खुशियाँ भी मनानी हैं,आँसू भी बहाना है |
गीत (1)
खुशियाँ भी मनानी हैं,
आँसू भी बहाना है ||
दुनिया में जो आए हैं,
तो गम भी उठाना है ||
मज़बूर भी होना है,
पाना है तो खोना है |
दुनिया में हर किसी को,
हर हाल में रोना है |
मरने का यहाँ यारों,
हर रोज बहाना है ||
दुनिया में जो आए हैं,
तो गम भी उठाना है ||
लम्हों में संवरती है,
लम्हों में बिगड़ती है |
यह ज़िंदगी भी क्या है,
सबसे ही बिछड़ती है |
इक रोज इस जहाँ से,
सब छोड़ के जाना है ||
दुनिया में जो आए हैं,
तो गम भी उठाना है ||
दुनिया ये तमाशा है,
हम सब हैं तमाशाई |
मर-मर के यहाँ हमने,
जीने की सजा पाई |
गम दिल में छुपा के हमें,
हँस-हँस के दिखाना है ||
दुनिया में जो आए हैं,
तो गम भी उठाना है ||
आहों को भी सहना है,
अश्कों में भी रहना है |
खाना है ज़हर हमको,
पर कुछ भी न कहना है |
काँधों पे खुद अपनी ही,
मैयत को उठाना है ||
दुनिया में जो आए हैं,
तो गम भी उठाना है ||
गीत (2)
रखना ज़रा संभलकर,
हर एक क़दम अपना ||
राहों पे चलते-चलते,
देखो न कोई सपना ||
राहों में ठोकरें तो,
मिलती ही हैं मगर |
कुछ लोग तो चलते ही,
हैं,हो के बेखबर |
उनको पता नहीं है,
ये रास्ते हैं कैसे |
इन रास्तों पे ज़ालिम,
बैठे हैं साँप कैसे |
रखना ही चाहिए अब,
हर राह पे नज़र |
सपने न देखो प्यारे,
आँखों को बंदकर |
इस मतलबी जहाँ में,
कोई नहीं है अपना ||
राहों पे चलते-चलते,
देखो न कोई सपना ||
दुनिया है आज जैसी,
ऐसी कभी नहीं थी |
बेदर्द,बेमुरौवत,
ऐसी कभी नहीं थी |
पाता नहीं यहाँ पर,
खोता है आदमी |
काँधों पे लाश अपनी,
ढोता है आदमी |
कितनी बदल गई है,
दुनिया ये आज की |
तस्वीर हो रही है,
गंदी समाज की |
किसकी किसे फ़िकर है,
सबको ख़याल अपना ||
राहों पे चलते-चलते,
देखो न कोई सपना ||
नफ़रत की आग में जब,
हर दिल यहाँ जलेगा |
गुल प्यार का जहाँ में,
कैसे भला खिलेगा |
रहने न पाए दिल में,
यह आग बुझा डालो |
इंसानियत की दुश्मन,
नफ़रत ये मिटा डालो |
फिर देखना यहाँ पर,
खुशियों के गुल खिलेंगे |
अपने औ क्या पराए,
सब ही गले मिलेंगे |
हो के रहेगा पूरा,
एक दिन अमन का सपना ||
राहों पे चलते-चलते,
देखो न कोई सपना ||
गीत (3)
मैंने भी दुनिया देखी है,
चेहरों पे चेहरे देखे हैं |
खुशियों की डोली देखी है,
और गम के सेहरे देखे हैं |
भूखे,नंगे,फाकाकश,
इंसान भी मैंने देखे हैं |
सड़कों के किनारे दुनिया के,
मेहमान भी मैंने देखे हैं |
कुत्तों को खिलाते हैं,ऐसे
धनवान भी मैंने देखे हैं |
रोटी के लिए तरसे हैं,वो
इंसान भी मैंने देखे हैं |
ठोकर पे ठोकर खाते हैं,
दुनिया में नाहक़ आते हैं |
कहने को है दुनिया में सब कुछ,
फिर भी भूखे रह जाते हैं |
पैरों में नहीं चप्पल जिनके,
सड़कों पर पैदल चलते हैं |
जूते हैं पावों में फिर भी,
वो मोटर से क्यूँ चलते हैं |
धनवानों की लाखों राहें,
निर्धन का रस्ता कोई नहीं |
मरने के लिए,कटने के लिए,
निर्धन से सस्ता कोई नहीं |
महलों की,ये ताज़ों की दुनिया,
दौलत के रिवाज़ों की दुनिया |
इंसान को ये क्या समझेगी,
बदनाम समाजों की दुनिया |
तख़्ता है,महल है,दौलत है,
कुछ साथ में इनकी किस्मत है |
बिकती है इन्हीं महलों में जो,
कुछ और नहीं वह इस्मत है |
दुनिया ने जिसे ठुकराया है,
उसको किसने अपनाया है |
हर ओर ही मतलब के अंधे,
लोगों को मैंने पाया है |
पर मैं कर भी क्या सकता हूँ,
बदलाव नहीं आसान है यह |
इक शख़्स का काम नहीं है यह,
पूरी दुनिया का काम है यह |
गीत (4)
बड़ी नज़दीक से देखी है ज़िंदगी मैंने ||
किस क़दर लोग पराए यहाँ हो जाते हैं |
अपने भी दूर बहुत दूर नज़र आते हैं |
दिल में नफ़रत का धुआँ उठता चला जाता है |
प्यार का रंग उतरता ही चला जाता है |
बड़ी नज़दीक से देखी है ज़िंदगी मैंने ||
हर एक शख़्स को अपनी ही फ़िकर रहती है |
इस ज़माने में मुहब्बत ये किधर रहती है |
लोग मुँह फेर के क्यूँ ऐसे चले जाते हैं |
अब नहीं पहले से ज़ज़्बात नज़र आते हैं |
बड़ी नज़दीक से देखी है ज़िंदगी मैंने ||
दिल की नफ़रत से मुहब्बत को फ़ना देखा है |
दिल की दुनिया को उजड़ता ही हुआ देखा है |
मैंने दुनिया में मुहब्बत को कहाँ देखा है |
मुझको नफ़रत ही दिखी मैंने जहाँ देखा है |
बड़ी नज़दीक से देखी है ज़िंदगी मैंने ||
गीत (5)
दुनिया से चले जाते हैं कहाँ ||
गर्दिश में खो जाते हैं कहाँ ||
जाने वाले इस दुनिया से,
रुख़सत हो चले जाते हैं कहाँ ||
क्यूँ जिस्म जुदा होते हैं यहाँ |
क्यूँ रूहें तड़पतीं रोज यहाँ |
क्यूँ गम की घटा छाती है यहाँ |
क्यूँ तन्हाई है रोज यहाँ |
जो दूर चले जाते हैं कभी,
हम ढूँढ उन्हें पाते हैं कहाँ ||
जाने वाले इस दुनिया से,
रुख़सत हो चले जाते हैं कहाँ ||
मंज़िल भी नज़र आती ही नहीं |
राहें भी नज़र आतीं ही नहीं |
जाना है कहाँ कुछ याद नहीं |
ओंठों पे कोई फ़रियाद नहीं |
रातों के अँधेरे में चेहरे,
आँखों को नज़र आते हैं कहाँ ||
जाने वाले इस दुनिया से,
रुख़सत हो चले जाते हैं कहाँ ||
गीत (6)
हँसते-हँसते कभी-कभी,रोना पड़ जाता है ||
पा के कभी किसी को,कोई खोना पड़ जाता है ||
ज़िंदगी,यही है ज़िंदगी ||
ज़िंदगी,यही है ज़िंदगी ||
साथ ख़ुशी के गम को भी,सहना ही पड़ता है |
काँटों के संग फूलों को,रहना ही पड़ता है |
जीते-जीते कभी-कभी तो,मरना पड़ जाता है ||
किया कभी ना हो जो,वो भी करना पड़ जाता है ||
ज़िंदगी,यही है ज़िंदगी ||
ज़िंदगी,यही है ज़िंदगी ||
आँखों में आँसू और दिल में दर्द लिए फिरते हैं |
यहाँ लोग अपनी साँसों का क़र्ज़ लिए फिरते हैं |
हर आने वाले को जग से जाना पड़ जाता है ||
तीर क़यामत का सीने पे,खाना पड़ जाता है ||
ज़िंदगी,यही है ज़िंदगी ||
ज़िंदगी,यही है ज़िंदगी ||
गीत (7)
न मिल सकी जो अपनी मंज़िल तो,
क्यूँ रुलाते हो अपने ही दिल को |
ज़िंदगी की हज़ार राहें हैं,
मंज़िलें भी हज़ार आएँगी ||
गिर के ऐसे उदास होना क्या |
इस तरह अपने होश खोना क्या |
क्यूँ छलक आए आँख में आँसू,
आँसुओं से इन्हें भिगोना क्या |
न मिल सकी जो अपनी मंज़िल तो,
क्यूँ रुलाते हो अपने ही दिल को |
ज़िंदगी की हज़ार राहें हैं,
मंज़िलें भी हज़ार आएँगी ||
इस तरह उलझनों से घबरा के |
ज़िंदगी की घुटन से घबरा के |
चल दिए हो कहाँ अकेले ही,
राह की मुश्किलों से घबरा के |
न मिल सकी जो अपनी मंज़िल तो,
क्यूँ रुलाते हो अपने ही दिल को |
ज़िंदगी की हज़ार राहें हैं,
मंज़िलें भी हज़ार आएँगी ||
ख़िज़ाँ का राज हमेशा तो नहीं |
बहार आएगी कुछ देर सही |
कहा है हर किसी ने दुनिया में,
देर होगी मगर अंधेर नहीं |
न मिल सकी जो अपनी मंज़िल तो,
क्यूँ रुलाते हो अपने ही दिल को |
ज़िंदगी की हज़ार राहें हैं,
मंज़िलें भी हज़ार आएँगी ||
गीत (8)
इक दौर नया फिर से,आएगा इस जहाँ में ||
नफ़रत न रहेगी,ख़ुशी झूमेगी बस यहाँ पे ||
कुछ कर के दिखाना है हमें दुनिया को सारी |
लाने हैं यहाँ फिर से वो अमन के पुजारी |
इंसान को शैतान से इंसान बनाकर,
तस्वीर बनानी है हमें,फिर से वो प्यारी |
वो फूल,खिलाना है हमें फिर से गुलिस्ताँ में ||
नफ़रत न रहेगी,ख़ुशी झूमेगी बस यहाँ पे ||
दुनिया में अमन-चैन को ला के ही रहेंगे |
नफ़रत को हर इक दिल से मिटा के ही रहेंगे |
ये भेदभाव,जाति औ भाषा की लड़ाई,
होगी नहीं हम इसको हटा के ही रहेंगे |
गूँजेगी मुहब्बत की सदा फिर से आसमाँ में ||
नफ़रत न रहेगी,ख़ुशी झूमेगी बस यहाँ पे ||
गीत (9)
मुश्किल से न घबराना तू,
मुश्किल से न घबराना ||
आएगी अभी मंज़िल तेरी,
रस्ते में न रुक जाना ||
मुश्किल तो सफ़र में इन्सां की,
हिम्मत को परखती है |
मुश्किल तो सफ़र में इन्सां की,
ताक़त को परखती है |
मुश्किल से जो डर बैठे तो,
मंज़िल फिर कहाँ पाना ||
मुश्किल से न घबराना तू,
मुश्किल से न घबराना ||
जीवन के सफ़र में ठोकर से,
गिरने के बहुत मौके हैं |
राहों में भटकने के इसमें,
हर मोड़ पे ही मौके हैं |
अपने पे भरोसा कर के,
बढ़ते ही चले जाना ||
मुश्किल से न घबराना तू,
मुश्किल से न घबराना ||
डरते जो नहीं हैं मुश्किल से,
मंज़िल को वही पाते हैं |
डरने वाले तो राहों में,
पीछे ही रह जाते हैं |
दुनिया तो उसी की है यह,
जिसने है इसे जाना ||
मुश्किल से न घबराना तू,
मुश्किल से न घबराना ||
गीत (10)
मैं आवारा,मैं आवारा ||
दुनिया के लिए मैं नाकारा ||
मुझको दुनिया पागल समझे,
पर दिल को कौन समझ पाए ||
हर दिल से मैं करता प्यार,मगर
फिर भी ये दुनिया ठुकराए ||
मैं आवारा,मैं आवारा ||
दुनिया के लिए मैं नाकारा ||
हिन्दू-मुस्लिम का भेद नहीं,
हर दिल से ही मेरा नाता है |
करता हूँ मुहब्बत लोगों से,
मुझे प्यार निभाना आता है |
नफ़रत की कोई दीवार कहीं,
दुनिया में न अब उठने पाए ||
हर दिल से मैं करता प्यार,मगर
फिर भी ये दुनिया ठुकराए ||
मैं आवारा,मैं आवारा ||
दुनिया के लिए मैं नाकारा ||
हँसता हूँ मगर है दर्द बहुत,
सीने में हैं ज़ख्म हज़ार मेरे |
जीता हूँ मगर औरों के लिए,
सब लोग जहाँ के यार मेरे |
मैं मालिक हूँ,तुम नौकर हो,
यह फ़र्क नहीं आने पाए |
हर दिल से मैं करता प्यार,मगर
फिर भी ये दुनिया ठुकराए ||
मैं आवारा,मैं आवारा ||
दुनिया के लिए मैं नाकारा ||
एक दिन ऐसा भी आएगा,
जब राह पे दुनिया आएगी |
भूखे-नंगे लोगों को जब,
यह दुनिया ना ठुकराएगी |
हर दिल में प्यार-मुहब्बत हो,
नफ़रत न दिलों में रह जाए ||
हर दिल से मैं करता प्यार,मगर
फिर भी ये दुनिया ठुकराए ||
मैं आवारा,मैं आवारा ||
दुनिया के लिए मैं नाकारा ||
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