ओ बेख़बर Jahnavi Suman द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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ओ बेख़बर

Jahnavi Suman

jahnavi.suman7@gmail.com

ओ बेख़बर

सोनाक्षी को बारिश का मौसम बहुत पसंद था। बारिश की टिप टिप फुहारों को देख,उसका मन मयूर सा नाच उठता था। आज सुबह से ही ज़ोरों की बारिश हो रही थी और सोनाक्षी कुछ अधिक प्रसन्न थी..
लेकिन प्रसन्नता से फैले होंठ, शीघ्र ही वापिस सिमट जाते थे। ना जाने क्या सोच कर वह उदास हो जाती थी, ठीक वैसे ही जैसै मोर नाचते-नाचते अपने पैर देखकर उदास हो जाता है।
आज तो दिल्ली शहर का मौसम कुछ अधिक ही सुहावना हो गया था । मन न जाने क्यों घूमने फिरने और मस्ती करने के लिए मचल रहा था। सोनाक्षी अभी पानी की नन्ही नन्ही बूंदों को निहार ही रही थी ,कि उसकी नन्ही सी भतीजी आकर उससे लिपट गई और बोली, " हमें आज इंडिया गेट ले चलिये, स्वतंत्रा दिवस आने वाला है, इसलिए उसे बहुत सुन्दर सजाया गया है।
सोनाक्षी का मन तो वैसे भी आज घर में नहीं लग रहा था। वह तुरंत इंडिया गेट जाने को तैयार हो गई। वह गाड़ी बाहर निकालते हुए ना जाने अचानक गुनगुना उठी। थोड़ी ही देर में वह सकपका कर रुक गई और शरमा कर इधर-उधर देखने लगी, क़ि कहीं उसे गुनगुनाते हुए किसी ने देख तो नहीं लिया। आज कितने बीते सावण उसे याद आ रहे जो उसे से बस रुलाकर जाते रहे।
वह अपने भतीजे रियांन और भतीजी टीना क्रे साथ के दिल्ली की भीगी भीगी सड़क और दीवाने मौसम के साथ।
तीनों ने खूब मस्ती की इंडिया गेट पर ।
फिर बच्चों को पिज़्ज़ा की भूख सताने लगी तो वह कनॉट प्लेस के एक नामी रेस्तरां में चल दिए। आपनी पसंद की पिज़्ज़ा का ऑडर दे कर तीनों गपशप मारने लग गए।
कुछ ही देर में उनकी मेज़ पर स्वादिष्ट पिज़्ज़ा भी आ गई। तीनो ने थोड़ा थोड़ा हिस्सा अपनी तश्तरी में रखा।
टीना ने अचानक सोनाक्षी से कहा, "बुआ ये तो नॉनवेज है।"
सोनाक्षी का परिवार शाकाहारी था । नॉनवेज पिज़्ज़ा का एक एक टुकड़ा सोनाक्षी भी खा चुकी थी , अब तो सोनाक्षी का गुस्सा सातवें आसमान को छू रहा था। उसने वेटर को बुलाया और उसे क्रोधित होते हुए पिज़्ज़ा वापिस ले जाने के लिए कहा। लेकिन वेटर अपनी गलती स्वीकार नहीं कर रहा था।
सोनाक्षी सीधा मैनेजर के केबिन में चली गई।
वह वहाँ घुसते ही बोली, "देखिये सर।"
मैनेजर ने जैसे ही अपना लैपटॉप बंद करके सोनाक्षी की ओर देखा, तो सोनाक्षी की मानों पूरी दुनिया ही हिल गई।
रोहित को मैनेजर की कुर्सी पर बैठे देख कर, वह ख़ुशी और क्रोध के संगम में बह गई।
पंद्रह वर्ष पहले ज़िन्दगी के बद नसीब मोड़ पर जो अधूरा प्रेम पीछे छूट गया था वह अचानक उसके सामने खड़ा था। लेकिन छोटी बड़ी पंगडंडियों से निकल कर ज़िन्दगी कही और ही निकल गई थी।
वह अपनी खुशी को रोहित के सामने प्रकट भी नहीं करना चाहती थी। वह तो अपने को वहां से हटा लेना चाहती थी, उसे डर था ,इतने वर्षों बाद रोहित को देखकर , आंसुओं का सैलाब न बह निकले।
लेकिन पंद्रह वर्ष पहले, रोहित बिना कुछ कहे उसकी जिंदगी से दूर चला गया था। इस कारण वह रोहित से सख्त नाराज़ थी। कितना अंतर लग रहा था पन्द्रह वर्ष पहले वाले और अब वाले रोहित में। कैसा हँसता खिलखिलाता रहता था रोहित। अब तो बहुत गंभीर हो गया है, जैसे बरसों से हँसना ही भूल गया हो।
रोहित भी सोनाक्षी को पहचान गया था।
वह भी अपनी ह्रदय में मची हलचल को अपने स्टाफ के सामने प्रकट नहीं करना चाहता था। वह स्वयं को सँभालते हुए बोला,'जी मैडम बताइये क्या हुआ?'
सोनाक्षी ने गुस्से से हज़ार का नोट टेबल पर रखा और बोली, "पिज़्ज़ा के मूल्य के बाद जो पैसे बचें अपने वेटर को टिप दे देना।'
सोनाक्षी यह कहकर रेस्तरां ज़े बाहर चली गई।
रोहित अपना सिर पकड़ कर बैठ गया। उफ़ सोनाक्षी! तुम्हारी टिप छोड़ने की अकड़ अभी भी नहीं गई।
रोहित को याद है आज भी वो बदनसीब दिन, जब उन दोनों की पाँच वर्ष लंबी ,प्रेम कहानी को विराम लग गया था।
ऐसे ही एक रेस्तरां में ,उस दिन सोनाक्षी को रोहित ने बड़े अरमानों के साथ निमंत्रित किया था। बस वह बता देना चाहता कि अब हमें यहाँ वहां सब से छुप कर मिलने की ज़रूरत नहीं ,उसकी नौकरी भी लग गई है और उसने अपने माता-पिता भाई- भाभी सबको सोनाक्षी के विषय में बता दिया है।
उसने कितने प्यार से सोनाक्षी का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा था,' बताओ कब आऊँ ,तुम्हारा हाथ तुम्हारे पितानी से माँगने?' और तब सोनाक्षी ने अपने पिता की नक़ल करते हुए पूछा था, 'बेटा महीने में कितना कमा लेते हो?'
रोहित ने भी इतराते हुए जवाब दिया था,'सात हजार।"
इस पर सोनाक्षी ने कहा,,'इतना तो मेरी बेटी महीने में रेस्तरां में वेटर को टिप छोड़ देती है।'
यह सुनते ही रोहित ने सोनाक्षी का हाथ झटक दिया था और तेज़ी से रेस्तरां से बाहर निकल आया था।
उसे दूर तक सोनाक्षी की आवाज़ सुनाई देती रही थी , ' रोहित मैं मज़ाक कर रही थी । वापिस आ जाओ रोहित ।"

लेकिन न जाने क्यों रोहित को ये मज़ाक अंदर तक चुभ गया था।
उसने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि अब वह तभी मुड़कर आएगा जब वह इस काबिल हो जाएगा,कि सोनाक्षी का खर्चा झेल सके।
वर्ष दर वर्ष बीतते रहे ,वह दिन रात मेहनत करता रहा लेकिन परिवार में एक के बाद एक समस्या खड़ी होती रही । बाबूजी का असमय देहांत, माँ की लंबी बीमारी और दो बहनों की शादी ने रोहित को तोड़ कर रख दिया था।

आज सोनाक्षी को सामने देखकर ,वह कुछ बोल ही नहीं पाया। जिसके लिए इतने दिनों खुद का कोलू के बैल की तरह पेलता रहा। उसके सामने अपराधी सा बन कर रह गया।

उधर सोनाक्षी बाहर निकल कर अपनी गाड़ी में बैठ गई थी। ओह ये किस्मत भी कैसे कैसे खेल खेलती है ,जिस शक्स को भूलाने में सोनाक्षी को इतने बरस लग गए थे , उसे क़िसम्त ने फिर उसके सामने लाकर खड़ा कर दिया।

फिर ताज़ा हो गए उसके ज़ख्म। याद आ रही थी उसे रोहित से दिल्ली यूनिवर्सिटी में हुई वो पहली मुलाक़ात ,जब वह बी ए प्रथम वर्ष की छात्रा थी और अपना रिज़ल्ट देखने कॉलेज गई थी।

बस से उतरते ही वो जम कर बारिश हुई कि वह बस स्टेण्ड पर ही खड़ी रह गई। तभी रोहित ने अपनी मोटर साइकिल वहाँ रोक कर ,पूछा था "रिज़ल्ट देखने आई हो ? आओ में कॉलेज में छोड़ दूँ। " रोहित ने अपना रेन कोट भी उतारकर सोनाक्षी को दे दिया था। उसी दिन सोनाक्षी को पता चला था कि रोहित भी उसी कॉलेज से बी कॉम कर रहा है..

कॉलेज में उतरकर सोनाक्षी ने पूछा ,"तुम्हें कैसे पता चला कि मैं इसी कॉलेज में हूँ ?" रोहित हॅंसते हुए बोला ,"अरे जब से कॉलेज मैगज़ीन में तुम्हारी कहानी " ओ बेख़बर" पढ़ी है ,तुम्हारा फैन हो गया हूँ। "

सोनाक्षी ने हँसते हुए कहा-- "चलो किसी को तो कहानी पसंद आई। "

इसपर रोहित बोला--"इस पर तुम्हें पूरा नॉवेल लिखना चाहिए। सिर्फ चार पेज में कैसे सिमट सकती है इतनी लंबी ज़िन्दगी ."

सोनाक्षी हॅंसते हुए कहा..जनाब !साहित्य में इतनी रुचि है, तो कॉमर्स जैसा बोरिंग सब्जेक्ट क्यों लिया। "

रोहित ने बिंदास जवाब दिया ,"तुम लिखती रहना, में पूरी ज़िंदगी तुम्हें पढता रहूँगा।'

बस रोहित की आँखों से आंखे मिलते ही सोनाक्षी शर्मा गई थी। कुछ पल की दोस्ती में ही दोनों के जैसे जन्म जन्मान्तर की रिश्ते जुड़ गए थे।

सोनाक्षी अतीत में इतनी खो गई थी, कि उसे अपनी कार के पीछे जुट गए ट्रैफिक का भी अहसास नहीं हुआ। जब एक हवलदार ने कार के शीशे को खटखटाया तब कही जाकर उसे होश आया।

दिल्ली रात की मदहोशी में चूर चूर थी ,लेकिन सोनाक्षी को रात भर नींद नहीं आई। सोनाक्षी पर अब जिम्मेदारियाँ बढ़ चुकी थी ,बूढ़े माँ बाप और भतीजा भतीजी। भाई और भाभी हवाई जहाज के एक हादसे का शिकार हो गए थे।

अगले सुबह से फिर दोनों की ज़िंदगी अपनी अपनी राह पर चल पड़ी। सोनाक्षी तो अपने प्यार को दिल के किसी कोने में दफ़न कर चुकी थी।

सोनाक्षी के साथ उस दिन दो बच्चों को देखकर, रोहित की भी सोनाक्षी को दुबारा पाने की उम्मीद तोड़ चुकी थी..

जनवरी की एक सुबह रोहित कार चलाता हुआ अपने ऑफ़िस जा रहा था। उसकी कार में एफ एम लगा हुआ था जिस पर उसने सुना , "प्रगति मैदान में चल रहे पुस्तक मेले में आज ग्यारह बजे हॉल नंबर बारह में ,लेखिका सोनाक्षी कॉल के उपन्यास 'ओ बेख़बर " का लोकार्पण है। "

रोहित ने कार को प्रगति मैदान की ओर मोड़ लिया। .हजारों पाठकों की भीड़ में वह भी शामिल हो गया। उसने भी ओ बेख़बर की एक प्रति खरीद ली। वह सोनाक्षी के हस्ताक्षर लेने के लिए जैसे ही उसके पास पहुँचा वह बोली , क्यों बार बार मुझे रुलाने चले आते हो ?"

रोहित कुछ न बोल पाया। उसने घर आकर उपन्यास देखा जिसकी भूमिका में लिखा था---इस उपन्यास की कहानी मेरी ज़िन्दगी के बहुत करीब है। रोहित ने पूरा उपन्यास पढ़ कर उस पर दिए गए मोबाइल नंबर पर सोनाक्षी को फ़ोन किया। सोनाक्षी ने फ़ोन उठाया तो रोहित ने सबसे पहले कहा। "प्लीज़ पूरी बात सुने बिना फोन मत काटना। तुम्हारे उपन्यास का नायक शायद बेवफा था. लेकिन मैं तो तुम्हें पाने के लिए तुम से दूर गया था। ताकि तुम्हारे लायक बन सकूँ। मेरी तो तक़दीर बेवफ़ा निकली। "

सोनाक्षी ने रुंधे गले से कहा -- "तुम सारा दोष तक़दीर पर नहीं डाल सकते कितनी आवाजें दी थी मैंने तुम्हें ?तुमने मुड़कर भी नहीं देखा। कितने फ़ोन किये ,कोई जवाब नहीं मिला।

रोहित बोला --"शायद वो मेरे प्यार की दीवानगी थी ,मैं तुम्हारे लिए हर ख़ुशी खरीदना चाहता था। सब कुछ तुम्हारे लिए कर रहा था और तुम्हें ही बता नहीं पाया। '

सोनाक्षी ने कहा-- खैर अब तो बहुत देर हो चुकी है,बेहतर होगा हम दोनों अपने -अपने परिवार की और ध्यान दें।

रोहित ने कहा--" मेरे साथ तो बस माँ है बाकी भाई-बहिन तो विदेश में बस गए। तुम्हारे तो दो प्यारे -प्यारे बच्चे है। अपने पतिदेव के विषय में तो तुमने कभी बताया नहीं।"

सोनाक्षी इस पर बोली, "ओ हेल्लो ! वो मेरे बच्चे नहीं। मेरे भतीजा व् भतीजी हैं। भाई और भाभी पाँच वर्ष पहले हुए विमान हादसे का शिकार हो गए।

इस पर रोहित ने खेद प्रकट किया और बोला , "तुम एक मौका दो में तुम्हारे सारे परिवार की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए तैयार हूँ। "

सोनाक्षी बोली .नहीं अब नहीं।

रोहित बोला , "अब नहीं तो फिर कभी नहीं। अच्छा बताओ कब आऊं ,तुम्हारे पापा से तुम्हारा हाथ माँगने।"

सोनाक्षी बोली--- पापा से मिलने तो कभी भी आ जाना। पंद्रह साल पहले जब तुमने ये सवाल किया था, तब मैंने अपने पापा की बहुत खराब एक्टिंग की थी ,दरअसल मेरे पापा तो कहते हैं ,"बेटा व्यक्ति की परख उसके गुणों से होती है ,उसके पैसे से नहीं। "

लेकिन एक प्रॉब्लम है ?"

रोहित ने झुंझलाते हुए कहा--"अब क्या हुआ ?"

सोनाक्षी बोली --"उनकी बेटी को पटाना इतना आसान काम नहीं।"

रोहित हँसते हुए बोला ---"उस नक चढ़ी से कौन मिलने आ रहा है ?"

सोनाक्षी बोली --"इस अकड़ू से भी कौन मिलना चाहता है ?"

फिर दोनों के बीच शुरू हो गई वही कॉलेज वाली नोक- झोंक। दोनों के बीच बातों का सैलाब फूट पड़ा जो बरसों से दोनों के भीतर दबा था। घंटे पर घंटे बीत गए. दोनों खो गए, एक दूजे में दुनिया से बेख़बर।