अपराध ही अपराध - भाग 2 S Bhagyam Sharma द्वारा क्राइम कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अपराध ही अपराध - भाग 2

 (अध्याय 2)

“बहुत अच्छी बात है, ‘पानीपत युद्ध कब हुआ? केनेडी को शूट करके करने वाले का नाम क्या था’ हमेशा पूछने वाले प्रश्न आपने नहीं पूछा…थैंक्स,” वह बोला। 

बहुत ही आश्चर्य से उसे देख कार्तिका “फिर इस कप में कितनी मिट्टी के कण हैं आप करेक्ट बता देंगे?” बोली ।

“इसमें, 3 लाख 40 हजार 340 मिट्टी के कण हैं। आपको संदेह हो तो आप ही इसे गिन कर देख लीजिएगा,” कहकर उसके जवाब के लिए उसे ध्यान से देखने लगा धनंजयन ।

एक क्षण के लिए वह एकदम स्तंभित रह गई कार्तिका। फिर अपने को संभाल कर, “बिना गिने कैसे बोला आपने?” उसने पूछा।

“नहीं…. गिन कर देख कर ही मैं बोला। बिना मतलब मिट्टी के कण को नहीं, आपके चतुराई को सोचकर…. किसको गिन कर देखकर ठीक रहने पर इससे आपको कुछ भी नहीं मिलने वाला

“यह, ‘कैंडिडेट पहले उसकी बुद्धिमती की टेस्ट है। कठिनाई के वक्त कैसे वह रिएक्ट करेगा यह मालूम करने के लिए ही अपने इस तरह के प्रश्न पूछा तभी तो आप पता लगा सकते हैं। यह कोई नया नहीं है।

“इससे भी धर्म संकट वाले प्रश्नों को तेनाली रामन नाम के हिस्टोरिक कैरेक्टर से पूछने पर उन्होंने जवाब दिया हुआ है। महाभारत में, यक्ष लोग भी इस तरह प्रश्नों को पूछ कर धर्मराज (युधिष्ठिर) ने बड़े चतुराई से जवाब दिया है।”

धनंजयन के दिए गए विस्तृत जवाब को सुनकर उसे पढ़ने की आदत है यह बात कार्तिका  महसूस कर सकी।

“आपने ठीक बोला। आप काम में ज्वाइन कर सकते हो। परंतु, आपका यहां लगातार काम करना मुश्किल है” ऐसा कहकर अगले क्षण धनंजय को एक मीठी खुशी के साथ एक सदमे का झटका भी कार्तिका ने दिया।

“ कष्ट….. अभी मैं जो कष्ट पा रहा हूं उससे ज्यादा?” धनंजयन ने जवाब एक दम तीखा पूछा।

“युवावस्था में गरीबी, बहुत ही क्रूर होती है। परंतु, यहां हम जो असाइनमेंट आपको दे रहे हैं वह बहुत ही क्रूरता पूर्ण है। इसलिए मैंने ऐसे कहा।”

“ऐसा कौन सा असाइनमेंट है वह?”

“बोलने ही तो वाली हूं। कई लोगों से बोला भी है। सोच के बताएंगे कहकर वे चले गए, उसके बाद वह वापस नहीं आयें। आप भी इस लिस्ट में आ सकते हैं ऐसा मैं सोचती हूं।”

“पहले वह क्या है बोलिएगा।”

“आपको ही अब आपको हमारे पिताजी कृष्णराज के अंतरंग निजी सहायक हो। मेरे भी…”

“वह पदवी. ‘असाइनमेंट’ बोले थे?”

“बताती हूं। एक अंतरंग सहायक का कार्य कैसे होता है आपको पता है ना?”

“कुछ कुछ पता है। अपने बॉस के अंतरंग विषयों को समझ कर, जानकर काम करना है! सभी कामों को तीव्रता से और विवेक से करना है; भले ही जान चली जाए, बॉस के बातों को बाहर नहीं बोलना है। संक्षिप्त में बोले तो बॉस के रक्षक जैसे रहना होगा। ठीक है?”

“आप ऐसे बता रहे हैं जैसे आप बॉस के पास अंतरंग सहायक रहे हो जैसे…. आपने जो कुछ कहा है बिल्कुल सही है। आपसे ऐसा रहा जाएगा?”

“ऐसा रह सकता हूं इसीलिए इंटरव्यू देने आया हूं इसमें क्या संदेह है आपको?”

“मैं अभी आपकी बॉस होने वाले अपने अप्पा के बारे में बोला ही नहीं है?” ऐसे जवाब देते हुए अपने पास बैठे कृष्णाराज को कार्तिका ने देखा।

अभी तक कुछ भी बोले बिना कार्तिका के प्रश्न और धनंजय के उत्तर को ही बैठे-बैठे सुन रहे कृष्णा राज, “ अरे!बाप रे, पहले मुझे ‘इंसुलिन’ लगाओ। हल्का चक्कर आ रहा है” वे बोले।

मेज के ड्रायर को खोलकर, सुंदर सिल्वर डिब्बे को कार्तिका ने निकाली। उसके अंदर सुई डिस्पोजेबल इंजेक्शन सीरिंज के साथ इंसुलिन बोतल भी रखी हुई थी। बिजली के तेजी से सिरंज में इंसुलिन को लेकर, उसको कृष्ण राज के कमर में लगाया तो कृष्णराज के चेहरे पर कोई दर्द का महसूस ही नहीं हुआ।

सिरिंज को कचरे के डिब्बे में डालकर कार्तिका बैठी तो कृष्णराज शुरू हुए।

“मिस्टर धनंजयन…. अभी तक करीब सौ लोगों से इंटरव्यू हमने लिया। मेरे लायक कोई भी आदमी नहीं मिला। मिट्टी के कटोरा को देकर मिट्टी को गिरने के लिए बोले तो आधे लोग, ‘यह ठीक नहीं रहेगा’ कहकर उठकर चले गए।

“कुछ लोग एक चम्मच मिट्टी को लेकर उसी की गिनती की, फिर उसको तोल कर जोड़ने घटाने पर फिर मालूम होगा ऐसा बोला था। परंतु वे भी मैं एक लेप्रोसी पेशेंट जानते ही डर कर पीछे हट गए।

“सिर्फ एक ने इन बातों को जानकर भी काम में शामिल हुआ। परंतु मेरे पहले असाइनमेंट में ही आउट हो गया। यही इस इंटरव्यू का पूरी पूरी बातें हैं। मुझे ऐसा लगता है तुम इस काम के लिए सेट हो जाओगे,” वे बोले।

जो जग रखा था उससे पानी मांग कर उन्होंने पिया। उस समय उनके हाथों को धनंजयन ने देखा।

रबर ग्लव्स (दस्ताने) कृष्णा राज ने पहना था। सर को झुका कर पानी पीते समय उनके गर्दन के पीछे चमड़ी अजीब सी छितरी हुई कटी- कटी घली नजर आ रही थी। पानी पीने के बाद धनंजय की तरफ मुड़कर, दीर्घ स्वांस लेकर बोले “उस सूटकेस को उठाओ…” कृष्णा राज बोले।

निकाल के लाकर उसे कार्तिका ने खोला।

उसके अंदर करोड़ों रुपए के नोट की गड्डियां थी।

“इन रूपयों को तुम्हें ले जाकर तिरुपति के हुंडी(दान पेटी) में डालना है। परंतु तुम्हें डालने ना देकर एक भीड़ तुम्हारा पीछा करेगी। उन लोगों को पार करके तुम्हें उसे दान पेटी में जाकर जमा करना है। यह तुम्हारा पहला ‘असाइनमेंट’ है यह तुमसे होगा?” कृष्णा राज ने पूछा।

आश्चर्य के साथ एक सदमा मिली हुई भावनाओं से “कौन ऐसे मुझे रोकेगा?” धनंजयन ने पूछा।

“बताता हूं, वे तुम्हारी हत्या भी कर सकते हैं। अपनी जान से डरोगे तो इस काम को तुम नहीं कर सकते। अभी बोलो, तुम इस काम को करने के लिए तैयार हो?” धनराजन बोले।

बिना थोड़े भी सोचें, “बिल्कुल करुंगा सर। अभी मैं खुश हूं क्या? एक चलता फिरता शव जैसे ही तो हूं। एक अच्छे काम करते समय सचमुच यदि मर गया तो मुझे खुशी है” धनंजयन बोला।

“तुम्हें मरना नहीं है। तुम्हें जी कर दिखाना है। वह हिम्मत तुममें है?”कृष्णराज ने पूछा।

“एक बात मैंने कही सर। मुझे ऐसे किसी एक आदमी मेरी हत्या नहीं सकता।”धनंजयन बोला।

“इस हिम्मत की ही मुझे जरूरत है। इसके बाद के असाइनमेंट इससे भी कठिन होंगे। उसे भी करोगे ना?” कृष्णा राज बोले ।

“कर्तव्य बोले तो वह कठिन भी हो तो भी करना तो पड़ेगा ना सर?” धनंजयन बोला।

“गुड…. तुम्हारे रहने के लिए एक अपार्टमेंट एक ड्राइवर और गाड़ी के साथ देते हैं। उसके अलावा तुम्हें महीने 3लाख रुपए तुम्हारी सैलरी होगी। तुम्हारी सहमति है!”

खुशी से चक्कर आने लगा धनंजयन को।

आगे पढ़िए.…