अपना घर Madhu Chhabra द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • आई कैन सी यू - 39

    अब तक हम ने पढ़ा की सुहागरात को कमेला तो नही आई थी लेकिन जब...

  • आखेट महल - 4

    चारगौरांबर को आज तीसरा दिन था इसी तरह से भटकते हुए। वह रात क...

  • जंगल - भाग 8

                      अंजली कभी माधुरी, लिखने मे गलती माफ़ होंगी,...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 51

    अब आगे मैं यहां पर किसी का वेट कर रहा हूं तुम्हें पता है ना...

  • तेरे इश्क मे..

    एक शादीशुदा लड़की नमिता के जीवन में उसने कभी सोचा भी नहीं था...

श्रेणी
शेयर करे

अपना घर

"अपना घर"-----------------

आज माधुरी घर लौटने वाली थी । शादी के छह महीने बाद वो ससुराल से मायके आ रही थी । माँ और भाभी स्वागत की तैयारी में लगी हुई थी और पापा जी भैया के साथ बाहर जाकर माधुरी की पसंद की चीज़े इकठ्ठा कर रहे थे ।

अचानक शोर मचाती , खिलखिलाती हुई चुलबुली सी माधुरी ने छनकती पायल और खनखनाती चूड़ियों की आवाज़ के साथ दरवाज़े पर कदम रखा । तभी भाभी ने उसे आवाज़ देकर दरवाज़े पर रोक दिया । "रुक जा मधु , वही रुक जा..पहले मुझे आरती का थाल तो ले आने दे"। दोनों नन्द भाभी की खूब जमती थी । भाभी आरती की थाल ले आई ...आरती उतारी । तभी प्रीती अपने दीदी और जीजू से मिलने दौड़ती हुई बाहर आई । भाभी आरती उतारने के बाद दोनों को घर के अंदर ले आई । बड़े ज़ोर शोर से सब बेटी की खातिरदारी में लगे हुए थे ।

माधुरी को थोड़ा अजीब लग रहा था, वो सोच रही थी कि मेरा अपना घर है मेरा अपना परिवार फिर भी मेरे साथ मेहमानो जैसा व्यवहार क्यों कर रहे है सब ? और ये मेरी प्रीती, इसे क्या हुआ ? जो बात बात पर मुझसे बहस करती थी, मुझसे मेरी सारी चीज़े ये कह कर ले जाती थी कि दीदी तुम्हारी ज्यादा सुंदर है, आज वही बार- बार पूछ रही थी- दीदी आपको कुछ चाहिए कुछ लाऊँ । अरे! जाने क्या हो गया है सबको ? मेहमानवाजी करनी ही है तो अपने दामाद की करो न सब मेरी क्यों? तभी मां ने आवाज़ दी "मधु बेटा दामाद जी को लेकर यहाँ आ जाओ खाना लगा दिया है ।" सारी चीज़े माधुरी और उसके पति के पसंद की बनी थी ये देख वो बहुत खुश थी । खूब हँसी-मज़ाक के साथ सबने खाना खाया ।

तभी माधुरी ने प्रशांत से कहा," चलो न प्रशांत मै आपको अपना कमरा दिखाती हूँ ।" माधुरी ने अपना कमरा बहुत चाव से सजाया हुआ था । उसकी पसंद का ऑफ वाइट और बरगेन्डी कलर उसके कमरे को सुंदर बना रहे थे । कमरे के एक ओर उसकी अलमारी थी वही दूसरी ओर स्टडी टेबल जिस पर अक्सर बैठकर वो घंटो कंप्यूटर से चिपकी रहती थी । किसी को अपने आस पास फटकने भी नही देती थी । कमरे के बीचोबीच उसका बेड था जो हमेशा साफ़ सुथरा और चमकदार दिखता था । कमरे में उसे सादगी पसंद थी इसलिए उसने कम तस्वीरें लगा रखी थी । बस एक उसकी तस्वीर थी जो इसकी प्यारी सहेली अलका के साथ खींची थी स्कूल के समय में वो पास रखे मेज पर सजा रखी थी, और दीवार पर अपने भईया के शादी में सपरिवार खींची एक तस्वीर लगा रखी थी । इतनी सी कहानी थी माधुरी के कमरे की ।

बड़ा प्यार था उसे अपने कमरे से और खुद ही सारा ध्यान रखती थी । हाथ पकड़ कर खींचती हुई प्रशांत को अपने कमरे के पास ले गई । भाभी और मां बुत बनी कभी कमरे की ओर देखती तो कभी एक दूसरे की ओर। जैसे ही माधुरी ने कमरे का दरवाज़ा खोला तो उसकी आँखे कमरे को चारो और देखती रह गई । प्रशांत कमरे को देखकर अपनी हँसी नही रोक पा रहे थे । कमरे की दीवारे नीले रंग की थी । उस पर टी.वी. कार्टून बने हुए थे । कही इंद्रधुनष तो कही अमन (चिंटू) की खूब सारी तस्वीरें लगी हुई थी । उसकी अलमारी बहुत सारे चित्रो से भरी हुई थी । बेड पर डोरमोने की चादर बिछी हुई थी । स्टडी टेबल पर बहुत सारी किताबें बिखरी हुई थीं। फर्श पर खिलौनों का ढेर लगा हुआ था ।

एक एक चीज़ पर जाती हुई नज़र माधुरी का गुस्सा बढ़ा रही थी उस पर से प्रशांत की हँसी रुकने का नाम नही ले रही थी । "अच्छा तो ये है तुम्हारा कमरा, ऐसे रहती थी तुम "अपने घर" में । प्रशांत का 'अपना घर' शब्द ताने की तरह उसके दिल पर चोट करता था । अपना घर तो वो छोड़ के आई थी प्रशांत के घर, उसको अपना बनाने, उसके परिवार को अपनाने । इन छह माह में उसने कोई कसर न छोड़ी थी उस परिवार और उस घर को अपना बनाने में ।पर न जाने कहाँ कमी रह गयी थी, जो उसे हर बार यही सुनना पड़ता था " माधुरी ये तुम्हारा मायका नही यहाँ तुम्हें हमारे हिसाब से ही रहना पड़ेगा, अपने घर मे तुमने चाहे जो किया हो पर ये सब यहां नही चलेगा । " तीर की तरह दिल को भेद कर गहरा ज़ख़्म दे जाता था "अपने घर" का ये ताना और तो और प्रशांत भी अक्सर हँसी मज़ाक में कह जाता था कि मेरा घर है और मेरे हिसाब से चलना पड़ेगा ।

तब एक ख्याल आता था कि जब प्रशांत को अपने साथ अपने घर ले जाऊँगी तब दिखाऊँगी कि कितने शान से रहती थी मैं अपने घर में पर आज ये कमरा ऐसा कैसे हो गया था माधुरी समझ नही पा रही थी? तभी माधुरी ज़ोर से चिल्लाई -" मां...मां ये क्या हाल बना रखा है आप लोगो ने मेरे कमरे का ? बोलो मां ? "मधु बेटा... मेरी बात सुन, तुम तो जानती हो न तुम्हारी भाभी को दूसरा बच्चा होने वाला है और चिंटू भी बड़ा हो गया था और उसके लिए दूसरा कमरा जरूरी हो गया था । तुम्हारे जाने के बाद मैंने ही तुम्हारे भाभी भईया से कहा ये कमरा चिंटू को दे दो ।" माधुरी की आवाज़ जैसे गले में ही अटक गयी थी । वो कुछ बोलने लायक नही थी ।

इतने में चाय और पकौड़े बना कर भाभी ने आवाज़ लगाई साथ ही बर्गेर और मैकरॉनी भी बना लायी माधुरी का ख़राब मूड ठीक करने के लिए, माधुरी सिर्फ चुपचाप यही सोचे जा रही थी क्या ये मेरा घर नही रहा? उससे बिना पूछे कोई उसके कमरे की चादर तक नही बदलता था और आज उसका पूरा कमरा किसी और को दे दिया । चाय पीकर प्रशांत जाने को हुआ तो उदास मन से माधुरी ने उसे विदा किया और जल्दी लेने आने का आग्रह भी किया, लेकिन जाते जाते प्रशांत ने माधुरी को यह कह कर " कुछ दिन तो चैन से रह लो तुम अपने घर, और मै अपने घर।" ताना मारने लगा । इस पर परिवार के सभी सदस्य ठहाका मारकर हँसने लगे और माधुरी खीझ सी गयी । प्रशांत के चले जाने के बाद माधुरी सोफे पर आकर चुपचाप सी बैठ गयी । भरी आँखों से एकटक अपने कमरे की ओर देखती जा रही थी ।

माँ और भाभी कमरे और किचन का सामान समेटने में लगी थी । प्रीति अपनी क्लास के लिए जा चुकी थी और चिंटू अपने कमरे में खेलने में लगा हुआ था । पापा और भैया टी.वी. पर समाचार देखते हुए बातें कर रहे थे । माधुरी खो गयी उन दिनों की याद में जब प्रशांत से रिश्ता तय होने के बाद माँ ने समझाया था," मधु...बेटा अब तुम बड़ी हो गयी हो...अपने घर जाओगी.। घर को कैसे संभालते हैं...परिवार का ध्यान कैसे रखते है ये सब सीखना चाहिए तुम्हें..।""एक मिनट माँ...पहले ये बताओ कि 'अपने घर' से तुम्हारा क्या मतलब है ?" माधुरी बिलकुल बिफर पड़ी मानो वो अपने बाते कहने का इंतज़ार कर रही थी "क्या ये मेरा घर नही? यहाँ मैंने जन्म लिया, पहला शब्द मां बोलना सीखा और पापा की ऊँगली पकड़ पहला कदम रखना सीखा । मेरी शिक्षा, मेरे संस्कार, मेरा बचपन, मेरे मां पापा का स्नेह लाड, भाई- बहनो का लड़ना- झगड़ना, मानना- रूठना, बैठना उठना, दिन रात ,सखी सहेलियां ,खेल खिलौने ...सब कुछ मेरा यही से जुड़ा है..। "इस घर के कोने कोने में मैं बसी हूँ तो फिर ये मेरा अपना घर क्यों नही है ?"
माँ की आँख माधुरी की बातें सुन भर आई थीं लेकिन वो क्या कहती...।

माँ ने माधुरी को समझाया-"बेटी दुनिया की यही रीत है...जहाँ बेटियां पैदा होती है एक दिन उसी घर को छोड़कर उन्हें जाना होता है । दुनिया और समाज के बनाये रीति-रिवाज़ों को हम बदल नही सकते ।" मां की बात पर खीझते हुए माधुरी खड़ी हुई और कमरे से बाहर निकल गई । फिर सोफे पर बैठे बैठे उसे वो दिन याद आ गया जब बारात के आने से पहले दुल्हन बनी हुई माधुरी घर पर माँ और पापा के गले लग खूब रोइ थी । तभी अचानक प्रीती ने वहां आकर सबका मूड बदलने के लिए कहा था-" दीदी मेकअप ख़राब हो रहा है ।"और बहाने से मां पापा को वहाँ से भेज कर माधुरी से कहने लगी, " दीदी आखिरी बार जी भर के सारे घर को देख लो, कल से ये तुम्हारे लिए पराया हो जायेगा न ।” ये कहकर प्रीती माधुरी को अकेला छोड़ कमरे से बाहर निकल गई थी और उसके जाने के बाद माधुरी कमरे के एक-एक कोने को ध्यान से देखने लगी.. कभी दीवार को देखती कभी छत को कभी अपने बिस्तर को और कभी फर्नीचर को और मन ही मन सोच रही थी कि मै तो घर के एक -एक कोने में बसी हूँ फिर ये घर पराया कैसे हो सकता हैं ।

पर आज जब अपने कमरे को किसी और के पास देखा तो वो उदास होकर सोचने लगी क्या अब ये सच में मेरा घर नही रहा ? भाभी काम करते करते एक नज़र माधुरी पर डालती और उसके मन की स्थिति भांपने की कोशिश करती लेकिन माधुरी को कह नही पा रही थी । कि न जाने वो क्या सोच रही है और मेरे कुछ कहने का कोई गलत मतलब न समझ ले ।

रात होने पर मां ने कहा- "माधुरी चिंटू के साथ उसी के कमरे में सो जाना"। चिंटू का कमरा सुनते ही माधुरी के चेहरे पर नाराज़गी भरी मुस्कान आ गई । चुपचाप अपना सामन कमरे में रखा और बिस्तर पर लेट गई और चिंटू बुआ से ढेर सारी बाते किये जा रहा था..लेकिन माधुरी तो अब भी 'अपने घर' की परिभाषा में खोई हुई थी ।

सुबह जल्दी उठकर माधुरी नहाकर तैयार हो गई । मां ने कहा-" माधुरी इतनी जल्दी तैयार हो गई कही जाना है क्या तुझे ?" माधुरी ने कहा-"हां मां, अलका से मिलने जाना है ।" मां बोली ठीक है, लेकिन नाश्ता करके जाना तेरी भाभी ने तेरी पसंद का नाश्ता बनाया है । माधुरी ख़ामोशी से नाश्ता किये जा रही थी, तभी भाभी ने टोका और पूछा-" क्या बात है मधु... ससुराल में सब ठीक है न? किसी ने कुछ कहा तो नही? प्रशांत जी से तो कोई बात न हुई तुम्हारी? बोलो न बोलती क्यों नही..? "

माधुरी बोली- "नही भाभी सब ठीक है " कहती हुई नाश्ते के मेज से उठी, दुपट्टा संभाला और पर्स उठाकर ये बोलते हुए घर से निकल गई कि अल्का से मिल के आती हूँ ।
घर से निकली ऑटो में बैठी और पंद्रह मिनट में अल्का के घर पहुंच गई । छह महीने बाद अल्का माधुरी को देख हैरान हो गई थी और ख़ुशी के मारे उसे कुछ सूझ नही रहा था क्या करे । दोनों सहेलिया एक समय घंटो बाते करती और समय का पता ही नही चलता था । कभी किसी एक की परेशानी को आपस में भांप लेती थी और बहुत देर तक उसपर चर्चा करती थी । कोई हल निकले या न निकले पर आपस में एक दूसरे को समझा बुझाकर एक दूसरे को शांत कर लेती थी ।

माधुरी से कुछ देर बातें करने के बाद ससुराल का हालचाल सुनने के बाद अल्का ने माधुरी से पूछा-" चल बता मधु, तू आज क्यों परेशान लग रही है?" माधुरी बोली-" तुझे फिर पता चल गया न कि मैं परेशान हूँ । " और मुस्कुरा कर उसने अपने मन की सारी उलझन अल्का से कह डाली । और बोली- "अल्का अब बता मेरा अपना घर कौन सा है जहाँ जन्म लिया या जहाँ डोली में बैठकर पहुंची थी।मां कहती है शादी के बाद पति का घर ही तुम्हारा है और पति कहता है कि यही सब करना है तो अपने घर वापिस लौट जाओ । मतलब उसकी नज़रो में मेरी मां का घर ही मेरा घर है, पति का घर नही । बोलो अल्का आखिर कौन सा होता है "अपना घर" । अल्का ने पूरी बात सुनी और हमेशा कि तरह दोनों ने इस विषय पर देर तक चर्चा की । चूँकि अल्का को घर गृहस्थी और शादी शुदा जीवन का कोई अनुभव अब तक नही था और माधुरी की तो शादीशुदा ज़िन्दगी अभी शुरू ही हुई थी इसलिए उनके पास कोई सही जवाब नही था । कोमल मन, अल्हड उम्र । आखिरकार दोनों एक नकरात्मक नतीजे पर पहुंची, कि एक लड़की के लिए उसका अपना घर कोई भी नही होता । यही सच्चाई है । शादी से पहले घर होता भी है लेकिन शादी के बाद वो पराया घर हो जाता है और जो पराया घर अपना बनता वहां हर लड़की पराई होती इसलिए लड़की का अपना कोई घर नही होता ।"

बुझे मन से माधुरी ने अल्का के घर से विदा ली और घर वापिस आ गई । घर आते ही वो सीधे अपने कमरे में रुआँसा मन लिए चली गई । तभी भाभी ने देख लिया और उसे आवाज़ लगाई "मधु, तुम आ गई, हाथ मुँह धोकर बाहर आ जाओ नाश्ता और चाय तैयार है" । तभी माधुरी ने कहा - "भाभी आप लोग करिये अभी मेरा मन नही मैे बाद में कर लूंगी ।" भाभी समझ चुकी थी कि माधुरी के मन में कुछ तो चल रहा है जो वो परेशान लग रही है । भाभी चाय नाश्ता ले माधुरी के पास गई और रोती हुई माधुरी को प्यार से सहलाया और कहा- "चल उठ अब, कल शाम से देख रही हूँ तुझे बता मुझे क्यों इतनी परेशान है" । तभी माधुरी ने कहा-"कुछ नही भाभी, आप जाइए ।

भाभी समझदार थी बोली,"देख मधु, ज़िन्दगी में बहुत उतार-चढ़ाव आते है..हम डगमगा जाते है, और कभी कभी हम गलत फैसला ले लेते है जो पूरे जीवन पर भारी पड जाते है, हमारे रिश्तो पर भारी पड़ जाते है । पगली, तुमने आज तक मुझसे कुछ नही छिपाया तो क्या, शादी के बाद हमारा रिश्ता बदल गया?" माधुरी तुरंत उठ कर बैठ गई और अपने आंसुओं को पोंछते हुए बोली, "भाभी आपका घर कौन सा है?" भाभी समझ गई कि कमरा बदल जाने से मधु परेशान है । भाभी ने माधुरी को बड़े प्यार से समझाया कि," मेरे दो घर है, और मै कितनी भाग्यशाली हूँ एक घर वो जहाँ मैंने जन्म लिया, मेरा बचपन बीता, मेरे मां-पापा और मेरे अपने और अपने जीवन का एक पड़ाव जीया आज भी जब वहां जाती हूँ तो अपने बीते हुए दिन फिर से जी लेती हूँ और दूसरा ये घर मेरा ससुराल जहाँ तुम्हारे भईया मुझे शादी कर के लाये । मैंने इस घर को अपना घर समझा ।अपने सास ससुर में माँ पापा को और नन्द देवर में अपने भाई बहनों को ढून्ढ लिया ।

जितना लाड प्यार तुम सबसे किया उससे दुगना तुम सबसे पाया ।आज भी जब पापा जी या मां जी ये कहती है कि सुनैना, तुम हमारी सबसे बड़ी बेटी हो तुम अपने मां पापा के संस्कारो का पूरा मान रखते हुए सारे कर्तव्य निभाती हो तो सच कहूँ मै गर्व से भर जाती हूँ । मेरे ससुराल में मेरे मायके की इज़्ज़त को बनाये रखना मेरे हाथ में है जो मैंने हमेशा से ही अपने सेवा भाव और समर्पण से किया है तभी तुम सबके घर का हिस्सा बन पायी हूँ ।" इसी तरह अपने ससुराल का मान-सम्मान अपने मायके में बनाये रखना भी मेरा धर्म है ।

जब मेरी मां यहाँ आती है और वो सबसे कहती है कि हमारी सुनैना तो पूरी तरह आपके रंग में रंग गई है, तब भी गर्व का अहसास होता कि यहाँ मेरी माँ ने अपनी बेटी होने का विश्वास दिया और वहां मेरी सास ने मुझे अपनी बेटी मान लिया और वो सबसे यही कहती कि ये सुनैना का घर है, और जो भी करेगी यही करेगी तो जानती हो मुझमे दोहरी शक्ति आ जाती है कि मै दो घर की बेटी हूँ । और तुम जानती हो, शादी के एकदम बाद नही मिलता न ये सब , इसके लिए समय लगता है, सबसे पहले आदर -सत्कार, स्नेह प्रेम, अपनापन और सबसे महत्वपूर्ण समर्पण का भाव और सहनशीलता का भाव एक नारी में होना कितना आवश्यक है। तभी हम दो घरों की मर्यादा निभा पाएंगे । दो घरों की बेटी बन पाएंगे । और दोनों घरों को अपना घर कह पाएंगे ।सुनो अब, समय दो अपने आप को और अपने नए परिवार को ।

वो तुम्हे दिल से अपना लें इसके लिए ये सब भाव तुम्हे अपने भीतर लाने हैं । अपना आदर सत्कार, प्रेमभाव, उनकी अपेक्षाएं, उनके परिवार को अपना बनाना तभी तुम वहां अपनी जगह बना पाओगी । अपने मायके में अपने ससुराल का और अपने ससुराल में अपने मायके का मान सम्मान बनाये रखना है । तभी तुम दो घरों की बेटी कहलाओगी । ये घर तो जन्म से तुम्हारा है और रहेगा पर वो नया घर है और उसे अपना घर तुम्हे स्वयं बनाना है।समझी या नहीं...।" यह कहकर भाभी मुस्कुरा दी ।

आज माधुरी को जीवन का गूढ़मंत्र मिल चूका था जिसे वो पाकर खुश थी और वो समझ चुकी थी कि किस तरह उसकी भाभी ने इस घर को 'अपना घर' बनाया था । वही करना है मुझे भी । ताकि एक दिन प्रशांत भी मुझसे यही कहे कि माधुरी ये घर तो तुम्हारा है, जो चाहे सो करो । माधुरी अब खुश थी उसकी सारी उलझन दूर हो चुकी थी और वो एक बेटी के अस्तित्व से निकल कर अपने नारी होने का लक्ष्य पा जाने के लिए खुद को तैयार कर चुकी थी एक नन्ही सोच और अपनी मुस्कराहट के साथ चहकने लगी थी...

फिर से रंग भर दे मुझमे ए- ज़िन्दगी
कि अपने पिया के घर को अपना बनाने का जी चाहता है...!!------------------

महक