उड़नखटोला
आशीष कुमार त्रिवेदी
वो अपनी साईकिल में बैठी तेज़ी से चली जा रही है। उसने सबको पीछे छोड़ दिया है। ऐसा लगता है मानो हवा के रथ पर सवार हो। जब भी कोई सामने आता दिखाई देता तो ' ट्रिन ट्रिन ' साईकिल की घंटी बजा देती। वो बहुत खुश है।
" चंदा उठ आज इस्कूल नहीं जाना है क्या ? " उसकी माँ ने उसे झिंझोड़ कर जगाया।
चंदा ने आँखें खोलीं। चारों तरफ देखा। वो अपनी खटिया पर थी। वो सपना देख रही थी।
" क्यों आज इस्कूल की छुट्टी है क्या ? " उसकी माँ ने सवाल किया। चंदा ने ना में सर हिलाया और उठ कर तैयार होने चली गई।
चंदा रोज़ एक लंबी दूरी तय करके स्कूल जाती है। कोई साधन न होने के कारण उसे पैदल ही जाना पड़ता है। आने जाने में बहुत वक़्त लगता है और वह थक भी जाती है। उसके पिता एक छोटे किसान थे। उनकी इच्छा थी कि वह खूब पढ़े। उनके जाने के बाद चंदा की माँ अब अपने पति की इस इच्छा पूरा करना चाहती है। अतः तकलीफें उठा कर भी उसे पढ़ा रही है। आठवीं तक की पढ़ाई उसने गाँव के स्कूल से की। किंतु आगे की पढ़ाई के लिए उसे दूसरे गाँव जाना पड़ता है। उसकी ही नहीं गाँव के हर बच्चे की जो आगे पढ़ना चाहता है यही समस्या है।
चंदा पढ़ाई में बहुत अच्छी है। वह पढ़ लिख कर कुछ बनना चाहती है। उसकी दिली तमन्ना है कि उसके पास एक साईकिल हो जिस पर बैठ कर वह मज़े से स्कूल जा सके। किंतु माली हालत ऐसी नहीं है की वह साईकिल खरीद सके।
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जन्नत एन्क्लेव शहर के पॉश इलाकों में से एक है। यहाँ अपर मिडिलक्लास की रिहाइश है। माँ बाप अपने बच्चों की हर इच्छा पूरी करते हैं ताकि उन्हें कोई तकलीफ़ न हो।
मिसेज़ मलिक अपनी नौकरानी से स्टोररूम की सफाई करवा रही थीं। उनकी नज़र स्टोररूम के कोने में पड़ी साइकिल पर गई। यह उनकी बिटिया की साईकिल थी। अब वह बड़ी हो गई है और स्कूटी से कॉलेज जाती है। उनके मरहूम शौहर ने यह साईकिल बड़े प्यार से अपनी बिटिया के लिए खरीदी थी जब वह चौदह वर्ष की हुई थी। इसीलिए मिसेज मालिक ने अभी तक इसे स्टोररूम में संभाल कर रखा है। उन्होंने अपनी नौकरानी से कपड़ा लिया और स्वयं ही साईकिल को पोंछने लगीं।
" मॉम आप कहाँ हैं। " कालेज से लौटी उनकी बेटी फलक ने आवाज़ लगाई। नौकरानी को कुछ हिदायतें देकर वह बाहर आ गईं।
उनके बाहर आने पर फलक ने पूंछा " कहाँ थीं आप। मुझे बहुत भूख लगी है। "
" यहीं पीछे स्टोररूम की सफाई करवा रही थी। " मिसेज़ मलिक ने जवाब दिया।
" स्टोररूम में तो सिर्फ बेकार का सामान भरा है। वो मेरी पुरानी साईकिल वो अब किस काम की। हटाती क्यों नहीं सब। खैर जल्दी से खाना लगाइये। " कह कर फलक फ्रेश होने चली गई।
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चंदा के स्कूल में आज बहुत रौनक थी। एक व्यक्ति उनके स्कूल में आया था। वह अपने साथ कापियां , पेंसिल, चलेट्स इत्यादि लाया था। जो वह बच्चों में बाँट रहा था। अपनी विदेशी लहज़े वाली हिंदी में वह उनसे बात कर रहा था। उनकी समस्याएं पूंछ रहा था।
चंदा को भी उसने कुछ कापियां व चॉकलेट्स दिए। चंदा ने उसे बताया कि कैसे गाँव के बच्चों को पैदल चल कर इतनी दूर पढने आना पड़ता है। उसने साईकिल खरीदने की अपनी दिली तमन्ना के बारे में भी उसे बताया।
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जैक पटेल का जन्म लंदन में हुआ। उसके माता पिता भारतीय मूल के थे। दो वर्ष पूर्व वह भारत आया और अपने एक मित्र के साथ मिलकर उसने ' हसरतें ' नाम से एक समाजसेवी संस्था प्रारंभ की। यह संस्था गरीब बच्चों की सहायता करती थी। उनकी उन इच्छाओं को पूरा करती थी जो धन के आभाव के कारण वे पूरा नहीं कर सकते थे।
इसी सिलसिले में वह चंदा के स्कूल गया था। बच्चों से बात करके उनकी समस्या का पता किया। उसी दिन उसने तय किया की वह इन बच्चों के लिए अवश्य कुछ करेगा।
जैक ने एक बात महसूस की थी कि शहरों में कई परिवार ऐसे हैं जिनके घरों में बहुत सी वस्तुएं बेकार पड़ी रहती हैं। जो उन लोगों के लिए उपयोगी हो सकती हैं जो उन्हें स्वयं नहीं ख़रीद सकते हैं। उसकी संस्था का उद्देश्य लोगों में मदद की भावना का विकास करना भी था। अतः उसकी संस्था लोगों से इस प्रकार का सामान लेकर ज़रुरतमंद लोगों को देती थी।
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फलक जब कालेज से लौटी तो कुछ गंभीर थी। मिसेज़ मलिक के पूंछने पर उसने बताया की आज उसके कालेज में एक व्यक्ति आया था जो एक समाजसेवी संस्था चलाता है जो की ग़रीब बच्चों की सहायता करती है। फलक ने अपनी माँ को चंदा और उसके जैसे बच्चों की समस्या के बारे में भी बताया।
कुछ गंभीर स्वर में वह अपनी माँ से बोली " मॉम हमारे पास कितना सामान होता है जो हम कभी इस्तेमाल नहीं करते लेकिन वह दूसरों के बहुत काम आ सकता है। मेरी पुरानी साईकिल को ही लो। वह मेरे अब किस काम की है। लेकिन हमारे स्टोररूम में बेकार पड़ी है। अगर हम वह साईकिल उस संस्था को दे दें तो वह किसी के काम आ सकती है। "
" लेकिन बेटा वो तुम्हारे पापा ने तुम्हें बड़े प्यार से गिफ्ट की थी। वह उनकी निशानी है। " मिसेज़ मलिक ने कुछ सकुचाते हुए कहा।
" मॉम पापा तो हमारे दिल में बसते हैं। उन्हें भी ख़ुशी होगी जब वह साईकिल किसी के काम आएगी। " फलक ने समझाया। " मॉम ज़रा सोंचिये क्या ये अच्छा होगा की यह साईकिल यूं ही पड़ी पड़ी बेकार हो जाए और फिर कोई कबाड़ी इसे ले जाए। या फिर किसी ज़रूरतमंद के काम आये। "
फलक की बात सुनकर मिसेज़ मालिक सोंच में पड़ गईं। फलक की बात उन्हें सही लगी। उन्होंने निर्णय लिया कि वे साईकिल उस संस्था को दे देंगी।
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चंदा और कई बच्चे साईकिल से रेस लगा रहे हैं। चंदा उन सबसे आगे है। वह तेज़ी से साईकिल चलाती हुई स्कूल जा रही है। वह बहुत खुश है।
यह कोई सपना नहीं सच है। मिसेज़ मालिक के स्टोररूम में बेकार पड़ी साईकिल अब उसकी हसरतों का उड़नखटोला बनी हुई है।