अध्याय 12
कार्तिका के प्रश्न, पर पहाड़ी रास्ते में पेड़ के छाया के नीचे गाड़ी को उसने खड़ी करके उसे आंखें फाड़ कर देखा धना।
“क्या बात है धना…. विवेक से ज्यादा मैं तुम्हें सदमा दे रही हूं…सदमा तो होगा। आगे आगे जब मैं बोलूंगी उन सब को सुनकर, मुझे छोड़ दीजिए ऐसा भी तुम बोल सकते हो।”
“बस करो मैडम…. रहस्यमय ढंग से आप बोले तो मैं नहीं समझ सकता। कृपया साफ-साफ बात कीजिएगा” कहते ही गाड़ी से नीचे उतर गई कार्तिका।
पास में एक बस ठंडी हवा छोड़कर, उसके आगे से निकल गई।
वह भी उतर गया। पास में ही तिरुपति पहाड़ियों के तलहटी में जंगल था। उसके ऊपर से बादल जा रहे थे। ठंडी हवा का झोंका आया।
दोनों हाथों को आगे की तरफ बांधकर, उस बादल के वादियों को देखते हुए जवाब देना शुरू किया कार्तिका ने।
“धना, अभी मैं संक्षिप्त में कुछ विषयों के बारे में बोलने वाली हूं। आपको निश्चित रूप से ही यह बातें सदमा देने वाली होंगी।”
“पहले क्या है बोलो मैडम…”
“उससे पहले आपको मुझे एक शपथ देना होगा ।”
“कसम?”
“हां…. इस तिरुपति पहाड़ के साक्षी के तौर पर इस भगवान पर आप शपथ खाएं मैं जो कहेंगी आप बाहर किसी से भी नहीं बोलेंगे।”
“ इतना बड़ा रहस्य है वह मैडम!, आप जो विषय बताने वाली हैं?”
“रहस्य भी कह सकते हैं, उसको बहुत ज्यादा क्रूर था कह कर भी वर्णन कर सकते हैं।”
“इन सबको मुझे आपको कहना बहुत जरूरी है क्या मैडम?”
“हां…बोलना ही पड़ेगा। फिर ही आप हमारी मदद कर सकते हैं।”
“ठीक है बोलिए।”
“बिना शपथ खाए ही बोलो, बोलें तो क्या मतलब है?” कार्तिका बोली।
“हाथ को आगे बढ़ायें करता हूं,” तैयार हुआ धना।
“मेरे हाथ के ऊपर मारके नहीं…”बोल कर, कार में से तिरुपति के लड्डू प्रसाद के थैले को निकाला। उसके ऊपर तिरुपति भगवान की फोटो थी। उसे कार के बोनेट के ऊपर फैलाया, “इस भगवान की फोटो के ऊपर मारकर शपथ कीजियेगा” वह बोली।
धनंजयन थोड़ा संकोच किया।
“क्यों धना…. इच्छा नहीं है?”
“कैसे बोले समझ में नहीं आ रहा मैडम..…भगवान के ऊपर शपथ खाएं तो जान भी चले जाए आगे नहीं कर सकते; बदलना भी नहीं चाहिए। वही मुझे सोने के लिए बाध्य कर रहा है ।”
“फिर ठीक है…अभी आपने मुझे जो मदद की है उसके साथ आप अलग हो जाइए। मैं आपको मजबूर नहीं करूंगी।”
“क्या है मैडम एकदम से आपने ऐसे बोल दिया?”
“मेरी स्थिति ऐसी है धना। जितने पाप हैं वह बस नहीं है आपको भी पापी बनाऊं?”
“ऐसे क्या है वो बातें?”
“यह सब बातें हैं या विषय नहीं है धना…एक एक भी एक-एक रहस्य है। यह साधारण वैसे भी नहीं है…. चिदंबरम रहस्यम ऐसा बोलते हैं ना वैसा है….”
“कोई बात नहीं मैडम, कुछ भी हो आप बोलिए।”
उसके बोलते समय, उसकी निगाहें, बोनेट पर रखे उसे फोटो के ऊपर गई।
उसने भी अपने सीधे हाथ की हथेली को भगवान की फोटो के ऊपर रखकर, “कसम से मैडम..” बोला ।
“धना, अभी मैं बोलने जा रही सब कुछ, कोर्ट के न्यायाधीश के सामने शपथ लेकर बोलने जैसे ही सच्चाई है। आपृको मैं आपके पिताजी के सेक्रेटरी ही सिर्फ समझ कर ही नहीं बोल रही हूं। आपको एक जिम्मेदारी युक्त अच्छे मनुष्य सोच कर बोल रही हूं।
“आपके जैसे कोई अच्छे साथी के लिए हम इंतजार कर रहे थे। अब हमें ऐसा साथी मिल गया ऐसा मैं विश्वास करती हूं।” ऐसा उसके कहते ही सामने सामने लाइन से बसें और कारें निकाल कर गई। उसमें एक कार वाला इनको छूते हुए सा निकाला तो कार्तिक हैरान हो गई।
कर का ड्राइवर सीट पर बैठे हुए आदमी ने तेलुगु में, “आपको अक्ल है क्या…यहां बड़े आराम से खड़े होकर बात कर रहे हो। यह जगह शेर घूमने वाली जगह है। उसने एक आदमी को मार दिया।’
दूसरे ही क्षण दोनों गाड़ी में चढ़ गए।
“शेर बोलते ही आप डर गए क्या?” कर को रवाना करते हुए धना ने पूछा।
“डरी तो नहीं…जिन्होंने इतनी सहानुभूति के साथ बोला था उनको सम्मान देने के लिए। जंगल के शेर सब एक जानवर ही नहीं हैं। हमारे अप्पा कृष्णा राज के सामने, उसे दामोदरम के सामने….” बोलने वाली को देखते हुए कर को बड़ी आवाज के साथ उसनेकार को रोका।
“एस धना…. मेरे पापा कृष्णा राज, एक कुलप्रीत कुलप्रीट हैं। बड़ी क्रिमिनल हैं। यह सब ही क्या मैं बहुत बड़े हत्यारे भी हैं….”उसने इसे खाने के बाद रोना शुरू कर दिया।
“विस्तार से बताइए मैडम…क्या कर फिर से कॉल स्टार्ट किया।
“हत्या, डकैती, शराब स्मगलिंग, बलात्कार एक भी अपराध भी मेरे अप्पा ने बाकी नहीं छोड़ा।
“यहीं सब तो उनके शरीर में किडनी फेलियर ब्लड प्रेशर लेप्रोसी आदि अलग-अलग आकर बैठ गई है। इसमें से एक बीमारी ही किसी को हो तो परेशानी है। सारी बीमारियां हो तो?” उसने जो प्रश्न पूछा तो धनंजयन सर्तक हो गया।
“कितनी भी करोड़ हो, वे अपनी
चमडी के लिए, अपने शरीर के लिए एक दवाई भी नहीं ले सकते। काम नहीं करने वाली किडनी के लिए एक दूसरे किडनी मिलने के बाद भी सेट नहीं हुआ।
“उबल रहे खून को बंद करने के लिए, जब तब गोली इंजेक्शन लेने से उनके शरीर ही एक नरक में बदल गया। उसके बाद ही धीरे-धीरे उन्हें समझ में आने लगा। बेचारे, पुण्य बोले तो क्या है उनके समझ में आया।” धीरे-धीरे स्पष्ट कार्तिका बोली ।
“अब अब सब गलतियों का समाधान ढूंढ रहे हैं क्या मैडम?” धना बोला।
“हां…समाधान ही नहीं ढूंढ रहे, किए हुए गलतियों के लिए कानून की तरफ से जो भी दंड हो उसको भी स्वीकार करने को तैयार हैं।”
“गलती करते समय आप उन्हें नहीं रोक सकीं ?”
“मैं पास होऊं तभी ना मुझे पता चलता। उत्तर में मैं देहरादून में कॉलेज का मेरा जीवन हॉस्टल में ही खत्म हुआ।”
“ आपकी अम्मा?”
“एक दिन वे गले में फंदा डालकर आत्महत्या करके मर गई।”हिचकियां लेते हुए उन्होंने कह कर बात खत्म किया।
उसे जवाब ने धनंजय के गला ही भर गया। वह भी भावुक हो गया।
अगले अंक में पढ़िए….