाऊ बीवी आयी और दो सुन्दर बच्चे हुए | अब सोहन और उसके घरवाले, सब बड़े खुश, बीवी भी खुश क्यूंकि सोहन में कोई बुरी लत नहीं थी और न ही कोई ऐब | बीवी को थोड़ा अखरता था कि वह किसानी ही करता है और पढ़ा लिखा नहीं है ज्यादा लेकिन उसने अपने मन को किसी तरह समझा लिया था | संस्कारी जो थी,मानती थी पति कैसा भी हो वह परमेश्वर होता है |
आज सब कुछ था सोहन के पास फिर भी उसके दिमाग में हवाईजहाज़ पर उड़ने का सपना आज भी अखरता था | अब उसको ये छोटी सी चिंता आ गयी थी कि अकेले कैसे वह हवाईजहाज़ पर बैठेगा क्यूंकि बीवी बच्चों को छोड़ दिया तो वे बुरा मान जायेंगे | और आज फिर वही एक आम आदमी के रूटीन ढर्रे वाली ज़िन्दगी मुहं बाय उसके सामने खड़ी थी| बच्चों की पढाई, लिखाई कपड़े खिलौने, बीवी की सारी गृहस्थी का सामान और माँ बाप की सेवा सब कुछ केवल उसी के माथे था | भाई!! अब कमाते नहीं थे तो ये सब तो संभालना ही था ; साल बीतते गए | बच्चों का रिपोर्ट कार्ड बदलता गया धीरे धीरे दोनों बालक १० की परीक्षा तक पहुँच गए | लेकिन उनके पैदा होने से आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ होगा जब सोहन ने दिन में कम से कम एक बार ये न सोचा हो कि उसे एक दिन हवाईजहाज़ पर बैठना है |
बचपन से लेकर आज तक कई बार तो परिस्थितियों के चलते और कई बार टाल -मटोल के चलते वह अपना जूनून तक पहुँच नहीं पाया था | ये एक हंसी की बात हो सकती है कि इतना छोटा और अजीब सा जूनून उसका था लेकिन गाँव में जहाँ खेतों में लोग शौंच करते हुए माटी में सने सने ही दौड़ पड़ते हैं अगर कोई मरकही गाय या जंगली जानवर उन पर हमला बोल दे, वहां के बच्चे के लिए हवाईजहाज़ में बैठने का सपना वाकई बहुत बड़ा, करामाती और जुनूनी हो सकता है|
सब कुछ अच्छा चल रहा था | ज़िन्दगी भी अपने ही रंग में ढलते हुए जबरदस्त तरीके से आगे बढ़ रही थी | दोनों ही लड़के पढ़ लिख कर नौकरी करने लगे थे | सभी को अब उनकी शादी की चिंता थी | वधु की तलाश की गयी | सौभाग्य से सुयोग्य वधु मिल गयी | अब सोहन जी अपनी दोनों ही चिंताओं से मुक्त हो चुके थे | लेकिन अब उम्र ४० की हो चली थी | पर खुली मुक्त हवा में उड़ने का खवाब अभी भी बिलकुल ताज़ा और जवान था | दोनों लड़कों की शादी करने के बाद आज फिर वही ख्याल लहरा लहरा के मन ही मन देखने लगे |
तभी ध्यान आया या ऊपर वाले ने उस वक़्त बुद्धि दे दी कि सोचते -सोचते उम्र ४० की हो गयी है और देर करी तो उड़ने का मज़ा क्या बुढ़ापे में लेंगे ? जैसे ही ख्याल आया तो सोचा अब कर ही डालना है ऊपर से अब कोई जिम्मेदारी भी नहीं है| खूब बन-ठन कर गए ट्रेवल एजेंट के पास | बहुत खुश !!गरमजोशी से एजेंट से हाथ मिलाया और सबसे लम्बी दूरी यानी कन्याकुमारी तक का केवल एक ही टिकेट बुक कराया |
और वापस घर निकले ही थे जाने को, पता नहीं क्या मन में आया कि ऑटो वाले को हाथ देकर रुकवाया और चढ़ लिए फटाफट बोल दिया कहाँ चलना है ! मन बड़ा ही खुश था कि आज अपनी मुराद पूरी करके झंडा फतह करने जा रहे है | मन बल्लियों उछल रहा था | अचानक सामने से आ रहे तेज़ रफ़्तार ट्रक ने ओवरटेक करने के चक्कर में किनारे चल रहे ऑटो को टक्कर मार दी | इतनी जोरदार टक्कर थी कि उछल कर ऑटो दूर गिरा और दोनों लाशें खून से सनी सड़क पर पड़ी थी| लाशों के चीथड़े हो गए थे और ऑटो बिकुल रौंदा हुआ एक किनारे पड़ा था | सोहन का हवाईजहाज़ में बैठने का सपना तो अधूरा रह गया लेकिन बेचारे का हवा में उड़ने का सपना जरुर पूरा हो गया भले शरीर ने साथ न दिया हो |
काश!! सोहन ने इतनी देर न के होती अपने एक अकेले सपने को पूरा करने में| सपना तो देखा मासूम और पूरे नयी जोशीली आँखों के साथ ; पर पूरा करने चले ३५ साल बाद | माना कि हालात जिम्मेदारी परिस्थितियां और पुरुषार्थ के चलते व्यक्ति अपने सपनों को बमुश्किल ही पूरा कर पाता है | ज्यादातर हालात से समझौता करके अपनी ज़िंदगी को पानी के बहाव की तरह बह जाने देते हैं और उसी बहाव के साथ तैरते चले जाते हैं | महत्वकांक्षा,सपने, सब एक कोने में सड़ते हुए कब्र के ऊपर ही लटके रह जाते हैं |