अपराध ही अपराध - भाग 1 S Bhagyam Sharma द्वारा क्राइम कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अपराध ही अपराध - भाग 1

इंदिरा सौंदराराजन

इंदिरा सौंदराराजन तमिल के बहुत बड़े और प्रसिद्ध लेखक हैं। आपने बहुत से उपन्यास और कहानियां लिखीं हैं। इन्हें कई अवार्ड भी मिले हैं।

मैंने इनके तमिल उपन्यास 'अपराध ही अपराध' का अनुवाद किया है।

आशा है आप लोगों को बहुत पसंद आएगा। 

आदमी गलती करने के बाद चाहे तो सुधार भी सकता है। वह कैसे इस उपन्यास से जानिएगा। इसमें आखिर तक आपकी उत्सुकता बनी रहेगी।

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एस भाग्यम शर्मा

शिक्षा एम.ए. अर्थशास्त्र, बी.एड., 28 वर्ष तक शिक्षण कार्य ।

पुस्तकें: कहानी संग्रह -  नीम का पेड़, झूला, बेटी का पत्र।

तमिल से हिंदी में अनूदित-बाल कथाएं, दक्षिण की प्रतिनिधि कहानियां, राजा जी की कथाएं, श्रेष्ठ तमिल की कहानियां,

उपन्यास अनूदित: दीपशिखा, मुखौटा, बंद खिड़कियां, जननम, आदि बहुत सी...

सम्मान: वेणु सम्मान, दैनिक भास्कर वुमेन, इसके अलावा कई सम्मान प्राप्त करने का अवसर मिला। 

राजस्थान साहित्य अकादमी का अनुवाद पुरस्कार ।

राजस्थान बाल साहित्य अकादमी पुरस्कार 

संपर्क 

एस भाग्यम शर्मा, बी 41 सेठी कॉलोनी जयपुर 302004

मोबाइल 9468712468

sharmabhagyam@gmail.com

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अपराध ही अपराध

 (अध्याय 1)

‘इंटरव्यू के हाल में’ खूब भीड़ थी। बहुत सारे नौजवान हट्टे-कट्टे, छोटे- बड़े सुंदर, इंटरव्यू के लिए इंतजार करके खड़े लोगों को देखते हुए कार्तिका ने अंदर प्रवेश किया।

‘कार्तिका इंडस्ट्रीज’ नाम के कई 100 करोड़ सम्मानित संस्थाओं, की ‘जॉइंट मैनेजिंग डायरेक्टर’ वह थी। वह 24 साल की एक सुंदर लड़की ऐसे एक बड़े पद पर होना निश्चित रूप से एक सकारात्मक बात ही….

और भी कई आश्चर्यचकित बातें उसमें थी।

बालों को अच्छी तरह से संभाल कर चोटी बनाकर बालों में फूल लगाकर और इस जमाने के लड़कियों जैसे बिना कुछ लगाइए नहीं! उसने एक मटर के बराबर स्टीकर की बिंदी लगाई हुई थी।

उसको देखकर कई युवाओं ने सोचा वह भी इंटरव्यू देने के लिए आई है पहले ऐसी सोचा। परंतु उसके पीछे ही एक आदमी ब्रीफकेस को लेकर जाते देखकर उन्हें लगा यहीं J.M.D., इस फैसले में वे आए। उनके पीछे ही ‘व्हीलचेयर’ में एक आदमी को अंदर लेकर गए।

इंटरव्यू का हाल बहुत ही नवीनतम ढंग का बना था। जितना पीना चाहें पियों उतना काफी दे रहे थे, ‘ऑटोमेटिक कॉफी मशीन!’ पास में ही ‘वाटर फिल्टर’उसमें दो भाग थे एक में गरम दूसरे में ठंडा पानी। एक टेबल में तरह-तरह की बिस्कुट गोल-गोल सजा कर रखे हुए थे।

बहुत बढ़िया ए.सी. का ठंडा कमरा। एक तरफ बहुत बड़ा कांच का पार्टीशन। उसके आगे, चेन्नई शहर का दृश्य। उसमें, दूरदर्शन के ऊंचे टावर से उसमें से ओमनंदतुरारं हॉस्पिटल तक सब कुछ साफ दिखाई दे रहा था।

उस सुंदर चेन्नई शहर के इमारतों को देखते हुए धनंजयन बैठा हुआ था। उसके चेहरे पर एक हफ्ते की दाढ़ी बड़ी हुई थी। सर पर सुंदर कटिंग किए हुए बाल थे।

परंतु दूसरे सभी युवा देवी के मंदिर में जो हिसाब किताब करने वाला कड़े बालों वाला होता है वैसे ही सर किए हुए में बैठे थे। वे बहुत ही टाइट पैंट शर्ट पहनकर बेल्ट बांधे हुए शर्ट को अंदर किये हुए थें।

धनंजय के पास एक पॉलिथीन बैग था। उसी के अंदर उसके साइकोलॉजी की डिग्री और खेल में प्रथम आने का सर्टिफिकेट रखा था। उसने जो पैंट और शर्ट पहनी थी कोई नई नहीं थी। चार दिन से उसी को बिना उतारे पहना हुआ है ऐसा लग रहा था।

कार्तिका के आने के पांचवें ही मिनट में ही लाइन से सबको बुलाने लगे। जितने ही जल्दी वे गए वैसे ही जल्दी वापस आ गए। कुछ लोगों के चेहरे पर गुस्सा, कुछ लोगों के चेहरे पर धोखा हुआ ऐसे कई तरह के भाव दिखाई दे रहे थे।

“यहां जो हो रहा है वह ‘इंटरव्यू’ नहीं है। धोखे का खेल है।”ऐसा कहकर अपने सर को पीटता हुआ एक युवा गया।

कहे जैसे धनंजयन की पारी आई।

बड़े आराम से चलकर वह अंदर गया। एक उम्र दराज के आदमी के साथ कार्तिका बैठी हुई थी।

‘व्हीलचेयर’ में बैठे सज्जन के हाथ में ‘I. v.’ लगा था जिससे द्रव्य दवाई शरीर में भेजने की सुई लगी हुई थी उस पर प्लास्टर लगा हुआ था। उसी से पता चल रहा था वे एक रोगी है। उनकी आंखों में एक अलग तरह की थकावट दिखाई दे रही थी। उनको देखते हुए धनंजय बैठा।

“आप मिस्टर धनंजयन हैं?” कार्तिका ने पूछा।

“यस मैडम!”

“ एम.ए. साइकोलॉजी हो?”

“हां जी।”

“सर्टिफिकेटों को अच्छी तरह से फाइल करके नहीं लाकर यह पॉलिथीन में लाए हो?”

“एक अच्छा फाइल लेने के लिए भी मेरे पास पैसे नहीं है मैडम। आई एम सॉरी।”

अपने चेहरे में थोड़ी सी अधीरता के साथ कार्तिका बोली “रियली?”

“फाइल लेने के लिए 100 खर्च होगा? वह भी नहीं था तो आपने कैसे एम.ए. तक पढ़ें?”

“सब कुछ स्कॉलरशिप में मैडम…मेरी तीन बहनें हैं। अप्पा मर गए। अम्मा शुगर पेशेंट है। रोजाना इंसुलिन लेने पर ही वे जिंदा रह सकती हैं।

“पुरानी सिनेमा में आता है जैसे सिलाई मशीन से ब्लाउज सीकर अपना जीवन यापन करने वाली मेरी दीदी; उनकी भी अभी तक शादी नहीं हुई। गले में नाम को एक गहना भी नहीं है। सिर्फ एक सस्ती मोती की माला ही पहन रखी है….

“दो छोटी बहनें है ‘ट्विंस हैं!’ प्लस टू में पढ़ रही हैं। जो भी खरीदो दो-दो खरीदने की मजबूरी। मैं रोजाना दैनिक अखबार डालता हूं। अचार , पापड़ जो अम्मा बनाकर देती है उसे बेचता हूं।” बिना सांस लिए अपने परिवार के बारे में धनंजयन ने पूरा बता दिया।

 हल्के मुस्कुराते हुए कार्तिका ने उसे देखा, वैसे ही पलट कर, व्हीलचेयर वाले आदमी को भी देखी।

एक दीर्घ श्वास लेकर, “तुम इंटरव्यू शुरू करो….” वे बोले।

छोटे से कटोरा में रेत को धनंजय के सामने रखकर, “इसमें मिट्टी के कितने अंश है ठीक से बताना है…. इसको बताना तो मुश्किल है। ठीक से बता सकते हो ?” परंतु गिनती ठीक से होगा क्या पक्का बता नहीं सकते। आप क्या करोगे?” उसने पूछा।

तुरंत उसे ‘इंटरव्यू को हंसी मजाक कहकर जाते हुए एक जाने वाले की याद आई धनंजयन को। उसके 

अपने 10 दिन की बिना शेव किए 

दाढ़ी पर एक हंसी दिखाई दी,

“क्यों मिस्टर…. यह क्या हंसी मज़ाक है, समझ कर हंस रहे हो क्या?” कार्तिका ने पूछा।

परंतु धनंजयन कप को हाथ में लेकर उसके भार को महसूस करते हुए “नो…. नो…. यह एक साइकोलॉजिकल टेस्ट है!” प्रश्न विचित्र तो है ही। मैं आपके बुद्धिमता को सोच कर और यह प्रश्न इतना आसान है यह सोचकर मैं हंसा। आगे पढ़ें