पुरस्कार का मिलना या न मिलना Nirmal Gupta द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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पुरस्कार का मिलना या न मिलना

पुरस्कार का मिलना या न मिलना

मुझे पुरस्कार कभी नहीं मिला ।चूंकि वह मिला नहीं इसलिए मुझसे कभी किसी चैनल वाले ने पूछा नहीं कि पुरस्कृत होकर आप कैसा महसूस कर रहे हैं ।हर मौके पर पूछने के लिए उनके पास इसी टाइप के कुछ शाश्वत सवाल होते है। महाभारत काल में भी यदि वह होते तो संजय से जरूर पूछते कि धृतराष्ट्र को युद्ध की रनिंग कमेंट्री सुनाते समय उसे कैसा महसूस हो रहा है। चैनलों का प्रादुर्भाव तब हुआ नहीं था इसलिए वे चूक गए। हालाँकि उस दौरान इसी तरह के सवाल पूछने का काम यक्ष ने किया। लब्बेलुआब यह कि सवाल ओर उसे पूछने वाले सदा मौजूद रहे। सनातन रूप से हम हमेशा सवालिया रहे हैं ।

मुझे कोई इनाम ,इकराम, पद ,ओहदा टाइप चीज कभी नहीं मिली इसलिए इस तरह के प्रश्नों से महरूम रहा। इसके बावजूद मुझे यकीन है कि कभी न कभी कोई मुझसे इस तरह का सवाल पूछेगा जरूर। हो सकता है कि कोई धपाक से अवतरित हो और यही पूछ बैठे कि आपको कभी कुछ नहीं मिला , अब आप कैसा अनुभव कर रहे हैं। इस अंदेशे को देखते हुए मैंने ऐसे प्रश्नों और उनसे उठने वाले अनुपूरक प्रश्नों के उत्तर तैयार कर रखे है। आशंकाएं चाहे जैसी हो उन्हें कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। मुल्क का मेरे जैसा हर मिडिलची ,जिंदगी को इसी तरह से जीता आया है।

मैं हर सुबह इसी उम्मीद के साथ उठता हूँ कि घर की खिड़की पर खड़े होकर बाहर देखूंगा तो वहां मुझे चैनल वालों की ओबी वैन की कतार और माइक संभालते सुदर्शन पुरुषों और महिलाओं का जमघट दिखाई देगा। तब मैं सबसे पहले ड्रेसिंग टेबिल पर जाकर अपने उजड़े हुए बालों और दाढ़ी को सलीके से संवारूँगा। आँखों में उनीदेपन को प्रगाढ़ करूँगा। किचिन में जाकर एक कप ग्रीन टी बनाकर सोचूंगा कि जो रट रखा है उसमें कितना याद रहा है। संभावित सवालों की फेहरिस्त मन ही मन तैयार करूँगा। फिर बेहद मंथर गति से चलता हुआ ऊपर की मंजिल से सीढ़ियों के जरिये इस अंदाज़ में नीचे उतरूंगा जिससे देखने वालों को लगे कि बंदा एकदम बिंदास है।

मुझे देखते ही वे मेरी ओर लपकेंगे। मैं उनसे बड़ी स्टाइल से कहूँगा –हैंग ऑन ,हैंग ऑन लेडीज़ एंड जेन्टिलमैन। ऐसी बातों से आदमी बड़ा लिटरेरी लगता है।

-सर अब आप कैसा महसूस कर रहे हैं ? शर्तिया पहला सवाल यह होना है ।

-मुझे बिलकुल ऐसा लग रहा कि जैसे ग्लुको मीटर में शुगर लेवल की रीडिंग बिलो हंड्रेड आई हो जबकि मैं रात में दवा खाना भूल गया था। मेरा जवाब होगा।

-नाईस पंच सर । जीरो फिगर वाली कोई रिपोर्टर तब यही कहेगी।

- इस स्तर तक पहुँचने के लिए आपको कितनी मेहनत करनी पड़ी ? अधपकी दाढ़ी वाला रिपोर्टर अपनी आस्तीन में छुपा कर रखे गए शोधपूर्ण सवालों में से एक सवाल मेरी ओर उछलेगा।

-बिलो हंड्रेड तक शुगर लेवल को लाने के लिए मुझे जिम जाकर वर्कआउट करने के सारे फायदे कंठस्थ करने पड़े। इन्फैक्ट कल देर रात तक मैं उन्हें ही याद कर रहा था।

यह सवाल सुनकर दाढ़ीवाले को लगेगा कि उसका तो पहला सवाल ही अकारथ गया। वह अपनी आस्तीन में से दूसरा प्रश्न ढूंढें तब तक उन्हें धकियाता हुआ जल्दबाज किस्म का कोई पूछ बैठेगा – आप लिखते कैसे हैं ?

-पहले मैं बाकयदा बालपैन से लिखता था। अब कम्प्युटर पर उँगलियों से लिखता हूँ। मेरी बात पूरी भी नहीं हो पायेगी कि कोई कुछ पूछने को होगा तो उसे मैं लगभग बुद्ध की मुद्रा में दायीं हथेली उठाकर रोक दूंगा।

- मेरे कृतित्व में बालपेन का महती योगदान रहा है । यह कह कर मैं अपनी बात पूरी करूँगा।

- वो कैसे ? वो कैसे ? चारों ओर से सवाल उठेंगे।

-वो ऐसे कि पहले तो मैं उसी से ही लिखता था। अब मैं उससे अपना कान खुजाता हूँ। जितना अधिक मैं ऐसा करता हूँ उतना ही बेहतर लिख पाता हूँ। मैं उन्हें ब्रेकिंग न्यूज़ टाइप की बाईट दूंगा । इसके बाद मैं यह क्षेपक कथा भी सुना दूंगा कि एक समय की बात है कि मेरा बालपेन गुम हो गया……. जब तक वह गायब रहा मैं चाह कर भी सार्थक लेखन के नाम पर कुछ लिख नहीं पाया।

- अपने सरोकारों के बारे में कुछ कहना चाहेंगे ? दाढ़ीवाला अब तक अनेक बार आस्तीन से अपना मुहँ पूँछ चुका होगा। वह ऊँची आवाज़ में झल्ला कर पूछेगा।

-मेरे सरोकार और कान एकदम साफ़ हैं। इन्हें जब तक खुजलाते और सहलाते रहो तब तक यह ठीक रहते हैं। कान और सरोकार लगभग ऐसे ही अपना काम करते हैं। मेरा जवाब होगा।

-सुनने में आया है कि आपको जो इनाम मिलने जा रहा है वह झुमरीतलैया ब्रांड का है? दाढ़ीवाले की बैचैनी बढ़ेगी तो वह तिनके से दांत कुरेदता हुआ जरूर पूछेगा।

-पता नहीं दोस्त ,आप कह रहे हैं तो यह बात सही ही होगी। इनाम ब्रांडेड है ,क्या यह काफी नहीं? मैं तो छींकने के लिए जो नसवार इस्तेमाल करता हूँ वह भी हंसिया और हथोड़ा ब्रांड की होती है। मेरी कलम लोटस मार्का है और कम्प्युटर साइकिल छाप। मेरी टेबिल पर रखा लैम्प लालटेन मार्का है ,जो केवल बडबुक बडबुक कहने से रौशन होता है। आप इसी बात से मेरे सरोकारों का अंदाज़ा लगा सकते हैं। मेरा मानना है कि हमेशा ब्रांडेड लिखो ,ब्राडेड पढ़ो। मैं उसे ब्रांड की महिमा गिनाऊँगा।

-आगे आपकी योजना क्या है ? जीरो फिगर की ओर से सवाल आएगा।

- स्टेट्स यथावत बनाये रखने की। मेरा उत्तर उसे हैरान करेगा।

-मैं पूरी कोशिश करूँगा कि फास्टिंग का मेरा शुगर लेवल कभी सैकड़ा पार न करे। मैं उसकी जानकारी में इजाफा कर दूँगा।

इसके बाद मैं उन्हें नमस्कार करूँगा। उनके सवाल वहीँ फर्श पर बिना चुगे दानों की तरह बिखर कर रह जायेंगे। मैं धीरे धीरे सीढियां चढ़ता हुआ खुद से पूछूँगा कि अरे यार ,अब तो कोई बता दे कि मुझे इनाम दिया किसने है। तब मैं एक सपना जागती आँखों से और देखूंगा कि मेरा शुगर लेवल ग्लुकोमीटर में आई किसी एरर की वजह से बेहद घट गया है और मैं फ्रिज में रखे लड्डू को बिना किसी अपराधबोध के खा सकता हूँ। हमारी जिंदगियों के ऐसे अजूबे सिर्फ और सिर्फ एरर की वजह से ही होते हैं। वाकई ऐसी त्रुटियां दिलफरेब होती हैं।

अभी मुझे कोई इनाम मिला नहीं है। लेकिन उसे मिलने की स्थिति से निबटने के लिए मेरी तरफ से तैयारी पूरी है। यानी मामला अब देने वालों के हाथ में है। इसका एक मतलब यह भी है कि मामला पचास प्रतिशत उम्मीद का है और उम्मीद अभी भी एक जिन्दा लफ्ज़ है।

मैंने अभी अभी खिड़की से बाहर गली में देखा है वहां एक गड्ढे में भरे बरसाती पानी में जंगली कबूतर अपने पंखों को फड़फड़ाते हुए स्नान में निमग्न है।

सोच रहा हूँ कि चलो अच्छा हुआ जो इनाम न मिला। मिलता तो ये मीडिया वाले भीड़ लगाते और इन बेचारे कबूतरों को यहाँ से उड़ कर कहीं और जाना पड़ता। हो सकता है कि वे उस दिन बिन नहाये ही रह जाते।

किसी भी इनाम मिलने के मुकाबले परिंदों को इस तरह मस्ती करते देख पाना, यकीनन बड़ी बात है।

निर्मल गुप्त,२०८ छीपी टैंक ,मेरठ -२५०००१ मोब.