‘इंटरव्यू के हाल में’ खूब भीड़ थी। बहुत सारे नौजवान हट्टे-कट्टे, छोटे- बड़े सुंदर, इंटरव्यू के लिए इंतजार करके खड़े लोगों को देखते हुए कार्तिका ने अंदर प्रवेश किया। ‘कार्तिका इंडस्ट्रीज’ नाम के कई 100 करोड़ सम्मानित संस्थाओं, की ‘जॉइंट मैनेजिंग डायरेक्टर’ वह थी। वह 24 साल की एक सुंदर लड़की ऐसे एक बड़े पद पर होना निश्चित रूप से एक सकारात्मक बात ही…. और भी कई आश्चर्यचकित बातें उसमें थी। बालों को अच्छी तरह से संभाल कर चोटी बनाकर बालों में फूल लगाकर और इस जमाने के लड़कियों जैसे बिना कुछ लगाइए नहीं! उसने एक मटर के बराबर स्टीकर की बिंदी लगाई हुई थी। उसको देखकर कई युवाओं ने सोचा वह भी इंटरव्यू देने के लिए आई है पहले ऐसी सोचा। परंतु उसके पीछे ही एक आदमी ब्रीफकेस को लेकर जाते देखकर उन्हें लगा यहीं J.M.D., इस फैसले में वे आए। उनके पीछे ही ‘व्हीलचेयर’ में एक आदमी को अंदर लेकर गए।
Full Novel
अपराध ही अपराध - भाग 1
इंदिरा सौंदराराजन इंदिरा सौंदराराजन तमिल के बहुत बड़े और प्रसिद्ध लेखक हैं। आपने बहुत से उपन्यास और कहानियां लिखीं इन्हें कई अवार्ड भी मिले हैं। मैंने इनके तमिल उपन्यास 'अपराध ही अपराध' का अनुवाद किया है। आशा है आप लोगों को बहुत पसंद आएगा। आदमी गलती करने के बाद चाहे तो सुधार भी सकता है। वह कैसे इस उपन्यास से जानिएगा। इसमें आखिर तक आपकी उत्सुकता बनी रहेगी। एस भाग्यम शर्मा शिक्षा एम.ए. अर्थशास्त्र, बी.एड., 28 वर्ष तक शिक्षण कार्य । पुस्तकें: कहानी संग्रह - नीम का पेड़, झूला, बेटी का पत्र। तमिल से हिंदी में अनूदित-बाल कथाएं, ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 2
(अध्याय 2) “बहुत अच्छी बात है, ‘पानीपत युद्ध कब हुआ? केनेडी को शूट करके करने वाले का नाम क्या हमेशा पूछने वाले प्रश्न आपने नहीं पूछा…थैंक्स,” वह बोला। बहुत ही आश्चर्य से उसे देख कार्तिका “फिर इस कप में कितनी मिट्टी के कण हैं आप करेक्ट बता देंगे?” बोली । “इसमें, 3 लाख 40 हजार 340 मिट्टी के कण हैं। आपको संदेह हो तो आप ही इसे गिन कर देख लीजिएगा,” कहकर उसके जवाब के लिए उसे ध्यान से देखने लगा धनंजयन । एक क्षण के लिए वह एकदम स्तंभित रह गई कार्तिका। फिर अपने को संभाल कर, “बिना ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 3
अध्याय 3 पिछला सारांश- ‘कार्तिका इंडस्ट्रीज’ संस्था के इंटरव्यू के लिए गए साइकोलॉजी मे पोस्ट डिग्री तक पढ़ें ‘यह काम ‘रिस्क’ वाला है। उनके हिस्सेदारी से उसको जीवन पर विपत्ति आ सकती है….’ऐसा कहकर तुम नौकरी करने को राजी हो पूछा। धनंजयन के सहमति के बाद उसको रहने के लिए अपार्टमेंट, ड्राइवर और एक कार के साथ 3 लाख रुपए वेतन के कहकर संस्थापक कृष्णा राज की लड़की कार्तिका के कहते ही उसे एक सुखद आघात हुआ- सुखद आघात से धीरे-धीरे धनंजय बाहर आया तो मुझे 3 लाख रुपए वेतन जिस पर वह विश्वास ना कर सकने के ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 4
अध्याय 4 “मैंने तो शुरू में ही बोल दिया… हम किसी भी बात के लिए कोर्ट और पुलिस नहीं जाते हैं।” “क्यों ऐसा, वे लोग फिर किस लिए हैं?” “उनके पास जाओ तो भी कई प्रश्न पूछेंगे। उसके जवाब देने के स्थान पर हम नहीं हैं।” “समझ रहा हूं…वह करोड़ रूपया काला धन है?” “किस पैसे वालों के पास आज काला धन नहीं है? सचमुच में वह अच्छा पैसा है। तिरुपति भगवान का ही है । उसका ही उस पर हक है उन्हीं के पास पहुंचना चाहिए।” “मैं कह रहा हूं उसे गलत मत लीजिएगा। उस भगवान के ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 5
अध्याय 5 पिछला सारांश- एक करोड़ रूपया तिरुपति के दान पेटी में डालना है। उसे संस्था की दूसरी हिस्सेदार नाम दामोदरन है, वे ही इसमें बांधा डालेंगे। कार्तिका के ऐसे कहने पर इसका कारण धनंजयन पूछता है। दामोदर के लड़के विवेक से शादी करने को मेरे मना करने के कारण एक करोड़ रूपया तिरुपति के दान पेटी में डालने जाते समय वे बाधा उत्पन्न करते हैं। दामोदर के जासूस बहुत है इस तरह की बातें कार्तिका ने बताया… धनंजयन की अम्मा सुशीला पापड़ों को धूप दिखा रही थी। सिलाई की मशीन में एक ब्लाउज की सिलाई करने में मगन ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 6
अध्याय 6 “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच’ सच बोलो, यह 3 लाख रुपए 1 का या 1 साल का?” अपनी बातों को टाॅन्टिग में लेकर और नकल उतारते हुए श्रुति बोली। ‘मेरी जिंदगी के लिए है यह रुपए इनको कैसे बताऊं?’ अपनी अक्लमंद छोटी बहन को मौन होकर घूरते समय ही उसका मोबाइल बजा। “क्यों मिस्टर धनंजयन…कृष्ण राज के पी.ए., बनने को राजी हो गए लगता है?” कान के अंदर एक रहस्यमय आवाज आई। अपने सिर के ऊपर एक छिपकली गिरी जैसे उसे महसूस हुआ ” आप कौन?” धनंजयन ने पूछा। “क्यों तिरुपति यात्रा ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 7
(अध्याय 7) पिछला सारांश- कार्तिका इंडस्ट्रीज में नौकरी लगी है और तनख्वाह 3 लाख रुपया है ऐसा अपनी मां और बहनों को धनंजयन ने बताया। इस पर विश्वास न करके उन लोगों ने प्रश्न के ऊपर प्रश्न पूछा उनके परिवार के लोगों ने। इसी समय धनंजयन को इंडस्ट्री के हिस्सेदार के लड़के विवेक का फोन आता है। कार्तिका ने जैसे बताया वैसे वैसे एक करोड रुपए को दान पेटी में नहीं डालना क्योंकि कार्तिका के अप्पा एक धोखा देने वाला आदमी है। इसीलिए इस नौकरी से अलग हो जाओ ऐसा कहता है विवेक। इस बार मोबाइल में कार्तिका ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 8
(अध्याय 8) “मैं बाहर ही खड़ी हूं। व्हाइट कलर की बी. एम.डब्ल्यू कार…” कार्तिका बोली। पर्दे पर क्लाइमैक्स आखिरी सीन देख रहे समय बाहर निकाल कर धनंजयन आ गया। इंतजार करते कार के पीछे सीट पर चढ़ने के लिए जा रहें, उसे आगे की सीट में बैठने के लिए कार्तिका ने बुलाया। “मैं ड्राइव करूं?” पूछ कर उसे पास के सीट में सरकने को बोला। कार रवाना हुई। 60 लाख रुपए की कीमत वाली गाड़ी मक्खन जैसे सड़क पर फिसल रही थी। “बहुत स्मूथ है” धनंजयन बोला। “इससे पहले इसे चलाई नहीं क्या?” कार्तिका ने पूछा। “देखा ही ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 10
(अध्याय 10) मोबाइल फोन को जेब में रखते हुए धनंजयन ने कार्तिक को देखा। वह , उसके इतने काम करने को देख कर भ्रमित हुई । “क्या बात है मैडम…. ऐसा देख रही हो?” “एकदम फर्राटे से एक-एक करके फैसला करते हो ।उसे भी बड़ी तीव्र गति से करते हो। हां क्या असली पुलिस उन लोगों को पकड़ लेगी?” कार्तिका ने पूछा। “जरूर पकड़ेगी। पुलिस वाले बिल्कुल वैसा ही भेष बना लें बिल्कुल सहन नहीं कर सकते।”धनंजयन ने बोला। “कहीं वे लोग बच गए तो?” कार्तिका ने पूछा। “हमें पॉजिटिव की सोचना है…. उससे भी बढ़कर यदि वे ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 9
(अध्याय 9) पिछला सारांश- ‘कार्तिका इंडस्ट्रीज’ कंपनी में नौकरी में मिले धनंजयन को पहला असाइनमेंट एक करोड रुपए तिरुपति दान पेटी में डालने के लिए बोला। उसी समय उसको विवेक नाम के आदमी से धमकी मिली। उसकी परवाह न करके कार्तिका इंडस्ट्रीज़ एम.डी.की लड़की कार्तिका के साथ तिरुपति जाने का उसने फैसला कर लिया। इंडस्ट्रीज के दूसरे हिस्सेदार से धनंजय को इस तरह की आफ़त हो सकती है इस बारे में बिल्कुल स्पष्ट रूप से कार्तिका ने बता दिया। उन परेशानियों को भी दत्ता दिखाकर कार्तिका के साथ तिरुपति जाते समय रास्ते में पुलिस वाले उन्हें रोकते हैं- जब ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 11
अध्याय 11 पिछला अध्याय का सारांश- ‘कार्तिका इंडस्ट्रीज’ के मालिक कार्तिका के साथ तिरुपति अपने सहायक धनंजय के गई। रास्ते में उन्हें नकली पुलिस वालों ने उनका रास्ता रोकने की कोशिश की वहां से भी बचकर निकलें। नकली पुलिस वालों के बारे में पुलिस को उन्होंने सूचना दी और फिर तिरुपति जाकर दर्शन करके कार्तिका के पिताजी के एक करोड़ रूपया तिरुपति के दान पेटी में डाला। दर्शन करके वापस आते समय इन्होंने जिससे कंप्लेंट किया था उन्होंने इनके रास्ते को रोक कर उनसे बचकर निकल गए वह कौन से आदमी है उन लोगों ने पूछा। इंडस्ट्री के ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 12
अध्याय 12 कार्तिका के प्रश्न, पर पहाड़ी रास्ते में पेड़ के छाया के नीचे गाड़ी को उसने खड़ी उसे आंखें फाड़ कर देखा धना। “क्या बात है धना…. विवेक से ज्यादा मैं तुम्हें सदमा दे रही हूं…सदमा तो होगा। आगे आगे जब मैं बोलूंगी उन सब को सुनकर, मुझे छोड़ दीजिए ऐसा भी तुम बोल सकते हो।” “बस करो मैडम…. रहस्यमय ढंग से आप बोले तो मैं नहीं समझ सकता। कृपया साफ-साफ बात कीजिएगा” कहते ही गाड़ी से नीचे उतर गई कार्तिका। पास में एक बस ठंडी हवा छोड़कर, उसके आगे से निकल गई। वह भी उतर गया। ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 13
अध्याय 13 पिछला सारांश- कार्तिका इंडस्ट्रीज के मालिक कृष्णा राज के मनौती को पूरा करके, उनकी लड़की और उनके धनंजयन के साथ वापस आ रही, एक करोड रुपए को दान पेटी में डालने के बाद। उसे इंडस्ट्री के हिस्सेदार दामोदरन और उसके लड़के विवेक, कृष्णराज को, उनकी लड़की कार्तिक को धमकाते हुए आए इस समय धनंजयन को भी उन्होंने धमकी दी। दामोदरन और कृष्णा राज दोनों में किस बात की लड़ाई है। ऐसा कार्तिका से धनंजयन ने पूछा तो उसने दामोदरन के अपने पापा के शुरुआती जीवन में किए गए गलत अपराधिक कामों के बारे में बताया। जिसकी वजह ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 14
अध्याय 14 “ बोले तो अब ही सर, मैं आपको बहुत ही सम्मान देता हूं।” “मैं जो रुपए बंगला तुम्हें दे रहा हूं इसलिए ऐसे बोलते कह रहे हो क्या धनंजयन?” “कसम से नहीं सर।” “धनंजयन, मेरे बारे में तुम्हें पूरा कार्तिका ने नहीं बताया। तुम्हें सब मालूम होने पर तुम ही नहीं, कोई भी मुझे एक मनुष्य भी नहीं समझेगा।” “ऐसा नहीं है सर…गलती करने से भी, उसके लिए परिहार करने की इच्छा रखने वाला एक आदमी श्रेष्ठ है। ये बहुत अच्छी बात है सर। इसके लिए धैर्य अच्छी बुद्धि चाहिए। जो आपके पास है फिर दूसरे ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 15
अध्याय 15 पिछला सारांश - कार्तिका इंडस्ट्रीज के संस्थापक कृष्णा राज के दिए पहले असाइनमेंट को सफलतापूर्वक धनराजन खत्म किया। उसके कौशल की कृष्णराज ने सराहना की। उसकी नौकरी का ऑर्डर और मकान, कार की चाबी धनंजयन को सौंपा, एच.आर., श्यामंशिवम ने। नई अपार्टमेंट को देखने के लिए अपनी बहनों के साथ धनंजयन आया। इस समय उसने देखा खिड़की के रास्ते से देखने पर पता चला सामने वाले बिल्डिंग के छत से एक आदमी बिनोक्युलर से उसे ही देख रहा था देख कर धनंजयन हकबकाया। सामने के बिनोक्युलर से अपने को ही देख रहे आदमी को धनंजयन ने ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 16
अध्याय 16 “फिर इसे?” “इसे किस मंदिर में से चोरी किया था, उस मंदिर में जाकर रखना है।” यही दूसरा असाइनमेंट है क्या?” “रख रहे हैं यह बिना मालूम हुए रखना है।” “रखना बिना मालूम हुए मतलब?” “चोरी करने जा रहे हैं ऐसे ही जाना है। परंतु चोरी करने नहीं रखने के लिए।” “समझ में आ रहा है मैडम। इसे सीधे दो तो पुलिस कैद कर लेगी। दंड मिलेगा। इसीलिए किसने चोरी की है पता नहीं चलना चाहिए। ऐसा ही है ना?” “ऐसा ही है। अप्पा दंड से नहीं डर रहे हैं। जेल में चले जाएं तो आगे ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 17
अध्याय 17 पिछला सारांश: अनाथालय में उस बच्चों को भेज दिया ऐसा बताया।’कार्तिका इंडस्ट्रीज के मालिक कृष्ण राज बेटे के बारे में पूछताछ करने के लिए धनंजयन नगर पालिका के ऑफिस मे गया। 27 साल पहले जो हुआ था उसके बारे में मुझे कुछ भी नहीं मालूम। उस बच्चों को ले जाकर वहां जमा करने वाले कर्मचारी इस समय जिंदा नहीं है। परंतु उसके घर के पते के बारे में तो लिखा होगा, 2 दिन में उसे मैं ढूंढ कर आपको मैसेज कर दूंगा । मैं आपकी मदद करूंगा। ऐसा ऑफिसर ने कहा। धनंजयन की अक्का शांति के ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 18
अध्याय 18 “अम्मा मत परेशान हो। धना अब एप्पल मोबाइल ही लेकर देगा। वही सब ठीक हो गया ना?” करने जैसे शांति बोली। धना का मन, विवेक के बारे में सोच रहा था। कहीं उसने कीर्ति और श्रुति को फॉलो किया होगा क्या सोच कर उसे डर लगने लगा। उसी समय घर पर एक कार आकर खड़ी हुई, उसमें से श्रुति और कीर्ति दोनों उतरी। “यह देखो दोनों आ गई” कहकर शांति हड़बड़ाई। उसके बाद उसका सोच अलग हुआ। “क्या है रे, कार में आ रहे हो किसकी गाड़ी है,।”अम्मा ने पूछा “घबराओ मत अम्मा। कॉलेज एडमिशन के लिए ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 20
अध्याय 20 “मैं पर्सनल सेक्रेटरी हूं। वे अब बाहर जाने-आने, के स्थिति में नहीं हैं। इसीलिए वे अपनी कार्तिका के द्वारा ही इस इंडस्ट्री को चला रहे हैं। “कार्तिका नहीं मेरा चयन किया है। उनकी समस्याओं के मदद करने के लिए ही मैं भी सेक्रेटरी के आम के लिए ज्वाइन किया है” धनंजयन ने बोला। “ओ…कहानी ऐसी जा रही है? उनकी मदद करने के लिए तुम। तुम्हारी मदद करने के लिए मैं?” कुमार बोला। कर को चलते हुए अटल अटल और गंभीर वाणी से “हां। मैं नहीं हूं अब… हम हैं ठीक?” धनंजयन बोला। उसके लिए सहमति दिखाते ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 19
अध्याय 19 पिछला सारांश- कीरानूर मंदिर से कृष्ण राज ने पहले पहले चुराई हुई मूर्ति को उसी जगह के लिए धनंजयन में प्रयत्न कर रहा था। कार्तिक इंडस्ट्रीज के दूसरा हिस्सेदारी दामोदरन का लड़का विवेक ने बहुत प्रयत्न किया कि किसी तरह धनंराजन उनकी तरफ आ जाए। कई बार फोन में बात करने के बावजूद धनंजयन उसको मना कर देता था। धनंजयन को डराने के लिए उसकी छोटी बहनों को मदद करने जैसे नाटक, विवेक ने किया । मेरी बात नहीं मानो तो धनंजय के परिवार को मैं परेशानी में डाल दूंगा ऐसा विवेक ने धमकी दी। कुमार ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 21
अध्याय 21 पिछला सारांश- धनंजयन को मिले सेकंड असाइनमेंट के लिए वह अपने दोस्त कुमार के साथ कीरनूर जाता है। ‘कार्तिका इंडस्ट्रीज’ कंपनी के कार्तिका से कहकर कुमार को भी इस कंपनी में ड्राइवर के नौकरी में रखवा दिया। उसने विवेक के बारे में कुमार को बता दिया और उसे उसे सतर्क भी कर दिया। कीरनूर गांव के शिव मंदिर के धार्मिक कर्ताधर्ता सदा शिवम कुमार के मामा थे। इस बात को जानकर धनंजय उनसे मिलने गया तो इस समय उनके घर में एक नाग आ गया। कुमार के मामा सदा शिवम ने उसे नाग देवता को ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 22
अध्याय 22 “क्या बोल रहे हैं?” “जिसके लिए आया था वह खत्म हो गया। जाते समय विस्तार से अब हम मंदिर जाकर स्वामी का दर्शन करें?” धनंजयन बोला। “आई मैं ही आपको लेकर चलता हूं” कहकर सदाशिव मामा उठे। मंदिर बहुत बड़ा और बहुत ही गंभीर था। पुराने समय का मंदिर, सीमेंट, पोक लाइनर, ऐसा कुछ भी नहीं था उसे समय वह छूने का मिले मिलकर बनाया हुआ मंदिर था। हरएक खंबे पर मूर्तियां थीं। मंडप के ऊपर भी कारीगरी करी हुई थी। अपने मोबाइल फोन पर उनकी फोटो लेते हुए भगवान के गृह में जाते समय घबराते ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 23
अध्याय 23 उनके घर के अंदर सांप के आने के बारे में धना ने पूछा। वहां पुजारी ही सांप बनकर आने के बाद इस गांव में अपराधिक मामले कम होने लगे। गांव में व्यापार भी अच्छी तरह से होने लगा। पुजारी के जाने के बाद तो वहां पर मरने वालों की संख्या भी बहुत बढ़ गई थी ऐसा उन्होंने बताया। मंदिर में जाते ही धनंजयन और कुमार को लिंग के ऊपर सांप को फन निकलते हुए देखा तो उसे उन्होंने मोबाइल में कैद कर लिया। चेन्नई वापस आते समय “आज रात गुमा हुआ नटराज की मूर्ति ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 24
अध्याय 24 धना के ‘अपार्टमेंट’ के अंदर ड्राइवर के ड्रेस में कुमार ने प्रवेश किया। उसको देखते ही के अम्मा, अक्का और दूसरी बहनों के मुंह आश्चर्य से खुले रह गए। “अन्ना यह क्या वेष बना लिया तुमने?” छोटी बहनों ने पूछा। “यह वेष नहीं है…. अब से मैं ही तुम्हारे अन्ना का ड्राइवर हूं।” “क्या इसी के लिए पोस्ट ग्रेजुएट तक पढ़े हो?” अब अक्का शांति ने पूछा। “कंप्यूटर के डिप्लोमा को छोड़ दिया तुमने?” “टाइप रेटिंग, शॉर्टेंं हैंड उसे भी हम नहीं भूले। इतना पढ़कर इस काम के लिए क्यों आए?” “ऐसी बात कर रही हो ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 25
अध्याय 25 पिछला सारांश: कीरंनूर जाकर वापस आए धनंजय शिव लिंग के ऊपर नाग के फन निकाले हुए को, और आज रात को नटराज के मूर्ति को मंदिर में ले जाकर रख देंगे यह बात कार्तिका को बताया। कार्तिका ने कहा विवेक को यह बात पता चलें तो विपरीत परिस्थिति हो सकती है। पहले उनके घर के खाना बनाने वाली मामी को जहर देकर मारने के लिए बोला था कार्तिका ने बताया। मूर्ति को मंदिर में रखने की बात को धनंजय ने कार्तिका को बता दिया। ड्राइवर के वेष में कुमार को देखकर धनंजयन की अक्का और दोनों ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 26
अध्याय 26 “ धना मूर्ति को तो वह उठा कर ले गया फिर हम क्यों कीरंनूर जा रहे कुमार ने पूछा। “बताता हूं तुम थोड़ी देर शांति से रहो। मैडम कार में फर्स्ट एड बॉक्स है क्या?” “उस– बोर्ड को खोल कर देखो। एक बाक्स है” कार्तिका के कहते ही कार के आगे की तरफ डैशबोर्ड को खोला। अंदर लाल रंग के डिब्बा जिस पर सारे इंस्ट्रक्शंस लिखे हुए थे दिखाई दिया। वैसे ही पास में बैठकर कुमार के सिर में लगे हुए घाव पर धना दवाई लगाना शुरू किया। “धना…मेरे प्रश्न का तुमने जवाब नहीं दिया किरंनूर ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 27
अध्याय 27 पिछला सारांश: धनंराजन ने उसे दिए दूसरे असाइनमेंट की मूर्ति जिसे कृष्णराज ने कीरन्नूर के मंदिर चुराई थी उस नटराज की मूर्ति को मंदिर में ले जाकर रख दिया। इस काम को नहीं करने देना है इसलिए बहुत रुकावट विवेक ने उत्पन्न किया पर काम हो जाने से वह बहुत गुस्से में आ गया। अगली बार धनंजयन को अच्छा पाठ पढ़ाना पड़ेगा ऐसा उसने फैसला किया। दूसरा असाइनमेंट के पूरा होते ही बहुत प्रसन्न होकर कार्तिका ने धनंजयन की तारीफ की। आंखों आंसू के साथ धनंजय को कार्तिका ने देखा। स्पीकर फोन में बात करने की ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 28
अध्याय 28 वह निगाहें तुम्हारे सामने बात करते हुए संकोच हो रहा है ऐसा लगा। इसलिए इस बात को कर वह वहां से चली गई। "वह शारदा को क्या हुआ सर?" "मैंने उसे कोल्डड्रिंक में बेहोशी की दवा देकर उसके बेहोश होते ही मैंने उसके साथ बलात्कार किया धना...."पूरा खाने के पहले ही उनका गला भर आया और वह परेशान हो गए। "मैं समझ रहा हूं सर। इसलिए वह शारदा प्रेग्नेंट हो गई। परंतु आपने गर्भ को मिटाने के लिए कहा। पर उन्होंने शादी करने के लिए बोला। अपने मना कर दिया। "उन्हें एक लड़का पैदा हुआ। उसको आपके ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 29
अध्याय 29 पिछला सारांश कार्तिका इंडस्ट्रीज के संस्थापक कृष्णा राज के दिए दो असाइनमेंट्स को सफलतापूर्वक पूरा करने पर से बहुत खुश होकर उन्होंने उसकी तारीफ की। कृष्णा राज के हिस्सेदार दामोदरन और उनके लड़का दोनों में मिले असफलता को सहन न कर पाने के कारण बहुत गुस्से में थे। तीसरा असाइनमेंट को किसी तरह से बाधा उत्पन्न करना ही पड़ेगा ऐसा सोचने लगे। धनंजयन का तीसरा असाइनमेंट के बारे में कृष्णा राज के बोलते समय ही उनके पलंग के नीचे रखे माइक्रोफोन के द्वारा दामोदरन को सब कुछ पता चल गया। दामोदरन के मुस्कुराते समय ही विवेक ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 30
अध्याय 30 किसी तरह ढूंढ कर उन्हें यह शुरुआत मिल ही गया। “बहुत-बहुत धन्यवाद सर। हमारे लिए बहुत होकर आपने इस समाचार पत्र को ढूंढ कर हमें दिया। कहीं नहीं मिले तो ऐसा सोच कर डरते हुए ही हम आए थे।” धनंजयन ने उप संपादक को धन्यवाद दिया। “बिल्कुल ठीक है साहब। आजकल तो सब कुछ :डिजिटल कापी’ ही होती है। ‘इस तरह के पेपर प्रिंटों’ को दीमक से बचाकर रखने के लिए बहुत ज्यादा परेशानी होती है। इस विषय में सचमुच में आप बहुत भाग्यशाली हैं।” “हमारा भाग्य इस पेपर के मिलने से नहीं सर। इस समाचार ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 31
अध्याय 31 पिछला सारांश: कार्तिका इंडस्ट्रीज कंपनी के मालिक कृष्ण राज अपना तीसरा असाइनमेंट धनंजयन को बताते हैं। इसे पार्टनर चिप्स के द्वारा सुन लेते हैं। इसमें धनंजय के योजना को असफल करने की सोचते हैं। तीसरा असाइनमेंट कृष्णा राज के बच्चा जो अभी युवा हो गया है उसे ढूंढना, पहले वह यहां पर विज्ञप्ति समाचार पत्र में आई थी वहां जाकर धनंजयन उसे इकट्ठा करता है। धनंजयन को अपने भौंहों को ऊंचा करके नगर पालिका के अधिकारी ने उन्हें देखा। धनंजयन, “क्यों सर आप मुझे ऐसे देख रहे हो?” “नहीं, नल में पानी नहीं आ रहा है, कई ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 32
अध्याय 32 “अभी कुछ दिन पहले एक तेलुगु पिक्चर में मैंने देखा। एक हीरो उड़ने वाले हेलीकॉप्टर को लोहे की जंजीर को फेंक कर उसे नीचे गिरा देता है। सभी लोग कान में फूल रखें तो यह लोग फूलों के हार को ही रख लेते हैं।” कुमार आराम से बात करते हुए कार को चल रहा था उसे धनंजयन ने घूर कर देखा। “क्यों रे मेरी बातें ‘डिस करेजिंग’ है क्या?” “फिर…यह सिनेमा के बारे में बात करने का समय है?” “मुझे लगा तो मैंने बोला। मैंने जो बोला उसमें क्या गलती है?” “अबे, चुपचाप मुंह बंद कर ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 33
अध्याय 33 पिछला सारांश: अनाथालय में उस बच्चों को भेज दिया ऐसा बताया।’कार्तिका इंडस्ट्रीज के मालिक कृष्ण राज बेटे के बारे में पूछताछ करने के लिए धनंजयन नगर पालिका के ऑफिस मे गया। 27 साल पहले जो हुआ था उसके बारे में मुझे कुछ भी नहीं मालूम। उस बच्चों को ले जाकर वहां जमा करने वाले कर्मचारी इस समय जिंदा नहीं है। परंतु उसके घर के पते के बारे में तो लिखा होगा, 2 दिन में उसे मैं ढूंढ कर आपको मैसेज कर दूंगा । मैं आपकी मदद करूंगा। ऐसा ऑफिसर ने कहा। धनंजयन की अक्का शांति के ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 34
अध्याय 34 हां कह देंगे वैसे ही हम ड्यूटी के काम को भी थोड़ा देख लेते हैं।’ “इस शादी बात मालूम हो तो कार्तिका मैडम बहुत खुश होंगी। पहले जाकर शादी की तैयारी करो ऐसा ही बोलेगी” कुमार के बोले जैसे ही बिल्कुल हुआ। कार्तिका को देखकर सब बातें उनको बता दिया तो “पहले अपनी सिस्टर की शादी के बारे में देखो। तुम दोनों के पास 10 दिन भी नहीं है तुमको 15 दिन की छुट्टी देती हूं। वैसे ही ऑफिस में कैशियर के पास जाकर शादी के खर्चे के लिए 10 लख रुपए लेकर जाइए” ऐसा कहकर एक ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 35
अध्याय 35 पिछला सारांश: कार्तिका इंडस्ट्रीज के संस्थापक कृष्णराज का तीसरा असाइनमेंट पूरा न करने के लिए उनके हिस्सेदार ने योजना बनाई। इसलिए धनंजयन की अक्का की शादी के लिए एक वर, उन्होंने ब्रोकर के द्वारा उनके परिवार से बात करने के लिए भेजा और उसने उनसे बात की। ब्रोकर के ऊपर संदेह होने के कारण वर के बारे में उनके कही हुई सूचनाओं की सत्यता को जानने के लिए धनंजयन ने कोशिश की। इसमें दामोदरन की कोई योजना है क्या जानने के लिए स्वयं ही दामोदरन के लड़के विवेक को फोन करके धनंजय ने धमकी दी। स्तंभित ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 36
अध्याय 36 “धना तुम गलत फैसला नहीं करोगे ऐसा तुम्हारे ऊपर मुझे भरोसा है इसलिए तुम जो करना उसे करो” एकदम से बात को काट कर अम्मा सुशीला ने कह दिया। “ऐसे आपके विश्वास करने से ही मुझे डर लगता है। जाने दो अब मैं जो कहने वाला हूं उसे भी ध्यान से सुनो। यह शादी नहीं होना चाहिए ऐसा सोचने वाले भी कुछ लोग हैं” ऐसा कहकर थोड़ा चुप रहने वाले को सदमे के साथ अम्मा सुशीला ने देखा। “हां अम्मा मेरे मालिक कृष्णराज जी के एक लड़की कार्तिका के विरोधी एक है। वे मुझे खरीदने की ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 37
अध्याय 37 पिछला सारांश: विवेक ने अपने अप्पा से, धनंजयन ने उसको दिए धमकी के बारे में बताया। दामोदरन बताया कि उन्होंने ही धनंजयन को तीसरा असाइनमेंट पूरा न कर पाए, इसीलिए उन्होंने रामकृष्णन के लड़के से धनंजयन की अक्का से शादी करने के लिए उनके ब्रोकर को भेजा था। ब्रोकर के कहे अनुसार उनको लड़की देखने के लिए आने को धनंजयन ने कह दिया। घर आए रामकृष्णन को मलेशिया से फोन आया। रामकृष्णन के कानून के विरुद्ध जो काम कर रहे थे, उसके लिए उन्होंने वहां के एजेंट को पुलिस ने पकड़ लिया। इसको सुनकर रामकृष्णन सदमे में ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 38
अध्याय 38 “माय गॉड। फिर यह अटैक भी हो सकता है” झुक घर उन्हें ध्यान से देखने लगा। घर कर देखते ही “एक्जेक्टली वही है। एंबुलेंस को फोन करो” रामकृष्णन बोले। “अय्यों…. क्या है जी यह” चिल्लाने लगी रंजीता। इस बीच कुमार ने अपने मोबाइल से गूगल में जाकर एम्बुलेंस टाइप किया और लोकेशन में एम्बुलेंस नंबर को फोन किया। शांति और सुशीला एक अच्छे काम के करते समय ऐसा हो गया सोच कर बहुत सेंटीमेंट होने से दुखी हुईं। रामकृष्णन के शर्ट को ढीला कर सोफे पर दामाद मोहन ने लिटाया। दौड़ कर जाकर सिर के ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 39
अध्याय 39 पिछला सारांश: दामोदरन अपने जाल में धनंजयन को फंसाने की योजना बना रहे थे। अपने धंधे पार्टनर रामकृष्णन के लड़के को धनंजयन के बड़ी बहन से शादी करने के लिए प्रयत्न कर रहे थे। मलेशिया में कानून के विरुद्ध कार्यों में लगे हुए रामकृष्णन के बारे में पुलिस में उनका एजेंट के पकड़े जाने पर उनका नाम बता देता है। अब मैं निश्चित रूप से कैद हो जाऊंगा डर से वह दामोदरन को फोन कर देता है। वह ‘हार्ट अटैक’ हो गया ऐसा नाटक करने को कहता है। फिर दामोदरन को उसके पहचान वाले डॉक्टर के ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 40
अध्याय 40 “डॉक्टर के इस तरह बोलने के बावजूद धना फैसला नहीं कर पा रहा था। परंतु कुमार मन में एक बिजली चमकी। धना को तरफ ले जाकर “धना एक तरह से एक यह एक अच्छा संदर्भ है। उस विवेक के बारे में जरा सोच कर देख। वह कब क्या करेगा? ऐसे स्थिति में डरते हुए अच्छा दिन देखने से यह कितना अच्छा है। “डॉक्टर बोल रहे हैं जैसे रिसेप्शन को बहुत अच्छी तरह कर लेंगे। उसको फाइव स्टार होटल में रख लेंगे। ए. आर. रहमान नहीं तो इलैयाराजा को बुलाकर म्यूजिक का इंतजाम कर देंगे। यह कमी ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 41
अध्याय 41 पिछला सारांश: अपनी अक्का को लड़की देखने रामकृष्णन के परिवारजन आए, तभी रामकृष्णन का हार्ट अटैक आया। दामोदरन को और उसके बेटे विवेक के बीच कोई संबंध होगा क्या पहले धनंजयन ने सोचा। ‘शुरू में जो अपशकुन हो रहा है ऐसा सोचा…’और वे लोग चिंता करने लगे। धनंजयन की अम्मा, अक्का शांति, उन लोगों को कहकर अस्पताल रवाना करती है। धनंजयन और कुमार दोनों अस्पताल पहुंचते हैं। दामोदरन के कहे अनुसार डॉक्टर और रामकृष्णन दोनों जल्दी से शांति की शादी हो जानी चाहिए इस बात पर अड़े हुए थे। दामोदरन पर संदेह होने के बाद भी किसी ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 42
अध्याय 42 जल्दी से स्पीकर को कुमार ने ऑन किया “अबे दामोदरन, भगवान हमारी तरफ ही है। पावर के द्वारा आखिरी मिनट में हमारी लड़की को बचा लिया। तुम जो बात कर रहे थे वह दूल्हे मोहन से नहीं। धना के दोस्त कुमार से बात कर रहे थे। “तुम एक स्मगलर हो तो ! डॉक्टर भी? तुम पापी लोगों को खेलने के लिए एक लड़की की जिंदगी ही मिली?” आक्रोश के साथ बोला। “डैडी, आप तुरंत रवाना हो। पुलिस वाले यहां आ रहे हैं” कहते हुए उसने ऑक्सीजन मास्क लगाए हुए रामकृष्णन को जल्दी से मोहन उठाने लगा। ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 43
अध्याय 43 पिछला सारांश: स्मगलिंग के धंधे में लगे उनके साथी रामकृष्णन के लड़के मोहन की शादी की अक्का शांति के साथ, जल्दी-जल्दी शादी करके धनंजयन को अपने जाल में फंसाने की सोच रहे, दामोदरन को धोखा ही मिला। किसके बीच में रामकृष्णन को पुलिस से बचने के लिए हार्ट-अटैक आने का नाटक कर उनको बचाने के कार्य में असफलता ही हाथ लगी। अस्पताल में मोहन और शांति की शादी होनी थी तब अचानक बिजली के चले जाने से नहीं हो पाई। अब तुम्हारी बहन शांति की शादी नहीं होगी ऐसा विवेक ने कहा। धनंजयन को अब ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 44
अध्याय 44 विवेक यह जो नोट था उसे देखकर विवेक एकदम से परेशान हो गया। मलेशिया के रामकृष्णन में फंस जाने से दामोदरन चेन्नई को छोड़कर कोलैयमल्ली में जो उनका रहस्यात्मक जगह जाने के लिए तैयार होने लगे। नकली दाढ़ी, मूंछें और मेकअप करके एक यात्रा कर रहे थे तो मोबाइल में वह फोटो आने से दामोदरन का चेहरा बदला और विवेक को उन्होंने बुलाया। “डैड…” “विवेक यह धनंजयन बहुत ही खतरनाक है। उसके कारण मुझे भी उसने अज्ञातवास करने के लिए मजबूर कर दिया देखा?” “एस डैड, चुपचाप किन्नर डॉन को बुलाकर उसे शूट करने के लिए ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 45
अध्याय 45 पिछला सारांश: धनंजयन के अक्का से शादी करने के लिए जब कुमार कहता है तो सब लोग चकित रह जाते हैं। कार्तिका भी बहुत खुश हुई। उसने कहा अपने कंपनी में जनरल मैनेजर पद देने का वायदा किया। कार्तिका के बड़प्पन को जानकर धनंजयन की अम्मा ने कहा यह पूरा मेरा परिवार ही कार्तिका के लिए समर्पित है। उसके अप्पा के लिए हम हिम्मत बनकर उनके साथ रहेंगे ऐसा वायदा किया। कुमार और शांति से लिए सगाई की फोटो को दामोदरन और उनके बेटे विवेक को धनंजयन ने भेजा। इसको देखने के बाद कृष्णराज के बेटे को ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 46
अध्याय 46 "बिल्कुल सही बात है। पर हम जो कह रहे हैं वह सत्य है। आपको उस बच्चे बारे में कुछ पता है क्या?" "अच्छी तरह से मालूम है..." दबाव के देकर वह बोला। "मालूम है.... ओह गॉड। हमारा काम इतना आसानी से हो जाएगा हमने बिल्कुल सोचा नहीं। अच्छा वह बच्चा आई मीन वह 27 साल का युवक होगा। अभी वह किसी अनाथाश्रम में है?" बड़े उत्तेजित होकर धना ने पूछा। "वह किसी अनाथाश्रम में नहीं है। अच्छी तरह से बड़ा होकर शादी करके दो बच्चों का बाप है।" "ऐसा है तो तुम्हारे अप्पा ने उस बच्चे ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 47
अध्याय 47 पिछला सारांश: कार्तिका इंडस्ट्रीज के संस्थापक कृष्ण राज का दिया तीसरा असाइनमेंट को पूरा करने के अनाथ आश्रम में जमा किया हुआ बच्चा को ढूंढने के लिए धना और कुमार रवाना हुए। कचरे के डिब्बे में डाला हुए बच्चे के बारे में मालूम करते हुए शंकर लिंगम के घर पहुंचे। शंकर लिंगम की मौत हो गई थी उस घर में संतोष नाम का युवा था। उसने कहा ‘मैं ही वह बच्चा हूं। अभी मेरी शादी हो गई और मेरे दो बच्चे हैं। जिसने मुझे कचरे के डिब्बे में डाल दिया उसके पास अब मैं वापस नहीं ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 48
अध्याय 48 “दो बच्चों का आप और सुमति नाम की पत्नी संतोष नाम से हैं। कचरे के डिब्बे से उनको ढूंढ निकालने वाले वह शंकर लिंगम अपने को बच्चे नहीं है इसलिए उसे गोद लेकर स्वयं पालने लगे। अभी बाय शंकर लिंगम और उसकी पत्नी जिंदा नहीं हैं। “इन्होंने मैकेनिक का सेट लगा रखा है। इनके जीवन थोड़ा तकलीफ में तो है। परंतु बहुत खुश है देखिए। कई करोड़ के संपत्ति इन्हें ढूंढ कर आ रहा है बोलने के बाद भी उसकी इच्छा ना करके सोच के बोलूंगा ऐसा बोल रहे हैं?” “हां इस बात को सुनकर ही ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 49
अध्याय 49 पिछला सारांश: ‘कार्तिका इंडस्ट्रीज संस्थापक के कृष्णा राज के गुमशुदा लड़का, सफाई कर्मचारी के घर में के नाम से पल रहा लड़का, अब उसकी शादी होकर उसके दो बच्चों बाप बन गया था। इस बात को कृष्णराज को धनराज ने बताया। इसे सुन कर दोनों बड़े खुश हुए। दूसरे दिन सवेरे 10:00 बजे कृष्णा राज के घर पर आने के बारे में संतोष ने कह दिया। इस बात को कृष्णा राज के विरोधी दामोदरन के लड़के विवेक को संतोष ने बताया। ‘इस समाचार को कृष्णा राज के विरोधी दामोदरन के लड़के विवेक को बताते ही उसने ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 50
अध्याय 50 “हां आपका नाम क्या है बताया?” “धनंजयन, संतोष।” “संतोष…सर कहकर आदर के साथ बुलाओ। हां आप मेरे पापा के सेक्रेटरी हो ना?” उसके बोलने का ढंग और तरीका बड़ा ही विचित्र था। “यस सर।” “मेरी एक छोटी बहन है आपने बताया था?” “हां सर” “उसकी मां है क्या ? या उसे भी मेर पिताजी ने मार कर भगा दिया?” “वह सब कुछ नहीं है सर। वह हार्ट अटैक से मर गईं थीं ऐसे सर ने बताया था।” “जाने दो ऐसा एहसान कर ही अभी मैं आ रहा हूं। सचमुच में आने की मेरी बिल्कुल रुचि नहीं ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 51
अध्याय 51 पिछला सारांश: कृष्णा राज का लड़का कहकर टू व्हीलर मैकेनिक संतोष को नकली बेटा बनाकर, दामोदरन लड़के विवेक ने भेजा। सच्चाई मालूम नहीं होने से संतोष को अपना लड़का समझ कर उसकी आने की बहुत धूमधाम तैयारी कृष्णा राज और उसकी बेटी कार्तिका ने कर दी। संतोष की पत्नी सुमति को यह बात पसंद ना होने के कारण बार-बार वह अपने पति को समझाती रही। परंतु संतोष ने उसकी कोई बात नहीं सुनी। संतोष से बार-बार फोन पर बात करके वह उसके कहे अनुसार नाटक कर रहा है क्या? मालूम करता रहा विवेक। संतोष को लेकर ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 52
अध्याय 52 “इन्होंने कोई गलती नहीं की है सर…इन्हें भी कैद करेंगे तो कैसा होगा सर?” बीच में बोला। “जैसे अप्पा की संपत्ति में बेटे को भी हिस्सा होता है वैसे ही उनके अपराध में भी होता है। अपने अप्पा के लिए बेटा भी अपराध में लिप्त सकता है ना?” “सर इतने दिनों यह उनके साथ ही नहीं थे। इन्हें हम बहुत मुश्किल से ढूंढ कर लेकर आए हैं। मिस्टर कृष्णराज अपने बेटे को ही अभी देखा है। यही सत्य है” काफी दबाव डालकर धना बोला। इसे सुनकर बड़ी जोर से वे हंसे। “क्यों आप हंस रहे हैं?” ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 53
अध्याय 53 पिछला सारांश: दामोदर के लड़के विवेक ने कार्तिका इंडस्ट्रीज के संस्थापक कृष्णा राज के लड़के जैसे करने को संतोष को कहा। वह नाटक कर संतोष बंगले में परिवार सहित आ गया। इस समय आई.पी.एस चंद्रमोहन दो पुलिस अधिकारियों के साथ आकर कृष्णा राज को कैद कर लेते हैं। विवेक को भी कैद करेंगे बोलते ही, विवेक का पता आपको मैं बता दूं तो आप मुझे छोड़ दोगे ऐसा संतोष ने पूछा। ‘विवेक को तुम कैसे जानते हो?’ऐसा चंद्र मोहन के पूछते ही संतोष की पत्नी सुमति बीच में आकर, संतोष उनका लड़का नहीं है इस बात ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 54
अध्याय 54 “भगवान, मिट्टी…मैं तो सोचता हूं भगवान जो एक सुंदर कल्पना है। ऐसी एक शक्ति सचमुच में तो हमने जिन भगवान की मूर्तियों को विदेश में बेच दिया तो, वह हमें जलाकर भस्म कर दिये होते।” “आपको इस पर विश्वास नहीं हो सकता, परंतु मेरे लिए तो भगवान आप ही हो।” “तुम्हारे विश्वास की मैं प्रशंसा करता हूं। मैं अभी एक जगह नहीं हूं; वह भी दूसरे देश में हूं। कोल्लिमलाई में जाकर छुपने के लिए मेरे पिताजी के साथ रहूंगा।” “फिर मैं आपसे कैसे मिलूंगा?” चंद्र मोहन जल्दी-जल्दी से लिखकर दे रहे थे उसे संतोष वैसा ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 55
अध्याय 55 उत्तुकोत्तई आंध्र बॉर्डर में बहुत सारी शराब की दुकानें थी। दुकानों पर बहुत सुंदर लाइटें लगा कर हुआ था। सब दुकानों पर जो बोर्ड लगा हुआ था वह देखने लायक था। उसके किनारे आकर एक कार खड़ी हुई। कार के अंदर विवेक ने है अपने आप को दाढ़ी मूंछें लगाकर भेष बदला हुआ था। उसी ने गाड़ी को चलाकर लेकर आया था। कार के अंदर बैठे हुए ही उसने संतोष से बात करनी चाही। इस समय पेरियापल्लयम को पार कर उनकी गाड़ी आ रही थी। विवेक को संदेह होने की वजह से वह गलती से छूट न ...और पढ़े
अपराध ही अपराध - भाग 56 (अंतिम भाग)
अध्याय 56 (अंतिम भाग) “आप ढूंढने आए उस बच्चे के बारे में विवरण बिल्कुल स्पष्ट रूप से है। कॉरपोरेशन शंकर लिंगम का नाम भी इस एंट्री में है। परंतु…” ऐसा कह वे थोड़ा खींचने लगे। “क्या है स्वामी जी आप हमारी उत्सुकता को को बड़ाकर फिर, परंतु कह कर एक सदमा भी दें रहे हैं?” “उस बच्चे को, उसी समय एक सज्जन ने आकर कानूनी तौर से गोद ले लिया था । अब वह लड़का 27 साल का होगा। “एक बहुत अच्छी बात है, उस बच्चों को सौंपते समय उनके माता-पिता के साथ हमने एक फोटो खींच कर रखा ...और पढ़े