(1)
कैसे गीत बने फिर कोई
कैसे गीत बने फिर कोई,
तुम ही पास नहीं जब मेरे ||
याद तुम्हारी प्रतिपल आए |
मधुर-मिलन मन भूल न पाए |
आशा का एक दीप जलाए |
याद तुम्हारी साँझ-सवेरे ||
कैसे गीत बने फिर कोई,
तुम ही पास नहीं जब मेरे ||
तुम बिन प्यासे, नयन हमारे |
व्याकुल मन, दिन-रात पुकारे |
छोड़ गए तुम, किसके सहारे |
प्राणेश्वर, ओ प्रियतम मेरे ||
कैसे गीत बने फिर कोई,
तुम ही पास नहीं जब मेरे ||
दुःख की ऐसी बदली छाई |
अंतर की पीड़ा गहराई |
सुख की एक किरन ना पाई |
मिले दुःखों के गहन-अँधेरे ||
कैसे गीत बने फिर कोई,
तुम ही पास नहीं जब मेरे ||
(2)
जब-जब बादल घिर-घिर आए
जब-जब बादल घिर-घिर आए,
मुझको तुम्हारी याद आई है ||
जब-जब ये झोंके लहराए,
मुझको तुम्हारी याद आई है ||
जब-जब सावन लहराया है,
आँख मेरी भर-भर आई है |
जब-जब चाँद गगन में निकला,
मुझको तुम्हारी याद आई है ||
जब-जब मैंने क़दम बढ़ाए,
मंज़िल दूर खड़ी पाई है |
जब-जब गम की राह से गुजरी,
मुझको तुम्हारी याद आई है ||
जब-जब खुशियाँ ढूँढीं मैंने,
गम की सेज बिछी पाई है |
जब-जब फूल खिले गुलशन में,
मुझको तुम्हारी याद आई है ||
(3)
छोड़ चले प्रिय कहाँ हमारे
छोड़ चले प्रिय कहाँ हमारे ||
पूछ रही पथ और दिशा से |
पूछ रही दिन और निशा से |
तुम ही बतला दो ओ तारे ||
छोड़ चले प्रिय कहाँ हमारे ||
भूल मेरी क्या थी ओ प्रियवर |
छोड़ चले जो विरह-चिता पर |
बिखर गए सपने वो सारे ||
छोड़ चले प्रिय कहाँ हमारे ||
हरपल प्रियतम तुझे पुकारूँ |
हरपल तेरा पंथ निहारूँ |
पथराए ये नयन हमारे ||
छोड़ चले प्रिय कहाँ हमारे ||
विरह-वेदना कोई न जाने |
मीत बिना ये हृदय न माने |
आ जा अब ओ प्रियतम आ रे ||
छोड़ चले प्रिय कहाँ हमारे ||
भाग्य हमारा हमसे रूठा |
साथ हमारा प्रिय से छूटा |
तोड़ चले क्यों बंधन सारे ||
छोड़ चले प्रिय कहाँ हमारे
(4)
कब तक दर्द छुपाऊँ
पलकों के आँचल में,
कब तक दर्द छुपाऊँ ||
विरह-व्यथा इस मन की,
कैसे तुझे बताऊँ ||
अंतरमन की पीड़ा,
अंतरमन ही जाने |
दर्द भरे गीतों को,
कैसे तुझे सुनाऊँ ||
यादों के दरपन में,
है हर-पल की छाया |
बीते हुए पलों की,
कैसे याद भुलाऊँ ||
तुम जो पास नहीं हो,
सूना है जग सारा |
भूले तुम जो मुझको,
क्या रोऊँ, क्या गाऊँ ||
(5)
आँसू
निशि-वासर तुमको याद करें,
मेरी इन आँखों के आँसू ||
है व्यथा बहुत नीहित हम में,
कहते इन आँखों के आँसू ||
समझता है मन, रे पागल,
क्यों व्यर्थ बहाती है आँसू ||
इस व्यथित हृदय की पीड़ा को,
समझेंगे तो केवल आँसू ||
इस उर की घनीभूत पीड़ा,
यदि तुम भी ना अपनाओगे,
दुःख-दग्ध हृदय की पीड़ा को,
पी जायेंगे मेरे आँसू ||
इन आँखों की इस अंजलि में,
कुछ शेष नहीं है देने को,
आँखें क्या दे सकतीं तुमको,
देंगी तो बस अपने आँसू ||
(6)
यादों के दरपन में
यादों के दरपन में,
कब तक तुझे निहारूँ ||
पास नहीं जो तुम हो,
कैसे भाग्य संवारूँ ||
आए क्यों जीवन में,
मीत मेरे तुम बनकर |
आ कर चले गए फिर,
क्यों तुम दो-पल रहकर |
मन के मीत मेरे मैं,
कब तक तुझे पुकारूँ ||
पास नहीं जो तुम हो,
कैसे भाग्य संवारूँ ||
इन नयनों की पीड़ा,
कोई समझ न पाए |
पीड़ा मिट जाए जब,
पास मेरे तू आए |
लिख-लिखकर मैं पाती,
यूँ ही कब तक डारूँ ||
पास नहीं जो तुम हो,
कैसे भाग्य संवारूँ ||
अंतरमन की पीड़ा,
अंतरमन ही जाने |
मीत मेरे बिन तेरे,
मन यह कैसे माने |
दिवस-मास गिन-गिनकर,
कब तक राह निहारूँ ||
पास नहीं जो तुम हो,
कैसे भाग्य संवारूँ ||
कब तक तरसाओगे,
इन दुखिया अँखियों को |
एक न एक दिवस तो,
आना होगा तुमको |
पलकों के आँचल से,
कब तक द्वार बुहारूँ ||
पास नहीं जो तुम हो,
कैसे भाग्य संवारूँ ||
(7)
बीत रहा है हर एक लम्हा
-बीत रहा है हर एक लम्हा,
मैं और मेरी तन्हाई है ||
बाद तेरे जाने के, मेरी
आँख कहाँ ये मुसकाई है ||
तुम थे मेरे पास तो मुझको,
लगता था सारा जग अपना |
और गए जब से तुम, मुझको
लगता है सारा जग सपना |
करके याद तुम्हारी, देखो
आँख मेरी फिर भर आई है ||
बीत रहा है हर एक लम्हा,
मैं और मेरी तन्हाई है ||
छाँव-तले पेड़ों के मिलना,
हाथ पकड़कर साथ वो चलना |
भुला नहीं पाता मन मेरा,
वो तेरी बाहों में संभलना |
पा के खुद को निपट अकेला,
आँख मेरी ये धुंधलाई है ||
बीत रहा है हर एक लम्हा,
मैं और मेरी तन्हाई है ||
रुक सा गया है जीवन जैसे,
छाई है हर ओर निराशा |
कुम्हलाई है मन की बगिया,
जीवन की अब कैसी आशा |
बियाबान सा जीवन मेरा,
उसपे धूप घनी छाई है ||
बीत रहा है हर एक लम्हा,
मैं और मेरी तन्हाई है ||
(8)
पलकों पर सावन आया है
-पलकों पर सावन आया है ||
पलकों पर सावन आया है ||
सब कुछ सूना-सूना लगता,
हर स्वप्न मेरा धुंधलाया है ||
पलकों पर सावन आया है ||
पलकों पर सावन आया है ||
आँखों का अंजन छूटा है |
मन काँच के जैसा टूटा है |
मेरी खुशियों का राजमहल,
यह किस निष्ठुर ने लूटा है |
वह अपना है या पराया है ||
मन समझ न अब तक पाया है ||
सब कुछ सूना-सूना लगता,
हर स्वप्न मेरा धुंधलाया है ||
पलकों पर सावन आया है ||
पलकों पर सावन आया है ||
मन-वीणा की झनकार गई |
भंवरों सी मधुर गुंजार गई |
एक शून्य सा है जीवन जैसे,
मैं अब अपने से हार गई |
दिन कैसा मुझे दिखाया है ||
हँसने की जगह रुलाया है ||
सब कुछ सूना-सूना लगता,
हर स्वप्न मेरा धुंधलाया है ||
पलकों पर सावन आया है ||
पलकों पर सावन आया है ||
अब कौन जलाएगा दीपक,
मेरे मन के इस आँगन में |
अब कौन खिलाएगा कलियाँ,
मेरे मन के इस मधुवन में |
अब साथ न मेरा साया है ||
सब रेती सा बिखराया है ||
सब कुछ सूना-सूना लगता,
हर स्वप्न मेरा धुंधलाया है ||
पलकों पर सावन आया है ||
पलकों पर सावन आया है ||
(9)
सब कुछ सूना-सूना लगता
दिन पहाड़ से लगते मुझको,
रातें बियाबान जंगल हैं |
एक तुम्हारे ना होने से,
सब कुछ सूना-सूना लगता ||
आँगन की तुलसी कुम्हलाई |
धूप मुंडेरों से ना आई |
ओढ़ उदासी की चादर को,
दिन क्या मैंने रात बिताई |
हरसिंगार सा मन झरता है ,
मेरे इस सूने आंगन में |
बिखरा-बिखरा अजब मुझे अब,
घर का कोना-कोना लगता ||
दिन पहाड़ से लगते मुझको,
रातें बियाबान जंगल हैं |
एक तुम्हारे ना होने से,
सब कुछ सूना-सूना लगता ||
काँटों सा चुभता हर पल है |
बिना तुम्हारे मन बेकल है |
सांसें भी अब बोझ हो गईं,
धीमी पड़ती हर हलचल है |
घड़ी-घड़ी अब जैसे युग है,
बंधन सा लगता जीवन है |
धूमिल सा पड़ता अब मुझको,
जीवन स्वप्न सलोना लगता ||
दिन पहाड़ से लगते मुझको,
रातें बियाबान जंगल हैं |
एक तुम्हारे ना होने से,
सब कुछ सूना-सूना लगता ||
गहन तिमिर और मैं एकाकी |
पंख लगा तुम उड़ गए पाँखी |
पंथ अपरिचित इस जीवन का,
अहो अभी कुछ रहा है बाकी |
एक समाधि सा जीवन मेरा,
शांत पड़ी अब हर हलचल है |
यह अवसाद मेरे मन का अब,
दिन-दिन, पल-छिन दूना लगता ||
दिन पहाड़ से लगते मुझको,
रातें बियाबान जंगल हैं |
एक तुम्हारे ना होने से,
सब कुछ सूना-सूना लगता ||
(10)
आओगे फिर तुम आओगे
आओगे फिर तुम आओगे ||
आओगे फिर तुम आओगे ||
कहता है मुझसे मन मेरा,
मुझे भूल ना पाओगे ||
फिर से लहराएगा आँचल,
फिर से पायल बोल उठेगी |
बालों में गजरा महकेगा,
दिल की सरगम डोल उठेगी |
अपने ही हाथों से तुम फिर,
मेरी मांग सजाओगे ||
कहता है मुझसे मन मेरा,
मुझे भूल ना पाओगे ||
आओगे फिर तुम आओगे ||
आओगे फिर तुम आओगे ||
ऑंखें फिर कुछ बात कहेंगीं,
ओंठों पर मुस्कान सजेगी |
खन-खन खनकेगा फिर कंगना,
जीने की फिर आस जगेगी |
हार मुझे अपनी बाहों का,
सजना फिर पहनाओगे ||
कहता है मुझसे मन मेरा,
मुझे भूल ना पाओगे ||
आओगे फिर तुम आओगे ||
आओगे फिर तुम आओगे ||
मन मयूर फिर नाच उठेगा,
फिर से बेला महक उठेगी |
फिर से डोलेगी पुरवाई,
मन की कोयल चहक उठेगी |
अँखियों में तुम आन बसोगे,
साँसों में घुल जाओगे ||
कहता है मुझसे मन मेरा,
मुझे भूल ना पाओगे ||
आओगे फिर तुम आओगे ||
आओगे फिर तुम आओगे ||
***