अपराध ही अपराध - भाग 18 S Bhagyam Sharma द्वारा क्राइम कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अपराध ही अपराध - भाग 18

अध्याय 18

“अम्मा मत परेशान हो। धना अब एप्पल मोबाइल ही लेकर देगा। वही सब ठीक हो गया ना?” समाधान करने जैसे शांति बोली।

धना का मन, विवेक के बारे में सोच रहा था।

कहीं उसने कीर्ति और श्रुति को फॉलो किया होगा क्या सोच कर उसे डर लगने लगा। उसी समय घर पर एक कार आकर खड़ी हुई, उसमें से श्रुति और कीर्ति दोनों उतरी।

“यह देखो दोनों आ गई” कहकर शांति हड़बड़ाई। उसके बाद उसका सोच अलग हुआ।

“क्या है रे, कार में आ रहे हो किसकी गाड़ी है,।”अम्मा ने पूछा

“घबराओ मत अम्मा। कॉलेज एडमिशन के लिए प्रवेश पत्र लेने गए थे। वहां बहुत भीड़ थी। तब विवेक नाम की एक आदमी ने हमें प्रवेश पत्र लेकर दिया, उन्होंने गाड़ी में ही हमें भेज दिया।”

“वे अन्ना को अच्छी तरह जानते हैं? अन्ना नौकरी पर लगता ही नए अपार्टमेंट में रहने जा रहे हैं इसके बारे में भी उन्होंने बताया। अन्ना के दोस्त हैं कहने पर हम गाड़ी में बैठ गए।

“पहले हमने मना किया। मैं भी तुम्हारे अन्ना जैसे ही हूं। आप संकोच मत करो। अब तुम बड़े सेक्रेटरी की बहनें हो। अब ऐसे ही गेट अप के साथ रहो ऐसा कहकर उन्होंने हमें भेजा” श्रुति ने बोला।

‘अन्ना उसे विवेक को एक धन्यवाद दे देना। वे नहीं होते तो हमें फॉर्म भी मिलते कि नहीं संदेह था…’ वे बोलीं।

इसी समय उसका मोबाइल भी बजा। वह जरा घबराते हुए एक तरफ को हो गया।

“क्यों धनंजयन छोटी बहनें आ गई क्या? मेरे बारे में बताया क्या?” विवेक की आवाज ने धनंजयन को एक कंपन के साथ सतर्क किया।

“यह तो जस्ट एक सैंपल है। तुम्हारी छोटी बहन या अक्का या अम्मा स्वतंत्रता पूर्वक बाहर घूमना तुम्हारे व्यवहार पर ही निर्भर है।

“उस कार्तिका का और कृष्णा राज का तुम्हें एक छोटा काम भी नहीं करना है। यही कार, बंगला और वेतन सब कुछ हम तुम्हें देंगे।

“मैं तुम्हें फिर से एक मौका देता हूं। अक्ल से काम करो। नहीं तो मेरे एक-एक मार, मृत्यु जैसे ही ही होगा। अभी-अभी बड़े स्मूथली वापस आई तुम्हारी बहने फिर नहीं भी आ सकती हैं मसोच लो वैसे ही कदम उठाओ” कहकर दूसरी तरफ से विवेक ने काट दिया।

धना का पसीना छूट गया।

“क्या बात है बेटा किसका फोन है? क्यों तुम्हारा चेहरा एक तरह से बदल गया”अम्मा ने पूछा।

“कुछ नहीं अम्मा यह ऑफिस की बात है।”

“कुछ भी बोलो बेटा जो कुछ हो रहा है बस है मेरे मन में ठीक नहीं लग रहा है” अपनी भावनाओं को संक्षिप्त में बताया अम्मा ने।

“यह काम परमानेंट है ना? ऐसा क्यों पूछ रही हूं करके गलत मत समझना। कल नौकरी चली जाए यह कार, बंगला सब कुछ चला जाएगा।

“उसके बाद फिर से इस तरह के घर में ही आना पड़ेगा, अडोसी- पड़ोसी ‘थोड़े समय के लिए टोकरी उठाया अब फिर वापस आ गया’ ऐसे जो चाहे बात करना शुरू कर देंगे” शांति बोली ।

एक तरफ विवेक, दूसरी तरफ यह लोग। अपने उन्नति करने में इतनी क्यों अड़चनें आ रहीं हैं । सोते हुए दीवार पर टंगे हुए कैलेंडर को देखा। उसमें मुरूगन और वेल्ली, देवता के हाथी के साथ फोटो थी। उनके कुल के देवता पलनी मुरूगन ही हैं।

‘क्या है स्वामी तुम ….. सब कुछ बनाया तुमने सौं तोलें गहनों में भी अभी हो। इसमें भी आपको दो पत्नियों हैं। हम लोगों के पास टू व्हीलर है तुम्हारे पास मोर। रोजाना पूजा और…’ कैलेंडर को देखकर अपने मां के गति में बह रहे को आकर उसकी बहन श्रुति ने अलग किया।

“अन्ना अन्ना तुम विवेक को धन्यवाद बोल देना। ऐसे दोस्त मिलने के लिए बहुत भाग्यशाली होना पड़ता है।” वह बोली।

फिर से उसका मोबाइल बजने लगा। उसने पटल पर देखा। उसका दोस्त कुमार था।

“अरे मांपल बड़े नौकरी में ज्वाइन कर दिए ऐसा मैंने सुना। सच है?”

“हां!रे”

“क्या है रे हां करके मरी हुए आवाज में बोल रहा है। कितनी खुशी की बात है।”

“वह ठीक है, तुम्हें किसने बताया?”

“तुम्हारा पूरा मोहल्ला ही बात कर रहा है रे। कर भी दिया है बताया। कैसे!”

“क्यों रे, मैं इसके लायक नहीं हूं तू भी सोच रहा है क्या?”

“कौन इस समय योग्यता को देखता है। ऐसा देखा तो मैं ‘पोस्ट ग्रेजुएट!’कंप्यूटर से संबंधित सभी डिग्रियां लिए हुए हूं।

“अभी तक 30 इंटरव्यू दे चुका हूं। ‘बीस हजार रुपए वेतन’5 साल होने के बाद एक ‘कन्फर्म’ करेंगे, यदि राजी हो कहते हैं…पुताई करने वाला भी तीस हजार कमाता है, इस देश में पढ़े-लिखे लोगों की दशा तुम्हें पता नहीं?” कुमार बोला।

“सॉरी कुमार। इस समय मैं कोई बात कहने की स्थिति में नहीं हूं। ऑफिस के काम से मैं कीरंनूर तक जा रहा हूं। कार ड्राइव करते समय मैं तुमसे बात करता हूं। अभी कट कर दो।”

“ठहर रे, अभी क्यों कीरंनूर को जा रहे हो?”

“वह तो बताया ना ऑफिस के काम से?”

“वही, मेरे मामा का गांव है। वे ही वहां वी.ए.ओ.,”

“ऐसा क्या!”

“हां रे। तुम कहो तो तुम्हारे साथ मैं भी आता हूं। मैं भी एक वी.ए.ओ. हूं।”

“क्या बोल रहा है रे?”

“बेकार घूमने वाला ऑफिसर ही हूं, उसी को मैंने शार्ट में बोला।”

कुमार के हमेशा हंसी मजाक वाले बातों में अपने लिए काफी मदद मिलेगी ऐसा उसने महसूस किया,

“ठीक है रे तू तैयार रह। तुझे पिक-अप कर लूंगा” धनंजयन ने बोला।

आगे पढ़िए…..