अपराध ही अपराध - भाग 11 S Bhagyam Sharma द्वारा क्राइम कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

अपराध ही अपराध - भाग 11

अध्याय 11 

 

पिछला अध्याय का सारांश-

‘कार्तिका इंडस्ट्रीज’ के मालिक कार्तिका के साथ तिरुपति अपने सहायक धनंजय के साथ गई। रास्ते में उन्हें नकली पुलिस वालों ने उनका रास्ता रोकने की कोशिश की वहां से भी बचकर निकलें।

नकली पुलिस वालों के बारे में पुलिस को उन्होंने सूचना दी और फिर तिरुपति जाकर दर्शन करके कार्तिका के पिताजी के एक करोड़ रूपया तिरुपति के दान पेटी में डाला।

दर्शन करके वापस आते समय इन्होंने जिससे कंप्लेंट किया था उन्होंने इनके रास्ते को रोक कर उनसे बचकर निकल गए वह कौन से आदमी है उन लोगों ने पूछा।

 इंडस्ट्री के आधे हिस्सेदार का लड़का विवेक के ऑफिस के लोग ऐसा धनंजयन ने बोलने की कोशिश की, तो कार्तिका ने उसे रोका-

 

धनंजय के चेहरे पर उसका सदमे को कार्तिका ने देखा।

“धना एनीथिंग सीरियस?” उसने पूछा।

मंदिर के वातावरण में विवेक के बारे में धनंजयन ने कुछ भी बात नहीं की,”नथिंग मैडम…प्रार्थना के पूरे होने से अब तो आप खुश है ना?” ऐसा बात बदल के पूछा।

“निश्चित रूप से। तिरुपति के बारे में मैंने सुन रखा था। पर आज ही मैंने प्रत्यक्ष में देखा। अरे! बाप रे !कितनी भीड़। कितनी भक्ति है!”

“यही है मैडम अपने देश का बल!”

“इकोनामी, मिलिट्री से भी ज्यादा?”

“यह सब तो आर्थिक है। परंतु विश्वास भक्ति यह कृपा होता है। सामानों को चोरी करके भी ले सकते हैं। कृपा और आशीर्वाद ऐसी नहीं है…. भक्ति होगा तो ही मिलेगा।”

उसके जवाब को कार्तिका ने बहुत पसंद किया वह उसके चेहरे से ही पता चल रहा था।

“हां हां, तिरुपति आप पहली बार आए क्या…बड़ा आश्चर्य हो रहा है।

“मेरे जिंदगी में इसकी कोई कमी नहीं है” वह बोली।

“ठीक है, एम.डी. को फोन करके बोल दीजिए। वे बड़े खुश होंगे।”धनंजय बोला।

कार्तिका ने भी मंदिर से बाहर आते ही कृष्णा राज को फोन किया।

“अप्पा अप्पा, सब अच्छी तरह से हो गया”वह बोली।

“सचमुच में?”

“कसम से…. मैंने अपने हाथ से रूपयों को दान पेटी में डाला। तिरुपति के देवस्थल के ऑफिसर भी साथ थे। उन्होंने भी अच्छी तरह से हमारा साथ दिया।”

“बहुत खुशी हुई…. धनंजयन हमारे लिए अच्छी तरह से सेट हो जाएगा तुम्हें लगता है?”

“हां अप्पा…वे होशियार और बहुत फुर्तीले हैं।”

“कैसे! बेटी दामोदरन और उसके लड़के से बचें …उनसे कोई समस्या तो नहीं हुई?”

“सब बातों को मैं आकर आपको आमने-सामने बताऊंगी।’

“थोड़ा धनंजयन के पास फोन दोगी?”

कृष्णा राज के रिक्वेस्ट की आवाज आने से फोन कान बदला।

“वेरी गुड मॉर्निंग सर!”

“थैंक यू जेंटलमैन। थैंक यू अलॉट!”

“रहने दीजिए सर। मेरे काम के लिए मुझे क्यों धन्यवाद सर?”

“यह पी.ए. का काम नहीं है धनंजय। उससे ऊपर….”

“आप अगले असाइनमेंट के बारे में बोलिए सर।”

“पहले अच्छी तरह से घर आकर पहुंचों। दूसरा क्या है आने पर बोलूंगा। सतर्क रहो धनंजयन,” कृष्णा राज की आवाज में चेतावनी अधिक दिखाई दे रही थी।

फोन को कार्तिका को धनराजन ने दिया।

“अप्पा के पास बहुत दिन के बाद आज ही खुशी मैं देख रही हूं।” कहते हुए फोन को लेकर उसने पर्स में रखा।

“सिर्फ खुशी नहीं, उनकी आवाज में एक चेतावनी के नाम पर एक डर भी अच्छी तरह से दिखाई दे रहा था। सुरक्षित घर जाकर पहुंचों। हां तो वह विवेक के लोग इतनी घटिया लोग हैं?” कहते हुए पार्किंग में रखे हुए गाड़ी की तरफ दोनों गए। रिमोट से लॉक किया दरवाजा खुला।

कार के अंदर दोनों चढ़कर बैठे, धनंजय ने गाड़ी को रवाना किया।

“अभी बोलिए धना…. वह विवेक लाइन में आया था?” कार्तिक ने पूछा।

“यस मैडम…”

“नौकरी छोड़कर भाग जाओ…. नहीं तो, अपने जीवन को तुम्हें त्यागना पड़ेगा बोला क्या?”

“करेक्ट। उसका बोलना आपको भी सुनाई दिया?”

“यह उसके हमेशा ही बोलने वाले डायलॉग हैं। अच्छा आप क्या करने वाले हो?”

कार्तिका के प्रश्न को, तिरुपति के प्रांगण में बड़ी चतुराई से ड्राइव करते हुए,”मैं नौकरी को छोड़कर भागुंगा अभी भी आप ऐसा सोचती हैं?” उसने, उल्टा उससे धना ने पूछा।

“ अभी, भी यहां पर अपने को फॉलो कर रहे होंगे उसके आदमी।”

“वह इतना बड़ा क्रिमिनल है?”कार को घुमावदार पहाड़ी रास्ते में ले जाते हुए उसने पूछा।

हां हां बोलने जैसे ही उसने सिर हिलाया, “हमारे पिताजी भी…” कहते समय उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे।

“क्या कह रहे हो मैडम?” धना भी आश्चर्यचकित रह सहम गया।

“मेरे पिताजी भी घटिया, एक क्रूर आदमी ही है धना। ऐसे बोले बिना उसे दूसरे असाइनमेंट के पास में वह नहीं जा सकते,” कहती हुई अपने आंसुओं को कार्तिका ने पोंछा।

“समझ रहा हूं मैडम…. विवेक ने भी बोला। पर उस समय मैंने विश्वास नहीं किया।”

“ओह…बोल दिया क्या?”

“हां …परंतु आपके अभी बोलने पर मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा है।”

“मैंने तो शुरू में ही बोल दिया था…मेरे पास आश्चर्यों की कोई कमी नहीं है।”

“नहीं सोचता हूं इस दुनिया में कोई भी पूरी तरह से अच्छा आदमी नहीं है। मेरे पास भी बहुत सी कमियां हैं पता है?”

“अफकोर्स…बिना कमी वाला कोई मनुष्य नहीं हो सकता। परंतु अपराध, क्रूरता, कठोरता, आवेशी मनुष्य को आप क्या कहेंगे?”

आगे पढ़िये ......