जिंदगी के पन्ने - 4 R. B. Chavda द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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जिंदगी के पन्ने - 4

रागिनी के घर में जब उसकी छोटी बहन का जन्म हुआ, तो वह केवल तीन साल की थी। छोटी-सी उम्र में भी, रागिनी के दिल में अपनी बहन के लिए एक अलग ही प्यार उमड़ पड़ा। उसकी बहन नन्ही और प्यारी थी, गोया घर में एक नया फूल खिल आया हो। उसकी छोटी-सी आँखों में जो मासूमियत थी, उसने सबका दिल जीत लिया था। रागिनी उसे बड़े ध्यान से देखती, कभी उसकी छोटी उँगलियों को पकड़कर प्यार करती तो कभी उसकी हंसी सुनकर मुस्कुरा उठती। उसकी मासूमियत रागिनी के बाल मन पर गहरी छाप छोड़ रही थी।

लेकिन जैसे ही इस नन्ही कली का जन्म हुआ, घर में एक अजीब सा सन्नाटा पसर गया। रागिनी की माँ की आँखों से आँसू बहने लगे। समाज के तानों और कड़वी सच्चाई ने उनका दिल तोड़ दिया था। दो बेटियों की माँ होना समाज की नज़रों में अक्सर एक बोझ समझा जाता था। माँ जानती थीं कि अब उन्हें और भी सवालों और तानों का सामना करना पड़ेगा। उनके दिल में एक सवाल बार-बार गूंज रहा था: “क्या मैं अपनी बेटियों को इस समाज की निगाहों से बचा पाऊँगी?”

जब माँ को रोते देखा, तो रागिनी ने यह नहीं समझा कि आखिर माँ क्यों दुखी हैं। उसने अपनी नन्ही बहन को और भी कसकर गले लगाया, जैसे कह रही हो, "मैं तुम्हारे साथ हूँ।" रागिनी ने महसूस किया कि उसकी बहन का आना उसके जीवन में एक नई रोशनी लेकर आया है। उसकी मासूमियत और नटखटपन रागिनी के जीवन में रंग भरने लगी थी। अब उसकी दिनचर्या का एक अहम हिस्सा बन गई थी, बहन की देखभाल करना और उसके साथ खेलना।

रागिनी के पिता को जब बेटी के जन्म की खबर मिली, तो उन्होंने सुकून से कहा, “मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि दूसरी बेटी हुई है। मेरी बेटियाँ मुझे बेटों से भी प्यारी हैं।” यह सुनकर माँ की आँखों में राहत के आँसू भर आए। पिता ने यह बात बड़े गर्व से कही, मानो वह दुनिया को चुनौती दे रहे हों कि बेटियों का होना किसी से कम नहीं है। वह हमेशा रागिनी को "बेटे" कहकर पुकारते थे, लेकिन उनके मन में बेटा या बेटी होने का कोई भेदभाव नहीं था। उनकी बेटियाँ ही उनकी ताकत और भविष्य थीं।

जब रागिनी के पिता घर आए और अपनी छोटी बेटी को पहली बार गोद में लिया, तो उनकी आँखों में ममता और गर्व दोनों थे। वह बहुत प्यार से अपनी नन्ही बिटिया को देख रहे थे, जैसे कह रहे हों, “तुम्हारे आने से हमारा घर पूरा हो गया।” उन्होंने रागिनी की माँ के आँसू पोंछते हुए कहा, “इस समाज की सोच से तुम क्यों दुखी हो रही हो? हम अपनी बेटियों को इतना मजबूत बनाएँगे कि समाज को भी झुकना पड़ेगा।”

दिन बीतते गए, और घर में नन्हीं बच्ची की किलकारियों ने एक नई खुशबू बिखेर दी थी। रागिनी की छोटी बहन की मासूमियत ने घर के माहौल को हल्का और खुशहाल बना दिया। अब माँ भी धीरे-धीरे इस खुशी को महसूस करने लगी थीं। वह अपनी छोटी बेटी के चेहरे पर प्यार से हाथ फेरतीं और सोचतीं कि भले ही समाज कुछ भी कहे, लेकिन उनकी बेटियाँ उनके जीवन की सबसे बड़ी दौलत हैं।

रागिनी की छोटी बहन अब उनकी दिनचर्या का सबसे प्यारा हिस्सा बन गई थी। जब वह हंसती, तो घर में जैसे कोई खुशियों की बारिश होने लगती। उसकी किलकारियों से घर का हर कोना गूंज उठता। रागिनी उसे प्यार से निहारती, जैसे उसकी नन्ही बहन उसकी दुनिया का सबसे अनमोल तोहफा हो। वह अपने खिलौने उसके पास लाकर रखती, उसे हंसाने की कोशिश करती, और जब भी उसकी बहन रोती, तो रागिनी दौड़कर उसकी मदद के लिए पहुँच जाती।

एक दिन, रागिनी की माँ ने उससे कहा, “बेटा, तुम्हें अपनी छोटी बहन का ध्यान रखना है। तुम अब बड़ी हो गई हो।” यह बात सुनकर रागिनी के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आई। उसने माँ की बात को बहुत गंभीरता से लिया और महसूस किया कि अब उसकी जिम्मेदारियाँ बढ़ गई हैं। अब वह अपनी छोटी बहन को अपने छोटे-छोटे हाथों से संभालने की कोशिश करती। कभी उसकी उँगलियाँ पकड़ती, तो कभी उसके पास बैठकर उसे कहानियाँ सुनाती।

रागिनी के पिता अक्सर अपने काम से घर लौटते तो छोटी बच्ची को गोद में उठाकर बहुत प्यार करते। वह रागिनी से भी कहते, “देखो, हमारी छोटी राजकुमारी कितनी प्यारी है। तुम दोनों ही मेरी दुनिया हो।” यह सुनकर रागिनी का मन और भी खिल उठता। उसे अपने पिता पर गर्व होता, जो समाज की धारणाओं से ऊपर उठकर अपनी बेटियों को अपनी सबसे बड़ी ताकत मानते थे।

समय धीरे-धीरे बीत रहा था, और रागिनी की छोटी बहन अब पूरे घर का केंद्र बन चुकी थी। माँ-पिता दोनों अपनी बेटियों के लिए बड़े सपने देख रहे थे। माँ को अब धीरे-धीरे समझ आ रहा था कि बेटियों का होना किसी भी तरह से कम नहीं है। वह अपनी दोनों बेटियों के भविष्य के बारे में सोचकर अपने आँसू पोंछ रही थीं। अब उनका दुख कम हो गया था, और उन्होंने अपने दिल में एक नई उम्मीद जगाई थी।

रागिनी अब एक नई जिम्मेदारी के साथ बड़ी हो रही थी। छोटी बहन की देखभाल करना और उसे हंसाना, अब उसकी सबसे बड़ी खुशी बन गई थी। घर का हर कोना बहनों की हंसी और खेल से गूंज रहा था। रागिनी ने अपनी मासूमियत और नटखटपन के बीच यह भी सीख लिया था कि प्यार और देखभाल सबसे बड़ी ताकत होती है, चाहे वह किसी भी रूप में हो। उसकी छोटी बहन अब उसकी सबसे प्यारी साथी बन चुकी थी।

यह सफर अभी लंबा था। रागिनी की ज़िंदगी में अभी और भी कई मोड़ आने बाकी थे। लेकिन कैसे और किस रूप में, यह तो आगे के पन्ने ही बताएंगे।