शालू और सांझ आराम से बिस्तर पर लेटी अपनी-अपनी मेहंदी देख रही थी।
"कितनी अच्छी फीलिंग होती है ना शालू दीदी यह शादी, मेहंदी, एकदम ट्रेडिशनल तरीके से करना..!!" सांझ ने अपनी हथेलियां को देखते हुए कहा।
शालू ने उसकी तरफ देखा।
"और वह भी जब इतने लंबे थे इंतजार के बाद हो तो होने वाली खुशी का अंदाजा हम दोनों के अलावा और कौन लगा सकता है?" शालू ने कहा तो सांझ ने उसकी तरफ देखा और वापस से अपनी मेहंदी में देखने लगी।
"पता है शालू दीदी इन दो सालों में भले में जज साहब को भूल गई थी और सब कुछ भूल गई थी पर फिर भी न जाने क्यों ऐसा लगता था कि कुछ तो है। कुछ अधूरा सा, कुछ कमी सी है लाइफ में। और अब समझ में आया कि वह कमी क्या थी। मेरे जज साहब मेरे पास नहीं थे तो सब कुछ होकर भी जैसे कुछ अधूरा सा था। पहले मुझे याद नहीं था पर मेरा दिल इस कमी को महसूस करता था। इस खालीपन को महसूस करता था।"
" प्यार सच्चा होता है ना वहां रास्ते खुद ब खुद बन जाते हैं और ईश्वर खुद सब सही करते चले जाते हैं। देखो तुम्हारे और अक्षत भाई के बीच सब सही हो गया ना और मैं बहुत-बहुत खुश हूं तुम दोनों के लिए!'
" हम दोनों के लिए नहीं दीदी हम चारों के लिए..!!" सांझ ने कहा तो शालू के चेहरे पर की मुस्कुराहट बड़ी हो गई और दोनों वापस से अपनी अपनी मेहंदी की डिजाइन में खो गई।
अगले दिन सुबह से ही फिर से तैयारी शुरू हो गई। कई सारी रस्में होनी थी और फिर सांझ और शालू की शादी का मुहूर्त था। छोटी-मोटी रस्मों से फ्री होकर दोनों शादी के लिए तैयार होने लगी। मालिनी की बुलाई ब्यूटी एक्सपर्ट दोनों को उनके कमरों में ही तैयार कर रही थी तो वही अक्षत और ईशान भी रेडी हो रहे थे। उनकी मदद नील मनु और घर के बाकी लोग कर रहे थे।
" कुछ भी कहो जँच रहे हो दूल्हे राजा। आज चेहरे की चमक ही कुछ और है।" नील अक्षत के चेहरे की तरफ देखकर कहा तो अक्षत के आकर्षक चेहरे की मुस्कुराहट थोड़ी सी बड़ी हो गई।
"यह चमक दूल्हा बनने के से ज्यादा इस बात की है कि अब मेरी मिसेज चतुर्वेदी हमेशा मेरे साथ रहेंगी और अब दुनिया की कोई भी ताकत उसे मुझसे दूर नहीं कर सकती।" अक्षत ने कहा।
",बिल्कुल नहीं कर सकती और फिर तूने बिल्कुल सही कहा था। और आज मैं मान गया दोस्त तेरे प्यार को। जब पूरी दुनिया ने मान लिया था कि वह नहीं है पर तू अपनी जिद पर अड़ा रहा और आज देखो भाभी वापस आ गई है।और मैं बहुत खुश हूं तुम्हारे लिए। बस तुम हमेशा ऐसे ही खुश रहो और दोनों हमेशा साथ रहो।" नील उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा।
" बिल्कुल साथ रहेंगे क्यों नहीं रहेंगे? इतना लंबा इंतजार किया है और फिर दोनों का इतना गहरा रिश्ता है तो प्यार और साथ रहेगा ही रहेगा।" मनु ने कहा।
" वैसे कम कहीं से हमारे ईशान बाबू भी नहीं है। जितना इंतेज़ार अक्षत ने किया है उतना ही इंतजार तो ईशान ने भी किया है। हां बस दोनों की परिस्थितियों अलग-अलग थी।" निल बोला।
" हमारी परिस्थितियों अलग-अलग थी पर हम दोनों ही बड़ी शिद्दत से उन लोगों के लौटने का इंतजार किया है। और देखो फाइनली दोनों बहने हम दोनों को जी भर तड़पाने के बाद वापस आ गई है।" ईशान ने हंसते हुए कहा तो बाकी लोग भी हंसने लगे।
" चलो भाई बारात निकलने का टाइम हो गया है।।।" अरविंद ने आकर कहा और उसी के साथ बारात निकालने की तैयारी शुरू हो गई।
ढोल बाजों के साथ दोनों भाइयों की बारात एक साथ निकली और सभी दोस्तों और रिश्तेदारों ने उनकी बारात के आगे जम के डांस किया।
घूमते घूमते बारात वापस से मैरिज हॉल में आ गई तो लड़कियों ने आकर सांझ और शालू को बता दिया की बारात आ गई है.
दोनों के चेहरे की मुस्कुराहट के साथ-साथ दिल की धड़कनें भी तेज हो गई. और दोनों अपनी खिड़की पर खड़े होकर नीचे बारात देखने लगी जहां अक्षत और ईशान सफेद रंग की घोड़ियों पर सवार थे और उनके सामने मनु नील और बाकी के लोग जम के डांस कर रहे थे।
सांझ बस अक्षत को देखे जा रही थी कि ठीक उसी समय अक्षत ने नजर उठाकर ऊपर देखा।
सांझ को खिड़की में खड़े देख उसके चेहरे की मुस्कुराहट बड़ी हो गई और उसने आंखों के सारे से सांझ को नीचे आने को कहा।
बदले में सांझ ने ना में गर्दन हिला दी पर अक्षत ने उसे दोबारा इशारा किया तो सांझ ने खिड़की से हटकर पीछे देखा जहाँ मालिनी खड़ी हुई थी।
" जाओ। तुम दोनों जा सकते हो अब जमाना बदल गया है। अपने तरीके से एंजॉय करो और स्वागत करो अपने-अपने दुल्हे का। " मालिनी ने कहा तो शालू और सांझ ने एक दूसरे को देखा और कुछ लड़कियों के साथ मैरिज हॉल के दरवाजे की तरफ चल दी।
जैसे ही दोनों लोग दरवाजे के पास पहुंची म्यूजिक बजना शुरू हो गया और उसी के साथ साँझ और शालू भी हल्के-फुल्के डांस स्टेप्स के साथ अक्षत और ईशान की तरफ बढ़ने लगी।
अक्षत और ईशान भी घोड़े से उतर आए और उन्होंने आकर सांझ और शालू का हाथ थाम लिया और उसी के साथ एक फास्ट म्यूजिक शुरू कर दिया म्यूजिक ऑपरेटर ने और दोनों जोड़े डांस करते हुए स्टेज की तरफ बढ़ने लगे।
स्टेज पर जाकर अक्षत ने साँझ का हाथ थामा और उसे लेकर स्टेज के ऊपर चढ़ गया तो वही शालू और ईशान भी स्टेज पर आ गए।
दोनों कपल एक एक तरफ खड़े हो गए और उसी के साथ वरमाला का प्रोग्राम शुरू हो गया।
ईशान ने शालू को वरमाला पहनाई और शालू ने ईशान को। उसके बाद अक्षत ने सांझ की तरह देखा तो पाया कि सांझ की आंखें भरी हुई है।
अक्षत ने आंखों के सारे से ना में गर्दन हिलाई और उसके गले में माला पहना कर उसके कंधों पर हाथ रखा।
"फाइनली पूरी दुनिया के सामने आप मेरी हुई मिसेज चतुर्वेदी।" अक्षत ने कहा तो साँझ भरी आंखों के साथ मुस्कुरा उठी।
"मैं भी इंतजार कर रहा हूं अब आप भी अपनी तरफ से मोहर लगा दीजिए।" अक्षत ने कहा तो सांझ ने उसके गले में माला पहना दी।
अक्षत ने उसके हाथ को कसकर थाम लिया और उसी के साथ घर परिवार के बाकी लोगों ने उनके ऊपर फूल बरसाए और फिर आकर एक-एक करके उन्हें आशीर्वाद देने लगे।
वरमाला प्रोग्राम के बाद दोनों जोड़ों को मंडप में लाया गया जहां पर दोनों की शादी की बाकी विधियां होनी थी। अक्षत ने सांझ का हाथ अभी भी थाम रखा था और हर एक रस्म के साथ दोनों का बंधन और भी मजबूत होता जा रहा था। तो वही शालू और ईशान एक दूसरे के साथ सात वचन और के साथ फेरे लेते हुए अटूट बंधन में बंधते जा रहे थे।
"कन्या को सिंदूर लगाइए और मंगलसूत्र पहनाइए!" पंडित जी ने कहा तो ईशान ने शालू की मांग मे सिंदूर भरा और उसके गले में मंगलसूत्र पहना दिया।
तो वही अक्षत ने सांझ की तरह देखा जो कि अपनी भरी आंखों से उसे ही देख रही थी।
अक्षत ने उसके कंधे पर हाथ रखा और एक सॉफ्ट मुस्कुराहट के साथ उसकी मांग में अपने नाम का सिंदूर लगा दिया। सांझ की आंखें बंद हो गई और बंद आंखों से कुछ बुँदे गालो पर बिखर गई जिन्हें तुरंत अक्षत ने अपनी हथेली से साफ कर दिया और फिर उसके गले में मंगलसूत्र पहना दिया।
"जो भी दर्द भरे दिन थे जो भी तकलीफें थी वह सब खत्म हो गई सांझ अब सिर्फ और सिर्फ इन लबों पर मुस्कराहट देखनी है मुझे, इन आंखों में आंसू नहीं। समझी..!!"
" पर यह तो खुशी के आंसू है जज साहब..!!" सांझ भावुक होकर बोली।
" तब चलेगा बाकी दुखी होने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है।" अक्षत ने उसका हाथ मजबूती से थाम के कहा।
" विवाह संपन्न हुआ।" पंडित जी की आवाज आई और उसी के साथ दोनों कपल उठ खड़े हुए और फिर अपने सभी बड़ों का आशीर्वाद लिया।
सभी रिश्तेदारों ने और मेहमानों ने खाना खाया और उसके बाद अबीर, अरविंद और दिवाकर तीनों परिवार एक साथ खाना खाने के लिए बैठे। और उसके बाद विदाई के रस में शुरू हो गई।
" बेटी की विदाई हर मां बाप की आंखों में आंसू भरकर भर लाती है। अबीर और मालिनी की भी आंखें भरी हुई थी पर साथ ही साथ में खुशी थी कि उनकी दोनों बेटियों को उनके मनपसंद का जीवनसाथी मिले हैं जो कि उनका हर कदम पर ख्याल रखेंगे, उनका साथ देंगे और उन्हें बेहद प्यार करेंगे। इसलिए उनके मन में कोई भी डर नहीं था अपनी बच्चियों के भविष्य को लेकर। बस खुशी और संतोष था।
उन्होंने भरी आंखों और होठों पर मुस्कुराहट लिए साँझ और शालू को अक्षत और ईशान के साथ विदा कर दिया और चतुर्वेदी परिवार अपने दोनों बेटों और दोनों बहुओ को लेकर अपने बंगले की तरफ निकल गए।
अबीर और मालिनी ने भी बाकी रिश्तेदारों को विदा किया फिर वह लोग भी अपने-अपने अपने अपने घर निकल गए ।
दिवाकर और सुजाता निशि के साथ अपने घर निकल गए तो वही नील और मनु अक्षत के साथ अक्षत के घर पर ही आ गए क्योंकि अभी यहां पर शादी के बाद की कुछ रश्में होनी थी और मनु नहीं चाहती थी कि किसी भी रस्म मे किसी भी तरीके की कमी रहे। उसके दोनों भाइयों की शादी थी और वह हर रश्म को बिल्कुल ठीक से करना चाहती थी। और नील भी यही चाहता था कि उसके दोस्त की हर खुशी में वह शामिल हो इसलिए दोनों दोनों अपने घर न जाकर अक्षत और ईशान के साथ चतुर्वेदी निवास ही आ गए थे ताकि आगे की तैयारी कर सके।"
क्रमश:
डॉ. शैलजा श्रीवास्तव