अपना सा अजनबी Neha Agarwal Neh द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अपना सा अजनबी

Neha Agarwal

nehaabhi.agarwal@gmail.com

"अपना सा अजनबी"

मै थोड़ी झल्ली सी थोड़ी शैतान पर थोडी सी अच्छी भी हूँ और नाम है मेरा अविरा ।और आज मेरा MSC का entrance टेस्ट है हमेशा की तरह आज भी किसी भी एक्जाम में वक्त से कुछ ज्यादा ही पहले पहुँच गयी हूँ मै ।पेपर की टेन्शन तो जरूर है दिमाग में पर कालेज में कदम रखते ही दिल ना जाने क्यों पुरानी यादों को याद कर धड़क उठा था आज एक बार फिर सें ।

कोशिश भी कँरू तो भी अपनी जिन्दगी का वो दिन कभी भी नहीं भूल सकती हूँ मैं ,जब पहली बार मैंने उस अजनबी लड़के को देखा था।
बॉटनी की लैब के सामने लगे कनेर के पेड़ के नीचे खड़ा था वो, और तो और मेरी ,मेरी ही बेस्ट फ्रेण्ड से ऐसे घुल मिलकर बातें कर रहा था ।जैसे ना जाने कब से जानता हो उसे ।बहुत गुस्सा आ रहा था मुझे यह देख कर।गुस्सा तो वैसे भी कुछ ज्यादा ही आता है मुझे ,जो जानते है इस बारें मे वो मेरे लिए एक ही गाना गाना पसन्द करते है ,
चार सौ चालीस वोल्ट है छूना है मना
पर आज तो मेरा गुस्सा होना बनता है ना ,दस दिन के बाद आयी हूँ मैं कालेज, टाइफाइड हुआ था मुझे और मजाल है कि मेरी बेस्ट फ्रेन्ड एक बार भी मेरा हाल पूछने आयी हो ।और जब मैं आज आ गई हूँ तो भी बिजी है उस अजनबी लड़के के साथ आखिर है कौन यह आज सें पहले तो कभी नही देखा इसे कालेज में। इसी उधेड़बुन में मुझे पता ही ना लगा की कब मेरी बेस्ट फ्रेण्ड वापस आ गयी थी।और मेरा हाल पूछ रही थी पर अब तक मेरा पारा हाई हो चुका था और मैं उसको जवाब दिये बिना ही लैब के अन्दर चली गयी थी।

यह बात अलग है की फिर बार बार मेरी फ्रेण्ड ने मुझसे बात करने और मुझे मनाने की कोशिश की ।अरें एक बात तो आप सब को मैं बताना ही भूल गयी हाँ हाँ जानती हूँ मै ,कि मेरा गुस्सा तेज है पर मेरा गुस्सा ना बिल्कुल पारे जैसा है जितनी तेजी से ऊपर जाता है उतनी ही तेजी सें नीचे भी आ जाता है ।इसलिये मै फिर से अब अपने सहेली के सर मे सर जोड़े दुनिया जहान की बातों मे व्यस्त हो गयी थी।

बातों से बात निकली तो बहुत दूर तक गयी और चलते चलते उस अजनबी तक भी जा पहुँची।"
कौन था वो"
मैनें बड़ी लापरवाही दिखाते हुये अपनी सहेली सें पूछा ।यह बात अलग है मेरा रोम रोम उसके बारे में जानने को बैचेन हो रहा था ।कोई ऐसी वैसी लड़की नहीं हूं मैं पर जाने कैसा जादू था उस लड़के मैं जो बिना डोर उसकी ओर मैं खीची जा रही थी।

" कौन सा लड़का "

बहुत हैरानी से मेरी सहेली ने मुझसे पूछा एक बार फिर गुस्सा मेरी नाक पर आने ही वाला था कि तभी मुझे बाबा रणछोड़ दास छाछड़ का फार्मूला याद आ गया।मैं बार बार खुद को याद दिला रही थी ।आल इज वैल अॉल इज वैल जानती भी थी ना शायद यह गुस्सा मेरा ही नुकसान कर जाये सो खुद को काफी हद तक सम्भाल कर मैंने अपनी सहेली को याद कराया कि मैं किस अजनबी के बारें मैं बात कर रही हूँ।मेरे याद दिलाते ही मेरी फ्रेण्ड को याद आ गया वो लड़का और कुछ समय के बाद ही उसकी पूरी जन्म पत्री मेरे हाथ में थी ।

वो मेरी सहेली के मामा का बेटा था वैसे तो उसके मामा सूरत मे रहते है और ज्वैलर्स का काम करतें है पर अब हमारे शहर मे भी उन्होने अपनी एक दुकान खोली है जिसकी देख रेख का जिम्मा उसके मामा के बेटे को मिला है और इसलिये उसने हमारे ही कॉलेज से अपनी पढाई पूरी करने का निश्चय किया है और संजोग की बात तो यह की वो मेरे ही क्लास मे था।

अब पता नहीं यह बात अच्छी थी या बुरी वो हरवक्त मेरी आँखो के आगे रहता था ।कभी कभी लगता कि वो भी मुझसे बाते करना चाहता था ।पर इन्तजार में था मेरे तरफ से किसी पहल के पर एक वादा मेरे पैरों की बेड़ी बन गया था और चाह कर भी मै उससे बात नहीं कर पायी।आज सोचती हूँ तो कभी कभी लगता है काश वो वादा ना किया होता मैनें या फिर काश पापा समाज से इतना ना डरते या फिर काश दुनिया में खराब लोगों का कोई वजूद ना होता तों शायद कुछ अलग हीं होती आज की जिन्दगी।
यह बात तब की है जब मैं पहली बार कॉलेज आयी थी।बारहवीं तक तो गर्ल कालेज मे ही पढाई की थी ।पर आज पहला दिन था को एड का वैसे मैं चाहे खुद को कितना ही बहादुर समझ लूँ पर दिल बिल्कुल चिड़िया के बच्चे जैसा था सुबह तो पापा छोड़ गये थे कॉलेज और समझा भी दिया था कि कितनी दूर पर आटो मिलेगा पर दिल घबरा रहा था इसलिये पापा कि हाथ पकड़ कर बोल पड़ी ।

"पापा हो सकें तो मुझे लेने भी आ जाना प्लीज"
मुझे परेशान देख पापा भी थोडे़ परेशान हो गये पर फिर मुझे दिलासा दे कर बोले ।

"बेटा बहुत जरूरी मीटिंग ना होती तो मैं जरूर आ जाता ।और जानता हूँ मैं अपनी बहादुर बेटी को जो बिना परेशान हुये घर वापस आ जायेगी।"

और फिर कॉलेज गेट पर मुझे तन्हा छोड़ कर चले गये थे पापा और मैने भी डरते डरते अपना पहला कदम बढ़ा दिया था कॉलेज की ओर पर अन्दर जाते ही मेरी खुशी का जैसे कोई ठिकाना ही ना रहा ।

मेरी स्कूल टाइम की सबसे अच्छी सहेली मेरे सामने खड़ी थी।स्कूल में हमारी जोड़ी बहुत फेमस थी।और किसी तीसरे की हिम्मत भी नही थी हमारे बीच में आने की अब शायद कॉलेज में भी वो जमाना लौट कर आने वाला था।आज पहला दिन मेरी सहेली के कारण हँसता मुस्कुराता कब चुटकियों में गुजर गया पता भी ना चला और छुट्टी के टाइम अकेले घर जाने का डर फिर से मेरे दिल में फन उठाने लगा था।

जब हम दोनों गेट पर पहुँचे तो हुआ यह कि मेरी सहेली को लेने उसके पापा और भाई दोनों आ गये थे और मुझे लेने कोई नहीं आया था।फिर अपनी सहेली के पापा के कहने पर मैं उसके भाई की मोटरसाइकिल पर बैठ गयी ।उसके पापा ने कहा था कि भाई मुझे अॉटो स्टैण्ड पर छोड़ देंगे ।पर कॉलेज से कुछ दूर पहुँचते ही मेरी ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की सांस नीचे रह गयी थी।

सामने पापा की गाड़ी खडी थी और हमारा ड्राइवर हाथ दिखा कर हमारी गाड़ी को रोक रहा था।हमारी मोटर साइकिल एक झटके में रूकी थी ।और मैं लगभग भागते हुये पापा के पास गाड़ी मे जाकर बैठ गयी ।पापा बहुत गुस्से मे थे और मै बिना किसी गल्ती के ही बहुत घबरा गयी थी ।जैसे ही मैने अपनी सफाई में कुछ कहना चाहा पापा ने ड्राइवर की ओर इशारा कर के बोला हम घर जाके बात करेगें पूरे रास्तें ना जाने कैसे मैं अपने आसूँओ को रोके बैठी रही ।पापा मुझे घर के दरवाजे पर उतार कर फिर से अॉफिस चले गये थे।और मैं भारी मन से बिना कुछ खाये पिये अपने कमरें में जाकर लेट गयी यह देख मेरी माँ बहुत परेशान हो गयी पर उनके बहुत पूछने पर भी मैं उन्हें कुछ भी नहीं बता पायी ।आज शाम जैसे होने का नाम ही नहीं ले रही थी ।मैं जल्द सें जल्द यह बात खत्म करना चाहती थी आज सोचती हूँ तो गलती छोटी सी खुद की ही नजर आती है।
कितना अच्छा होता कि मै अपनी सहेली के भाई की जगह उसके पापा के साथ बैठी होती।कोई कन्फूयजन ही ना होता और ना ही पापा मुझसे नाराज हुये होते ।

धीरे धीरे शाम के साये धुँधले होने लगे थे तभी पापा की गाड़ी का हार्न सुनकर एक बार फिर मेरा दिल धड़क उठा था।आज जिन्दगी मे पहली बार पापा के सामने जाने से डर लग रहा था ।पर पापा से छुपना सम्भव भी तो नहीं था ना।
बिना किसी अपराध के पापा के सामने अपराधी सी खड़ी थी मैं ,पर फिर हिम्मत कर पापा को पूरी बात बता दी मैने ,पापा एक ठन्डी साँस लेकर बोले ।
मै तुझसे नाराज नहीं हूँ बेटा मुझे तुझ पर पूरा भरोसा है पर तुम ना बहुत भोली हो और यह दुनिया बहुत खराब है ।बस इसलिये डरता हूँ मैं ,वादा करों मुझसें बेटा मेरी तस्सली के लिए कि कालेज मे तुम किसी लड़के से कभी दोस्ती नहीं करोगे।जानती हो ना तुम खानदान की पहली लड़की हो जिसने कॉलेज का मुँह देखा है तुम्हारा एक गलत कदम फिर से तुम्हारी छोटी बहनों को दहलीज में कैद कर सकता है।बड़ी मुश्किल से मैंने एक छोटे से झरोखे को खोलने की कोशिश की है। तुम्हारा गलती से भी उठाया गया एक गलत कदम हमेशा के लिए उस झरोखे को बन्द कर सकता है।

और मैं खुशी खुशी यह वादा कर आयी थी पापा से क्योकी मुझे तो वैसे भी अपनी सहेली के अलावा किसी की जरूरत नहीं थी पर तब कहाँ जानती थी मैं कि इस वादे की बहुत बड़ी कीमत चुकानी होगी मुझे।
उस दिन हमारा कैमिस्टरी का प्रेक्टिकल था और आज ही एक बहुत बड़ी गल्ती कर बैठी थी मैं ,हमारे कैमिस्टरी के प्रोफेसर बहुत सख्त थे जरा जरा सी गलती पर पनिशमैन्ट देने वाले ,आज प्रेक्टिकल की एक फाइल लानी थी जो जल्दी जल्दी में मै भूल गयी थी क्लास शुरू होनें में सिर्फ पांच मिनट बाकि थे कालेज के बाहर मिल तो जाती वो फाइल पर आने जाने में कम से कम १५ मिनट का टाइम तो जरूर लगता ।मेरे चेहरे पर हवाईया उड़ती देख उस अजनबी ने मुझसे पूछा की क्या बात है और आधी बात सुनकर ही दौड़ लगा दी थी बाहर की और ,मेरा दिल अब और जोर से धड़कने लगा था लेट होने पर भी क्लास से बाहर जाना पक्का था और आज की क्लास बहुत इम्पोरटेन्ट थी। जिसका असर हमारे फायनल रिजल्ट पर भी पड़ना था ।अब मेरे साथ वो अजनबी लड़का भी मुसीबत में था। मैं दुआ माँगने में लगी थी हम दोनों के लिए तभी सामने से मुझे सर आते दिखाई दिये ।आज तो बचने का कोई चान्स नहीं दिल ने घबरा कर सोचा तभी उस अजनबी लड़के ने पीछे के दरवाजे से अन्दर कदम रख दिया और गनीमत यह रही की सर को पता नही लगा था हम दोनों बच गये थे और मैं बार बार भगवान का शुक्र अदा कर रहीं थी ।क्लास खत्म होने के बाद मैने धीरे से उस अजनबी को थैंक्स बोला और आगे बढ़ गई ।दिल में और बात करने की चाहत तो थी पर पापा से किया वादा भी तो पूरा करना था ना

कितना बड़ा अजाब होता है ना कोई आपकी रूह मे बसता जा रहा हों और आप उसकी तरफ नजर उठा कर भी नही देख सकते ।एक ही क्लास में होने के कारण अक्सर ना चाहते हुए भी सामना हो ही जाता था ।दिल जोर से धड़कता पर दिमाग की सुन मुँह फेर लेना लाजमी हो जाता था ।

एक और बात थी मेरे बारे में जो की पूरा क्लास जानता था जूलोजी के नाम पर मुझे पसीना आ जाता था कोई ना कोई बहाना करके अक्सर मैं प्रेक्टिकल में गोल मार जाती थी डर लगता था डिशक्शन कें नाम पर मुझे पर मजबूरी थी उसको पढ़ना क्योकि कैमिस्टरी जान थी मेरी और फिजिक्स मेरी दुश्मन तो जेड बी सी ग्रूप से ही bsc करना मजबूरी थी मेरी।क्योकी आगे MSC करनी थी मुझे chemistry सें इसलिये यह तीन साल तो गुजारने ही थे मुझे किसी भी हाल में।
और फिर एक दिन कुछ ज्यादा ही खुश थी मैं रीजन भी था ना मेरा बर्थ डे था और अपने बर्थ डे वालें दिन तो मैं बिल्कुल बच्ची बन जाती हूँ ,अगर कोई मुझे विश करना भूल जाता तो खुद से फोन करके याद दिला देती थी।और जब तक सब लोग मुझे गिफ्ट ना देदे उनका मुझसें पीछा छूटना इम्पासिबल था।और एक जरूरी बात बिना पानी पूरी के मैं यह दिन गुजारने की सोच भी नहीं सकती थी।क्लास में लगभग सबने ही मुझे बर्थ डे गिफ्ट दिये थे।पर उस अजनबी लड़के नें तो विश भी नहीं किया ।यह सोच सोच कर मेरा दिमाग खराब होने लगा था।जूलोजी की लैब में जाने का वक्त हो गया था।और हम सब लैब के बाहर दरवाजा खुलने का इन्तजार कर रहें थे।
तभी मैने सामने सें उस अजनबी लड़के को आते देखा ।और वो ठीक मेरे सामने खड़ा होकर बोला।

"अपनी आँखे बन्द करों ना अविरा और हाथ आगे करों"।
मैं मना करना चाहती थी पर बेखुदी में उसकी बात मान बैठी।उसने मेरे हाथ पर कुछ रखते हुए बोला।"
यह तुम्हारा बर्थ डे गिफ्ट है।"

और आँख खोलते ही मैं जोर से चिलाई ,थरथर काँप रही थी मैं मेरे हाथों मे मेढ़क की बोन्स रखी हुयी थी।बोन्स को वहीं गिरा कर मैं रोते हुये कॉलेज का गेट पार कर गयी और फिर सीधे घर आकर रूकी थी।
घर आकर भी मेरा रोना जारी था मैं बार बार वॉशबेसिन में अपना हाथ धो रही थी ।पर लग रहा था हाथ साफ ही नहीं हो रहा था ।फिर दो दिन तक कॉलज ही ना जा पायी मैं ,रो रो कर अपनी तबियत खराब कर ली थी मैने समझ भी नहीं पा रही थी क्यों इतना रोना आ रहा था शायद उम्मीद नहीं थी ऐसे किसी मजाक की और वो भी उस लड़के से जो बार बार रोकने पर भी दिल में बसता जा था।दिल का दर्द कुछ ज्यादा बढ़ता महसूस होनें लगा था पिघल रही थी मैं शमा की तरह

आखिरी साल शुरु हो गया था और मैं एक खोल मे सिमट गयी थी ।अब मैं उस अजनबी के बारें में बिल्कुल नहीं सोचना चाहती थी। वैसे भी हम दोनों रेल की पटरियों जैसे ही थे जो साथ में चल तों सकते है पर कभी मिल नहीं सकते थे।फायनल पेपर हो गये।और दिल के दर्द को दिल मे ही दबाये मैंने कॉलेज को अलविदा कह दिया था शायद यहीं मेरे अनकहे प्यार का अनजाम था

घन्टी की तेज आवाज मुझे वर्तमान में वापस ले आयी थी ।पेपर देनें के बाद सुस्त कदमों से मैं कॉलेज के गेट की ओर चल दी, वहीं गेट जिस पर आज से तीन साल पहले यह कहानी शुरु हुयी थी ।तभी अचानक से मेरे सामने आकर वो ही अजनबी लड़का खड़ा हो गया था ।और धीरे से बोला।"
आज तुमसे कुछ कहना है अबीरा प्लीज मना मत करना ।"

"मुसाफिर हूं
मैं तेरी राहे मुहब्बत में जरा सी देर बैठूंगा।
चला जाऊंगा अपने रास्ते पर
जिन्दगी की रात ढलने दे
रूकी है जो लबों पर वह बात होने दे।"।
अविरा मैं जानता हूँ तुम्हारे वादे के बारेंं में मुझे तुम्हारी बेस्ट फ्रेण्ड ने सब कुछ बता दिया है मैंं यह नहीं कहता की तुम अपने पापा से किया वादा तोड़ो।पर अगर तुम मेरें साथ जिन्दगी गुजारना चाहती हो तो तुम्हारी एक मुस्कान से ही मेरा जवाब मुझे मिल जायेगा ।मेरे मम्मी पापा आगे सब सम्भाल लेगे तुम्हारी ओर कोई अँगुली भी नहीं उठेगी ।मुझे भी तुमसे पहली नजर में ही प्यार हो गया था पर तुम्हारा रवैया हमेशा मुझे मेरी बात कहने से रोकता रहा ।पर आज अगर दिल की बात ना कहता तो शायद दर्द के कारण मेरा दिल बन्द हो जाता ।

अविरा हल्का सा मुस्कुरा दी थी। यह सोच कर की राहे मोहब्बत की कम से कम वो अकेली मुसाफिर नहीं थी।

दूर कहीं जगजीत सिंह की गजल फिजाओं में घुल रहीं थी।

"तमन्ना फिर मचल जाये अगर तुम मिलने आ जाओ।
यह मौसम भी बदल जाये अगर तुम मिलने आ जाओं ।।
नहीं मिलते हो मुझसे तुम तो सब हमदर्द है मेरे ।
जमाना मुझ से जल जाये अगर तुम मिलने आ जाओ।।"