कोमल की डायरी - 10 - अभिनय बड़ी चीज़ है। Dr. Suryapal Singh द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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कोमल की डायरी - 10 - अभिनय बड़ी चीज़ है।

दस

अभिनय बड़ी चीज़ है।

                            बुधवार, पच्चीस जनवरी २००६ 

जेन और सुमित कल एक गोष्ठी करना चाहते हैं। नगर के चुने हुए नेताओं, विद्वज्जनों, छात्र प्रतिनिधियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं को आमंत्रित किया गया। कुछ लोगों के घर मैं स्वयं निमंत्रण देने गया था। एक नेता जी के घर में सुबह पहुँच गया। प्रायः नेताओं के यहाँ भीड़ अधिक रहती है। अभी सन्नाटा था। एक आदमी बाहर झाडू दे रहा था। मैंने उससे नेता जी के बारे में पूछा। उसने कहा, 'बैठक में हैं। चाय पी रहे हैं।' बाहर रखी एक कुर्सी पर मैं बैठ गया। बैठक से नेता जी की आवाज़ छन कर आ रही थी। वे चाय पीते हुए अपने लड़के को कुछ समझा रहे थे। मेरे कान उधर अनकने लगे तो बात बहुत स्पष्ट सुनाई पड़ने लगी। वे इत्मीनान से लड़के को समझा रहे थे,............ कोशल नरेश की गाएँ चरती थीं यहाँ। आज भी इसे गोचरी ही समझो। आज़ादी मिलने के चौबीस वर्षों तक यहाँ की जमीन का कोई संसद सदस्य तक न हुआ। बाहर से लोग टपकते, जनता को बरगलाते, जीतकर चले जाते और सुविधाएँ चरते। लौटकर कभी मुँह न दिखाते। कहते वोट तो हमने खरीदा है। साढ़े तीन दशक हुआ, यहाँ की भूमि के लोग संसद का मुँह देखने लगे यद्यपि बीच-बीच में टपकाने की क्रिया चलती रही। कुछ दिन मनकापुर कोठी का दबदबा रहा फिर दूसरे लोग भी संसद में पहुँचे। यहाँ जनता के बीच से तप कर निकलने वाले क्या कभी संसद पहुँच सके?, जोड़-तोड़, लाठी-डंडा, थैली-बटखरा सब कुछ चलता है यहाँ। सम्पत्ति खड़ी करने की योजनाएँ बना नर से नारायण बनो। गाड़ी, बन्दूक कोठी, पैसे से लैस हो मगन मगन घूमो। राजनीतिक टकराव भी करो, सुलह-सपाटा भी। न तू कह मेरी, न में कहूँ तेरी। तू भी खा, मैं भी खाऊँ। तू भी चरा, मैं भी चराऊँ। आखिर गाय ही हैं लोग। थोड़ी सी घास, थोड़ी परती बहुत है यहाँ के लोगों के लिए। पीछे चलने की आदत है लोगों में। आगे चलने से डरते हैं। हम लोगों के लिए यही अच्छा है। यहाँ की माँओं ने अगली रोटी बच्चों को नहीं आग को खिलाई है। कितना अच्छा काम किया है उन्होंने ? एक सीटी मारिए लोग दौड़ पड़ेंगे, 'हुजूर माई बाप, क्या हुक्म है?' ऐसे ही बनाए रखने का निरन्तर प्रयास करना है। स्कूल कालेज खोलो तो पैसा कमाने के लिए। पढ़ाई-लिखाई से मतलब न रखो। यदि पढ़ जाएँगे तो दो दुन्नी चार करने लगेंगे। दो दुन्नी तीन, पाँच बीसी सौ गिनाते रहो। तभी सत्ता पर कुण्डली मार कर बैठ सकोगे। यहाँ के गाय बैल बहुत चालाक हैं। इनको थोड़ा चारा फेंक कर रिरियाने को मजबूर करो। पुलिस को जरा संकेत कर दो। जब वह पकड़कर ले चले, छुड़ा लो। बिना पैसे का गुलाम। जैसा चाहो काम कराओ। अपने इष्ट मित्रों की एक फौज खड़ी करो। ठेका-पट्टा सब कुछ अपने लोगों के नाम। सौ पचास बन्दूकें, स्टेनगन, कार्बाइन का भी इन्तजाम रखो फिर देखो। सब चकाचक। अपने घर की फर्श खूब बिछलहर बनाओ जिससे जनता आए तो ठीक से खड़ी न हो सके। वह हमेशा अपने को सँभालने में ही लगी रहे। देखना, फिर सब कुछ अपनी मुट्ठी में। बाँस पैदा ही न करो, बाँसुरी कहाँ से बनेगी? पद-पंचायत में अपना स्वार्थ पहले देखो। रंग बदलने में गिरगिट को मात करो। वादा पूरा करने की चाल थीमी रखो। मीडिया पाल लो। जो न पलें उन्हें जेल, यमद्वार जो भी चाहो दिखा दो। चौकस रहो। दिन रात पैसे का स्रोत ढूँढ़ो। परिवार को लखनऊ, बम्बई की सैर कराते रहो जिससे उनका मन बहले और अपना भी। अवसर की नब्ज़ पहचानो। लूटते हुए भी लुटाने का अभिनय करो। अभिनय बहुत बड़ी चीज़ है। चम्बल वाले बेवकूफ हैं। जब वातानुकूलित कक्ष में बैठकर समाज डकैती करने का अवसर दे रहा है तो बीहड़ में अपनी साँसत कराने की ज़रूरत ? सब नासमझ हैं बीहड़ के डकैत । पलक झपकाते करोड़ों की डकैती कर सकते हो तो अपने को कष्ट देने की कसरत किस लिए?

तुमने जो अभी तक पढ़ा है उससे केवल दरवाजे तक पहुँचे हो। असली पाठ तो अब पढ़ना है। यही पाठ ज़िन्दगी के काम आएगा। ये कोठियाँ, कारें, असलहे, इनमें बढ़ोत्तरी ही करना है। चारों तरफ घमासान, भेड़िया धसान हो तो अपना फायदा है। समझ गए न? 'समझ गया', लड़के ने कहा। नेता जी गद्गद् अन्दर चले गए। लड़के ने अगंरक्षक को बुलाया। शिकार के लिए निकल ही रहे थे कि एक फरियादी आ गए। वे शहर के सेठ हैं। उनका एक लम्बा चौड़ा मकान एक आदमी ने कब्जा कर रखा है। भैया जी को बाप के सुझावों पर अमल करने का मौका मिल गया। सेठ जी बैठक में गए।

         'कहिए सेठ जी' उन्हें बिठाते हुए भैया जी ने कहा, 'भैया जी, अपना वह चौराहे के बगल जो मकान है, निर्गुन बाबू बहुत दिन से कब्जा किए हुए हैं। कचहरी से हमारे पक्ष में फैसला हो गया तब भी निर्गुन बाबू खाली नहीं कर रहे हैं। जिले के अधिकारी भी निर्गुन बाबू के सामने नहीं जाना चाहते।'

'निर्गुन बाबू कोई मामूली हस्ती नहीं है सेठ जी।'

'वह तो जानता हूँ।'

'आप आए हैं तो कुछ करना ही पड़ेगा। आप जैसे सेठ तो जब चाहें वैसा मकान खड़ा कर सकते हैं पर सवाल नाक का है। सेठ जी का मकान कब्जा हो गया यह बात ही कचोटती है। आदमी इज्ज़त के लिए मरता है।'

'आप ठीक कहते हैं भैया जी।'

'आपने मुकदमें में पैसा पानी की तरह बहाया है।'

'आप तो जानते ही है लाखों लग गए हैं।'

'सवाल इज्ज़त का है रुपये का नहीं। निर्गुन बाबू से मकान खाली होना ही चाहिए, चाहे कोई दूसरा उसे मुफ़्त में ही ले जाए।'

'मकान पन्द्रह लाख का होगा भैया जी।'

'मैं यों ही कह गया। आखिर इज्ज़त का सवाल है न? सुना है आपके बाबा ने दो पैसा रोज बैठकी देना स्वीकार न किया। मुकदमें में तीन हजार रुपए खर्च कर दिए।'

'इज्ज़त के लिए वे सब कुछ लुटा सकते थे।'

'इज्ज़त के लिए ही आदमी न जाने क्या क्या करता है? ठीक है, देखते हैं हम।' भैया जी ने कहा।

सेठ जी उठते हुए कह पड़े, 'भैया जी ध्यान दीजिएगा।'

'बिल्कुल चिन्ता न कीजिए।' भैया जी ने कान खुजाते हुए उत्तर दिया। जैसे ही भैया जी बाहर निकले मैंने निमंत्रण पत्र दिया। एक नज़र डालकर कहा, 'ठीक है।' मैं लौट पड़ा पर मन इस प्रकरण में लगा रहा। रात दस बजे मैं सेठ के मुन्शी से मिला। उसने बताया निर्गुन बाबू ने शाम छः बजे तक अपना सामान हटवा लिया। सेठ जी को सात बजे सायं खबर मिली कि मकान खाली हो गया। वे बहुत प्रसन्न हुए। भैया जी को फोन पर बधाई दी। कहा, 'पान फूल जो होगा लेकर उपस्थित होंगे। रात आठ बजे अपनी दूकान का काम समेट कर वे मकान की तरफ गए। 'सुरसंगम' का बोर्ड देखकर चौंक गए। मकान का मुख्य द्वार खुला था। जैसे ही उन्होंने द्वार के अन्दर पैर रखा मधुर स्वर लहरी में घुँघरुओं की झंकार सुनाई पड़ी। बैठक में झाँक कर देखा, भैया जी अपने तीन साथियों के साथ मसनद लगाए बैठे हैं। एक बाला नृत्य कर रही है। सेठ जी अन्धेरे में खड़े हो गए। नृत्य तेज़ एवं उत्तेजक होता जा रहा था। एक बालिका चाँदी की ट्रे में शेम्पेन की बोतल और चार गिलास रख बैठक में दाखिल हुई। सेठ जी से आगे देखा नहीं गया। मकान के सभी बड़े कमरों में बढ़िया कालीन बिछा था। दो कमरों में कुछ सामान उल्टा सीधा रखा था। दो लोग उसे उचित जगह पर सजा रहे थे। सेठ जी दबे पाँव अपने घर लौट आए।

भैया जी को फोन मिलाया। वे सुरूर में आ चुके थे। 'भैया जी' सेठ जी ने जैसे कहा, भैया जी की खनकती हुई आवाज़ आई। 'सेठ जी आपका मकान खाली हो गया। खुशी मनाइए। आपकी इज्ज़त रह गई। इज्ज़त बड़ी चीज़ है दुनिया में। वह. ... वह मुझे 'सुरसंगम' के लिए मकान की ज़रूरत थी। यह मकान अच्छा है। इस काम के लिए काफी है। बोर्ड लग गया है। निर्गुन चले गए न? 'सुरसंगम' को सजाने का जिम्मा आपका। पान फूल आपने कहा था। बहुत मामूली रकम.......ओ ओ..... बहुत मामूली....ओ सेठ बोल नहीं रहा..... सिर्फ तीन लाख में हो जाएगा.....ओ सेठ.....ओ सेठ ।' भैया जी पुकारते रहे पर सेठ ने अपना मोबाइल आफ कर दिया था। घर लौटते में सोचने लगा नागनाथ की शरण में जाओ या साँपनाथ के। क्या फर्क पड़ने वाला है? कल यही लोग आम जन की समस्याओं पर भाषण देंगे। अपनी बैठक में गुठली तक हज़म करने की योजनाएँ बनाएँगें।