रागिनी, जो अब तीन साल की हो गई थी, अपने मासूम चेहरे और चमकती आँखों के साथ सभी का दिल जीत रही थी। उसकी मासूमियत और प्यारी मुस्कान ने हर किसी को आकर्षित किया था। पड़ोस में कोई उसे देखता, तो उसके चेहरे पर एक अद्भुत चमक देखते ही बनती थी। उसकी मासूमियत ने उसे सबकी चहेती बना दिया था।
उसके पास एक हरे रंग का बंदर का खिलौना था, जिसे वह हमेशा अपने साथ रखती थी। यह खिलौना न केवल उसकी सबसे प्यारी चीज़ थी, बल्कि यह उसके लिए एक दोस्त भी था। रागिनी उसे हर वक्त गले लगाती, उसके साथ बातें करती, और जब वह सोती, तो उसे अपने पास रखती। लेकिन उसकी परदादी को उस खिलौने से डर लगता था। उन्हें लगता था कि वह खिलौना डरावना है, लेकिन रागिनी को यह खिलौना बहुत पसंद था। उसके लिए वह खिलौना उसके बचपन का सबसे बड़ा साथी था।
रागिनी की मासूमियत का एक और पहलू यह था कि वह अपने खिलौने के बिना एक पल भी नहीं रह सकती थी। उसके लिए यह सिर्फ एक खिलौना नहीं था, बल्कि उसके बचपन की पहचान था। जब भी कोई उसे कहता कि वह खिलौना फेंक दे, वह तुरंत चिढ़ जाती और कहती, “नहीं, यह मेरा दोस्त है!” उसकी यह मासूम जिद सबको हंसाने के लिए काफी थी।
रागिनी के घर में एक नन्हा भाई या बहन आने वाला था। इस खुशखबरी ने रागिनी को और भी ज्यादा खुश कर दिया। वह सोचने लगी कि अब वह अपने नए भाई या बहन के साथ खेल सकेगी। लेकिन उसके मन में एक चिंता भी थी। वह सोच रही थी कि क्या उसका हरा बंदर भी नए बच्चे को पसंद आएगा?
इस बीच, रागिनी के पिता को दूसरे शहर में कुछ काम से जाना पड़ा। यह यात्रा 2-3 दिनों की थी, और रागिनी ने अपने पिता को जाते हुए बहुत मिस किया। वह अपनी माँ से बार-बार कहती, “मुझे सिर्फ पापा चाहिए। मैं पापा के बिना नहीं रह सकती।” यह सुनकर उसकी माँ को रागिनी की चिंता समझ में आई।
रागिनी ने अपने पापा के बिना तीन दिन तक कुछ नहीं खाया। वह अपनी माँ को बार-बार कहती, “मुझे पापा के पास जाना है!” उसकी मासूमियत और जिद ने उसकी माँ का दिल पिघला दिया। उन्होंने तुरंत रागिनी को उसके पापा के पास ले जाने का निर्णय लिया।
जब रागिनी अपने पापा के पास पहुंची, तो उसके चेहरे की खुशी देखते ही बनती थी। उसने अपने पापा को गले लगाते हुए कहा, “पापा, मैंने आपको बहुत मिस किया!” उसके पापा ने उसे प्यार से अपनी गोद में उठा लिया और कहा, “मैं भी तुम्हें बहुत याद कर रहा था, रागिनी। तुम मेरी सबसे प्यारी बेटी हो।”
इस प्यार भरे मिलन ने रागिनी को खुशियों से भर दिया। उसने अपने पापा से कहा, “क्या आप मुझे मेरे हरे बंदर के साथ खेलने देंगे?” उसके पापा मुस्कुराए और बोले, “बिल्कुल, तुम अपने हरे बंदर के साथ खेलो। वह भी तुम्हारे साथ है।”
रागिनी ने तुरंत अपने खिलौने को गले लगाया और अपने पापा के पास बैठ गई। वह अपने हरे बंदर से बात करने लगी, “देखो, पापा भी आ गए हैं!”
उस दिन, रागिनी और उसके पापा ने मिलकर बहुत मजा किया। रागिनी ने अपने हरे बंदर के साथ खेलते हुए अपने पापा को अपनी दुनिया में शामिल कर लिया। वह अपने खिलौने को अपने पापा से मिलवाते हुए कहती, “पापा, यह मेरा सबसे अच्छा दोस्त है!”
रागिनी की मासूमियत और प्यार ने उसके परिवार में एक नया उत्साह भर दिया था। उसके पापा ने उसे समझाया, “तुम्हारा हरा बंदर तुम्हारे लिए बहुत खास है, लेकिन तुम्हें अपने नए भाई या बहन का भी ख्याल रखना होगा। तुम दोनों को एक-दूसरे का दोस्त बनना होगा।”
रागिनी ने सोचा, “क्या मेरा हरा बंदर मेरे नए भाई या बहन का भी दोस्त बन सकता है?” यह सोचकर उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गई।
जैसे ही रागिनी के पापा वापस घर लौटे, रागिनी अपने हरे बंदर के साथ खेलती रही। वह अपने पापा के साथ नए बच्चे का स्वागत करने के लिए तैयार थी। उसने अपने पापा से कहा, “जब मेरा भाई या बहन आएगा, तो मैं उसे भी अपने हरे बंदर से खेलाऊंगी।”
उसकी मासूमियत और निश्चिंता ने सबका दिल जीत लिया। रागिनी की दुनिया में खुशियाँ फिर से लौट आई थीं।
समय बीतता गया, और रागिनी अपने नए भाई या बहन का इंतजार करती रही। उसे यकीन था कि जब भी वह आएगा, वह अपने हरे बंदर के साथ उसे खुश करने के लिए तैयार रहेगी। रागिनी की मासूमियत और प्यार ने यह सिद्ध कर दिया कि परिवार में हमेशा प्यार और एकता होनी चाहिए।
रागिनी की कहानी इस बात का प्रतीक है कि प्यार और मासूमियत में कितनी शक्ति होती है। उसकी दुनिया में हर दिन नए रंग, नई खुशियाँ, और नए अनुभव जुड़ते रहे।
जब भी रागिनी अपने खिलौने के साथ खेलती, उसके चेहरे पर एक अद्भुत खुशी होती। यह खुशी उसके परिवार के लिए एक नई प्रेरणा बन गई थी। रागिनी का मासूम चेहरा और उसके प्यारे खिलौने ने सबको यह सिखाया कि सच्चे रिश्तों की ताकत क्या होती है।
आगे क्या होगा? उसकी मासूमियत और प्यार का यह सफर अभी जारी है, और नए अनुभवों की खोज में रागिनी आगे बढ़ेगी।