टारगेट Nirmal Gupta द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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टारगेट

अपने अपने जॉब के वजह दे अलग अलग रह रहे दो दिलों की धड़कन की अपूर्व कहानी

टारगेट

माह का आज आखिरी दिन है । सारे मार्केट टारगेट पूरे हो चुके हैं । बॉस के क्लीन शेव्ड चेहरे पर टिके गालों पर दो अर्धचंद्राकार रेखाएं उमग आई हैं ।रीना के माथे पर दिन भर बनी रहने वाली दरारें गायब हैं ।वह सुकून अनुभव करना चाह रही है ।उसकी नौकरी एक और माह के लिए लगभग पक्की हो गई लग रही है ।मार्केटिंग से जुड़े लोगों की जिंदगी इसी तरह टारगेट अचीव कर पाने - न कर पाने की जद्दोजेहद में गुजरती है ।

कॉफी के दो कप बॉस की मेज पर आ चुके हैं और दो प्लेटों में कुछ आलू के चिप्स और सेंडविच ।वह उससे पूछ रहा है ----नहीं नहीं पूछ नहीं बस कह रहा है –सो ।वह समझ नहीं पा रही कि इस सो के जवाब में क्या कहे ।

सो ? बॉस ने फिर कहा ।अबकी बार यह सवाल की शक्ल में है ।

वी गाट इट ------अल्टीमेटली ।उसने कहा ।

या ------अल्टीमेटली । बॉस का अंदाज़ बेहद शातिराना है ।

इसके बाद उसने कॉफी का प्याला उठा लिया ।रीना ने भी कप उठाया और तुरंत सिप किया ।उसे उम्मीद है कि कैफीन अपना काम करेगी और देह में ठहरी थकन को घटा देगी ।

बॉस ने कॉफी का प्याला बिना सिप किये फिर मेज पर रख दिया और टिशु पेपर में रैप सेंडविच को उठा कर कुतरने लगा ।

हैव इट । बॉस ने प्लेट रीना की ओर सरकाते हुए कहा ।उसकी आवाज में हुक्म जैसा कुछ है ।

उसने एक सैंडविच उठा लिया ।उसने उसे कोने से कुतरना चाहा पर मुलायम सेंडविच का बड़ा बाईट मुहँ में चला गया ।

इन बॉस लोगों को सॉफ्ट चीजें ही क्यों भाती हैं ? उसने यह बात कही नहीं ।यह उसके जेहन में आई तो मुस्कान की एक पतली लकीर उसके होठों पर आ गई ।बॉस ने उसकी ओर देखा तो उसने हडबडा कर मुस्कान की लकीर को होंठों पर लगी डार्क शेड की लिपग्लॉस के पीछे छुपा दिया ।

वह घर लौट कर अपने रूममेट से आज फिर जरूर पूछेगी –यार बॉस लोग सॉफ्ट माल ही क्यों खाते हैं ?

उनके दांत इस लायक होते ही नहीं कि सख्त चीजों को चबा सकें ।उसे पता है कि रूममेट यही कहेगी ।

वह चुपचाप कॉफी सिप करती रही ।वह सोचती रही कि काश कुरकुरी आलू की भुजिया होती तो वह सेंडविच की परत खोलती उस पर भुजिया डालती ।ऊपर से नीबू के रस की कुछ बूँद डालती ।यदि सम्भव होता तो थोड़ी ब्लैक पेपर छिडक लेती ।फिर चटखारे लेकर उसका मजा लेती ।।।।सीसी ।।सीसी करती हुई ।

उसके मुख से शायद सीसी टाइप कोई आवाज़ बाहर आई ।बॉस ने उसे घूरा तो उसने उस मुस्कान को वापस समेटा जो लिपस्टिक की ओट से बाहर आने ही वाली थी ।

सो ? बॉस ने उससे कहा ।

उसने सवालिया निशान अपनी आँखों पर टिकाते हुए अपनी कलाई में बंधी घड़ी को निहारा ।उसका अनुमान था कि बॉस के चैम्बर के बाहर अँधेरा घिरना शुरू हो चुका होगा ।

बॉस ने कहा –वैल डन रीना ।कीप इट अप ।

वह जानती थी कि बॉस आज भी वो नहीं कह पाया जो वह कहना चाह रहा था ।

थैंक्यू सर ।उसने कहा और वह मुस्कुराते हुए बाहर आ गई ।

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आफिस टाइम ओवर हो चुका था ।वह अपनी मेज के करीब आई ।उसने अपना कम्प्युटर ऑफ किया ।पर्स उठाया ।उसमें से छोटा सा मिरर निकाल कर खुद को निहारा ।फिर वाटर कूलर के पास जाकर एक घूंट पानी पिया ।सिर उठा कर आसमान को देखना चाहा तो उसे पता लगा कि जिस आकाश को वह ढूंढ रही है वहाँ तो फॉल्स रूफिंग है ।आसमान तो आफिस से बाहर है ।लेकिन वह जब तक बाहर निकल पाती है तब अमूमन अँधेरा उसकी थाह नहीं पाने देता ।वीकएंड पर ही वह अपने हिस्से के आसमान को जी भर के देख पाती है ।

वह तेज कदमों से आफिस से बाहर निकलने लगी तो उसे लग रहा था कि बॉस की एक जोड़ी भूरी आँखें उसका पीछा कर रही हैं ।

सो ? उसने अपने से पूछा ।इसके जवाब में चौड़ी सी मुस्कान उसके होठों पर उभरी ।इस बार उसे उभर कर होंठों पर थिरकने दिया ।टारगेट पूरा हो गया है।उसके पास कम से कम आज तो मुस्कराने की मुकम्मल वजह है ।

पर्स में रखा फोन थरथराया ।वह समझ गई कि शाम के साथ बज गए हैं ।उसने हाथ में लिया तो उसके स्क्रीन पर कोलकाता लिखा दिख रहा है और प्रोफाइल फोटो के तौर पर विक्टोरिया मेमोरियल चमक रहा है ।यह अभिजीत है ।उसने कहा –नमस्कार कोलकाता ।दिस इज रीना रिपोर्टिंग फ्राम एनडी ।

सो ….यू अचीव्ड युअर टारगेट ।उधर से आवाज़ आई ।

तुमने कैसे जाना ? उसने पूछा ।

-तुम्हारी आवाज में कामयाबी का खरगोश फुदकता दिखा ।

-दिखा या सुनाई दिया ?

-तुम्हारी आवाज़ मुझे दिख जाती है ।

-पर मैं तो नहीं देख पा रही तुम्हारा कहा ।

-अंडर अचिवर्स को भी कोई देखता है भला ? अभिजीत की आवाज़ में उदासी है ।

-क्या हुआ ।।।।क्या हुआ ।।उसका सवाल अनुगूंज करने लगा ।

-नाइंटी परसेंट ही अचीव कर पाया ।

-अब ? सवाल में आशंका है ।

-अब क्या ? बॉस ने कह दिया है कुछ करो वरना मुझसे मत कहना ।

ओह । वह बुझ गई ।

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अभिजीत उसके बचपन का दोस्त है ।दोनों लगभग एक जैसे हालातों में पले बढ़े ।एक बि -स्कूल में पढ़ कर मैनेजमेंट में डिग्री ली ।साथ साथ खूब घूमे फिरे।लड़े झगड़े और फुसफुसाते हुए देर रात गए तक बातें की ।सपनों की बातें ।खूब पैसा कमाने की बातें ।देश दुनिया की बातें ।एक बार जब यह लगा कि उनके बीच प्यार है तो उसे मानने और कहने में देर न की ।फिर कैम्पस सलेक्शन के जरिये नौकरी मिली तो दोनों अलग अलग हो गए ।अभिजीत कोलकाता से उसे हर छोटी बड़ी खुशी पर सौन्देस की मौखिक सौगात भेजने लगा और रीना दैहिक स्पर्श को शाब्दिक लिबास में भेजने की कोशिश करती रही ।

दोनों अपनी अपनी नौकरी में अपने लिए स्थाई मुकाम खोजने की पुरजोर मशक्कत करते रहे ।रीना महीने दर महीने अपने टारगेट को प्राप्त करती रही।वह पूरी ताकत झोंक देने के बावजूद अपने लक्ष्य के कभी करीब तो कभी दूर होता रहा ।बाज़ार और बॉस उसे लगातार झटके पर झटके देते रहे ।

उन दोनों को यकीन है कि वे एक दूसरे के लिए बने हैं ।लेकिन अभिजीत को लगता कि वह करियर की दौड़ में रीना से पिछड़ता जा रहा है ।

-और बताओ तुम्हारे बॉस ने क्या कहा तुमसे ? लगभग तीन घंटे के अंतराल के बाद कोलकाता का फोन आया तो उसने बातचीत का सिरा वहीँ से पकड़ा जब ‘ओह’ के साथ फोन डिस्कनेक्ट हुआ था ।

-मेरे बॉस ने कहा ।।।सो ?

-मतलब ?

-कहा तो इतना ही ।और हाँ कॉफी और सैंडविच ऑफर किये ।और हाँ ---यह भी कहा वैलडन कीप इट अप ।ये साले बॉस -----स्कूली भाषा से ही चिपके रहते हैं ।यह कह कर उसने बॉस के लिए मोटी सी गाली दी और ठट्ठा कर हंस दी ।

दूसरी ओर से कुछ नहीं कहा गया लेकिन उसे अभिषेक की साँस की आवाज़ साफ सुनाई दी ।

-यार इन बॉस लोगों के सैंडविच उनकी ही तरह कितने पिलपिले होते हैं ।नहीं ? उसने वातावरण को हल्का करना चाहा ।

-पिलपिले नहीं सॉफ्ट ।इनको हमेशा सॉफ्ट टारगेट मिल ही जाते हैं उसका स्वर सपाट है ।

-साफ्ट टारगेट ? हू इज़ साफ्ट टारगेट ? मी ? वह तल्ख हो उठी ।

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रीना उस रात ठीक से सो नहीं पाई ।वह सोचती रही कि अभिजीत ने उसे साफ्ट टारगेट क्यों कहा ।वह कोई ऐसी वैसी लड़की नहीं ।उसे यह टैग किसी हालत में मंजूर नहीं ।पर वह जितना अधिक सोचती उसे लगता कि वह जो कह रहा था वह भले ही पूरा सच न हो पर कोरा झूठ भी तो नहीं है ।सच के आसपास जैसा कुछ है ।उसके मन में रातों रात नुकीले सवालों के कैक्टस उग आये ।

यह सही है कि उसे सॉफ्टनैस कतई पसंद नहीं ।उसे तो पुरलुत्फ जिंदगी के लिए तेज़ तीखा कुरकुरा स्वाद ही भाता है ।लेकिन जो हालात हैं उसकी परसेनिलिटी को धीरे धीरे सॉफ्ट और माइल्ड बनती जा रही है ।

-यू हैव ए शाइनिंग फ्यूचर अहेड ।एक बार बॉस नें मार्केटिंग एक्जीक्यूटिवज़ की मीटिंग में सबके सामने कहा था ।उसने बेहद सधी हुई शब्दावली में वाक्य दर वाक्य जो कहा था उसका सार यही था कि अपनी कम्युनिकेशन स्किल और फैमिनिन चार्म का सही और भरपूर इस्तेमाल करो और आगे बढ़ जाओ।और आगे बढ़ना है तो बाज़ार को अपना साफ्ट टारगेट बना लो वरना उसके साफ्ट टॉय बन जाओ । चॉईस इज युअर्स ।

वह सोचती रही ,सोचती ही गई ,समय बीतता रहा ।एक दिन शाम को फोन थरथरया ।उसने देखा फोन पर कोलकाता है और नेपथ्य में वही विक्टोरिया मेमोरिल का अविचल चित्र ।उसने फोन ऑन किया और कहा –मुझे तेरे अलावा किसी की सॉफ्ट टारगेट बनना मंजूर नहीं ।मैं तेरे पास आ रही हूँ ।हमेशा साथ रहने के लिए ।

-हैंग ऑन ।हैंग ऑन ।पहले मेरी सुनो । वह कह रहा है ।लिसिन टू मी ।मुझे यह पिलपिली भावुकता मंजूर नहीं ।मुझे अड़ियल रीना पसंद है ।उसका लड़ना झगड़ना स्वीकार है ।लेकिन उसकी हताशा नहीं ।नहीं रीना नहीं ।

-मेरी सुन अभिजीत आज सिर्फ मेरी सुन ।मैंने जिंदगी में आज तक सारे हार्ड टारगेट अचीव किये हैं ।मैं सॉफ्ट टारगेट न कभी किसी के लिए थी ,न बनूंगी ।अभिजीत तुम मेरा टारगेट नहीं मकसद हो । उसका स्वर भीगा हुआ है ।

-मैं आ रही हूँ ।तुम सौन्देस का इंतजाम करो ।मैं आ रही हूँ ।एनडी के दिल से निकली अनुगूंज को कोलकाता साफ़ साफ़ सुन पा रहा है ।

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