सूनी हवेली - भाग - 2 Ratna Pandey द्वारा क्राइम कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सूनी हवेली - भाग - 2

दिग्विजय ने अपने मन में आए विचारों को यशोधरा से साझा करते हुए कहा, " यशोधरा मैं चाहता हूँ कि हम शहर से किसी पढ़ी-लिखी लड़की को बुलाकर अपने यहाँ रखें, जो हमारे बच्चों को पढ़ा सके। यदि ऐसा हो गया तो हमारे बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलेगी और उनकी अंग्रेज़ी भी अच्छी होगी। यहाँ के स्कूल के शिक्षक ख़ुद ठीक तरह से अंग्रेज़ी नहीं बोल सकते तो वह हमारे बच्चों को क्या ही सिखा पाएंगे। तुम क्या कहती हो?"

यशोधरा ने कहा, "तुम्हारी बात में दम तो है, परंतु अम्मा और बाबूजी से भी तो पूछना होगा।"

दिग्विजय ने कहा, " वह तो मैं पूछ ही लूंगा।"

यशोधरा से सलाह करने के बाद दिग्विजय दूसरे दिन सुबह अपने पिता भानु प्रताप और माँ परम्परा के पास उनके कमरे में गया और बोला, "बाबूजी, मैं बच्चों की पढ़ाई के लिए शहर से किसी लड़की को बुलाने का सोच रहा हूँ। मैं आपसे अनुमति चाहता हूँ।"

भानु प्रताप ने कहा, "हाँ बेटा, ठीक है, बुला लो। यह अच्छी बात है पढ़ाई-लिखाई का महत्त्व तो दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। इसके बिना जीवन भेड़-बकरियों जैसा ही रह जाता है।"

दिग्विजय खुश हो गया और उसने एक पढ़ी-लिखी लड़की की तलाश शुरू कर दी। कुछ ही दिनों में, यह खोजबीन उस लड़की पर जाकर पूरी हुई जिसका नाम था अनन्या।

दिग्विजय ने अनन्या से बात करते हुए उससे कहा, “देखो अनन्या तुम्हें मेरे तीनों बच्चों को पढ़ाना होगा। अंग्रेज़ी में बात करना सिखाना होगा। इसके लिए तुम्हें यहाँ हमारे घर आकर रहना होगा। तनख्वाह जो तुम बोलो उतनी मिलेगी। रहने के लिए कमरा और खाने पीने की हर सुविधा भी मिलेगी। तुम्हें ज़्यादा से ज़्यादा समय बच्चों की पढ़ाई पर ही ध्यान केंद्रित रखना होगा। हमारे घर के सभी सदस्यों के साथ तुम्हारा व्यवहार अच्छा होना चाहिए। तुम्हें घर में काम काज करने की भी कोई आवश्यकता नहीं होगी क्योंकि हम तुम्हें यहाँ शिक्षिका के रूप में बुला रहे हैं। बोलो क्या तुम्हें मंजूर है?”

अनन्या को तो मानो बिना मांगे सब कुछ मिल गया हो। उसने खुश होते हुए कहा, “जी सर मुझे तो मंजूर है मैं बस अपने माता-पिता से बात करके आपको मेरा निर्णय बताती हूँ।”

दिग्विजय ने कहा, “ठीक है।”

अनन्या एक बहुत ही गरीब माँ बाप की महत्त्वाकांक्षी बेटी थी जो कम समय में बहुत कुछ हासिल कर लेना चाहती थी। उसकी मंज़िल थी अमीर बनना और सपना था अपने माता-पिता को हर सुख देना।

दिग्विजय से बात करने के बाद अनन्या ने मन बना लिया कि वह इस नौकरी को स्वीकार कर लेगी।

अनन्या ने अपनी माँ रेवती और पिता घनश्याम को यह पूरी बात बताते हुए कहा, “पापा, मुझे गाँव में शिक्षिका की नौकरी मिल रही है लेकिन उसके लिए मुझे गाँव की हवेली में जाकर रहना होगा। भरा पूरा परिवार है इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है। वहाँ वेतन के अलावा रहने-खाने की सारी सुविधाएँ मुफ्त में मिलेंगी।"

अनन्या की बात सुनकर उसके माता पिता एक दूसरे की तरफ़ देखने लगे।

तब अनन्या ने कहा, "पापा सिर्फ़ तीन बच्चों को पढ़ाने की ही तो बात है।"

रेवती ने कहा, "लेकिन अनन्या तुम्हें अपने से दूर भेजने के लिए मन नहीं मान रहा। क्या यहीं आस पास कोई नौकरी नहीं मिल सकती?"

अनन्या ने कहा, "अरे मेरी प्यारी माँ लक्ष्मी ख़ुद चलकर हमारे घर आना चाह रही है तो आप उसके कदमों को क्यों रोक रही हो। बस अब तो हमारे खुशियों से भरे दिन आने वाले हैं।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः