फिर कब आओगे Qais Jaunpuri द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

फिर कब आओगे

फिर कब आओगे ?

क़ैस जौनपुरी

मैं ट्रेन से उतरा, और बाहर जाने के लिए ओवरब्रिज की सीढ़ियाँ चढ़ने लगा. सीढ़ियाँ चढ़के जब मैं आगे बढ़ा, तो क्या देखता हूँ कि दो-तीन मोटे-मोटे टी. सी. एक साथ खड़े होके भीड़ में से किसी-किसी को पकड़ के उसका टिकट चेक कर रहे थे. पता नहीं क्यूँ टी. सी. को देख के मुझे डर लग जाता है. भले ही मेरे पास टिकट हो, तब भी. पता नहीं इन टीसीयों और पुलिस वालों को देखके मुझे डर क्यों लगता है, जबकि मैंने आज तक कोई ऐसा काम नहीं किया है, जिसकी वजह से मुझे पुलिस के पास जाना पड़ा हो. पता नहीं कैसा डर है, जो अन्दर बैठा हुआ है, और मुझे डराता रहता है.

आज भी मैं टी. सी. को देखके थोड़ा सा डरा, फिर सोचा, “डरते क्यों हो? टिकट तो है तुम्हारे पास.” लेकिन मैंने सोचा कि भीड़ के साथ चुपचाप निकल जाता हूँ और उन लोगों में शामिल हो जाता हूँ, जिनपे टी. सी. की नज़र नहीं पड़ती. लेकिन ऐसा नहीं था. एक मोटे टी. सी. की नज़र मुझपे पड़ चुकी थी. उनकी भी नज़र बड़ी तेज़ होती है. उन्हीं पे पड़ती है, जो नज़र बचाके जा रहे होते हैं.

तो उसने मुझे हाथ के इशारे से रुकने को कहा, जिसका मतलब था कि “टिकट दिखाओ.” मैंने चुपचाप अपना मोबाइल निकाला और यूटीएस का ऐप्लीकेशन ऑन करने लगा. जब से ये यूटीएस की सुविधा आई है, तब से मेरा काम बड़ा आसान हो गया है. बड़ी-बड़ी लम्बी लाइनों में नहीं लगना पड़ता. जब भी ज़रूरत हो, एक टच पे टिकट बुक हो जाता है.

मैंने टी. सी. को टिकट दिखाया. टी. सी. ने बोला, “ठीक है.” और इससे पहले कि मैं अपना हाथ पीछे खींचता, दो टपोरी टाइप के लड़के दौड़ते हुए आए, और एक ने टी. सी. और मेरे बीच में अपना हाथ डाला, और दौड़ते हुए ही मेरा फ़ोन लेके भागा. मैं भी जैसे तैयार था इस बात के लिए. मैंने भी भागते हुए लड़के के पैर में अपना पैर फँसा दिया, जिससे वो धड़ाम से वहीं ओवरब्रिज के फ़र्श पे गिर पड़ा. लेकिन मेरा फ़ोन उसके हाथ से छटक कर दूर जा गिरा, और लुढ़कते हुए ओवरब्रिज के नीचे बसी झुग्गी झोपड़ी की छत पे जा गिरा. मैंने सोचने में वक़्त ज़ाया करना ठीक नहीं समझा, और अपना फ़ोन पकड़ने के लिए इस क़दर दौड़ा कि मेरा पैर उस गिरे हुए लड़के की गर्दन पे पड़ गया, जिससे उसकी जान वहीं निकल गई.

मैंने मुड़के देखा, उसके मुँह से ख़ून निकल रहा था. उसकी आँखें बाहर आ गई थीं. उसका दोस्त, जो दौड़ते हुए सीढ़ियाँ उतरने ही वाला था, उसने भी मुड़के देखा कि उसका दोस्त मर चुका है, लेकिन वो वापस आता तो पकड़ा जाता.

उन दोनों की, मेरा फ़ोन छीनने की कोशिश नाकाम हो गई थी, इसलिए उसने अपने दोस्त को मरते हुए छोड़ के, मेरा फ़ोन पकड़ना चाहा, जो स्टेशन की बाउण्ड्री से सटी हुई झुग्गी-झोपड़ी की छत पे पड़ा था. अब अगर मैं नहीं दौड़ता, तो वो लड़का मेरा फ़ोन लेके भाग जाता, इसलिए मैंने इस मरे हुए लड़के को छोड़ा, और अपना फ़ोन लेने के लिए दौड़ा.

फ़ोन दूसरे लड़के और मेरे बीच बराबर दूरी पे था. लड़का आराम से छत पे चढ़ सकता था अगर मैं ओवरब्रिज की रेलिंग के ऊपर से छलाँग नहीं लगाता. मुझे मेरा फ़ोन प्यारा था, इसलिए मैंने सीधे रेलिंग तक दौड़ लगाई और एक छलाँग में उस लड़के से पहले, छत पे कूद गया, लेकिन झुग्गी बस्ती की छत कितनी मज़बूत होती है, ये मुझे मालूम नहीं था. मेरे पैर छत में धँस गए और मैं छत को तोड़ते हुए सीधा नीचे गिर गया, जहाँ मुझे देखके एक लड़की की हल्की सी चीख निकल गई. वो लड़की अपनी चारपाई पे पूरी नंगी लेटी हुई थी, और अपने हाथ को अपनी दोनों जाँघों के बीच में डालकर कराह रही थी. मुझे देखते ही वो चौंक गई, और उसने झट से ख़ुद को अपने हाथों से ढँकना चाहा, इसके लिए उसने एक हाथ वापस अपनी दोनों जाँघों के बीच में डालके अपनी उस जगह को छिपा लिया, जो मैं एक झटके में देख चुका था. दूसरा हाथ उसने अपनी छातियों पर इस तरह रखा, जिससे उसकी छातियों के दोनों उभार छुप जाएँ, लेकिन उसकी कोशिश बेकार थी.

उसका पूरा जिस्म तब तक मेरी आँखों में उतर चुका था. वो मुझे किसी पेन्टिंग की तरह लगी, जिसमें एक नंगी लड़की लेटी हो, और अपने दोनों हाथों से अपने जिस्म की छुपाने वाली जगहों को छुपाने की कोशिश कर रही हो.

मेरी और उसकी नज़र मिली, और फिर शर्म से मेरी नज़र झुक गई. उसने भी अपने जिस्म पे एक सफ़ेद चादर डाल ली, जिसके बाद वो और ज़्यादा ख़ूबसूरत दिखाई पड़ने लगी. मैंने नज़र नीचे किए हुए ही, और उस लड़की की चारपाई से थोड़ी दूरी पे पड़े अपने फ़ोन की ओर इशारा करते हुए कहा, “मेरा फ़ोन गिर के यहाँ आ गया है. वही लेने आया हूँ.”

उस लड़की ने अपनी तेज़ चलती हुई साँसों को सँभाला और चादर लपेटते हुए ही दूसरी तरफ़ मुँह करके खड़ी हो गई, और मेरा फ़ोन उठाके वहीं से मुझे पकड़ाना चाहा. मेरे और उसके बीच में थोड़ी सी दूरी थी. वो लड़की मुझे फिर एक ख़ूबसूरत पेन्टिंग की तरह दिखी, जिसमें एक नंगी लड़की दूसरी तरफ़ मुँह किए हुए, एक हाथ से सफ़ेद चादर को पकड़े हुए खड़ी थी, और दूसरे हाथ को पीछे करके फ़ोन देना चाह रही थी.

मैंने पहले अपने फ़ोन को देखा, फिर उस लड़की को देखा. वहीं एक बड़ा सा आईना रखा हुआ था, जिसके अन्दर से मेरी और उस लड़की की नज़रें एक बार और मिलीं. अब उस लड़की ने अपनी आँखें बन्द कर लीं, जिसका मतलब मुझे ये समझ में आया कि अब मुझे अपना फ़ोन उसके हाथ से लेना था और वहाँ से जाना था. जैसे ही मैंने उसके हाथ से अपना फ़ोन पकड़ा, वो लड़की थोड़ी सी कराही, और उसके हाथ से वो सफ़ेद चादर छूट गई. और अचानक से उसकी खुली हुई पीठ और उसकी कमर से नीचे का हिस्सा मेरी आँखों के सामने आ गया. अब मुझे समझ में नहीं आया कि, “मुझे क्या करना चाहिए?”

मेरा फ़ोन अब मेरे हाथ में था. लड़की वहीं खड़ी, अपनी आँख बन्द किए हुए, गहरी-गहरी साँसे ले रही थी. मेरा मन हुआ कि अब मुझे वहाँ से चले जाना चाहिए, लेकिन उस लड़की की ख़ूबसूरत और नंगी पीठ देखकर मेरे अन्दर पता नहीं क्या होने लगा कि मेरे हाथ अपने आप ही बढ़ते हुए उसकी पीठ पे जा पहुँचे. उसने मना भी नहीं किया, बल्कि एक गहरी साँस ली, जिससे मेरा हौसला कुछ इस तरह बढ़ने लगा, जैसे वो मेरा ही इन्तज़ार कर रही थी.

फिर मेरे होंठ अपने आप उसके कन्धे पे जा गिरे. उसकी साँसों की गहराई बढ़ती ही जा रही थी. मैंने उसके कन्धे से लेकर उसकी पीठ और उसकी कमर से नीचे के हिस्से को अपने होंठों से छूना शुरू कर दिया. और थोड़ी ही देर में मेरे होंठों ने उसके पूरे जिस्म का स्वाद चख लिया.

वो लड़की एक टूटी हुई डाली की तरह मेरी बाहों में आ गिरी. अब मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था, सिवाए इसके कि मैं उसकी हसरत पूरी करता. और फिर जो काम वो अपने हाथों से अकेले कर रही थी, उसमें मैंने उसकी मदद की और काफ़ी देर तक हम-दोनों एक-दूसरे में ऐसे खोए रहे, जैसे हमें बाहर की दुनिया से कोई लेना-देना ही नहीं था.

वो लड़की मुझे बिल्कुल एक छोटे से बच्चे की तरह बार-बार अपने सीने से लगा रही थी. मैं भी उसकी इच्छा को समझते हुए, उसकी छोटी-छोटी छातियाँ अपने मुँह में लेके इस तरह खींचने लगा, जैसे छोटे बच्चे दूध पीते हैं. और फिर जब बड़ी देर की उछल-कूद के बाद हम दोनों थक गए और पसीने से भीग गए, तब जाके हमने साँस ली, और मुस्कुराते हुए एक-दूसरे के माथे को सहलाने लगे. फिर बड़ी देर तक मैं उसके पेट पे अपना सिर रखके उसके चेहरे को देखता रहा, और उसकी छोटी-छोटी छातियों पे अपनी उँगली फिराता रहा. मेरी उँगलियों की छुअन से उसके जिस्म में गुदगुदी हो रही थी, जिसकी वजह से वो खिलखिला के हँस रही थी, और अपने जिस्म के अन्दर फैल रही सनसनी को रोकने के लिए मेरे बालों में अपनी उँगली फिराती जा रही रही थी, जिसका मतलब था कि, “और करो, और करते रहो.”

फिर जब मैंने अपने कपड़े पहने और वहाँ से चलने को हुआ, तब वो लड़की एक उदासी भरा चेहरा बनाके बोली, “फिर कब आओगे?”

उसका सवाल सुनके मुझे हँसी आ गई. मैंने कहा, “जब फिर से कोई टी. सी. मुझे टिकट दिखाने के लिए रोकेगा और जब फिर से कोई मेरा फ़ोन छीन के भागेगा.”

मेरी बात सुनके वो भी हँस दी. फिर हम दोनों ने उसकी टूटी हूई छत को देखा. मैंने कहा, “इसकी मरम्मत करवा लेना. यहीं से आऊँगा फिर किसी दिन.”

*****