पलकों पर सावन आया है vineet kumar srivastava द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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पलकों पर सावन आया है

(1)

कैसे गीत बने फिर कोई

कैसे गीत बने फिर कोई,

तुम ही पास नहीं जब मेरे ||

याद तुम्हारी प्रतिपल आए |

मधुर-मिलन मन भूल पाए |

आशा का एक दीप जलाए |

याद तुम्हारी साँझ-सवेरे ||

कैसे गीत बने फिर कोई,

तुम ही पास नहीं जब मेरे ||

तुम बिन प्यासे, नयन हमारे |

व्याकुल मन, दिन-रात पुकारे |

छोड़ गए तुम, किसके सहारे |

प्राणेश्वर, प्रियतम मेरे ||

कैसे गीत बने फिर कोई,

तुम ही पास नहीं जब मेरे ||

दुःख की ऐसी बदली छाई |

अंतर की पीड़ा गहराई |

सुख की एक किरन ना पाई |

मिले दुःखों के गहन-अँधेरे ||

कैसे गीत बने फिर कोई,

तुम ही पास नहीं जब मेरे ||

(2)

जब-जब बादल घिर-घिर आए

जब-जब बादल घिर-घिर आए,

मुझको तुम्हारी याद आई है ||

जब-जब ये झोंके लहराए,

मुझको तुम्हारी याद आई है ||

जब-जब सावन लहराया है,

आँख मेरी भर-भर आई है |

जब-जब चाँद गगन में निकला,

मुझको तुम्हारी याद आई है ||

जब-जब मैंने क़दम बढ़ाए,

मंज़िल दूर खड़ी पाई है |

जब-जब गम की राह से गुजरी,

मुझको तुम्हारी याद आई है ||

जब-जब खुशियाँ ढूँढीं मैंने,

गम की सेज बिछी पाई है |

जब-जब फूल खिले गुलशन में,

मुझको तुम्हारी याद आई है ||

(3)

छोड़ चले प्रिय कहाँ हमारे

छोड़ चले प्रिय कहाँ हमारे ||

पूछ रही पथ और दिशा से |

पूछ रही दिन और निशा से |

तुम ही बतला दो तारे ||

छोड़ चले प्रिय कहाँ हमारे ||

भूल मेरी क्या थी प्रियवर |

छोड़ चले जो विरह-चिता पर |

बिखर गए सपने वो सारे ||

छोड़ चले प्रिय कहाँ हमारे ||

हरपल प्रियतम तुझे पुकारूँ |

हरपल तेरा पंथ निहारूँ |

पथराए ये नयन हमारे ||

छोड़ चले प्रिय कहाँ हमारे ||

विरह-वेदना कोई जाने |

मीत बिना ये हृदय माने |

जा अब प्रियतम रे ||

छोड़ चले प्रिय कहाँ हमारे ||

भाग्य हमारा हमसे रूठा |

साथ हमारा प्रिय से छूटा |

तोड़ चले क्यों बंधन सारे ||

छोड़ चले प्रिय कहाँ हमारे

(4)

कब तक दर्द छुपाऊँ

पलकों के आँचल में,

कब तक दर्द छुपाऊँ ||

विरह-व्यथा इस मन की,

कैसे तुझे बताऊँ ||

अंतरमन की पीड़ा,

अंतरमन ही जाने |

दर्द भरे गीतों को,

कैसे तुझे सुनाऊँ ||

यादों के दरपन में,

है हर-पल की छाया |

बीते हुए पलों की,

कैसे याद भुलाऊँ ||

तुम जो पास नहीं हो,

सूना है जग सारा |

भूले तुम जो मुझको,

क्या रोऊँ, क्या गाऊँ ||

(5)

आँसू

निशि-वासर तुमको याद करें,

मेरी इन आँखों के आँसू ||

है व्यथा बहुत नीहित हम में,

कहते इन आँखों के आँसू ||

समझता है मन, रे पागल,

क्यों व्यर्थ बहाती है आँसू ||

इस व्यथित हृदय की पीड़ा को,

समझेंगे तो केवल आँसू ||

इस उर की घनीभूत पीड़ा,

यदि तुम भी ना अपनाओगे,

दुःख-दग्ध हृदय की पीड़ा को,

पी जायेंगे मेरे आँसू ||

इन आँखों की इस अंजलि में,

कुछ शेष नहीं है देने को,

आँखें क्या दे सकतीं तुमको,

देंगी तो बस अपने आँसू ||

(6)

यादों के दरपन में

यादों के दरपन में,

कब तक तुझे निहारूँ ||

पास नहीं जो तुम हो,

कैसे भाग्य संवारूँ ||

आए क्यों जीवन में,

मीत मेरे तुम बनकर |

कर चले गए फिर,

क्यों तुम दो-पल रहकर |

मन के मीत मेरे मैं,

कब तक तुझे पुकारूँ ||

पास नहीं जो तुम हो,

कैसे भाग्य संवारूँ ||

इन नयनों की पीड़ा,

कोई समझ पाए |

पीड़ा मिट जाए जब,

पास मेरे तू आए |

लिख-लिखकर मैं पाती,

यूँ ही कब तक डारूँ ||

पास नहीं जो तुम हो,

कैसे भाग्य संवारूँ ||

अंतरमन की पीड़ा,

अंतरमन ही जाने |

मीत मेरे बिन तेरे,

मन यह कैसे माने |

दिवस-मास गिन-गिनकर,

कब तक राह निहारूँ ||

पास नहीं जो तुम हो,

कैसे भाग्य संवारूँ ||

कब तक तरसाओगे,

इन दुखिया अँखियों को |

एक एक दिवस तो,

आना होगा तुमको |

पलकों के आँचल से,

कब तक द्वार बुहारूँ ||

पास नहीं जो तुम हो,

कैसे भाग्य संवारूँ ||

(7)

बीत रहा है हर एक लम्हा

-बीत रहा है हर एक लम्हा,

मैं और मेरी तन्हाई है ||

बाद तेरे जाने के, मेरी

आँख कहाँ ये मुसकाई है ||

तुम थे मेरे पास तो मुझको,

लगता था सारा जग अपना |

और गए जब से तुम, मुझको

लगता है सारा जग सपना |

करके याद तुम्हारी, देखो

आँख मेरी फिर भर आई है ||

बीत रहा है हर एक लम्हा,

मैं और मेरी तन्हाई है ||

छाँव-तले पेड़ों के मिलना,

हाथ पकड़कर साथ वो चलना |

भुला नहीं पाता मन मेरा,

वो तेरी बाहों में संभलना |

पा के खुद को निपट अकेला,

आँख मेरी ये धुंधलाई है ||

बीत रहा है हर एक लम्हा,

मैं और मेरी तन्हाई है ||

रुक सा गया है जीवन जैसे,

छाई है हर ओर निराशा |

कुम्हलाई है मन की बगिया,

जीवन की अब कैसी आशा |

बियाबान सा जीवन मेरा,

उसपे धूप घनी छाई है ||

बीत रहा है हर एक लम्हा,

मैं और मेरी तन्हाई है ||

(8)

पलकों पर सावन आया है

-पलकों पर सावन आया है ||

पलकों पर सावन आया है ||

सब कुछ सूना-सूना लगता,

हर स्वप्न मेरा धुंधलाया है ||

पलकों पर सावन आया है ||

पलकों पर सावन आया है ||

आँखों का अंजन छूटा है |

मन काँच के जैसा टूटा है |

मेरी खुशियों का राजमहल,

यह किस निष्ठुर ने लूटा है |

वह अपना है या पराया है ||

मन समझ अब तक पाया है ||

सब कुछ सूना-सूना लगता,

हर स्वप्न मेरा धुंधलाया है ||

पलकों पर सावन आया है ||

पलकों पर सावन आया है ||

मन-वीणा की झनकार गई |

भंवरों सी मधुर गुंजार गई |

एक शून्य सा है जीवन जैसे,

मैं अब अपने से हार गई |

दिन कैसा मुझे दिखाया है ||

हँसने की जगह रुलाया है ||

सब कुछ सूना-सूना लगता,

हर स्वप्न मेरा धुंधलाया है ||

पलकों पर सावन आया है ||

पलकों पर सावन आया है ||

अब कौन जलाएगा दीपक,

मेरे मन के इस आँगन में |

अब कौन खिलाएगा कलियाँ,

मेरे मन के इस मधुवन में |

अब साथ मेरा साया है ||

सब रेती सा बिखराया है ||

सब कुछ सूना-सूना लगता,

हर स्वप्न मेरा धुंधलाया है ||

पलकों पर सावन आया है ||

पलकों पर सावन आया है ||

(9)

सब कुछ सूना-सूना लगता

दिन पहाड़ से लगते मुझको,

रातें बियाबान जंगल हैं |

एक तुम्हारे ना होने से,

सब कुछ सूना-सूना लगता ||

आँगन की तुलसी कुम्हलाई |

धूप मुंडेरों से ना आई |

ओढ़ उदासी की चादर को,

दिन क्या मैंने रात बिताई |

हरसिंगार सा मन झरता है ,

मेरे इस सूने आंगन में |

बिखरा-बिखरा अजब मुझे अब,

घर का कोना-कोना लगता ||

दिन पहाड़ से लगते मुझको,

रातें बियाबान जंगल हैं |

एक तुम्हारे ना होने से,

सब कुछ सूना-सूना लगता ||

काँटों सा चुभता हर पल है |

बिना तुम्हारे मन बेकल है |

सांसें भी अब बोझ हो गईं,

धीमी पड़ती हर हलचल है |

घड़ी-घड़ी अब जैसे युग है,

बंधन सा लगता जीवन है |

धूमिल सा पड़ता अब मुझको,

जीवन स्वप्न सलोना लगता ||

दिन पहाड़ से लगते मुझको,

रातें बियाबान जंगल हैं |

एक तुम्हारे ना होने से,

सब कुछ सूना-सूना लगता ||

गहन तिमिर और मैं एकाकी |

पंख लगा तुम उड़ गए पाँखी |

पंथ अपरिचित इस जीवन का,

अहो अभी कुछ रहा है बाकी |

एक समाधि सा जीवन मेरा,

शांत पड़ी अब हर हलचल है |

यह अवसाद मेरे मन का अब,

दिन-दिन, पल-छिन दूना लगता ||

दिन पहाड़ से लगते मुझको,

रातें बियाबान जंगल हैं |

एक तुम्हारे ना होने से,

सब कुछ सूना-सूना लगता ||

(10)

आओगे फिर तुम आओगे

आओगे फिर तुम आओगे ||

आओगे फिर तुम आओगे ||

कहता है मुझसे मन मेरा,

मुझे भूल ना पाओगे ||

फिर से लहराएगा आँचल,

फिर से पायल बोल उठेगी |

बालों में गजरा महकेगा,

दिल की सरगम डोल उठेगी |

अपने ही हाथों से तुम फिर,

मेरी मांग सजाओगे ||

कहता है मुझसे मन मेरा,

मुझे भूल ना पाओगे ||

आओगे फिर तुम आओगे ||

आओगे फिर तुम आओगे ||

ऑंखें फिर कुछ बात कहेंगीं,

ओंठों पर मुस्कान सजेगी |

खन-खन खनकेगा फिर कंगना,

जीने की फिर आस जगेगी |

हार मुझे अपनी बाहों का,

सजना फिर पहनाओगे ||

कहता है मुझसे मन मेरा,

मुझे भूल ना पाओगे ||

आओगे फिर तुम आओगे ||

आओगे फिर तुम आओगे ||

मन मयूर फिर नाच उठेगा,

फिर से बेला महक उठेगी |

फिर से डोलेगी पुरवाई,

मन की कोयल चहक उठेगी |

अँखियों में तुम आन बसोगे,

साँसों में घुल जाओगे ||

कहता है मुझसे मन मेरा,

मुझे भूल ना पाओगे ||

आओगे फिर तुम आओगे ||

आओगे फिर तुम आओगे ||

***