सूनी हवेली - भाग - 7 Ratna Pandey द्वारा क्राइम कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

सूनी हवेली - भाग - 7

अनन्या को अपनी योजना सफल करने के लिए यदि फ़िक्र थी तो वह सिर्फ वीर की थी। वह चाहती थी कि इस काम में वीर पूरे मन से उसके साथ हो। अनन्या ने वीर से पूछा, "तुम मेरा साथ दोगे ना वीर?"

"हाँ-हाँ अनन्या मैं तुम्हारे साथ हूँ और क्या फ़र्क़ पड़ता है यार, ज़्यादा से ज़्यादा तुम्हें उसके साथ सोना पड़ेगा तो ठीक है ना कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। तुम अपनी कोशिश में कमी बिल्कुल मत आने देना। उस पर अपना तन भले ही न्यौछावर कर दो बस मन मत करना वह तो केवल मेरा है।"

अनन्या ने कहा, “वीर ध्यान रहे इस बात का पापा मम्मी को बिल्कुल भी पता नहीं चलना चाहिए।”

“अनन्या तुम डरो नहीं मैं यहाँ हूँ ना, मैं सब कुछ संभाल लूंगा।”

तभी किसी के कदमों की आहट का आभास होते ही अनन्या ने कहा, "आई लव यू वीर लगता है शायद कोई आ रहा है चलो रखती हूँ।"

वीर से बातें करने के बाद अनन्या को अब किसी बात का डर नहीं था। उसका वीर इस साज़िश में उसके साथ था इसीलिए अनन्या ने अब अपनी अदाओं का जादू और भी अधिक बढ़ा दिया।

अनन्या अब जानबूझकर दिग्विजय के सामने बार-बार जाती। उसे अपनी खूबसूरत नशीली आंखों से देखती और देखती ही रहती। दिग्विजय भी खुश था, इन अदाओं से उसका अनन्या के प्रति आकर्षण और अधिक बढ़ता जा रहा था। अब वह भी जानबूझकर बार-बार कभी उससे पानी मांगता, कभी चाय बनाकर लाने के लिए कहता। दोनों एक दूसरे के लिए बेकरार हो रहे थे। अनन्या को तो इस हवेली ने मोह लिया था; ऊपर से दिग्विजय का गठीला बदन भी उसे मोहित कर रहा था।

अनन्या को लगने लगा कि यदि दिग्विजय उसके वश में आ जाए तो उसके सारे सपने पूरे हो जाएंगे। वह फिर अपने माता-पिता को पूरी दुनिया घुमाएगी। तक़दीर भी उसी का साथ दे रही थी। शायद इसीलिए तो यशोधरा का मायके जाना हो गया था।

अनन्या की हरकतों से दिग्विजय बहुत खुश था। उसे लग रहा था कुआँ तो ख़ुद ही प्यासे के पास आने के लिए बेकरार है तो फिर उसे अपनी प्यास ज़रूर ही बुझा लेनी चाहिए। इस कुएँ में कूदने के लिए वह एक पांव पर तैयार था और उस कुएँ की गहराई में खो जाना चाहता था। यशोधरा के बिना उसका कमरा भी खाली था। यह बात तो अनन्या भी जानती थी। यशोधरा को जाने को लगभग दो हफ़्ते हो चुके थे। तभी से पिछली यह रातें दिग्विजय और अनन्या के लिए विरह से भरी हुई थीं। दोनों एक दूसरे के पास जाना चाहते थे लेकिन पहल कौन करे इसी कशमकश में यह रातें बीत गईं।

अनन्या ने बिस्तर पर जाते समय सोचा, वह इस कीमती समय को क्यों बर्बाद कर रही है? ऐसे मौके बार-बार नहीं आते। जा जाकर भर ले उसे अपनी बाँहों में। यदि इस हवेली की रानी बनना है तो उसे ख़ुद ही पहल करनी होगी।"

रात के एक बजे के लगभग, जब तीनों बच्चे और दिग्विजय के माता-पिता गहरी नींद में थे, अनन्या और दिग्विजय की आंखों से नींद कोसों दूर थी। वह तो अपने बिस्तर पर करवटें बदल रहे थे। लेकिन आज की रात अनन्या ने फ़ैसला कर लिया था कि वही शुरुआत करेगी।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः