सूनी हवेली - भाग - 16 Ratna Pandey द्वारा क्राइम कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सूनी हवेली - भाग - 16

अनन्या नहीं चाहती थी कि दिग्विजय इस तरह सो जाए। इसलिए वह उसे जगाने की कोशिश कर रही थी पर उसकी आंखें खुल ही नहीं रही थीं।

दिग्विजय ने सोते हुए कहा, "मेरी जान बहुत नींद आ रही है, कल सुबह बात करते हैं। वैसे यहाँ जो भी है सब कुछ तुम्हारा ही तो है," कहते हुए वह सो गया।

अनन्या ने सोचा कोई बात नहीं आज नहीं तो कल या परसों ही सही हवेली तो वह उसके नाम करवा ही लेगी। उसने वीर के हक़ को दिग्विजय के साथ बांटा है। वीर कितना सुलझा हुआ इंसान है, सोचते हुए वह भी नींद की बाँहों में समा गई।

सुबह-सुबह अनन्या जब सो कर उठी तो उसने दिग्विजय की तरफ देखा। वह गहरी नींद में सो रहा था। तभी उसने देखा कि उसके मोबाइल पर उसके बॉयफ्रेंड वीर के तीन-चार मिस्ड कॉल थे। अनन्या बेफ़िक्र थी, उसे मालूम था कि रात की शराब की खुमारी अभी तक गई नहीं होगी। यह तो आज जल्दी उठने वाला नहीं है।

अनन्या ने दूसरे कमरे में जाकर वीर को फ़ोन लगाया।

सामने से वीर की आवाज़ आई, "हेलो अनन्या, तुम वापस आने में और कितना समय लोगी? मुझे तुम्हारी बहुत याद आ रही है। वहाँ तुम्हें कोई ख़तरा तो नहीं है ना?"

"देखो वीर मैं जो भी कर रही हूँ हम सब के उज्ज्वल भविष्य के लिए ही कर रही हूँ। दिग्विजय पूरी तरह से मेरी मुट्ठी में है। वह मुझ पर जान छिड़कता है। 90% काम हो चुका है बस 10% ही बाक़ी है। मैं वह भी जल्दी ही पूरा कर लूंगी। मैंने तुम्हें फ़ोन करने का मना किया था पर तुमने नहीं सुना। देखो वीर इस बार तो कर दिया पर अब आगे मत करना। अब तो हम अपनी मंज़िल के बहुत ही निकट आ चुके हैं। बस हवेली अपने नाम कर लूं यही मेरा आखिरी दाँव बाक़ी है।"

"वीर ने पूछा पर क्या वह ऐसा करेगा?"

"अरे मैंने उससे कहा कि मैं उसके बच्चे की माँ बनने वाली हूँ और मेरी यह बात सुनकर तो वह मेरे तन के प्यार के साथ ही साथ मुझे भी सच में प्यार करने लगा है।"

"तुम तो हो ही नशीली शराब की बोतल जैसी, कितनी कशिश है तुम में। कितनी मनमोहक हो तुम? वहाँ तुम उसे सुखी कर रही हो और यहाँ मैं तुम्हारे विरह में तड़प रहा हूँ।"

"बस वीर अब तुम्हें ज़्यादा दिन नहीं तड़पाऊंगी। तुम बस मेरे माँ-बाप का ख़्याल रखना। मेरी जान उन्हीं में बसती है।"

"ठीक है चिंता मत करो मैं उन्हीं के साथ हूँ। इस समय वह बिल्कुल ठीक हैं। चलो रखता हूँ।"

"लव यू जानूं," कह कर जैसे ही अनन्या ने फ़ोन बंद किया और अपनी नज़र को दूसरी तरफ घुमाया तो उसके हाथों से मोबाइल ज़मीन पर गिर पड़ा।

उसने देखा सामने दिग्विजय खड़ा-खड़ा उसे घूर रहा था।

जिस समय अनन्या वीर से बात कर रही थी तब अनन्या की माँ रेवती उसी कमरे में आ रही थी जहाँ वीर था। वह इससे अनजान था। उसने कमरे में अकेले रहने के कारण फ़ोन स्पीकर पर रखा था। उस समय अनन्या की आवाज़ सुनकर रेवती वहीं खड़ी हो गई और उसने उनके बीच होने वाली पूरी बातें सुन लीं। उधर दिग्विजय ने अनन्या को देख लिया था। इधर रेवती ने वीर और अनन्या की बातें सुन लीं।

बात सुनते ही रेवती ज़ोर से चिल्लाई, "वीर ..."

उधर अनन्या के हाथों से फ़ोन गिरा इधर वीर के हाथों से।

रेवती ने सीधे जाकर वीर के गाल पर तमाचा मारते हुए कहा, "यह क्या कर दिया तुम दोनों ने मिलकर।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः