सूनी हवेली - भाग - 6 Ratna Pandey द्वारा क्राइम कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

सूनी हवेली - भाग - 6

हवेली में सभी से परिचय होने के बाद अनन्या अपने कमरे में गई। गेस्ट रूम में वह सभी सुख-सुविधाएँ मौजूद थीं, जो उसने कभी अपने घर में नहीं देखी थीं। ऐसी सभी चीजें उसे और भी खुश कर गईं क्योंकि ये सब उसके ऑफर में शामिल भी नहीं थे। उसमें तो सिर्फ़ रहने के लिए कमरा और खाना इतना ही था। उसने सलीके से कमरे में अपना सामान जमाया और फ्रेश होकर तैयार हो गई। उसके बाद सभी के साथ बैठकर रात्रि का भोजन किया। दूसरे दिन से उसने अपना काम शुरू कर दिया। वह रोज़ दो-तीन घंटे बच्चों को पढ़ाती थी।

अनन्या धीरे-धीरे यशोधरा के बच्चों से काफ़ी घुल मिल गई थी। घर में सभी उसे पसंद करने लगे थे। लेकिन अनन्या के दिलो दिमाग में तो कुछ अलग ही खिचड़ी पक रही थी। यहाँ की शान और शौकत उसे गुमराह कर रही थी। धीरे-धीरे उसके इरादे बदलते जा रहे थे। उसके बदलते इरादों को उसकी सुंदरता का भरपूर साथ मिल रहा था। दिग्विजय तो ऐसे भी उसका दीवाना हो चुका था। वह यशोधरा और अनन्या की मन ही मन तुलना करने लगा। उसे हर बार अनन्या का पलड़ा ही भारी लगता। उस पलड़े में हुस्न था, नज़ाकत थी, अदायें थी, कमसिन उम्र भी थी जबकि दूसरे पलड़े में यशोधरा का बढ़ता शरीर, जवाबदारियों से भरा जीवन जिसमें उसके अलावा पूरा परिवार भी शामिल था।

यशोधरा ने कभी ध्यान नहीं दिया या यूँ समझ लो कि उसने ऐसी ज़रूरत ही नहीं समझी कि अनन्या उसके पति दिग्विजय पर अपनी सुंदरता के, अपनी अदाओं के डोरे डाल रही है। दिग्विजय धीरे-धीरे यशोधरा से मन ही मन दूर होने लगा। जिसे यशोधरा महसूस कर पाती उससे पहले ही अचानक उसके पिता की तबीयत खराब होने के कारण उसे अपने मायके जाना पड़ा। यशोधरा का मायके जाना दिग्विजय और अनन्या के लिए लॉटरी लगने जैसा हो गया। यशोधरा पढ़ाई के कारण तीनों बच्चों को घर पर ही छोड़ गई थी। वह सोच रही थी अनन्या है ना वह सब कुछ संभाल लेगी और हुआ भी बिल्कुल वैसा ही। अनन्या ने तो वह सब कुछ भी संभाल लिया जो यशोधरा ने नहीं सोचा था।

अनन्या यहाँ के पूरे किस्से वीर को सुनाया करती थी। एक दिन उसने कहा, "वीर, अगर यह हवेली हमें मिल जाए, तो हमारा जीवन संवर जाएगा। ऐशो आराम की ज़िन्दगी मिल जाएगी। हम अपने सपनों को भी साकार कर लेंगे। यहाँ का मालिक मेरा दीवाना है। मैं उस पर डोरे डाल रही हूँ।"

वीर ने कहा, "अनन्या यह तो बहुत ही रोमांच से भरी बात लग रही है एक आलीशान हवेली क्या सच में हमारी हो सकती है?"

"हाँ वीर बिल्कुल हो सकती है। बस मुझे उसे अपने प्यार के चक्रव्यूह में ऐसा फंसाना होगा कि वह बाहर ही ना निकल पाए। घर के सभी सदस्यों की आंखों में धूल झोंकते हुए एक-एक क़दम फूंक-फूंक कर रखना होगा। यहाँ काम करने वाली रमा और निर्मला दोनों का भी ध्यान रखना होगा। वह तो सुबह से शाम तक यहाँ पर ही रहती हैं लेकिन वीर उसके लिए मुझे बहुत कुछ करना पड़ेगा।"

"अरे तो करो ना मना किसने किया है। कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः