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नन्हकू

नन्हकू

आशीष कुमार त्रिवेदी

ताई ने काम करते करते घड़ी की तरफ देखा। किसी भी समय वो आने वाला होगा। आयेगा, अपना खाना खायेगा, कुछ देर आराम करेगा फिर चला जायेगा सड़कों पर आवारागर्दी करने। पिछले दो सालों से उसका यही नियम चल रहा है। बड़ा ही मनमौजी है। घर में टिकना उसे पसंद नही। बस खाया पिया और निकल लिए। लेकिन ताई को उससे कोई शिकायत नही थी। उनकी तो जान बसती थी उसमें।

दो साल पहले मिला था वह ताई को। बरसात के दिन थे। कुछ ही समय पहले वर्षा हुई थी। ताई कहीं से लौट रही थीं। स्थूलकाय ताई डर रही थीं कि कहीं फिसल ना जाएं। अतः बहुत संभल कर चल रही थीं। वह ना जाने कब उनके पीछे लग लिया। बार बार ताई के पैरों के पास आ जाता था। ताई ने दुत्कारा किन्तु उसे कोई फर्क नहीं पड़ा। वह ढीट की तरह उनके पीछे पीछे चलता रहा। दरवाजे पर पहुँच कर ताई ने फिर डांटा " अब क्या पीछे पीछे घर में भी घुसेगा।" वह अपनी मासूम आँखों से उन्हें ताकने लगा और छोटी सी दम हिलाने लगा। ताई का मन पसीज गया उस निरीह जीव पर । शायद भूखा होगा। तभी पीछे लगा है। कोई खाने को भी नही देता आजकल। पहले खाना बनाते समय एक रोटी कुत्ते की भी बनाते थे। यही सोच कर उन्होंने एक कटोरे में दूध डबलरोटी सान कर दे दिया। वह सप सप कर खाने लगा। खाने के बाद वहीँ आराम से बैठ गया। ताई ने फिर डांटा "क्या अब यहीं डेरा जमाएगा।" वह उठा और चुप चाप चला गया।

अगले दिन जब वह तुलसी को जल चढ़ाने बाहर आईं तो देखा की तुलसी का गमला गिरा हुआ है। कौन कमबखत यह गमला गिरा गया। वह मन ही मन बड़बड़ाईं। तभी उन्हें कूं कूं की आवाज़ सुनाई दी। देखा तो वही था। " तू फिर आ गया। ठहर, अभी मज़ा चखाती हूँ।" कह कर ताई उसे मारने दौड़ीं। किन्तु वह चपलता से ताई के हाथ से बच निकला। ताई फिर झपटीं। वह फिर मछली की तरह हाथ से फिसल गया। ताई जितनी कोशिश करतीं वह उतनी ही फुर्ती से निकल जाता। हार कर ताई वहीँ कुर्सी पर धम्म से बैठ गईं। वह जोर जोर से हांफ रही थीं। वह ताई के पास आया और अपने आगे के दो पंजे उठा कर उनकी गोद में चढ़ने का प्रयास करने लगा। उस पल ताई के दिल में छिपी ममता जाग गयी। छुआ छूत मानने वाली ताई ने उसे गोद में उठा लिया। वह उसे पुचकारने लगीं। उस दिन से दोनों स्नेह के बंधन में बंध गए। ताई ने उसका नाम नन्हकू रख दिया।

ताई रोज़ नन्हकू को नहलातीं दूध रोटी खिलातीं और अपने बच्चे जैसे प्यार करती थीं। नन्हकू बहुत शरारती था। पूरे घर में धमाचौकड़ी करता रहता था। परेशान होकर ताई यदि उसे बांध देतीं तो चिल्ला चिल्ला कर घर सर पर उठा लेता था। जैसे जैसे वह बड़ा होने लगा घर पर कम टिकता था। मौका पाते ही बाहर भाग जाता था। ताई ने उसे रोकने का प्रयास किया किंतु वह किसी भी प्रकार नही मानता था। ताई ज़रा भी इधर उधर होतीं वह गेट फांद कर निकल जाता। खाने के समय लौटता। खाकर आराम कर फिर चला जाता।

ताई की उम्र करीब पैसठ वर्ष थी। इस दुनिया में वह अकेली थीं। उनके सूने जीवन में एक मात्र नन्हकू ही था। नन्हकू ने उन्हें जीने का मकसद दिया था। वह रोज़ उसके लिए खाना बनातीं और उसके आने का इंतजार करतीं। जैसे कोई माँ स्कूल से लौटते अपने बच्चे का इंतज़ार करती है। जब तक वह नही आता था वह कुछ नही खाती थीं। उसे खिलाने के बाद ही कुछ खाती थीं। ऐसा करने में उन्हें बहुत सुकून मिलता था। रोज़ की भांति आज भी वह उसके लौटने की राह देख रही थीं।

काम करते हुए वह नन्हकू के बारे में ही सोच रही थीं। 'जाने कहाँ भटकता फिरता है। जब तक बाहर रहता है मेरी जान अटकी रहती है। पर रोके से रुकता भी तो नही। वह करें तो क्या करें।' सारा काम निपटा कर ताई बाहर बैठ कर नन्हकू की प्रतीक्षा करने लगीं। बैठे बैठे उनकी आँख लग गई। जब आँख खुली तो घड़ी पर नज़र डाली। बहुत देर हो चुकी थी। 'अब तक नहीं आया' ताई ने मन ही मन सोंचा ' क्या बात है रोज़ तो अब तक आ जाता था। आज कहाँ रह गया।' उठ कर वह गेट पर जाकर खड़ी हो गईं। वहाँ खड़े होकर उसका इंतज़ार करने लगीं। जब खड़े खड़े थक गईं तो फिर कुर्सी पर बैठ गईं। प्रतीक्षा करते करते दोपहर ढल गई और शाम घिर आयी। लेकिन नन्हकू नही आया। ताई की चिंता गहराने लगी ' कहीं किसी गाड़ी के नीचे तो नहीं आ गया।' सोंच कर उनकी आँखों में आंसू आ गए। वह सोचने लगीं ' हे प्रभु यह कैसी किस्मत है मेरी। जीवन में जिससे भी नेह लगाया वह छोड़ कर चला गया।' बचपन में माता पिता का साथ छूट गया। चाचा के घर पली बढ़ीं। चाची ने उन्हें कभी बोझ से अधिक नही समझा। चाचा उसे स्नेह करते थे। तो वह भी कुछ ही दिनों में चले गए। विवाह के बाद पति ने उसे प्रेम तो दिया किंतु उन्हें मातृत्व का सुख नही मिल सका। पाँच साल पहले उनकी भी मृत्यु हो गई।

अँधेरा बढ़ गया था और ताई दिन भर की भूखी प्यासी वहीँ पर बैठी थीं। तभी उन्हें लगा जैसे की गेट पर कोई है। कहीं वही तो नहीं। ताई ने लपक कर बिजली जलाई। उनका नन्हकू ही था। बूढ़े शारीर में जाने कहाँ की शक्ति आ गयी उन्होंने दौड़ कर गेट खोला। नन्हकू लंगड़ा रहा था। उसके दाहिने कान से खून बह रहा था। " मेरा बच्चा यह क्या हो गया तुझे।" कह कर ताई ने उसे गले लगा लिया। भाग कर फर्स्ट एड बॉक्स ले आईं। उन्होंने नन्हकू के घाव को साफ कर दवा लगाई। वह इस तरह रो रही थीं जैसे उनका बेटा सीमा पर जंग लड़ते हुए घायल हुआ हो। " पूरे दिन का भूखा होगा।" इस खयाल से वह और दुखी हो गईं। अपनी भूख प्यास भूल कर वह उसके लिए खाना लाने चली गयीं।

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