शबाब-ए-ग़ज़ल vineet kumar srivastava द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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शबाब-ए-ग़ज़ल

शबाब-ए-ग़ज़ल

ग़ज़ल (1)

हमने देखी हैं सनम जबसे तुम्हारी आँखें |

एक पल भी न हटें तुमसे,हमारी आँखें |

ये समंदर हैं जो कितना ही पिलाएं फिर भी,

कभी होंगी नहीं खाली ये तुम्हारी आँखें |

यूँ तो छाता है नशा तुमको देखते ही मगर,

मस्तियाँ और बढ़ाती हैं तुम्हारी आँखें |

रोज मिलती हैं ये आँखें,मेरी आँखों से मगर,

फिर भी प्यासी ही रहें क्यूँ ये हमारी आँखें |

अभी नादान हैं,भोली हैं,बहुत कमसिन हैं,

जाने कब होंगी सुहागन ये कुँवारी आँखें |

इनको दुनिया की निगाहों से बचाकर रखो,

हर किसी शै से हैं बढ़कर ये तुम्हारी आँखें |

ग़ज़ल (2)

नज़र के सामने है हुस्न लाज़वाब कोई |

नहीं है तुझ सा ज़माने में माहताब कोई |

ये तेरी ज़ुल्फ़,ये चेहरा,ये मदभरी आँखें,

भरी है आँखों में जैसे तेरी,शराब कोई |

ये जवानी,ये तेरा हुस्न,ये अदा तेरी,

कसम ख़ुदा की,नहीं है तेरा जवाब कोई |

ये तेरा फूल सा चेहरा,ये मरमरी बाहें,

बदन तेरा है मेरी जान, आफ़ताब कोई |

ग़ज़ल (3)

मुझसे नज़रें जो चुराते हो,चुराते क्यूँ हो |

इस तरह मुझको सुबह-शाम सताते क्यूँ हो |

पास आ के मेरे तुम दूर चले जाते हो,

दूर जाना ही है तो पास यूँ आते क्यूँ हो |

इक झलक अपनी दिखाकर मुझे,छुप जाते हो,

धड़कनें दिल की बताओ तो बढ़ाते क्यूँ हो |

मुझको मालूम है तुमको है मुहब्बत मुझसे,

ज़ज़्बा ये प्यार का फिर मुझसे छुपाते क्यूँ हो |

ग़ज़ल (4)

मुझको रहती है तुम्हारी ही फ़िकर,शामो-सहर |

ढूँढती रहती है तुमको ये नज़र,शामो-सहर |

तुम कहीं भी रहो,नज़दीक मेरे रहती हो,

दिलको रहती है तेरे दिल की खबर,शामो-सहर |

ज़िन्दगी बोझ ये बनकर मेरी रह जाएगी,

तुमको देखा न सनम मैंने अगर,शामो-सहर |

तुम हज़ारों में हो,लाखों में हो,मेरे हमदम,

क्यूँ न हो फिर तेरे जलवों का ज़िकर,शामो-सहर |

ग़ज़ल (5)

इधर देखूँ,उधर देखूँ |

दिखे बस तू,जिधर देखूँ |

हर इक ज़र्रे में तू ही तू,

बता फिर मैं,किधर देखूँ |

तेरा ही अक्स दिखता है,

किसी गुल को अगर देखूँ |

तेरी ज़ुल्फ़ों की खुशबू से,

महकती रहगुज़र देखूँ |

तमन्ना है मेरे दिल की,

तुझे शामो-सहर देखूँ |

तुझे आईने में दिल के,

मेरी जाने-ज़िगर देखूँ |

तुझे हर पल करीब अपने,

ऐ मेरे हमसफ़र देखूँ |

कभी तेरा तबस्सुम तो,

कभी तेरी नज़र देखूँ |

मैं हर सूँ दिलरुबा तेरे ही,

जलवों का असर देखूँ |

ग़ज़ल (6)

आपसे ग़र ये दोस्ती होगी |

खूबसूरत ये ज़िन्दगी होगी |

ग़र चलें आप हमसफ़र बनकर,

मेरी राहों में रोशनी होगी |

आप हँस दें अगर जो महफ़िल में,

ग़म के चेहरे पे भी हँसी होगी |

साथ मिल जाए आपका जिसको,

फिर भला उसको क्या कमी होगी |

ग़ज़ल (7)

अनजान इस तरह तो न बनिए हुज़ूर आप |

रहिए न इस क़दर तो हाय,दूर-दूर आप |

हाय चुरा न ले कहीं,कोई बात-बात में,

रखिए छुपा के सबसे अजी,अपना नूर आप |

समझा था हमने आपको इक नाज़नीं हसीं,

लेकिन खबर न थी हमे,हैं कोई हूर आप |

सारा कसूर आपकी नाजो-अदा का है,

कैसे भला करेंगे,कोई कुसूर आप |

ग़ज़ल (8)

किस्मत ने जबसे तुमको,हमारा बना दिया |

रोशन मेरे नसीब का,तारा बना दिया |

आई जो शब तो आ के,तुम्हारे ख़्याल ने,

ख़्वाबों का रंग और भी,प्यारा बना दिया |

तन पे पड़ी जो तेरे,किरन माहताब की,

कुछ और हसीं तेरा,नज़ारा बना दिया |

सदके मैं उस घड़ी के,कि जिसने मेरे सनम,

तुमको हमारा,हमको,तुम्हारा बना दिया |

ग़ज़ल (9)

इक हुस्न की तस्वीर मुझे वो नज़र आए |

चेहरे से जो वो नाज़नीं चिलमन को उठाए |

क़मसिन है वो,नादान है,नाज़ुक सी कली है,

आँचल को उठाए,कभी आँचल को गिराए |

इक ज़िन्दगी नई मुझे देती है वो हवा,

छू के बदन जो उसका,मेरे पास है आए |

चिलमन जो वो पलकों की उठाए तो सहर हो,

होती है शब जो पलकों की चिलमन वो गिराए |

हर एक नज़र उसकी क़यामत की नज़र है,

हर एक अदा दिल पे क़यामत मेरे ढाए |

तारीफ़ वो भी कम है,ज़ुबाँ से जो मैं करूँ,

हुस्नो-ज़माल उसका न आँखों में समाए |

तिरछी जो निगाहों से वो देखे मेरी ज़ानिब,

धड़कन ये मेरे दिल की ठहर बस वहीं जाए |

तूफ़ान उठाती है मेरे दिल में वो हरदम,

पल भर भी बिना उसके मुझे चैन न आए |

अब और करूँ ज़िक्र क्या उस नाज़नीं का मैं,

जिस राह से निकले वो डगर फूल खिलाए |

ग़ज़ल (10)

उनकी हर एक नज़र तीरे-नज़र होती है |

वो समझते हैं नहीं होती,मगर होती है |

आँख मिलना कि क़यामत का ठहरना मुझपे,

हर क़यामत ही मेरी जाने-ज़िगर होती है |

रात होती है जो मुझसे वो जुदा होते हैं,

पास आते हैं वो मेरे तो सहर होती है |

ख़्वाब बनकर मेरी आँखों में समाए ऐसे,

आँख खोलूँ भी तो ख़्वाबों की लहर होती है |

हों जुदा ज़िस्म तो क्या,एक हैं रूहें अपनी,

दिल तड़पता है इधर,आह उधर होती है |