खुशियाँ भी मनानी हैं,आँसू भी बहाना है vineet kumar srivastava द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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खुशियाँ भी मनानी हैं,आँसू भी बहाना है

खुशियाँ भी मनानी हैं,आँसू भी बहाना है |

गीत (1)

खुशियाँ भी मनानी हैं,

आँसू भी बहाना है ||

दुनिया में जो आए हैं,

तो गम भी उठाना है ||

मज़बूर भी होना है,

पाना है तो खोना है |

दुनिया में हर किसी को,

हर हाल में रोना है |

मरने का यहाँ यारों,

हर रोज बहाना है ||

दुनिया में जो आए हैं,

तो गम भी उठाना है ||

लम्हों में संवरती है,

लम्हों में बिगड़ती है |

यह ज़िंदगी भी क्या है,

सबसे ही बिछड़ती है |

इक रोज इस जहाँ से,

सब छोड़ के जाना है ||

दुनिया में जो आए हैं,

तो गम भी उठाना है ||

दुनिया ये तमाशा है,

हम सब हैं तमाशाई |

मर-मर के यहाँ हमने,

जीने की सजा पाई |

गम दिल में छुपा के हमें,

हँस-हँस के दिखाना है ||

दुनिया में जो आए हैं,

तो गम भी उठाना है ||

आहों को भी सहना है,

अश्कों में भी रहना है |

खाना है ज़हर हमको,

पर कुछ भी न कहना है |

काँधों पे खुद अपनी ही,

मैयत को उठाना है ||

दुनिया में जो आए हैं,

तो गम भी उठाना है ||

गीत (2)

रखना ज़रा संभलकर,

हर एक क़दम अपना ||

राहों पे चलते-चलते,

देखो न कोई सपना ||

राहों में ठोकरें तो,

मिलती ही हैं मगर |

कुछ लोग तो चलते ही,

हैं,हो के बेखबर |

उनको पता नहीं है,

ये रास्ते हैं कैसे |

इन रास्तों पे ज़ालिम,

बैठे हैं साँप कैसे |

रखना ही चाहिए अब,

हर राह पे नज़र |

सपने न देखो प्यारे,

आँखों को बंदकर |

इस मतलबी जहाँ में,

कोई नहीं है अपना ||

राहों पे चलते-चलते,

देखो न कोई सपना ||

दुनिया है आज जैसी,

ऐसी कभी नहीं थी |

बेदर्द,बेमुरौवत,

ऐसी कभी नहीं थी |

पाता नहीं यहाँ पर,

खोता है आदमी |

काँधों पे लाश अपनी,

ढोता है आदमी |

कितनी बदल गई है,

दुनिया ये आज की |

तस्वीर हो रही है,

गंदी समाज की |

किसकी किसे फ़िकर है,

सबको ख़याल अपना ||

राहों पे चलते-चलते,

देखो न कोई सपना ||

नफ़रत की आग में जब,

हर दिल यहाँ जलेगा |

गुल प्यार का जहाँ में,

कैसे भला खिलेगा |

रहने न पाए दिल में,

यह आग बुझा डालो |

इंसानियत की दुश्मन,

नफ़रत ये मिटा डालो |

फिर देखना यहाँ पर,

खुशियों के गुल खिलेंगे |

अपने औ क्या पराए,

सब ही गले मिलेंगे |

हो के रहेगा पूरा,

एक दिन अमन का सपना ||

राहों पे चलते-चलते,

देखो न कोई सपना ||

गीत (3)

मैंने भी दुनिया देखी है,

चेहरों पे चेहरे देखे हैं |

खुशियों की डोली देखी है,

और गम के सेहरे देखे हैं |

भूखे,नंगे,फाकाकश,

इंसान भी मैंने देखे हैं |

सड़कों के किनारे दुनिया के,

मेहमान भी मैंने देखे हैं |

कुत्तों को खिलाते हैं,ऐसे

धनवान भी मैंने देखे हैं |

रोटी के लिए तरसे हैं,वो

इंसान भी मैंने देखे हैं |

ठोकर पे ठोकर खाते हैं,

दुनिया में नाहक़ आते हैं |

कहने को है दुनिया में सब कुछ,

फिर भी भूखे रह जाते हैं |

पैरों में नहीं चप्पल जिनके,

सड़कों पर पैदल चलते हैं |

जूते हैं पावों में फिर भी,

वो मोटर से क्यूँ चलते हैं |

धनवानों की लाखों राहें,

निर्धन का रस्ता कोई नहीं |

मरने के लिए,कटने के लिए,

निर्धन से सस्ता कोई नहीं |

महलों की,ये ताज़ों की दुनिया,

दौलत के रिवाज़ों की दुनिया |

इंसान को ये क्या समझेगी,

बदनाम समाजों की दुनिया |

तख़्ता है,महल है,दौलत है,

कुछ साथ में इनकी किस्मत है |

बिकती है इन्हीं महलों में जो,

कुछ और नहीं वह इस्मत है |

दुनिया ने जिसे ठुकराया है,

उसको किसने अपनाया है |

हर ओर ही मतलब के अंधे,

लोगों को मैंने पाया है |

पर मैं कर भी क्या सकता हूँ,

बदलाव नहीं आसान है यह |

इक शख़्स का काम नहीं है यह,

पूरी दुनिया का काम है यह |

गीत (4)

बड़ी नज़दीक से देखी है ज़िंदगी मैंने ||

किस क़दर लोग पराए यहाँ हो जाते हैं |

अपने भी दूर बहुत दूर नज़र आते हैं |

दिल में नफ़रत का धुआँ उठता चला जाता है |

प्यार का रंग उतरता ही चला जाता है |

बड़ी नज़दीक से देखी है ज़िंदगी मैंने ||

हर एक शख़्स को अपनी ही फ़िकर रहती है |

इस ज़माने में मुहब्बत ये किधर रहती है |

लोग मुँह फेर के क्यूँ ऐसे चले जाते हैं |

अब नहीं पहले से ज़ज़्बात नज़र आते हैं |

बड़ी नज़दीक से देखी है ज़िंदगी मैंने ||

दिल की नफ़रत से मुहब्बत को फ़ना देखा है |

दिल की दुनिया को उजड़ता ही हुआ देखा है |

मैंने दुनिया में मुहब्बत को कहाँ देखा है |

मुझको नफ़रत ही दिखी मैंने जहाँ देखा है |

बड़ी नज़दीक से देखी है ज़िंदगी मैंने ||

गीत (5)

दुनिया से चले जाते हैं कहाँ ||

गर्दिश में खो जाते हैं कहाँ ||

जाने वाले इस दुनिया से,

रुख़सत हो चले जाते हैं कहाँ ||

क्यूँ जिस्म जुदा होते हैं यहाँ |

क्यूँ रूहें तड़पतीं रोज यहाँ |

क्यूँ गम की घटा छाती है यहाँ |

क्यूँ तन्हाई है रोज यहाँ |

जो दूर चले जाते हैं कभी,

हम ढूँढ उन्हें पाते हैं कहाँ ||

जाने वाले इस दुनिया से,

रुख़सत हो चले जाते हैं कहाँ ||

मंज़िल भी नज़र आती ही नहीं |

राहें भी नज़र आतीं ही नहीं |

जाना है कहाँ कुछ याद नहीं |

ओंठों पे कोई फ़रियाद नहीं |

रातों के अँधेरे में चेहरे,

आँखों को नज़र आते हैं कहाँ ||

जाने वाले इस दुनिया से,

रुख़सत हो चले जाते हैं कहाँ ||

गीत (6)

हँसते-हँसते कभी-कभी,रोना पड़ जाता है ||

पा के कभी किसी को,कोई खोना पड़ जाता है ||

ज़िंदगी,यही है ज़िंदगी ||

ज़िंदगी,यही है ज़िंदगी ||

साथ ख़ुशी के गम को भी,सहना ही पड़ता है |

काँटों के संग फूलों को,रहना ही पड़ता है |

जीते-जीते कभी-कभी तो,मरना पड़ जाता है ||

किया कभी ना हो जो,वो भी करना पड़ जाता है ||

ज़िंदगी,यही है ज़िंदगी ||

ज़िंदगी,यही है ज़िंदगी ||

आँखों में आँसू और दिल में दर्द लिए फिरते हैं |

यहाँ लोग अपनी साँसों का क़र्ज़ लिए फिरते हैं |

हर आने वाले को जग से जाना पड़ जाता है ||

तीर क़यामत का सीने पे,खाना पड़ जाता है ||

ज़िंदगी,यही है ज़िंदगी ||

ज़िंदगी,यही है ज़िंदगी ||

गीत (7)

न मिल सकी जो अपनी मंज़िल तो,

क्यूँ रुलाते हो अपने ही दिल को |

ज़िंदगी की हज़ार राहें हैं,

मंज़िलें भी हज़ार आएँगी ||

गिर के ऐसे उदास होना क्या |

इस तरह अपने होश खोना क्या |

क्यूँ छलक आए आँख में आँसू,

आँसुओं से इन्हें भिगोना क्या |

न मिल सकी जो अपनी मंज़िल तो,

क्यूँ रुलाते हो अपने ही दिल को |

ज़िंदगी की हज़ार राहें हैं,

मंज़िलें भी हज़ार आएँगी ||

इस तरह उलझनों से घबरा के |

ज़िंदगी की घुटन से घबरा के |

चल दिए हो कहाँ अकेले ही,

राह की मुश्किलों से घबरा के |

न मिल सकी जो अपनी मंज़िल तो,

क्यूँ रुलाते हो अपने ही दिल को |

ज़िंदगी की हज़ार राहें हैं,

मंज़िलें भी हज़ार आएँगी ||

ख़िज़ाँ का राज हमेशा तो नहीं |

बहार आएगी कुछ देर सही |

कहा है हर किसी ने दुनिया में,

देर होगी मगर अंधेर नहीं |

न मिल सकी जो अपनी मंज़िल तो,

क्यूँ रुलाते हो अपने ही दिल को |

ज़िंदगी की हज़ार राहें हैं,

मंज़िलें भी हज़ार आएँगी ||

गीत (8)

इक दौर नया फिर से,आएगा इस जहाँ में ||

नफ़रत न रहेगी,ख़ुशी झूमेगी बस यहाँ पे ||

कुछ कर के दिखाना है हमें दुनिया को सारी |

लाने हैं यहाँ फिर से वो अमन के पुजारी |

इंसान को शैतान से इंसान बनाकर,

तस्वीर बनानी है हमें,फिर से वो प्यारी |

वो फूल,खिलाना है हमें फिर से गुलिस्ताँ में ||

नफ़रत न रहेगी,ख़ुशी झूमेगी बस यहाँ पे ||

दुनिया में अमन-चैन को ला के ही रहेंगे |

नफ़रत को हर इक दिल से मिटा के ही रहेंगे |

ये भेदभाव,जाति औ भाषा की लड़ाई,

होगी नहीं हम इसको हटा के ही रहेंगे |

गूँजेगी मुहब्बत की सदा फिर से आसमाँ में ||

नफ़रत न रहेगी,ख़ुशी झूमेगी बस यहाँ पे ||

गीत (9)

मुश्किल से न घबराना तू,

मुश्किल से न घबराना ||

आएगी अभी मंज़िल तेरी,

रस्ते में न रुक जाना ||

मुश्किल तो सफ़र में इन्सां की,

हिम्मत को परखती है |

मुश्किल तो सफ़र में इन्सां की,

ताक़त को परखती है |

मुश्किल से जो डर बैठे तो,

मंज़िल फिर कहाँ पाना ||

मुश्किल से न घबराना तू,

मुश्किल से न घबराना ||

जीवन के सफ़र में ठोकर से,

गिरने के बहुत मौके हैं |

राहों में भटकने के इसमें,

हर मोड़ पे ही मौके हैं |

अपने पे भरोसा कर के,

बढ़ते ही चले जाना ||

मुश्किल से न घबराना तू,

मुश्किल से न घबराना ||

डरते जो नहीं हैं मुश्किल से,

मंज़िल को वही पाते हैं |

डरने वाले तो राहों में,

पीछे ही रह जाते हैं |

दुनिया तो उसी की है यह,

जिसने है इसे जाना ||

मुश्किल से न घबराना तू,

मुश्किल से न घबराना ||

गीत (10)

मैं आवारा,मैं आवारा ||

दुनिया के लिए मैं नाकारा ||

मुझको दुनिया पागल समझे,

पर दिल को कौन समझ पाए ||

हर दिल से मैं करता प्यार,मगर

फिर भी ये दुनिया ठुकराए ||

मैं आवारा,मैं आवारा ||

दुनिया के लिए मैं नाकारा ||

हिन्दू-मुस्लिम का भेद नहीं,

हर दिल से ही मेरा नाता है |

करता हूँ मुहब्बत लोगों से,

मुझे प्यार निभाना आता है |

नफ़रत की कोई दीवार कहीं,

दुनिया में न अब उठने पाए ||

हर दिल से मैं करता प्यार,मगर

फिर भी ये दुनिया ठुकराए ||

मैं आवारा,मैं आवारा ||

दुनिया के लिए मैं नाकारा ||

हँसता हूँ मगर है दर्द बहुत,

सीने में हैं ज़ख्म हज़ार मेरे |

जीता हूँ मगर औरों के लिए,

सब लोग जहाँ के यार मेरे |

मैं मालिक हूँ,तुम नौकर हो,

यह फ़र्क नहीं आने पाए |

हर दिल से मैं करता प्यार,मगर

फिर भी ये दुनिया ठुकराए ||

मैं आवारा,मैं आवारा ||

दुनिया के लिए मैं नाकारा ||

एक दिन ऐसा भी आएगा,

जब राह पे दुनिया आएगी |

भूखे-नंगे लोगों को जब,

यह दुनिया ना ठुकराएगी |

हर दिल में प्यार-मुहब्बत हो,

नफ़रत न दिलों में रह जाए ||

हर दिल से मैं करता प्यार,मगर

फिर भी ये दुनिया ठुकराए ||

मैं आवारा,मैं आवारा ||

दुनिया के लिए मैं नाकारा ||

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