ये उन दिनों की बात है

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और देखते ही देखते जयपुर सिटी से मेट्रो सिटी हो गया बड़े बड़े मॉल्स, बिल्डिंग्स, मल्टीप्लेक्सेज इत्यादि देखते देखते खड़े हो गए हैं और यहाँ भीड़भाड़ भी बहुत हो गयी है | जब देखो तब जाम लग जाता है निजात ही नहीं मिल पाती| अब तो सब लोग फिल्में देखने के लिए मल्टीप्लेक्सेज का रुख करने लगे है, पहले सिंगल स्क्रीन सिनेमा घर हुआ करते थे अब भी हैं, पर अब उनकी पूछ नहीं रही कुछ तो बंद भी हो चुके हैं | हाँ, लेकिन राजमंदिर अपनी उसी शान से अभी खड़ा है, जैसा पहले था | इसकी आभा अब

नए एपिसोड्स : : Every Tuesday

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ये उन दिनों की बात है

और देखते ही देखते जयपुर सिटी से मेट्रो सिटी हो गया बड़े बड़े मॉल्स, बिल्डिंग्स, मल्टीप्लेक्सेज इत्यादि देखते देखते हो गए हैं और यहाँ भीड़भाड़ भी बहुत हो गयी है | जब देखो तब जाम लग जाता है निजात ही नहीं मिल पाती| अब तो सब लोग फिल्में देखने के लिए मल्टीप्लेक्सेज का रुख करने लगे है, पहले सिंगल स्क्रीन सिनेमा घर हुआ करते थे अब भी हैं, पर अब उनकी पूछ नहीं रही कुछ तो बंद भी हो चुके हैं | हाँ, लेकिन राजमंदिर अपनी उसी शान से अभी खड़ा है, जैसा पहले था | इसकी आभा अब ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 2

मम्मा, चाय!!!! और इतने में समर चाय की ट्रे लिए लॉन में आया |स्वरा दी का कॉल था |पूछ थी, "मम्मा, कैसी है"? अच्छा तो बात नहीं कर सकती थी |एक्चुअली उनको कॉलेज के लिए लेट हो रहा था |अब अपनी मम्मा से झूठ भी बोलने लगा है |नहीं, नहीं, मम्मा ऐसा नहीं है, समर झेंपते हुए बोला | "मुझसे नाराज तो है ही" |ऐसा नहीं है, मम्मा | स्वरा मेरी बेटी इन दिनों मुंबई में है और आईआईटी से इंजीनियरिंग कर रही है और इसलिए उसके पापा ने अपना ट्रांसफर चंडीगढ़ से मुंबई करवा लिया | हालाँकि वो ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 3

संजीव कुमार, विकास खन्ना, रणवीर बरार और कुणाल कपूर.................. अगर उनके पेरेंट्स ने उन्हें उनके मुताबिक करियर चुनने की न दी होती तो क्या आज वो जिस टॉप पोजीशन पर अभी है, क्या वहां होते! पर ये सब सेलिब्रिटी शेफ हैं | जन्म से तो सेलिब्रिटी नहीं बने | यहाँ तक पहुँचने के लिए इनको भी कड़ी मेहनत करनी पड़ी थी | और आप ऐसा क्यों सोच रहे हैं कि हमारा समर कुछ नहीं कर पायेगा | ये जो चॉकलेट ब्राउनी आप खा रहे हो ना समर ने ही बनाई है | क्या!!!!!!!! ये सुनकर वे चौंके | उनके चेहरे ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 4

मम्मा!!!! दिवाली आने वाली है, "कौन-कौनसी मिठाइयां बनाओगी इस बार आप ?", समर ने पूछा | तुम लोग बताओ बार क्या बनाएं ? मम्मा, इस बार कुछ अलग बनाओ, कुछ डिफरेंट!!! नॉट ट्रेडिशनल!!!! और मेरे लिए चॉकलेट फ़ज, तिरामिसू और एप्पल पाई, स्वरा ने तुरंत अपनी फरमाइश रखी | और तू समर!!!!!! श्रीखंड, रस मलाई और नारियल की मिठाई | पास्ता, पनीर रोल्स एंड मशरूम रिसोतो, स्वरा ने जोड़ा | हर बार की तरह इस बार भी मेरी फ्रेंड्स आ रही है | एंड सम न्यू ऑल्सो, क्योंकि आपको तो पता ही है, आपके हाथ का खाना उनको बहुत पसंद ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 5

हम दोनों एक दुसरे से हर बात शेयर करते थे | न तो वो मुझसे कभी कुछ छुपाती थी न ही मैं | "टिफ़िन शेयर करना, खेलना, मस्ती, खुशियां" सब कुछ था हमारी ज़िन्दगी में | मुझे आज भी याद है, उसे मेरी मम्मी के हाथ के बनाये हुए भरवां परांठे पसंद थे और मुझे उसकी मम्मी के हाथ के बनाये हुए छोले भठूरे | वैसे तो आठवीं क्लास से ही हमारा एक ग्रुप बन गया था | मानसी, सोनिया, निशा, राधिका, कामिनी और मैं | लेकिन मेरी और कामिनी की दोस्ती तो बहुत पुरानी है | मम्मा, ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 6

मैं जब चंडीगढ़ से आई तो पता चला अंकल आंटी यहाँ से चले गए और उदयपुर शिफ्ट हो गए घर भी बेच दिया | ह्म्म्म्म्म..............दरअसल चिंटू की जॉब उदयपुर में लग गई थी और हमारा पुश्तैनी घर भी है वहां | अधिकतर हमारे रिश्तेदार भी रहते हैं, इसलिए चिंटू उन्हें अपने साथ ही ले गया | जब चिंटू की नई नई जॉब लगी थी उदयपुर | थोड़े दिन तो वो अकेला रहा, पर उसे मम्मी पापा की याद आने लगी और उन्हें वहीँ बुला लिया | कहा, आप यहीं आ जाओ | मुझे यहाँ बिलकुल अच्छा नहीं लगता आपके ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 7

जोरू के गुलाम है दोनों ही, मेरी सोच को विराम तब लगा, जब मैंने धीरज को ये कहते हुए | जी, कुछ कहा आपने | तुम अपनी सहेली से जरा दूर ही रहना | तुम उसके साथ रह रहकर कहीं मुझसे ये एक्सपेक्ट मत करने लगना कि मैं भी वहीं करूँ, जो वो दोनों जोरू के गुलाम करते हैं | औरतों को हमेशा मर्दों का कहना ही मानना चाहिये | और तुम ! कुछ ज्यादा ही हँस रही थी | शर्म नहीं आती, इतनी जोर से हँसते हुए | पता नहीं किस टाइप की औरतों की संगत में रहने ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 8

प्लीज, दिव्या!! मुझे छोड़कर मत जाओ | "मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता," दिव्या!! आई लव यू, सो मच!! साथ बस यहीं तक था, सागर | प्लीज, मुझे भूल जाओ | हम कभी एक नहीं हो सकते | ये उसके शब्द थे | जब उससे आखिरी अलविदा लिया था मैंने | अभी भी याद है मुझे | वो तुझे कितना प्यार करता था, दिव्या | काश!! तेरी शादी उसके साथ हुई होती तो, शायद आज तेरी ज़िन्दगी कुछ और ही होती | उसमें ग़मों के लिए शायद कोई जगह नहीं होती | कामिनी भावुक थी | हर किसी को वो ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 9

कामिनी, कामिनी, मैगज़ीन लेकर आई ? मैंने पूछा | हाँ, हाँ, ये देख | कितने अच्छे लग रहे हैं तू तो ऐसे बोल रही है जैसे................ जैसे? जैसे................ये तेरा वो हो | वो? मतलब? "पति"!! तू भी पता नहीं, क्या-क्या सोचती रहती है, मैं शरमाई | आय!! हाय!! हमारी मैडम शर्मा गई | जिसके बारे में हम बात कर रहे थे ना, वो कुमार गौरव था | जिस फ़िल्मी मैगज़ीन में हम दोनों नज़रें गड़ाए हुए थे, उसमें कुमार गौरव का इंटरव्यू छपा था | मैं एक औसत छात्रा थी | ठीक-ठाक थी पढ़ाई में | हम दोनों चौथी-पांचवी बेंच पर ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 10

चूँकि आज संडे था तो मम्मी के साथ मैं और नैना भी मार्किट के लिए निकल गए थे और आते समय हम गोविन्द देव जी मंदिर होते हुए आ रहे थे| दिव्या की मम्मी !!! ओ दिव्या की मम्मी !!!! जल्दी चलिए | शीला बहन, इतनी जल्दबाजी में कहाँ से आ रही हो? ये थी शीला आंटी, जिन्हें उस ज़माने की गूगल सर्च इंजन कहें तो कोई अतिशोयक्ति नहीं होगी, क्योंकि उनके पास सबकी खबरें हुआ करती थी | मसलन छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी हर बात उन्हें पता होती थी | मसलन काजल की मम्मी ने नया सोने ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 11

कहते है ना की ज़िन्दगी एक पल में बदल जाती है और वो पल मेरी ज़िन्दगी में आ गया इसका अंदाज़ा मुझे बिलकुल भी नहीं था | कब, कौन, कहाँ, कैसे मिल जाए कुछ भी पता नहीं चलता | जो होना होता है वो होकर ही रहता है अन्यथा वो वहां था और मैं यहाँ थी | कोई संभावना ही नहीं थी, पर होनी को कौन टाल सकता है | समय ने हमें मिलाना शुरू कर दिया था | और मेरे साथ भी कुछ कुछ वैसा ही हुआ जैसा मैं अक्सर फिल्मों में देखा करती थी | उस रोज़ ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 12

दिव्या, तूने व्रत तो रख लिया पर क्या तू भूखी रह पायेगी? मम्मी ने पूछा क्यों, मम्मी? आप ऐसे कह रही हो? क्या मैं भूखी नहीं रह सकती? क्योंकि 4 बजे बाद इस व्रत में कुछ भी नहीं खाते | 12 बजे बाद ही कुछ खा सकते है | तब तक तुझे भूखा ही रहना पड़ेगा और अभी तू बहुत छोटी है | तेरी उम्र ही क्या है व्रत करने की | सारी ज़िन्दगी पड़ी है, बाद में कर लेना, मम्मी ने समझाया | मेरी सारी सहेलियां ये व्रत कर रही है और आप देखना मुझे बिलकुल भूख नहीं लगेगी ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 13

सागर बहुत ही परेशान था | रामू काका.........रामू काका......... जी, सागर बाबा | मैगज़ीन वाले की बिल रिसीट देना जी, अभी लाया | सागर ने नंबर देखकर फ़ोन लगाया | आपकी सर्विस बिलकुल भी ठीक नहीं है | जिस मैगज़ीन के लिए मैंने आर्डर दिया था, उसकी जगह आपने ये वल्गर मैगज़ीन भेज दी है | अब ये मैगज़ीन वापस ले जाओ, सागर बहुत गुस्से में था | सॉरी सर...........शायद अदला बदली हो गयी | हॉकर की गलती की वजह से आपकी मैगज़ीन किसी और के यहाँ चली गई और उसकी मैगज़ीन आपके यहाँ आ गई | आपकी प्रॉब्लम जल्दी ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 14

अब जब भी मम्मी को दादी के घर कुछ भिजवाना या मंगवाना होता तो मैं या तो मना कर या कोई ना कोई बहाना बना लेती | फिर नैना ही जाती उनके घर | एक दिन मम्मी ने दादी के घर से दाल की मंगोड़ी ले आने के लिए नैना को भेजा | दादी पापड़, अचार, सोया बड़ी, नमकीन, शक्करपारे और भी बहुत सी चीजें बना लेती थी और काफी सारी बना लेती थी जिसे सब लोगों में बाँट देती थी | नैना चली गई | जब वापस आई तब उसके हाथ में दो चॉकलेट्स थी | देख, दादी ने मुझे ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 15

और आंटी मेरी हेयर कटिंग में जुट गई | बार-बार पानी के छींटे चेहरे पर पड़ने से मेरी आँखें हो रही थी | यूँ तो मम्मी ट्रिमिंग कर दिया करती थी पर पहली बार आगे से लटें बनवा रही थी मैं, जैसे फिल्मों में हीरोइन करवाती है | कैसी लगूँगी मैं ? अच्छी तो लगूँगी ना!! इन्ही विचारों में मेरा मन डूबा हुआ था | अपने विचारों से तब बाहर आई, जब आंटी ने कहा, "बेटा ज़रा एक बार शीशे में तो देखना" | और.....और........धीरे से अपनी आँखें खोली | जैसे ही शीशे में खुद को जब देखा, तो ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 16

शादी वाले दिन नैना और मैंने लहँगा पहना जो हमने दिवाली पर सिलवाया था | बाल खुले ही रखे जिनमें मम्मी ने गजरा लगा दिया था | हील वाली सैंडल कभी पहनी नहीं थी | हमेशा जयपुरी जूती या फ्लैट चप्पल और सैंडल ही पहने थे | चूँकि आज मैं लहंगा पहनने वाली थी तो मम्मी से जिद करके हील वाली सैंडल खरीदी | इधर सागर और उसकी फैमिली को भी कोमल दीदी की शादी का इन्विटेशन आया था | उनके मम्मी पापा सागर के दादा-दादी को बहुत मानते थे | सागर ने कुरता पाजामा पहना था | ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 17

मेरी और कामिनी की मम्मी वहां बैठी थी, जहाँ औरतें मंगल गीत गा रही थी | बच्चे इधर-उधर कर रहे थे, खेल रहे थे | हलवाई तरह-तरह के पकवान बना रहे थे | कोमल दीदी पार्लर गई हुई थी | बारात तोरण मारने घर आ पहुंची थी | उसके बाद दूल्हे राजा की आरती की गई और उन्हें नई कलाई घड़ी भेंट की गई | लड़के-लड़कियाँ ढोल ताशे पर जमकर नाच रहे थे | सोनिया और उसकी कज़िन्स रिबिन लेकर दरवाजे पर आ खड़ी हुई ताकि जीजाजी रिबिन काटे, शगुन के पैसे दे और उन्हें अंदर जाने दिया जाए ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 18

"सागर", थैंक यू, "भाई" | अबे साले, दोस्त भी कहता है और थैंक यू भी बोलता है | "सॉरी और दोनों कहकहे लगा कर हँस पड़े | मम्मी, नैना, दादी, और कुसुम चाची "कामिनी की मम्मी", खाना खा चुकी थी | हमने अभी तक खाना नहीं खाया था, इसलिए हमने उनसे कह दिया की वे हमारी फ़िक्र ना करें | कल सुबह दीदी की विदाई करने के बाद आ जाएँगी | नैना रुकना नहीं चाहती थी, क्योंकि उसकी कोई सहेलियां भी नहीं थी और वो नींद की भी बड़ी कच्ची थी | बेटा तुम रुकना चाहते हो? दादी ने ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 19

स्कूल की तरफ से पिकनिक का प्रोग्राम बना था | जगह थी सरिस्का नेशनल पार्क | सुबह 6:30 बजे स्कूल पहुँच गए थे | चूँकि सफर काफी लम्बा था इसलिए जल्दी निकलना जरूरी था | उस दिन मैंने व्हाइट कलर का फ्रॉक जिसमें लाल रंग के पोल्का डॉट्स थे और साथ ही मैचिंग का पोल्का डॉट्स वाला ही हेयरबैंड लगा रखा था | छोटी छोटी लाल रंग की बालियां कानों में पहन रखी थी | पहले मुझे पता नहीं था कि पोल्का डॉट्स क्या होता है | हम तो इसे छोटे-छोटे बिंदुओं वाली ड्रेस कहते थे, पर जब कृतिका ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 20

तभी सामने से आ रहे सागर से टकरा गई थी मैं | ये दूसरी बार था जब सागर से से टकराई थी मैं | और वो हमारी पहली टक्कर पिक्चर की तरह फिर से मेरे सामने आ गई | आई एम सॉरी |इट्स ओके नो प्रॉब्लम, सागर मुस्कराया | एक्चुअली, हम सब ट्रिप पर आये हैं, उसने बताया | एंड यू ? हम भी ट्रिप पर ही आये है यहाँ | कृतिका और राज हाथों में हाथ डाले हमारी ही तरफ ही आ रहे थे | सागर और दिव्या को एक साथ देखकर कृतिका चौंकी | ये लड़का कौन है, जो दिव्या ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 21

टूर्नामेंट होने वाले थे | दौड़, रस्साकशी, ऊंची कूद, कबड्डी, खो-खो, और बास्केटबॉल | हर बार की तरह इस भी मैंने प्रतियोगिता में भाग लिया था | या तो मैं कबड्डी में भाग लेती या रस्साकशी या फिर खो-खो, लेकिन इस बार बास्केटबॉल में हिस्सा लिया | उसकी भी एक वजह थी, वो वजह थी, कृतिका, जो ना जाने क्यों इन दिनों मुझसे चिढ़ी हुई थी | उसने मुझे खुले आम चैलेंज किया था की अगर मुझमे हिम्मत है तो उसे बास्केटबॉल हराकर दिखाऊं | उस वक़्त तो मैंने भी जोश ही जोश में हाँ कर दी थी | पर ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 22

"शुरू ये सिलसिला तो उसी दिन से हुआ था, अचानक तूने जिस दिन मुझे यूँ ही छुआ था, लहर जो उस पल तन बदन में वो मन को आज भी महका रही है............" | यूँ ही ये गाना मेरे जेहन में नहीं आया था | कुछ बहुत ही ख़ास वजह थी जिसने मुझे इक अलग ही एहसास में बाँध दिया था | बहुत ही ख़ास था वो दिन जब में सागर को उसकी गेंद वापस करने गई | "कॉन्ग्रैचुलेशन्स" | मैंने उसे इस तरह देखा मानो पूछ रही होऊँ की तुम्हें कैसे पता | अरे बाबा!!! ये सरप्राइज़ लुक ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 23

लेकिन उसे देखते ही, मैं कामिनी के पीछे छुप गई थी | क्योंकि उसकी उन दोस्तों के सामने मैं फीकी लग रही थी |क्या कर रही है, तू? मुझे उसके पीछे छुपते देख कामिनी ने टोका और उसने जबरदस्ती मुझे आगे धकेल दिया |उसने थोड़ा जोर से धकेला था मुझे, जिससे मैं बिलकुल बीचोंबीच आ खड़ी हुई थी | अब सागर की नजरें मुझे पर आ टिकी थी | और जब उसने दिव्या को देखा तो देखता ही रह गया | उसकी नज़रें उससे हट ही नहीं पा रही थी | जैसे एक साथ कई रंग-बिरंगे बल्ब एक साथ ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 24

उस दिन के बाद से मेरे मन में सागर के लिए कुछ अलग सा ही एहसास पनपने लगा था जैसे जब भी वो अपनी साइकिल को दौड़ाता हुआ गली में से होकर गुजरता तो मैं उसे देखने के लिए बालकनी में आ खड़ी होती और उसे जाते हुए तब तक देखती रहती, जब तक की वो मेरी आँखों से ओझल ना हो जाता | रात को छत पर घुमते हुए आसमान में चाँद को निहारा करती, तारे गिना करती | उस चाँद में सागर का चेहरा ढूँढा करती | फूलों से बातें किया करती और उनकी खुश्बू को अपनी साँसों ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 25

सागर की भी हालत दिव्या के जैसी ही थी | जो हाल दिव्या का था, वही हाल सागर का था | वो जब भी गली से गुजरता, उसकी आँखें दिव्या को ही ढूँढा करती | काश!!! के उसकी एक झलक मिल जाए | अक्सर यहीं मन में सोचता हुआ उसके घर की तरफ देखा करता और दिव्या के ना दिखने पर बेचैन हो उठता | अब इसे उन दोनों की बदनसीबी ही कहेंगे की जब दिव्या चाहती सागर उसे देखे, वो उसे ना देखता और जब सागर दिव्या को ढूंढ़ना चाहता वो उसे ना मिलती | दोनों की हालत ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 26

मैं तुरत-फुरत से तैयार होकर सीधा कामिनी के घर पहुंची और उसे सागर की लिखी हुई वो चिट्ठी दिखाई वाह!! मेरी लाडो!! यानी आग दोनों तरफ ही बराबर लगी हुई है | इधर तू उसके लिए तड़प रही है, उधर वो तेरे लिए तड़प रहा है | मेरा मतलब "जीजाजी" और कामिनी हँस दी |क्या कामिनी!! तू भी ना!! उसके सागर को जीजाजी बोलते ही शर्मा सी गई थी मैं |आय! हाय! मन में तो लड्डू फूट रहे हैं |अच्छा, अच्छा, अब ये बता आगे क्या!!आगे क्या, जिस तरह जीजाजी ने तुझे चिट्ठी लिखी उसी तरह तू भी उन्हें ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 27

फिर कुछ सोचकर मैंने कहा, ठीक है, तुम्ही बताओ कहाँ मिले? नाहरगढ़ चलोगी? उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा नाहरगढ़? इतनी दूर? थोड़ा-सा झिझकते हुए पूछा मैंने | इतनी दूर भी नहीं है और मैंने सुना है कि कपल्स अक्सर वहीँ पर मिला करते हैं | वो उनके एकान्त की जगह है जहाँ वे ढेर सारी बातें करते हैं | हाथों में हाथ डालकर घुमते हैं और……………… इतना कहकर वो चुप हो गया | और क्या? क्या कहना चाहते हो तुम? मैंने डरते-डरते पूछा | और वहीँ जो मैं तुमसे सुनना चाहता हूँ और तुम मुझसे | "देट थ्री मैजिकल वर्ड्स" ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 28

पहली बार मैं किसी लड़के की मोटरसाइकिल पर बैठी थी और वो लड़का कोई और नहीं बल्कि सागर था, सागर" जिसे मैं बहुत ज्यादा चाहती थी | फिर भी मैं कुछ अजीब और शर्म-सा महसूस कर रही थी |तुम बिलकुल परेशान ना हो, दिव्या, आराम से बैठो |हे भगवान ये मेरा मन पढ़ सकता है, मैं मन ही मन बुदबुदाई |कुछ कहा तुमने...........नहीं!!अगर ऐतराज ना हो तो तुम अपना हाथ मेरे कंधे पर रख सकती हो | कुछ शर्माकर, सकुचाकर मैंने अपना हाथ उसके कंधे पर रख दिया |सागर के चेहरे पर एक बड़ी से मुस्कान आ गई थी ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 29

और फिर उसने मेरा चेहरा अपने हाथों में लिया और वो कहा जो मैं इतने दिनों से सुनने को हो रही थी, वो तीन शब्द!!! जो हर लड़की अपने महबूब से सुनना चाहती है | आई लव यू, दिव्या!!! आई लव यू सो मच!!! अब वो सुनना चाहता था मुझसे |फिर मैंने अपनी आँखें बंद की और धीमे से कहा,"आई.....लव.........यू..........टू" ये सुनते ही सागर का चेहरा ऐसे खिल उठा जैसे सुबह-सुबह कोई फूल मीठी-मीठी, ताज़ी-सी हवा के झोंके से अंगड़ाई लेकर खिलता है | हम दोनों को जो कहना था, वो कह चुके थे फिर थोड़ी देर के लिए खामोश हो गए ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 30

इस पर सागर को हँसी आ गई, जिसे मैंने शीशे में देख लिया था | उसे हँसते देखकर मुझे भी गुस्सा आ गया था |गोविन्द देव जी का मंदिर आते ही मैंने उसे गाड़ी रोकने को कहा |क्या हुआ?और जैसे ही उसने गाड़ी रोकी, मैं तुरंत ही नीचे उतर गई |दिव्या........कहाँ जा रही हो? मैं कहीं भी जाऊं........तुमसे मतलब!!!!! मैं सड़क पार कर जाने लगी | सागर भी मेरे पीछे पीछे आ गया | कहाँ जा रही हो ? बता तो दो !! प्लीज दिव्या.......सुनो तो सही..... देखो ऐसे बीच सड़क मुझसे बात मत करो | नहीं करूंगा......पर बता तो दो, ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 31

सागर रूठा हुआ था, क्योंकि तब जब मैं उसकी आहट सुनते ही बालकनी में आ खड़ी हुई थी, उसने उठाकर मुझे देखा भी नहीं था | मैंने इधर-उधर नज़रें बचाकर उसपर गुलाब का फूल फेंका लेकिन उसने अनदेखा कर दिया था | हे भगवान!!!! इतना गुस्सा!!!! खैर जो भी हो!! अपने सागर को मैं मना ही लूँगी | मैं यूँ ही उसके घर पहुंची पर उस वक़्त वो घर पर नहीं था | दादी केर-सांगरी का अचार बना रही थी | अरे दिव्या बेटा!! जरा रसोई में से मसाले के डिब्बे तो लेकर आ | जी दादी!! अभी लाई ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 32

मैं यहाँ उसका इंतज़ार कर रही थी और वो वहां वो मुझसे मिलने आ रहा था | दिव्या, दिव्या, ने पुकारा | नीचे आई तो देखा मेरे मामा-मामी आये हुए थे | मामाजी दिल्ली रहते है और खासकर हम दोनों बहनों से ही मिलने आये थे वो | वैसे तो मैं हमेशा उन्हें देखकर खुश हो जाती हूँ पर आज उन्हें देखकर मुझे जरा भी ख़ुशी नहीं हुई | चेहरे पे एक नकली सी मुस्कान लिए मैं नीचे आई क्योंकि मन तो बस सागर के लिए ही तड़प रहा था | मामा-मामी बातें किये जा रहे थे और मैं बस ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 33

फिर क्या था मैं तुरंत उससे मिलने को मचल उठी | इसलिए तुरंत नीचे उतर आई और फिर आईने सामने जाकर अपने कपड़े और बाल ठीक करने लगी चूँकि सागर मेरे घर नहीं आ सकता था क्योंकि उसके पास कोई वजह भी नहीं थी लेकिन मैं उससे मिलने जा सकती थी क्योंकि हम दोनों बहनें कई बार दादी के यहाँ चले जाया करते थे | फिर एक बार खुद को आईने में देखा तो कुछ अजीब सा लगा मुझे और कदम वहीं ठिठक कर रह गए | तब की बात और थी, तब मैं छोटी थी और सागर भी नहीं ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 34

अच्छा!! अब हम चलते है, दादाजी का कहना था और सागर का मुँह लटक गया |इतनी जल्दी!! अभी तो ठीक से अपनी दिव्या को देखा भी नहीं, सागर ने मन ही मन कहा |मैं खुद भी मायूस हो गई थी | हम दोनों ही एक दूसरे से मिलने को बेताब थे, लेकिन हाय!! ये मजबूरियाँ, ये दूरियां, हम दोनों को ही तड़पा रही थी पल-पल |उस पूरे माहौल में सिर्फ हम दोनों ही थे जो मायूस थे, खामोश थे | बाकी सब आपस में बतिया रहे थे | कोई भी नहीं जान सकता था हम दोनों के दिलों की ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 35

रेडियो पर मैंने प्यार किया के गाने बजने लगे थे | चित्रहार पर भी इस फिल्म के गाने दिखाने थे जो की अगले महीने की 29 तारीख को रिलीज़ होने वाली थी | सबकी जुबां पर इसी फिल्म की चर्चाएं जोर शोर से चल रही थी | गाने भी सबको कंठस्थ हो गए थे | स्कूल-कॉलेज के लड़के-लड़कियाँ प्रेम और सुमन जैसे कपड़े पहनकर घूमने लगे थे | पेन्टर्स रात-रात भर जागकर फिल्म के पोस्टर तैयार करने में लगे हुए थे | कुल मिलकर सभी बहुत उत्साहित थे | वैसे तो पहले भी ये दोनों कलाकार परदे पर आ ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 36

आज तो तुम बिलकुल मैंने प्यार किया की सुमन लग रही हो!! थैंक्स!! और तुम भी मैंने प्यार किया प्रेम लग रहे हो!! रियली!! वैसे मेरी दादी कहती है की मैं बहुत ही डैशिंग हूँ | आहा......हा......हा..........हा............ और क्या!! वहां मुंबई में तो लड़कियाँ मरती थी मुझ पर | वहीं क्या यहाँ की लड़कियाँ भी पागल है मेरे पीछे | अच्छा पर हम तो नहीं है | तो फिर पहली ही मुलाक़ात में क्यों देखती ही रह गयी थी मुझे | नहीं तो!! मैंने मुँह बनाकर झूठमूठ कहा | तो मेरे अलावा और कौन था वहां? वो मैं तुम्हारी ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 37

दरअसल एक नए एहसास से ही हम दोनों रोमांचित हो उठे थे | एक अलग-सा एहसास मन को मदहोश रहा था | दिल में कुछ-कुछ होने लगा था जो ऐसा था जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल था | चाहता तो वो भी था और मैं भी | मैं अपने इन्ही ख्यालों में खोयी सी थी की उसने अपना हाथ मेरे हाथों में ले लिया | दिव्या!! क्या तुम भी वोही सोच रही हो जो मैं सोच रहा हूँ!! हे भगवान!! इसे मेरे मन की बात कैसे पता चली? पढ़ सकता हूँ तुम्हे, महसूस कर सकता हूँ तुम्हे, प्यार ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 38

सागर उस बस्ती में गया जहाँ वो बच्ची रहती थी वहां की हालत देखकर उसका मन व्याकुल हो उठा वो उस बच्ची के घर गया तो घर क्या था सिर्फ एक छोटा सा कमरा था जहाँ बहुत ही कम सामान था देखा एक खाट पर उस बच्ची की माँ अपने जीवन की अंतिम सांसें गिन रही थी एक कोने में स्टोव रखा था एक दूसरे कोने में पीने के पानी की मटकी रखी थी घर में अनाज के दाने का नामोनिशान तक नही था कुछ बर्तन थे जो इधर उधर बिखरे पड़े थे पूरा कमरा एक अजीब सी गंध से दहक रहा था बच्ची ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 39

सागर, बेटा! नीचे आ जाओ, नाश्ता तैयार है!आओ पिंकी! नीचे चले |पिंकी को सुलाते-सुलाते सागर उसी के पास ही गया था |खाने की टेबल पर दादा दादी सागर का इंतज़ार कर रहे थे |हमें सागर से बात तो करनी पड़ेगी, इस तरह पिंकी को यहाँ घर पर रखना ठीक नहीं | इतने में सागर और पिंकी तैयार होकर नीचे आये |पिंकी ने गुलाबी रंग की फ्रॉक पहनी हुई थी जिसमें वो बहुत ही प्यारी लग रही बिलकुल किसी राजकुमारी की तरह |दादी ने उसकी तरफ देखकर वात्सल्य भरी मुस्कान दी |दादाजी, पिंकी का एडमिशन अच्छे से स्कूल में करा ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 40

तेरे जीनियस सागर भैया है ना!!अरे हाँ!! मैं तो भूल ही गई थी | चलो चलते है, उत्साहित होकर मैंने |जैसे ही हम दोनों जाने के लिए खड़े हुए, एक मिनट......पर तू क्यों चल रही है? तू क्या करेगी वहाँ?मैं वो.......सागर से मिल............हा हा हा हा..........हम्म्म समझ गयी | सारी चॉकलेट्स तू ही खाना चाहती है ना अकेली, इसलिए मुझे नहीं ले जा रही |अरे दीदी!! चल ठीक है |शुक्र है भगवान का की इसने ज्यादा कुछ पूछा नहीं |थोड़ी ही देर मैं हम सागर के घर थे |दरवाजा दादी ने ही खोला था | दादाजी रामू काका के ...और पढ़े

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ये उन दिनों की बात है - 41

"मैं बहुत परेशान हूँ, दिव्या | क्या कल हम मिल सकते हैं?मैं तुम्हारा रामनिवास बाग में इंतज़ार करूँगा |तुम्हारा | बस इतना ही लिखा था उस चिट्ठी में |कल मुझे प्रवेश पत्र भी लेने जाना था | अगले सप्ताह से बारहवीं की परीक्षाएँ शुरू होने वाली थी | ****************************************************************** दुसरे दिन मैं स्कूल से प्रवेश पत्र लेकर सीधे रामनिवास बाग पहुंची | सागर पहले से ही वहाँ था |ये तुम्हारे हाथ में क्या है?प्रवेश पत्र!!अच्छा! एग्जाम डेट्स आ गई?हाँ |कबसे है? अगले सप्ताह |गुड! अच्छी तरह से स्टडी करना |हम्म्म..........सारे टॉपिक्स अच्छे से कवर कर लिए ना |हम्म्म.........टाइम मैनेजमेंट ...और पढ़े

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