Ek ulajhi si paheli books and stories free download online pdf in Hindi

एक उलझी सी पहेली

एक उलझी सी पहेली

"बस रवि बस बहुत हो गया। इतना गुस्सा आ रहा है ना मुझे तुम पर, मन कर रहा है कि कुछ ऐसा करूँ जिससे तुझे दिन में भी तारें नजर आ जाये। बिल्कुल बेकार दोस्त है तू, सिर्फ औऱ सिर्फ तेरे कारण अब हमें अपना यह नया साल यहीं इस बोरिंग हास्टल में मनाना पड़ेगा। कितना बोला था तुझे, चल भाई कोई प्लान बनाते हैं। कहीं घूम कर आते हैं, पर ना जी ना तुम जैसे किताबी कीड़े को कुछ समझ में आये तब ना, अब कुछ बोल क्यों नहीं रहा है। कुछ सुना भी तुमने या मैं बस दिवारों से बातें करें जा रहा हूं। "

अमित की इतनी लंबी चौड़ी तकरार सुनकर रवि मुस्कुराता हुआ बोला।

"जस्ट चिल डियर यह देखो तुम्हारा ही काम कर रहा था।देखो ना कितनी खूबसूरत जगह है। हम ना अपना नया साल यहीं मनायेंगे। मैंने ना बुकिंग भी करा ली है। चल फिर जल्दी से, अपना बैग पैक कर लें। और फिर हम निकल चले लान्सडौन की खूबसूरत वादियों में।"

रवि की बात सुनकर अमित का चढ़ता हुआ पारा एकदम से नीचे आ गया। और फिर वो दोनों दोस्त निकल पड़े जिंदगी के बोरिंग लम्हों से कुछ वक्त को चुराकर कुछ हसीन यादों की तलाश में।

लान्सडौन पहुंच कर अमित की खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था वरना उसे तो लग रहा था। इस साल वीरान हास्टल में ही नया साल आ जायेगा पर अब इस हसीन मौसम में अमित रवि को पूरी तरह से माफ कर चुका था।

दोनों दोस्त एक दूसरे के हाथों में हाथ डालकर अपने होटल की तरफ निकल पड़े। थोड़ा रास्ता तो कार से निकल गया। पर एक जगह जाकर कार वाले ने कार रोक दी और बोला।

"बाबू साहब बस अब कार आगे नहीं बढ़ सकती आगे का रास्ता आपको पैदल ही जाना पड़ेगा। आगे का रास्ता आप गांव वालों से पूछ लेना।"

बहुत देर हो चुकी थी दोनों दोस्तों को चलते चलते पर होटल तो मिल ही नहीं रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने जादू से होटल को गायब कर दिया हो। एक बार फिर से अमित को रवि पर शिद्दत से गुस्सा आने लगा था।

"बस बहुत हो चुका मुझे एक बात सच सच बता तुमने कोई होटल बुक भी करा था या बस मुझे बेवकूफ बनाया था आखिर कैसा होटल है यह जीपीएस तो छोड़ यहाँ किसी ने इस होटल का नाम भी नहीं सुना है। क्या नाम बताया था तुमने, हाँ जी याद आया। "जंगल होटल "

वाह जी वाह क्या नाम है, सच में यह तो हद ही हो गयी है आधे जंगल में आ गये हैं हम और होटल है कि मिल ही नहीं रहा। फोन लगा कर पूछो ना होटल वालों से, कि है कहाँ यह जंगल होटल। पर नहीं फोन भी कैसे कर सकते हो तुम, फोन करने के लिए भी तो नेटवर्क की जरूरत होती है ना, और इस घने जंगल में जब दिन में भी सूरज की किरणें नजर ना आ रही हो वहाँ किसी और चीज की अपेक्षा भी कैसे की जा सकती है। "

तभी रवि ने सामने से जाते एक और गांव वाले से होटल का रास्ता पूछा। और कमाल की बात यह कि वो गाँव वाला उसी होटल में काम करता था। यह पता लगते ही अमित और रवि ने सुकून की सांस ली।

आखिरकार उस गांव वाले के साथ दोनों होटल जा पहुंचे। होटल देखकर सही मायने में दोनों बेहद निराश हो गए थे। जंगल होटल होटल के नाम पर कंलक निकला था। बस एक पुरानी हवेली जिसे देखकर लग रहा था कि बरसों से यहां कोई नहीं आया। पर अब मरता क्या न करता दोनों होटल के अन्दर चलें गये। शाम के इस पहर वापस लौटना सम्भव भी तो नहीं था।

अमित इस बात को पूरी तरह से मानता था कि साल का पहला दिन जैसा जाता है। फिर पूरा साल वैसा ही गुजरता है। वैसे रवि तो इस बात से इत्तफाक नहीं रखता पर वो भी नये साल का आगमन खुशी के साथ ही करना चाहता था। इसलिए इस बुरे हालात में भी दोनों ने फैसला किया कि वो खुश रहने की पूरी कोशिश करेंगे। और तभी कुदरत ने भी उन्हें खुश रहने का एक बेहतरीन मौका दे दिया था।

अचानक से बाहर बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली के कड़कने के साथ ही झमाझम बारिश शुरू हो गई थी।

लान्सडौन की खूबसूरत वादियों में यह दिलफरेब बारिश किसी को भी अपना दिवाना बनाने के लिए काफी थी।

दोनों दोस्त हवेली की छत पर बारिश को पूरी तरह से महसूस कर रहे थे कि तभी होटल में काम करने वाला इकलौता गांव वाला गरम गरम चाय के साथ टमाटर के पकोड़े लेकर आ गया।

दोनों दोस्तों ने आज से पहले कभी टमाटर के पकोड़े नहीं खाये थे। पर अब तो लग रहा था कि इन टमाटरों के पकौड़ों के लिए कम से कम पूरा महीना इस होटल में रूका जा सकता है। तीसरी बार टमाटर के पकोड़े लाने के बाद वो गाँव वाला भी अपना वक्त गुजारने के लिए उनके साथ बातें करने बैठ गया।

बहुत सी इधर उधर की बातों के साथ ही गांव वाले ने हिदायत भी दे डाली।

"बाबू जी पूरा जंगल घूम लेना पर झरने की तरफ ना जाना। वहां आज तक जो गया वो कभी लौट कर नहीं आया।"

बातों बातों में रात आधी गुजर गयी थी। तो सबने एक दूसरे को नये साल की बधाई दी और अपने कमरे में सोने चले गए।

सुबह बहुत चमकदार दी। बीती रात की बारिश ने जैसे पूरी कायनात को दुल्हन सा सजा दिया था। नाश्ता करने के बाद दोनों दोस्त उस पहाड़ी जंगल को अपने कैमरे में कैद करने के लिए निकल पड़े।

जंगल में कदम कदम पर जैसे खूबसूरती बिखरी पड़ी थी। दोनों दोस्त मदहोशी के आलम में चलते चलते झरने तक जा पहुंचे थे।

इतना नायाब नजारा देखकर दोनों के होश फाख्ता हो गये थे। ऐसा लग रहा था जैसे धरती पर नहीं स्वर्ग में आ गए हों।

मौसम की रूमानियत ने गांव वाले की बातों को जहन से ऐसे निकाल दिया था जैसे कभी उन बातों का कोई वजूद ही ना रहा हों।

रवि और अमित झरने की शीतल जल से खेलने में लगे थे। तभी उन्होंने किसी के जोर से चिल्लाने की आवाज सुनी।कोई बहुत तेजी से उनकी तरफ दौड़ कर आ रहा था। थोड़ी ही देर में रवि और अमित के सामने एक नवयौवना खड़ी थी। जो किसी जंगली जानवर से डर कर रास्ता भूल गयी थी।

उस लड़की का हुस्न अप्सराओं को भी मात दे रहा था। उस लड़की को देखकर अमित के अन्दर का जानवर जाग गया। पर रवि बहुत हमदर्दी से उस लड़की से बोला।

"मत घबराओ बहन अब वो जानवर चला गया है। मुझे अपना बड़ा भाई समझो। तुम कहाँ रहती हो। चलों हम तुम्हें तुम्हारें घर छोड़ देते हैं कहीं वो जानवर वापस ना आजाये। "

रवि की बात सुनकर अपनी बड़ी बड़ी आँखों में ढेर सारा आश्चर्य छुपा वो लड़की आगे आगे चल दी।

वहीं दूसरी तरफ अमित का मन कर रहा था कि रवि को धुन कर रख दे। जब उससे नहीं रहा गया तो वो रवि के कान में फुसफुसा कर बोला।

"मैंने आज तक तुम जैसा कोई पागल नहीं देखा। इस बेइन्तहा हुस्न की मल्लिका को तुम ऐसे ही हाथ से चले जाने दे रहे हो। देखो इस बियाबान जंगल को दूर दूर तक किसी इंसान का नामोनिशान नहीं है बात मान जा दोस्त पूरा दिन रंगीन हो जायेगा और सबसे बड़ी बात कि किसी को कुछ पता भी नहीं लगेगा।"

अमित की बात सुनकर रवि गुस्से से उबलने लगा और चिल्ला कर बोला।

"शर्म आ रही है मुझे तुम्हें अपना दोस्त कहते हुए। कोई देख नहीं रहा इसका यह मतलब तो नहीं है कि हम गुनाह करें। अगर तेरी अपनी बहन होती तब भी क्या तुम मुझे ऐसी ही सलाह देता।"

रवि की बात सुनकर अमित जैसे होश में आ गया और फिर शर्मिंदा होकर बोला।

"माफ कर दो भाई जानें कैसे मैं बहक गया था। सच मैं मैंने आज तक किसी के लिए ऐसा कुछ नहीं सोचा आज ना जाने कैसे मेरे मन ने मुझे धोखा दे दिया।"

अपनी बातों में व्यस्त दोनों दोस्त तभी अचानक से हैरान और परेशान हो गए। उनके आगे आगे चल रही वो लड़की जाने कहाँ अचानक से गायब हो गयी थी। वो दोनों परेशान से इस पहेली को सुलझाने में लगे हुए थे। इस अजीब से हादसे के बारे में बात करते हुए दोनों होटल जा पहुंचे।

उन्हें पानी में भिगा देखकर होटल वाला अचंभित होते हुए बोला।

"बाबू साहब आप लोग झरने की तरफ गये थे क्या। और आप लोग तो जिन्दा भी है यह तो करिश्मा ही हो गया कि कोई हादसा नहीं हुआ। वरना आज तक झरने से कोई जिन्दा नहीं आया। बाबू साहब एक बात तो बताओ ज़रा, आपको क्या वहां कोई लड़की नहीं मिली।"

"एक बहुत सुंदर लड़की मिली तो थी पर फिर जाने कहाँ गायब भी हो गई। "

रवि ने गांव वाले को जवाब दिया।

रवि की बात सुनकर गांव वाला सिर हिलाते हुए बोला।

"बहुत किस्मत वाले हो बाबू साहब गांव के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि बहुत साल पहले शहर से कुछ लोग आये थे। और उनकी गन्दी नज़र एक लड़की पर पड़ गयी। इससे पहले कि वो उस लड़की की इज्जत से खेल पाते। उस लड़की ने झरने से कूद कर अपनी जान दे दी थी। उसके बाद वो सारे शहरी लोग मारे गए थे। और आज भी झरने की तरफ जाने वाला कोई वापस लौट कर नहीं आता है। मैं समझ नहीं पा रहा कि आप लोगों कैसे सही सलामत है। "

गांव वाला भले ही यह पहेली नहीं सुलझा पा रहा था पर अमित और रवि जानते थे कि उनकी रक्षा उनकी सही नियत ने की थी

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