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हुस्ने ग़ज़ल

ग़ज़ल (1)

हर एक शाम तेरा इंतज़ार होता है |

हर एक शाम कोई बेकरार होता है |

तुम्हारी एक झलक में सुकून मिलता है,

तुम्हारी एक हँसी में क़रार होता है |

जो तीर अपनी निगाहों से तुम चलाती हो,

कसम ख़ुदा की वो सीने के पार होता है |

नशा शराब में होगा न इस क़दर इतना,

नशा जो तेरी निगाहों में यार होता है |

मैं खुशनसीब हूँ मुझको जो तेरा प्यार मिला,

कहाँ नसीब में सबके ये प्यार होता है |

ग़ज़ल (2)

मुहब्बत का कुछ तो असर हो रहा है |

घड़ी,हर घड़ी,हर पहर हो रहा है |

तुम्हारे भी दिल में वही हो रहा है,

जो दिन-रात दिल में इधर हो रहा है |

तुम्हारी हुई मेरी जाँ,मेरी साँसें,

ये दिल भी तुम्हारी नज़र हो रहा है |

दिले बेक़रारी का आलम न पूछो,

ये बेचैन शामो-सहर हो रहा है |

मुझे मिल गए तुम,तो लगता है मुझको,

कि आसान अब यह सफर हो रहा है |

सभी के लबों पे है बस नाम अपना,

सभी में हमारा ज़िकर हो रहा है |

ग़ज़ल (3)

आप गर साथ हैं मुझको नहीं कमी कोई |

दूर रहकर तो आपसे ये ज़िन्दगी रोई |

सुर्ख ओंठों पे खिला रंग गुलाबी देखा,

और गुलशन के हर इक फूल ने रंगत खोई |

देखकर नींद में डूबी हुई इन आँखों को,

फूल सोए,ये जहाँ और ये ज़मी सोई |

ये बदन,चाँद सा चेहरा,ये रेशमी ज़ुल्फ़ें,

जैसे ज़न्नत से उतर आई नाज़नी कोई |

ग़ज़ल (4)

तुम ज़िन्दगी के साज़ पे छेड़ी हुई ग़ज़ल हो |

दिल की सुनहरी झील में खिलता हुआ कमल हो |

रुख़ पे घटा सी ज़ुल्फ़ का साया जो आ पड़ा,

लगने लगा कि चाँद घटाओं में आजकल हो |

आँखों में अब तलक थे नहीं ख़्वाब हुस्न के,

मंज़ूर था ख़ुदा को,तुमसे ही ये पहल हो |

जाने बहार आए जो तुम नूर आ गया,

मुश्किल है अब संभालना दीवाने मेरे दिल को |

ग़ज़ल (5)

तू मेरे सामने हो मैं तेरा दीदार करूँ |

बस यही आरज़ू है तुझसे सनम प्यार करूँ |

एक लम्हे के लिए भी,तू जुदा हो न सनम,

इल्तज़ा रब से यही बस मैं बार-बार करूँ |

यूँ ही बैठा रहूँ आँखों में डालकर आँखें,

बस निगाहों से मुहब्बत का मैं इज़हार करूँ|

प्यार कुछ और नहीं एतबार है दिल का,

तू सनम मुझपे औ मैं तुझपे एतबार करूँ |

ग़ज़ल (6)

उनकी गली से जब भी कभी हम गुज़र गए |

आँखों में जाने कितने हँसीं ख़्वाब भर गए |

कोठे पे उनको देखा जो ज़ुल्फ़ें सँवारते,

बढ़ते हुए क़दम मेरे दम भर ठहर गए |

चेहरे पे है वो नूर कि शरमाए चाँद भी,

पहली नज़र में वो मेरे दिल में उतर गए |

जाने क्या बात उनकी गली की फ़िजाँ में है,

लौटे हैं खोए-खोए से जब भी उधर गए |

ग़ज़ल (7)

निगाहों में शोख़ी है क़ातिल अदा है |

तेरे हुस्न पे मेरा दिल ये फ़िदा है |

तेरी सादगी में है शामिल बहुत कुछ,

बहुत खूब ये तेरी नाज़ो अदा है |

महक़ तेरी ज़ुल्फ़ों की ले के जो आई,

नहीं और कोई वो वादे सबा है |

नज़र लग न जाए ज़माने की तुझको,

यहाँ तो तुझे हर कोई देखता है |

ग़ज़ल (8)

प्यार मुझसे है तो यह बात छुपाते क्यूँ हो |

मेरी नज़रों से नज़र अपनी चुराते क्यूँ हो |

दिल में हर रोज ही तूफ़ान उठा जाते हो,

सामने आ के भला लौट यूँ जाते क्यूँ हो |

ज़ुल्फ़ लहराते हुए तेरा वो छत पर आना,

बारहाँ देख के मुझको यूँ सताते क्यूँ हो |

सज-सँवर के वो हर इक शाम निकलना घर से,

हौंसले मेरे बताओ तो बढ़ाते क्यूँ हो |

क्यूँ छुपा लेते हो आँचल में,दिखाकर चेहरा,

गर छुपाना है तो चेहरा यूँ दिखाते क्यूँ हो |

लाख इनकार करो,मुझसे तुम्हे प्यार नहीं,

रोज ही घर में बहाने से यूँ आते क्यूँ हो |

ग़ज़ल (9)

तुमसे जबसे मेरी दोस्ती हो गई |

ज़िंदगानी ये कितनी हँसीं हो गई |

मुस्कुराके जो तुमने पुकारा मुझे,

इस जहाँ से मेरी दुश्मनी हो गई |

मुद्दतों से कोई दिल में आया न था,

आज पूरी ये दिल की कमी हो गई |

तुम जो सज-धज के निकले मेरे हमसफ़र,

हर तरफ़ हुस्न की रौशनी हो गई |

मेरे शाने पे तुमने जो सिर रख दिया,

शाम ये और भी दिलनशीं हो गई |

ग़ज़ल (10)

शहरे दिल में,तेरे सिवा,कोई नहीं रहता |

तुम ही रहते हो,दूसरा, कोई नहीं रहता |

यह भी सच है,मुझे औरों से,अदावत तो नहीं,

फिर भी दिल में मेरे,दूजा,कोई नहीं रहता |

एक तुमसे ही तो,रिश्ता है मेरे दिल का सनम,

किसी से यूँ ही,वास्ता,कोई नहीं रहता |

क़रीब आओ,हटा दो,नक़ाब चेहरे से,

ऐसे मौसम में यूँ तनहाँ,कोई नहीं रहता |

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