अपराध ही अपराध - भाग 5 S Bhagyam Sharma द्वारा क्राइम कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अपराध ही अपराध - भाग 5

अध्याय 5

पिछला सारांश-

एक करोड़ रूपया तिरुपति के दान पेटी में डालना है। उसे संस्था की दूसरी हिस्सेदार जिसका नाम दामोदरन है, वे ही इसमें बांधा डालेंगे। कार्तिका के ऐसे कहने पर इसका कारण धनंजयन पूछता है। दामोदर के लड़के विवेक से शादी करने को मेरे मना करने के कारण एक करोड़ रूपया तिरुपति के दान पेटी में डालने जाते समय वे बाधा उत्पन्न करते हैं। दामोदर के जासूस बहुत है इस तरह की बातें कार्तिका ने बताया…

धनंजयन की अम्मा सुशीला पापड़ों को धूप दिखा रही थी।

सिलाई की मशीन में एक ब्लाउज की सिलाई करने में मगन इसकी दीदी थी। छोटी बहनें श्रुति और कीर्ति दोनों ही एक कोने में बैठकर अपनी पाठ्य पुस्तकें हाथ में रखकर बैठी हुई थी।

धनंजयन बड़ी उत्साह के साथ घर के अंदर प्रवेश करते ही, चारों ने एक साथ उसे देखने लगीं। जिस तेजी से उसने देखा इस तेजी से सिलाई मशीन को शांति पेडल मरने लगी।

उसके चेहरे को देख “क्या बात है बेटा…इंटरव्यू बहुत बढ़िया करके आए हो ऐसा लगता है?” ऐसा अम्मा सुशीला ने शुरू किया।

“नौकरी ही मिल गई अम्मा …. वेतन के बारे में बताऊं तो तुम हिल जाओगी….” कहते हुए अपने शर्ट को खोलकर कील पर उसने टांगी।

अपनी पाठ्य पुस्तकों को बंद करते हुए, “क्या तीस हज़ार रुपए होगा?”छोटी बहन श्रुति ने पूछा।

मुस्कुराते हुए धनंजयन बोला “उससे भी ज्यादा…”

“फिर चालीस हजार होगा?”

“उससे भी ऊपर…”

“तुमने शंकर पिक्चर को दो-तीन बार देखा था मैंने सोचा। उससे भी, उससे भी डायलॉग्स उसी में से लिया हुआ है ना?”

“अच्छा... मेरे ही ‘डायलॉग’ को शंकर ने मुझसे सीखा?” 

“अरे बाप रे…वह तो शुभा लेखक का है-माय फेवरेट राइटर” अपने होंठों को पिचकते हुए श्रुति बोली।

“बस कर रे…तुम बोलो बेटा अच्छी तनख्वाह?”

“हां अम्मा…सिर्फ वेतन ही नहीं है, अपार्टमेंट के साथ गाड़ी और ड्राइवर भी और जनरल मैनेजर की पोस्ट दिया है। और यह सब सहूलियतें भी!”

“क्या बोल रहे हो बेटा?”

“विश्वास नहीं हो रहा है….”

“अम्मा …अपने गुस्से को ही कॉमेडी करके बता रहा है भैया। लोकल डब्बा कंपनी में कोई क्लर्क की नौकरी ही मिलेगी।

“उसके लिए भी कंप्यूटर ऑपरेट करना आना चाहिए। अन्ना तो कुछ तो भी ऑपरेट करता है। उससे संबंधित एक एग्जाम भी इसने नहीं दिया….”

बहन श्रुति देश की स्थिति के बारे में गुस्से से बता रही थी।

अभी तक बिना बोले रही कीर्ति “अब तो इंटरव्यू सब भी, अब ऑनलाइन ही होता है…प्रत्यक्ष बुलाना तो सिनेमा में ही होता है” बोली ।

दोनों बहनों को उसने अजीब ढंग से देखा।

“अम्मा…. मैंने अभी बोल दिया, हम जहां जा रहे हैं अपार्टमेंट में इन दोनों को वहां नहीं ले जाएंगे। इन दोनों को इस पुराने आदिकाल के घर में ही रहकर मरने दो।

“हां…शांति…तुम बिना कुछ बोले ब्लाउज को ही मगन होकर सी रही हो। अब यह सब तुम्हें करने की जरूरत नहीं है” धनंजयन ने कहा।

“मैं इसे छोड़ दूं तो भी यह मुझे नहीं छोड़ेगा। वह ठीक है क्या सचमुच में नौकरी मिल गई क्या?” बड़े साधारण ढंग से पूछा।

“क्यों तुम लोगों का इतना अविश्वास है? सचमुच में यह बिना काम के परेशान होने वाला समय नहीं है…. नौकरी के लिए ठीक आदमी नहीं मिलने का समय है।”

“ऐसा है क्या”शांति बोली।

“अपने घर की इलेक्ट्रिक के लाइन जलने के बाद एक इलेक्ट्रिशियन के लिए हमने कितना फोन किया था।

“गैस चूल्हे को साफ करने आऊंगा जिसने बोला वह जल्दी से आया क्या? शाम को 6:00 बजे आया चूल्हे को देखकर₹800 होगा-आपकी मर्जी है तो बताइए-हमारी चॉइस पर छोड़ दिया। तुम्हें याद नहीं है?”

“ठीक है बेटा उनके बराबर तुम्हें भी बात करना है क्या? हमारा समय दूसरा था…यह समय दूसरा है…तुम बताओ कौन सा काम है कितनी तनख्वाह है?” अम्मा सुशीला बोली।

अम्मा के कहने के बाद धनंजयन के बोलने पर बड़ी बहन और छोटी बहनें भी स्तंभित रह गईं!

“क्या बात है किसी को विश्वास नहीं?”

“हां भाई… तीन लाख वेतन बोल रहे हो। यह जो बोल रहे हैं वैसे ही अपने मन के गुब्बार को निकल रहे हो लग रहा है?” अम्मा बोली।

“कसम से नहीं अम्मा”

“कैसे बेटा एक सहायक को इतना वेतन देंगे? तुम्हारा तो अनुभव भी नहीं है।”

“ठीक है अम्मा । वह एक सहायक के लिए मुश्किल काम है।”

“सहायक का काम क्या मुश्किल है…हमेशा उनके साथ ही रहना है?”

“हां अम्मा…उसके साथ उनका…. वही मेरे एम.डी. को ऐसा कहकर थोड़ा रुका, अपनी तीनों बहनों पर एक निगाह डाली।

“सुनकर सदमे में मत आना वह एक लेप्रोसी पेशेंट है। वे एक हस्ताक्षर भी अच्छी तरह नहीं कर सकते। उनकी तरफ से सब कुछ मुझे ही करना है।” वह बोला।

“अरे क्यों…. लेप्रोसी?” सुशीला एकदम घबरा गई ‌

“यह सब पुराने समय की बात है। अब तो सब कुछ खत्म हो गया। बहुत ही रेयर केस में किसी को होता है। ठीक से दवाई लो तो वह भी जल्दी ठीक हो जाता है।” उन सब को ठीक से धनंजय ने संभाल लिया।

अरे धना,... तुम्हें तो कहीं हो ना जाए! करोड़ से लाखों से बढ़कर आरोग्य ही पहली चीज है मेरे बच्चे।”

“नहीं अम्मा वह छूत की बीमारी नहीं है। पहले इस बात को समझो। अपनी गरीबी से वह कोई बड़ी बीमारी नहीं है उसे भी समझो। हमें उन्नति करना है तो समझोता तो करना पड़ेगा। मुझे इससे बड़ा अवसर सपने में भी नहीं मिलेगा” इसे डांटता हुआ बोला। 

 

आगे पढ़िए….