अपराध ही अपराध - भाग 17 S Bhagyam Sharma द्वारा क्राइम कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अपराध ही अपराध - भाग 17

अध्याय 17

 

पिछला सारांश:

अनाथालय में उस बच्चों को भेज दिया ऐसा बताया।’कार्तिका इंडस्ट्रीज के मालिक कृष्ण राज के बेटे के बारे में पूछताछ करने के लिए धनंजयन नगर पालिका के ऑफिस मे गया। 27 साल पहले जो हुआ था उसके बारे में मुझे कुछ भी नहीं मालूम। उस बच्चों को ले जाकर वहां जमा करने वाले कर्मचारी इस समय जिंदा नहीं है। परंतु उसके घर के पते के बारे में तो लिखा होगा, 2 दिन में उसे मैं ढूंढ कर आपको मैसेज कर दूंगा । मैं आपकी मदद करूंगा। ऐसा ऑफिसर ने कहा।

धनंजयन की अक्का शांति के लिए जो वर आया था जिसे लेकर आने वाला एक ब्रोकर था। उसी के लिए फोन करके उसकी अम्मा ने उसे जल्दी घर बुलाया। उस ब्रोकर को भेजने वाला दामोदरन ही है। उनके बात करते समय उसे पता चला।

 दामोदरन के प्रश्न पर ब्रोकर धीमी धीमी आवाज में बोल रहा था।

“साहब करीब करीब सब कुछ हो गया ऐसा लग रहा है।”

“हो गया जैसे नहीं करके दिखाइए।”

“मैं क्या कर सकता हूं जी? विस्तार से अपनी समझ से बता सकता हूं। और बातें छोड़ो 10 दिन में शादी तो वे लोग एकदम से लोग स्तंभित हो जाते रह गए। बहुत ही गरीब परिवार है। आभूषण जैसे कुछ भी नहीं है। अभी हाल में बेटे को एक अच्छी नौकरी लगी है और वे अभी थोड़ा सा ऊपर उठें हैं।”

“यह सब कोई मैटर नहीं है। जो एक साड़ी पहनी है उसी में लड़की आ जाए तो बहुत है। सब खर्चा लड़के वाले करेंगे अच्छी तरह समझा कर बता दो।”

“इस तरह बोलूं तो लड़के में ही कोई खराबी है ऐसे सोचेंगे ना? ऐसे बोलने वाले दामाद कई लोग हैं। ऐसे कहें तो संदेह ही होगा।”

“यह देखो, तुम्हारा कमिशन 5 लाख रुपया है। वह सिर्फ ऐसे ही नहीं आ जाएगा। तुम पूरे साल भी घूमो तो इतने रुपए तुम नहीं कमा सकते। फिर तुम्हारी इच्छा।”

“पूछ रहा हूं इसे आप गलत मत लीजिएगा। लड़के की सचमुच में शादी रुक गई क्या?”

“संदेह हो तो मालूम कर लो, मैं तुम्हें पता बता देता हूं।”

“नहीं जी, यहां इसलिए…”

“वह पूछेगा यह मालूम है। मेरा निशाना वह लड़की नहीं है “ मैं कहीं बर्बाद ना हो जाऊं?”

“तुम्हें कुछ नहीं होगा; यह मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं। जल्दी-जल्दी बात करके खत्म करो” ऐसा कहकर खट से दामोदरन ने फोन को रख दिया।

फिर से ब्रोकर वैयापूरी आए।

उनको अजीब सा देखा धनंजयन ने।

“लड़के के पिताजी ने ही बात की, मान गए क्या पूछ रहे थे। 10 दिन के अंदर शादी को रखना है यही बात परेशान कर रहा है; कम से कम एक महीना तो चाहिए मैंने बोला” ऐसा कह कर धनंजयन को संभलने लगे।

“ ऐसा मैंने बोला ही नहीं?” ऐसा कहकर उन्हें जरा स्तंभित करने के लिए छोड़ दिया धना ने।

“ऐसा नहीं है भैया मैंने ही अपने आप ऐसे कह दिया।”

“आप कैसे ऐसे कह सकते हैं। शादी के नाम से कितनी गलतियां होती है मालूम है?” धना के आवाज में एक गंभीरता थी।

“यह एक अच्छे परिवार के हैं भैया। आप अच्छी तरह से पूछताछ करके देख लो।”

“बिना पूछताछ किए रहूंगा क्या…आप उनके बारे में बात करके जाइए। मैं आपको बाद में फोन करता हूं।”

“शाम को तो यह आने के लिए कह रहे हैं ना…फिर उनसे ही बात कर लेंगे ना?”

“क्यों भाई ब्रोकर आपको अच्छा कमीशन देने के लिए बोला है क्या? बहुत ज्यादा तड़पड़ा रहे हो?” धनंजय के पूछते ही वह ब्रोकर का मुंह एकदम बंद हो गया। आश्चर्यचकित रह गया और उनके बारे में बढताकर वहां से चला गया।

उसके वहां से जाते ही उसे एक अजीब ढंग से सुशीला अम्मा ने देखा।

“क्यों अम्मा तुम मुझे ऐसा क्यों देख रही हो?”

“बड़ी जगह, से अपने आप रिश्ता हमें ढूंढ कर आया था…” वह इस तरह खींचने लगी।

“फिर आपको यह जगह पसंद आ गया?”

“मैंने ऐसा नहीं कहा रे। उनकी जगह पर रखकर देखो। एक अच्छे काम के लिए आकर वह ना हो तो वापस जाना अच्छा लगेगा?”

“पहले इन बातों में सच्चाई कितनी है इसे मालूम करना है?”

धनंजय के गुस्से से पूछने पर तब तक चुपचाप रहे कुमार,”अबे 25 साल पहले गुम गए उसे ढूंढने जा रहे हैं। यह कोई बड़ी बात है क्या? रवाना हो रे! हाथ में जो सूचनाएं हैं उसको रख कर, जिस लड़की की शादी होनी थी? क्या सचमुच में वह भाग गई? इन सब बातों की पूछताछ करते हैं।

“आजकल की जमाने में कौन सी लड़की मां बाप के देखे हुए लड़के से शादी करना चाहती है?” कुमार के इस प्रश्न से धना हिल गया।

“ठीक है रवाना हो। उसको भी देख लेते हैं” कहकर दोनों रवाना हुए।

धना से उम्र में बड़ी बहन शांति उसे बहुत ही लालसा से देखा। कुछ निगाहों में हजारों अर्थ और लालसाएं थीं।

जहां पर शादी होने वाली थी उस जगह वे लोग पहुंचे।

“हां सर शादी रुक गई और सबका मुंह एकदम बंद हो गया। ऐसा पहले इस जगह पर कभी भी ऐसा नहीं हुआ” मैनेजर बोला।

उसके बाद जो लड़की भाग गई उसके अप्पा को फोन किया।

“मेरे सर पर बिजली गिरा कर चली गई साहब वह गधी। मैं बाहर सर दिखाने लायक नहीं रहा” इस तरह वह भी कहने लगे।

उसके बाद दामाद जहां सर्विस कर रहा था उस आईटी कंपनी को गूगल में देखा। ढूंढने पर पता चला वह संस्था भी गलत नहीं है पता चला।

दामाद के अमेरिका के पते को देखकर उनके किसी दोस्त को फोन करके मालूम करने के लिए उन्हें कह दिया।

उसके बाद मालूम करने के लिए कुछ भी नहीं था। कार के अंदर ही धना और कुमार ने एक फैसला लिया और काम करना शुरू कर दिया।

“अब तो सब कुछ ठीक है ना। लड़के के घर वालों को लड़की देखने के लिए बुलाने को कह दो?”

“हां कह देंगे वैसे ही हम ड्यूटी के काम को भी थोड़ा देख लेते हैं।’

 

आगे पढ़िए….