कोमल की डायरी - 12 - ज़मीनी सचाई Dr. Suryapal Singh द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

कोमल की डायरी - 12 - ज़मीनी सचाई

ग्यारह

           ज़मीनी सचाई

                                गुरुवार, छब्बीस, जनवरी 2006

आज गणतंत्र दिवस है। राष्ट्रपति ने अपने सम्बोधन में भारतीय परिदृश्य का लेखा जोखा प्रस्तुत किया। अपराह्म सुमित और जेन की गोष्ठी में कांग्रेस, भाजपा, समाजवादी तथा बसपा से कोई नहीं आया। दो छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष, पाँच अन्य राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि, डिग्री कालेज के एक अध्यापक, सात संभ्रान्त जन जिसमें रमजान भी थे, सम्मिलित हुए। जेन ने प्रबन्धक राधेरमन, अध्यापक श्री निवास, बहादुर, रौताइन और हरखू को भी बुलाया था। राधेरमन और श्री निवास नहीं आ सके। बहादुर, रौताइन, हरखू आकर एक किनारे बैठे थे। सुमित ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा, 'गोण्डा की सांस्कृतिक विरासत अत्यन्त समृद्ध है पर आज यहाँ के लोग जिन समस्याओं से जूझ रहे हैं उन पर गहराई से विमर्श करने की ज़रूरत है। पहुँच और गुणवत्ता दोनों की दृष्टि से शिक्षा में हम बहुत पीछे हैं। आज की तारीख में ऐसे भी गाँव हैं जहाँ महिलाएँ केवल पाँच प्रतिशत ही साक्षर हैं। अशिक्षा और आर्थिक मजबूरी का फायदा उठाते हुए शोषकों का एक नया वर्ग पैदा हो गया है जो गरीब, असहाय, दूरस्थ रहने वालों की ज़मीन-जायदाद अपने नाम करा रहा है। व्यक्तिगत कर्ज़ में एक सौ बीस प्रतिशत तक ब्याज वसूले जाते हैं। युवा गुणवत्ता विहीन शिक्षा का प्रमाण पत्र लिए घूम रहे हैं। रोजगार की कोई अधिसंरचना नहीं बन सकी है। माननीय भद्रजन, विकास और भ्रष्टाचार के रिश्ते को आप किस प्रकार देखते हैं? ऐसा कहने वाले भी हैं कि भ्रष्टाचार रोकने से विकास रुक जाएगा। विकास करना है तो भ्रष्टाचार को बर्दाश्त करना होगा। आपकी इस सन्दर्भ में क्या राय है? क्या भ्रष्टाचार को रोका जाना चाहिए? यदि हाँ, तो कैसे?

सुमित विषय प्रवर्तन कर अपनी सीट पर बैठ गए। एक सहभागी खड़े हुए। उन्होंने कहा, 'आपने तीन मुख्य मुद्दों को उठाया-अशिक्षा, बेरोजगारी एवं भ्रष्टाचार। तीनों महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। शिक्षा में सरकारी योगदान घटता जा रहा है। निजी निवेश के अधिकांश विद्यालयों में आवश्यक अवसंरचना का अभाव है। वे किसी तरह प्रमाण पत्र का जुगाड़ कर पाते हैं। अभिभावकों की जागरूकता के अभाव में ऐसे विद्यालय फलफूल रहे हैं। शिक्षा माफिया भी विकसित हो गए हैं जिनका उद्देश्य केवल पैसा कमाना ही है।

शिक्षित बेरोजगार भटक रहे हैं। गाँव से दिल्ली, बुम्बई भागने का क्रम जारी है। थवई, बढ़ई, लुहार जैसे कुशल श्रमिक भी महीने में पन्द्रह-बीस दिन रोजगार पा रहे हैं। यदि बीमार हो गए तो कोई पूछने वाला नहीं हैं। भ्रष्टाचार तो अपने चरम पर है। ज़रूरी है कि इसका निदान खोजा जाए।'

'क्या है इसका निदान ?' एक ने पूछ लिया।

एक वामपंथी प्रतिनिधि ने सुझाया 'जबतक साम्यवादी व्यवस्था नहीं लागू होती ये तीनों ही समस्याएं नहीं हल हो सकतीं। पूँजीवादी व्यवस्था की यही परिणति है जो हम देख रहे हैं। इसलिए जरूरी है ढाँचागत परिवर्तन किया जाए?'

'पश्चिम बंगाल में वामपोथियों की सरकार है क्या वहाँ ये समस्याएँ नहीं हैं? एक ने अपनी बात रखते हुए प्रश्न किया।

'वहाँ सरकार वामपंथी है किन्तु ढाँचा तो पूँजीवादी ही है। अतः वहाँ ही सरकार भी पूरी तरह इन समस्याओं के निदान में सक्षम नहीं है।'

'पर पश्चिम बंगाल की सरकार भी खुलेपन का आवाहन कर रही है। चीन खुलेपन की ओर तेजी से बढ़ रहा है। रूस की स्थिति से हम परिचित ही हैं। दुनिया एक ध्रुवीय होती जा रही है और आप साम्यवाद लाने की बात कर रहे है।' 'एक ने ज़रा तीखे अन्दाज़ में बात रखी। 'पूँजीवाद का संकट गहरा रहा है। यही साम्यवाद लाने की भूमिका अदा करेगा। जो त्रस्त हैं, शोषित हैं वे हर ख़तरा उठाकर लड़ने को लाम बन्द हो रहे हैं। उड़ीसा, बिहार, आन्ध्र, नेपाल के वामपंथी आन्दोलन किस बात की ओर संकेत कर रहे हैं?'

'हमारे बीच में गाँवों से आए हुए कुछ लोग बैठे हैं। अच्छा होगा कि हम उनकी बातें भी सुनें।' जेन की इस बात पर सभी की नज़रें काकी, बहादुर और हरखू पर टिक गईं। 'हम एक ऐसी महिला से कुछ सुनना कहते हैं जो गाँव की समस्याओं से रोज-ब-रोज जूझती रहती है। काकी आप अपनी बात बताइए।' काकी खड़ी हो गईं। उन्हें पद पंचायत में कभी भय नहीं लगा। यहाँ भी वे निर्भय थीं। कहा, 'भाई लोग, हम बहुत कम पढ़े लिखे हन। देश दुनिया के जानकारी कम है। आप विलाइत, चीन, रूस सबकै बात जानत हो। हम तौ आपन गाँव जानित है। गाँव मा लड़िके बिना काम कै घूमत हैं। कुछ दुकान खोलि कै बैठि गए हैं। वहू मा दस-बीस रूपया बचब मुश्किल ह्वै जात है। मजबूरन लड़िकन का दिल्ली, बम्बई भागे का परत है। जे नाहीं भाग पावत ते हियै ताश, जुआ खेलत हैं, कबौ कबौ चोरी राहजनी कै लेत हैं। अस कब तक चली। नेता, अफसर मिलिकै सरकारी धन लूटै मा लाग हैं। आप कहत हो कुछ बदली तब सब ठीक होई। मुला हम पूछित है कि हमरे बचपन मा अतना लूट लुटव्बर नहीं रहा, काहे ? आज कौन अस बात होइगै कि लूटम-लूटि मचिगै ?

आप पढ़ाई लिखाई कै बात करत हौ। हम तो पाँच किताब पढ़े हन। चार साल मा पाँच किताब पास कीन। अब तो चारि-चारि साल मा लड़के ककहरा साबित नाहीं जानि पावत। स्कूल आवत जात हैं बस। प्राइमरी स्कूल मा मास्टरो कम होइगे। जे हैयो हैं उनके बावन काम। कैसे कोई पढ़ि पाई? दस-बारह वाले तौ नकल कराइकै राजा बना घूमत हैं। इंटर पास होई जात हैं मुला सही चिट्ठी नाहीं लिखि पावत।

कम्प्यूटर मा गिट पिट जरूर कीन चाहत है मुला जब लिखे पढ़े आवै तब न? डाक्टरौ डाका डारै लागे। अब काउ कही? गाँवन मा जर ज़मीन हड़पै वाले पैदा होइगे। ई बहादुर होयँ। दुई भाई हैं। दूनौ बम्बई चला गे। इनकै ज़मीन दोसरे हड़पि कै अब कहत हैं ई बहादुर होबै न करें। अब बताओ? जिनगी कैसे कटी?'

इतनी बात कहकर काकी बैठ गईं। जेन ने बहादर से कहा, 'आप भी कुछ कहिए।'

बहादुर खड़े हुए, 'हमारी तकलीफ तो काकी बता चुकीं। आप लोग कोई उपाय बताइए।' कहकर बहादुर बैठ गए।

जेन ने हरखू से भी कुछ कहने के लिए कहा। हरखू हाथ जोड़कर खड़े हो गए। 'मालिक लोगन का राम राम। हमार भगतिनिया हमका बझाइ दिहिस मालिक।' 'क्या हुआ,' एक सज्जन बोल उठे।

'हमती कहत रहेन कि हमै कोठरी न चाही। मुला काउ कही? हमार भगतिनिया गुँजहा, गोड़हरा, टेड़िया बेचि कै दुइहजार जोरिस और पाँच हजार एक जने से कर्जा लै कै प्रधान जी का दै आई। कहत रहे सात हजार जमा करौ तौ कोठरी कै जुगाड़ होई जाई। कोठरी के पैसा तौ न मिला। मुला पाँच हजार के साल भरे मा ग्यारह हजार होइगा। एक दिन मालिक आए कहिन, 'हरखू तू पैसा दै न पैबी। खेत हम लिहा लेइत है।'

दोसरे दिन हमार एक बीघा जमीन जोति लिहिन। हमरे एक्कै बिघल्ली खेत रहा। ग्यारह हजार बियाज सहित दै पाइब बहुत मुश्किल है। अब काउ करी? मालिक कौनो गलत बात जबान से निकरि गै होय तौ माफ किहौ।' कहकर हरखू हाथ जोड़े ही बैठ गए।

'भाई आप भी अपना विचार रखें। एक छात्र नेता की ओर जेन ने संकेत किया।

'अध्यक्ष जी, समस्याएँ कठिन हैं। विद्यालय तो सरकारी गैर-सरकारी मिलकर काफी खुल गए हैं। जहाँ तक गुणवत्ता की बात है, उसमें ज़रूर पीछे हैं। इस सन्दर्भ में हम छात्रों को जो दायित्व दिया जाएगा उसे पूरा करने का प्रयास करेंगे। बेरोजगारी ज़रूर हम लोगों के लिए बड़ी समस्या है। इसके लिए कोई निदान ढूँढ़ना होगा चाहे काम के घण्टे ही कम करने पड़ें। विकास और भ्रष्टाचार सहयोगी हैं ऐसा मैं नहीं मानता। भ्रष्टाचार को ख़त्म करने का प्रयास करना होगा। शीर्ष स्थानों का भ्रष्टाचार ख़त्म होगा तभी हम कोई उम्मीद कर सकते हैं। इतना कहकर जैसे ही वे बैठे, डिग्री कालेज के प्राध्यापक ने अपनी बात शुरू की।

'बात बहुत ही अनौपचारिक वातावरण में हो रही है। हमारे बहुत से साथियों ने अपने विचारों से हमें अवगत कराया। काकी जी, बहादुर और हरखू भाई ने ज़मीनी सच्चाई से हमें रूबरू कराया। हमारे कई साथियों ने व्यवस्था परिवर्तन की बात उठाई। बात सही भी है बिना ढाँचागत परिवर्तन के तत्काल परिणाम नहीं मिल सकते। पर साम्यवाद का वह पुराना रूप भी कहाँ रहा? रूस, चीन दोनों देशों ने नवीन स्थितियों से सामञ्जस्य बिठाया है। प्रश्न यह उठता है कि क्या हमारे पास कोई विकल्प भी है। वैश्वीकरण से उच्च और उच्च मध्यमवर्ग अधिक लाभान्वित हुआ है सबसे अमीर और सबसे गरीब की खाई बढ़ी है। यह जनपद शिक्षा के क्षेत्र में इस अर्थ में अविकसित है कि गुणवत्तायुक्त संस्थाएँ कम हैं। व्यावसायिक पाठ्यक्रम देने वाली अच्छी संस्थाएँ नहीं हैं। यहाँ यह ध्यान देने की ज़रूरत है कि उच्च गुणवत्तायुक्त संस्थान केवल जनपद को ही लाभान्वित नहीं करता बल्कि उसके द्वार सभी के लिए खुले होते हैं। हमें इण्टमीडिएट तक की शिक्षा को सबल बनाना होगा। ठोस नींव पर ही अच्छा भवन खड़ा किया जा सकता है। नकल की प्रवृत्ति को समाप्त करना होगा। इसके लिए ठोस योजना बनानी होगी।'

'नकल न होगी तो हाई स्कूल का परिणाम फिर वही चालीस प्रतिशत।' एक

ने टोक दिया।

'क्या नकल कराकर अच्छा परिणाम देना उचित है?' प्राध्यापक ने पूछ लिया। टोकने वाले भी हार मानने वाले नहीं थे, बोल पड़े, 'यह विमर्श का मुद्दा हो सकता है? कितने लोग नकल करके पास हुए, डाकखाने या शिक्षा विभाग में नौकरी पा गए। जो नकल नहीं किए वे दरदर ठोंकरें खा रहे हैं।' 'नकल कराकर अच्छा परिणाम देना मैं कभी उचित नहीं मान सकता।'

'इस प्रकरण को खत्म कर आगे बढ़ने दें।' एक दूसरे ने टोका। 'रोजगार का एक नेटवर्क बनाना होगा। अनेक तकनीकी एवं कुशल पदों के लिए लोग नहीं मिल पाते। अकुशल लोगों की भीड़ अधिक है। शैक्षिक सुधार एवं रोजगार सृजन से हमें इस समस्या से निबटना होगा। रह गई भ्रष्टाचार की बात । इसे चाहे एक दम समाप्त न किया जा सके पर न्यूनतम पर अवश्य पहुँचाना होगा। शीर्ष से ही इसकी शुरूआत करनी होगी। यदि शीर्ष स्तरों पर भ्रष्टाचार खत्म हो जाए तो उसका असर निचले स्तर पर भी होगा। तब निचले स्तर पर भी कसना आसान हो जाएगा।'

'पर शीर्ष स्तर पर भ्रष्टचार कैसे रुके?', एक ने टोका। 'हाँ, यह प्रश्न है। इसके लिए सभी राजनीतिक दलों, प्रबुद्ध नागरिकों एवं शीर्षस्थ अधिकारियों को मिल बैठकर निर्णय करना होगा।'

'क्या किसी भ्रष्टाचारी को कोई सज़ा मिल पाती है?' एक ने प्रश्न उठा दिया। 'भ्रष्टाचारी ही नहीं, सरे आम हत्या करने वाले बेदाग छूट जाते हैं।' दूसरे ने टिप्पणी जड़ी।

'बहुत ही अहम मुद्दा है। किसी अपराध की सजा नहीं मिल पा रही है इस समय ।' रमजान अली ने खड़े होकर अपनी बात कही। 'अजीब स्थिति है। अब तो यहाँ तक लोग कहने लगे हैं कि दस-बीस लाख गबन करके बैठ जाओ। ज्यादा से ज्यादा कुछ दिन जेल की रोटी खा लेंगे। खाना तो वहाँ भी मिलेगा। बाल-बच्चे तो आराम से रहेंगे। ज़मीर मर गया है लोगों का।'

'ज़मीर की बात करना ही बेकार है।' एक वृद्ध समाज सेवी बोल पड़े। 'अन्तःकरण को मरने से बचाओ भाई। अन्तःकरण मर गया तो आदमीयत मर जाएगी।'

'आदमीयत क्या अभी बची है?' रमजान भाई ने टोक दिया।

'क्या कोमल भाई भी कुछ कहना चाहेंगे?' जेन ने पूछ लिया। मैं भी खड़ा हुआ, कहा, 'समस्याएँ विकराल रूप ले चुकी हैं। चाहे वर्तमान ढाँचे में सुधार करें या नया ढाँचा स्वीकारें, हमें समस्या का समाधान ढूँढना ही होगा। इसके लिए क्या करना होगा इस पर विचार करने की ज़रूरत है।'

'कार्य योजना बने, यह अच्छी बात है।' रमजान भाई ने समर्थन किया। 'इसके लिए हमें सड़क पर उतरना होगा।'

'यहाँ हम विमर्श के लिए इकट्ठा हुए हैं। सड़क पर उतरने की स्थिति होगी तो हम विचार करेंगे।' एक ने कहा।

'केवल विचार ही करेंगे या कुछ करेंगे भी।' रमजान भाई खड़े हो गए।

'आज तो अभी विचार करने लिए ही इकट्ठा हुए हैं। जेन जी को विचार

से ही मतलब है। वे यहाँ आन्दोलन चलाने के लिए नहीं आई हैं क्यों सुमित जी।' 'आपका कहना ठीक है। हमने आप लोगों का विचार जानने के लिए यह गोष्ठी आयोजित की, किन्तु यदि समस्याओं के समाधान हेतु कोई कार्ययोजना बनती है तो हम उसमें पूरा सहयोग करेंगे।' सुमित ने जेन की ओर देखते हुए कहा। सुमित के इस कथन का लोगों ने तालियों से स्वागत किया।

'पर कार्य योजना के उद्देश्य और कार्यक्रम तय करने के लिए हमें फिर बैठना होगा। आज अध्यक्ष जी का आशीर्वाद लेकर गोष्ठी समाप्त की जाए। समय बहुत हो गया है।' एक अधेड़ सज्जन बोल पड़े।

जेन ने खड़े हो चश्मा उतारा, कहने लगीं, 'समय सचमुच अधिक हो गया है। हम अध्यक्ष जी से निवेदन करते हैं कि वे अपने आशीर्वचनों से हम लोगों का मार्गदर्शन करें।'

अध्यक्ष जी खड़े हुए। एक नज़र लोगों को देखा। कहना शुरू किया, 'बहनों और भाइयों, आपने समाज की अहम समस्याओं पर अपने अमूल्य विचार रखे। मैं भी इससे लाभान्वित हुआ। रौताइन काकी और हरखू ने हमें ज़मीनी सच्चाई से अवगत कराया। आप जो भी कार्य योजना बनाएँगे, उसमें हम सहयोग करेंगे। समस्याओं के निदान की ओर हम बढ़ सकें, यही मेरी शुभकामना है।' अध्यक्ष जी जैसे ही अपनी कुर्सी पर बैठे, जेन ने माइक सँभालते हुए कहा,

'हम फिर मिलेंगे रूप रेखा तय करने के लिए। आपके सहयोग के लिए

कोटिशः धन्यवाद। जलपान करके ही जाएँ।'

हम सब जलपान सेवा में लगगए। जलपान के समय भी कुछ न कुछ चर्चा होती रही।

जलपान की व्यवस्था उत्तम थी। हरखू काकी के लिए भुने काजू खाना बहुत बड़ी बात थी। हरखू ने अपनी प्लेट से तीन काजू उठाकर जेब में रखा। चाय भी उन्हें अच्छी लगी पर उनके हिसाब से मिठास थोड़ी कम थी। रमजान ने हरखू के काजू जेबियाते देख लिया था हँसते हुए बोल पड़े, 'का

हरखू ?'

'भगतिनियों स्वाद लै लेय', कहकर हरखू भी मुस्करा उठे। छोटे-छोटे सुख भी कितना महत्व रखते हैं, रमजान सोचने लगे। मुझसे कहा, 'देखा ?'

'ठीक ही किया हरखू ने अद्धांगिनी है वह। अपने हक का आथा उसे उपलब्ध कराते रहना कितना कठिन है? हम तुम तो अधूरे रह गए न?' मेरी बात पर रमजान भी मुस्करा उठे। जेन लोगों को विदा करने में लगी थीं।

गोष्ठी के बाद सुमित, जेन और मैं तीन लोग।

'क्या इस विमर्श को आन्दोलन में बदला जा सकता है?' सुमित ने पूछा। 'क्यों नहीं?' मैंने कहा। 'निरन्तर विमर्श एवं क्रियान्वयन की आवश्यकता तो

होती ही है।'

'हमें समाज हित में कुछ त्याग करना चाहिए।' सुमित बुदबुदा उठे।

'क्या आप यहाँ नेतृत्व करना चाहते हैं?' जेन ने पूछा।

'नहीं, नेतृत्व यहीं के लोग करेंगे। हमें केवल उन्हें खड़े होने में मदद करना है। दिशा एवं विश्वास देने का काम यदि हम कर सकें तो यही बहुत है।' इसी बीच बहादुर एक आदमी के साथ पुनः आ गया। उसने बताया,' ई छबीले होंय। इनहूँ कै बात सुन लिया जाय।'

'कहो,' सुमित ने कहा। पर छबीले एक चुप, हजार चुप।

'कहो, छबीले कहो,' बहादुर ने कहा।

'मालिक, बहादुर हमें पकरि लाए है। हम कुछ कहा नाहीं चाहित है।' 'क्यों?

'कहे से कौनो फायदा न होई। नक्सानै होई। हम कुछ न कहब। जब सरकार कहि हैं जेल चला जाब। मालिक कहत हैं, जेल जाय मा कौनो बेइज्जती नाहीं है। हमहूँ मानि लीन ।'

'बात क्या है बहादुर ?' मैंने पूछ लिया। 'भैया, इनके नाम आठ लाख की वसूली आई है। इनका कुछ पता नहीं। ये एक नेता जी के यहाँ काम करते हैं। वे जहाँ कहते हैं, अँगूठा लगा देते हैं।'

'काउ करी मालिक ? आप लोगन कै कहा न मानी तो, वहौ तौ नाही ठीक है। अब चली मालिक देर होई।' कहकर वह व्यक्ति चल पड़ा। साथ में बहादुर भी। सुमित और जेन सन्न रह गए।

'चप्पे चप्पे पर कुछ अद्भुत लिखा है कोमल भाई।' सुमित बोल पड़े।

'सुमित मेरा मन भी कचोटता है। सारा शोध कार्य करने के बाद भी समस्याएँ ज्यों की त्यों रह जाएँगी। बिना ठोस कदम उठाए क्या हरखू, छबीले या बहादुर की समस्या हल होगी?'

'इसलिए क्षेत्र में उतरने की ज़रूरत है। कोमल भाई जैसे लोग जो कर रहे हैं उसे बड़े पैमाने पर करने की ज़रूरत है। रौताइन काकी जिस साहस के साथ बहादुर के साथ खड़ी हो गई हैं, उससे हम सब को प्रेरणा लेनी चाहिए।'

'ठीक कहते हो सुमित, अपना ही भविष्य नहीं, समाज का भी भविष्य देखना है। केवल कुछ थोड़े लोग सारी सुविधाएँ अपने लिए बटोर लें, यह उचित नहीं है। सभी को आवश्यक सुविधाएँ मिलें।'

'पर यह सब अपने आप नहीं होगा। इसके लिए निरन्तर जागरूक रहकर संघर्ष करना होगा। बिना रोए बच्चा दूध नहीं पाता।' 'आओ हम अपनी बात करें। क्या हम जन संघर्ष में सहयोग करने की स्थिति में हैं? सुमित तुम्हारा शोध कार्य पूरा हो गया है, दो चार महीने में डिग्री मिल जाएगी। मुझे अभी छः महीने लगेंगे।'

'चार-छः महीने की बात नहीं है, जेन। जे०एन०यू० या दिल्ली विश्वविद्यालय परिसर में संघर्ष करने की तुलना रौताइन, बहादुर, हरखू के समाज में संघर्ष करने से नहीं की जा सकती। वहाँ जब पेप्सी, कोला या गर्म/ठंडी काफी गला तर करने के लिए उपलब्ध है। कबाब है, बिरियानी है, शाही मिठाइयाँ हैं, यहाँ नीम की दातून, मक्के का लावा मिल जाए बहुत है। सोच लो जेन ।'

'मुझे बार-बार डराओ नहीं सुमित। मैं केवल कागजी शोध भर नहीं कर रही हूँ। समस्याओं से जूझने का माद्दा है मुझमें। शोध पूरा होते ही मैं हरखू, रौताइन, छबीले और बहादुर के साथ हूँगी। आप मुझे कमजोर न समझें।'

'यही चाहता था मैं जेन। हमें संघर्ष में उतरना चाहिए। तुम्हारी

स्वीकृति से मुझे खुशी हुई है।'

'मुझे भी आन्तरिक खुशी मिल रही है सुमित। हम साथ मिलकर ।'

'हम काँटों भरी राह पर चलने के लिए प्रस्तुत हैं?'

'हाँ बिलकुल ।'

'तो कोमल भाई आपने हम लोगों को खींच ही लिया।' सुमित बोल पड़े।

'समस्याएँ खींचती हैं। मैं कहाँ से बीच में आ गया।' मेरे मुख से निकला। सुमित और जेन के निर्णय से मुझे खुशी हुई। गौतम ने केवल पाँच श्रमणों से अपनी यात्रा शुरू की थी। जन संघर्ष में भी धीरे-धीरे लोग जुड़ें, इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है?