अध्याय 20
“मैं पर्सनल सेक्रेटरी हूं। वे अब बाहर जाने-आने, के स्थिति में नहीं हैं। इसीलिए वे अपनी लड़की कार्तिका के द्वारा ही इस इंडस्ट्री को चला रहे हैं।
“कार्तिका नहीं मेरा चयन किया है। उनकी समस्याओं के मदद करने के लिए ही मैं भी सेक्रेटरी के आम के लिए ज्वाइन किया है” धनंजयन ने बोला।
“ओ…कहानी ऐसी जा रही है? उनकी मदद करने के लिए तुम। तुम्हारी मदद करने के लिए मैं?” कुमार बोला।
कर को चलते हुए अटल अटल और गंभीर वाणी से “हां। मैं नहीं हूं अब… हम हैं ठीक?” धनंजयन बोला।
उसके लिए सहमति दिखाते हुए कुमार ने अपने अंगूठे को ऊंचा किया।
“ठीक है, अभी हम क्यों कीरनूर को जा रहे हैं बताता हूं। तुम्हारे मामा ही कृष्ण नूर शिव मंदिर के कर्ताधर्ता है तुम्हारी अम्मा ने अभी बोला था ना?”धनंजयन ने पूछा।
“हां…. उससे क्या?” कुमार बोला।
“उनकी मदद की अभी हमें जरूरत है। वे करेंगे क्या?” धनंजयन ने पूछा।
“वे मदद, उसे गांव में ऑफिस के काम से जा रहे हो बोला था ना?” कुमार बोला।
“ऐसा ही सोचो ना।”
“क्या है रे?”
“बताता हूं। पहले तुम्हारे मामा से मिलकर फिर मंदिर जाएंगे” धनंजयन बोला।
“पहेलियां ही बुझा रहा है। समझने के लिए पूछो तो कहते हो बहुत कुरेदो । ठीक है कर को एक तरफ खड़ा करके नीचे उतरो” कुमार बोला।
“ओ…अभी मैं ड्राइवर बन जाता हूं बोल रहा है क्या?” धना बोला।
“यस बॉस…” कुमार के कहते हैं कर को एक तरफ खड़ी करके धनंजयन उतर गया।
ड्राइवर की सीट में बैठकर “बॉस बॉस…एक मित्र जैसे विश करो” कुमार बोला।
हाथ मिलाकर बधाई धनराज ने बधाई दी।
कीरनूर हरा भरा था। बारिश हुई थी इसलिए चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी। सड़क के किनारे कटी हुई फसल को जमा करके रख रहे थे। मिट्टी की सड़क ही थी। उबड़ खाबड़ में कार हिल डुल रही थी।
गांव के मकानों को देखते हुए ‘तुम्हारे मामा से कहकर पहले इन सड़क को ठीक करने के लिए बोलो” धनंजयन ने कहा।
“अपने सिटी में उन लोगों ने सड़क बना दी क्या? तुम इस गांव में बोल रहे हो?” कहते हुए मोगरे की बेल फैले हुए घर के सामने गाड़ी को कुमार ने रोक दिया।
“यह तुम्हारे मामा का घर है?” धनंजयन ने पूछा।
“हां… उतर….” उसके कहते समय ही उसके मामा की लड़की पुंखुड़ी सिर दिखाई दिया। लहंगा चुन्नी पहनी हुई थी। कीरनूर अभी भी इस नई सभ्यता से वंचित है मालूम हुआ।
तमिल आचार्य संहिता के के कारण “आईए अथांन…” बोलकर उसने स्वागत किया।
“सर यह पूँकोडी है, मेरे मामा की लड़की” कहकर उसका परिचय कराते हुए धन को साथ में लेकर कुमार अंदर गया।
उसे जमाने का घर था। सीधे हाथ की तरफ एक हाॅल था। उसने एक कुर्सी पर कुमार के मामा सदाशिवम बैठे हुए थे।
“मामा!”
“अरे वाह…क्या आश्चर्य है कैसे इस तरफ?”
“क्यों मामा नहीं आना चाहिए, नहीं तो मैं नहीं आने वाला आदमी हूं क्या?”
“ऐसा ऐसा….. इसके पहले सर सर कब आए थे तुम्हें याद है?”
“आते ही अथांन से झगड़ा मत करो। उन्हें बैठने को बोलो, पहले अंथई (बुआ) के बारे में पूछों,”ऐसा कहकर उन दोनों के टकराव के को बंद किया पूंकुड़ी ने।
धनंजय ने भी उसे पसंद किया। वैसे ही उसने घर पर एक दृष्टि डाली। दीवार के आले के अंदर एक बड़ी लंबी चाबी का गुच्छा और भी चाबियां रखे हुए थे जिसने उसके ध्यान को आकर्षित किया।
“बैठों कुमार। हां यह भैया कौन है?” कहकर वेदनंजय के तरफ मुड़े सदा शिवम।
“सर का नाम धनंजयन है। मैं नया जिस कंपनी में ज्वाइन किया हूं उसके जनरल मैनेजर हैं” कुमार बोला ।
“ओह…. तुमने नौकरी ज्वाइन कर ली…शाबाश! बैठिए सर। यह तुम्हारे दोस्त है सोच कर मैं भैया बोल दिया। मुझे गलत मत समझना, सदाशिवम बोले।
दोनों पास रखी दो कुर्सियों पर बैठ गए। तुरंत पीतल के लौटा भरकर पानी लेकर पूंकुड़ी।
“कीजिए सर। यह सब ग्रामीण जगह की आदतें हैं।”कुमार बोला।
एक बड़ी अच्छी खुशबू के साथ पानी दिया।
इस समय बड़े ही परेशान होकर दौड़ कर आ गई तो पूंकुड़ी की अम्मा कल्याणी।
उसकी परेशानी का कारण, दीवार के किनारे से धीरे-धीरे एक नाग रेंगता हुआ आ रहा था।
भाग कर जाकर एक थाली में कपूर को जलाकर सदा शिवम को दिया उनकी बेटी पूंकुड़ी ने। उसे लेकर नाग के आरती उतारने लगे सदा शिवम।
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