" डोन्ट वारि सांझ इतना नही करूँगा कि बर्दास्त न हो उनसे..!! पर तुम भूल सकती हो और माफ कर सकती हो नेहा को पर मैं नही।"
" बात माफ करने की या भूलने की नहीं है। मैं मानती हूं कि उनकी गलती है। पर मैं यह नहीं भूल सकती कि नेहा दीदी ने बचपन से लेकर अब तक हमेशा मेरा हर कदम पर साथ दिया था। उन्होंने मुझे हमेशा कहा कि मैं गाँव और चाचा चाची से कोई मतलब न रखूं। मै अपना सोचूँ अपने हिसाब से करूँ। उन्होंने हमेशा कहा कि मैं ये न सोचूँ कि किसी ने मुझ पर एहसान किया है। उन्होंने हमेशा मेरे लिए सोचा पर उस समय शायद वह नहीं सोच पाई होगी और अगर उनके दिमाग में एक बार भी यह बात रही होती कि मेरे साथ कुछ गलत हो सकता है तो मैं जानती हूं कि वह कभी भी मुझे नहीं छोड़ कर जा सकती थी। आप चाहे तो आगे भी आजमा लीजिएगा। थोड़ी बहुत मुझे भी इंसानों की परख है जज साहब और इतने दिनों में मैंने बहुत कुछ सीखा और समझा है। उनमें से एक चीज यह भी है कि नेहा दीदी ने मुझे हमेशा प्यार किया है अपनी बहन की तरह। और हां वह अपने लिए स्वार्थी हो गई थी इस बात से मैं मना नहीं कर रही पर वह कभी भी मेरे लिए गलत जानकर नहीं कर सकती यह मैं जानती हूं।"
" ठीक है देख लेंगे और अगर वह वाकई में तुम्हारी वेल विशर है और उनके मन में तुम्हारे लिए वाकई में प्यार है तो वह हमारे साथ आएंगी और जो मैं कहूंगा वह करेंगी और अगर वह ऐसा करती हैं तो ठीक है नहीं करूंगा उनके साथ कुछ भी गलत।" अक्षत ने कहा।
"थैंक यू जज साहब..!!"
" थैंक यू बोलने से काम नहीं चलेगा मिसेज चतुर्वेदी..!! बस आज की रात और कल की रात और परसों आप मेरे पास होंगी और फिर बस
.!!" कहते-कहते अक्षत रुक गया।
"फिर बस क्या?" साँझ के दिल की धड़कन बढ़ गई थी।
"दो साल पूरे दो साल इंतजार किया है तुम्हें अपने करीब देखने के लिए..!! तुम्हें अपने सीने से लगाने के लिए। तुम्हें जी भर प्यार करने के लिए। बस वही कह रहा था।" अक्षत अपने गहरी आवाज में कहा तो सांझ के चेहरे पर लालिमा आ गई।
" अच्छा जज साहब अभी रखती हूं मैं। अभी मुझे तैयार होना है। शाम को मेहंदी का प्रोग्राम होना है ना और उसी के साथ-साथ संगीत का प्रोग्राम भी है। कल तो हमारी शादी है ना दिन में फिर..!!" सांझ जल्दी से बोली।
"तुम ना कभी नहीं सुधर सकती..!! शादी हुए हमारी दो साल से ज्यादा हो चुका है और अभी भी जब तुमसे कोई रोमांटिक बात करो तो तुरंत बाद बदल कर पतली गली से निकलने के चक्कर में रहती हो।ठीक है निकल लो जितना निकलना है, भाग लो जितना भगाना है। कल हमारी शादी हो जाएगी और उसके बाद तुम्हें खुद से एक पल के लिए भी दूर नहीं जाने दूंगा।"
" आपसे भाग के कहाँ जाऊंगी जज साहब। मेरी तो मंजिल भी आप है और रास्ता भी सिर्फ आप..!! और भले दो साल से ज्यादा हो गए शादी को पर अब तक दो दिन भी नही रहे हम साथ।" साँझ धीमे से बोली।
" कोई बात नही। ये दो साल साथ नही रह पाए तो क्या..?? अब सारी कसर निकाल लेंगे हम।और अब हर पल तुम मेरे पास मेरे साथ रहोगी। मेरी आँखों के सामने।" अक्षत ने कहा।।
"और आपका कोर्ट..?? आप कोर्ट भी नहीं जाया करोगे क्या जज साहब..??" साँझ ने शैतानी के साथ कहा।
"अच्छा बहुत ज्यादा शैतानी आने लगी है..?? ठीक है नहीं जाऊंगा कोर्ट ..!! छोड़ दूंगा जॉब। वैसे भी अच्छा खासा बिजनेस है मेरे पापा का। टेंशन की कोई बात नहीं है, तुम्हारा पति इतना भी निकम्मा नहीं है समझी..!"
" पर आपने तो कहा था एक पल के लिए भी नहीं छोड़ोगे अगर कोर्ट छोड़कर बिजनेस जॉइन करोगे तब भी तो जाना पड़ेगा ना ऑफिस..?? तो छोड़ना पड़ेगा ना .??" दोबारा से सांझ ने कहा तो अक्षत के चेहरे की मुस्कुराहट बड़ी हो गई।
"तुम कहोगी तो नहीं जाऊंग। ऑफिस भी नहीं जाऊंगा कोर्ट भी नहीं जाऊंगा सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे पास रहूंगा।" अक्षत ने रोमांटिक अंदाज में कहा तो सांझ के चेहरे की भी मुस्कुराहट बड़ी हो गई।
"अरे तुम अब तक तैयार नहीं हुई..?? अभी बताया था ना आंटी ने की अभी मेहंदी और संगीत की रश्में होनी है। हम दोनों की शादी का मुहूर्त दोपहर का है तो कल तो सिर्फ शादी होगी ना और तुम हो की बातें करने में लगी हो।" तभी कमरे में आई शालू ने कहा तो सांझ ने आंखें बड़ी कर उसे देखा।
" दीदी वह.!!" कहते-कहते शालू रुक गई।
" पता है मुझे कि तुम्हारे जज साहब का फोन है। पर जज साहब की माता श्री का ही आदेश है कि जल्दी से तैयार होकर हम दोनों बाहर आ जाए। इसलिए अपने जज साहब से कहो कि फोन रखें और साक्षात दर्शन के लिए बाहर इंतजार करें।" शालू ने हंसते हुए कहा तो सांझ के चेहरे पर भी मुस्कुराहट बड़ी हो गई।
" जज साहब..!!" सांझ धीमे से बोली।
"हां कुछ कहने की जरूरत नहीं है..!! सुन लिया है मैंने मेरी साली साहिबा की बातों को। चलो तैयार हो जाओ मिलते हैं थोड़ी देर में हॉल में।" अक्षत ने कहा और कॉल कट कर दिया।
सांझ ने फोन को बेड पर पटका और अपने कपड़े लेकर चेंजिंग रूम में चली गई। कपड़े चेंज करते हुए चेहरे पर फिर से अजीब से भाव आ गए। पर उसने अपनी मुस्कुराहट के पीछे अपने दिल की सारी तकलीफों को छुपा लिया और शालू और सांझ तैयार होकर वापस से हॉल में चली गई जहां पर मेहंदी के साथ-साथ ही संगीत का प्रोग्राम भी होना था, क्योंकि अगले दिन दोनों की शादी का मुहूर्त दिन का था। जहां पर शादी की रस्में सुबह से ही शुरू हो जानी थी और शाम को सांझ और शालू को विदा होकर अपने ससुराल आ जाना था। इसलिए एक ही दिन में हल्दी मेहंदी और संगीत तीनों प्रोग्राम रखे गए थे एक के बाद एक। और वैसे भी अक्षत सब चीजे सादा तरीके से करना चाहता था। इसलिए बहुत ज्यादा बड़े स्तर पर अबीर और अरविंद ने सब कुछ नहीं किया था। नॉर्मल ही सारी तैयारी थी। बस पूरा परिवार साथ था। सभी रिश्तेदार साथ थे और सब खुलकर इंजॉय कर रहे थे और बच्चों को आशीर्वाद दे रहे थे जो की सबसे ज्यादा जरूरी चीज होती है।
मेहंदी के लिए सब लोग आ चुके थे और मेहंदी लगाने शुरू हो गई थी। वही सामने बनी स्टेज पर संगीत का प्रोग्राम भी शुरू हो गया था, जहां पर सारे कपल्स एक-एक करके डांस कर रहे थे।
सांझ ने अपनी हथेली आगे की तो मेहंदी वाली उसके हाथों मेहंदी लगाने के लिए आगे बढ़ी पर अगले ही पल अक्षत ने उसके हाथ से मेहंदी की कौन ले ली और सांझ की तरफ देखा तो सांझ के चेहरे की मुस्कुराहट आ गई।
"आप बाकी लोगों को के हाथ पर लगाइए..,, अपनी मिसेज चतुर्वेदी के हाथ को मैं खुद सजा दूंगा।" अक्षत ने कहा और सांझ। के पास बैठकर उसके हाथ में मेहंदी लगाने लगा।
अबीर मालिनी, साधना और अरविंद ने जब उन दोनों को ऐसे देखा तो उन चारों के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। सारी दुनिया से बेखबर अक्षत सांझ के हाथ पर खूबसूरती से मेहंदी लगा रहा था तो वही सांझ मुस्कुराते हुए बस उसे देख रही थी।
शालू ने ईशान की तरफ देखा और अपनी हथेली आगे कर दी । बदले में इशान ने अपनी बत्तीसी दिखा दी।
"माफ करना यार तुमने यहां गलत बंदा सेलेक्ट कर लिया है। मैं तुम्हें जितने डायमंड चाहिए लाकर दे सकता हूं। जहां हनीमून का ट्रिप चाहिए लेकर जा सकता हूं, पर यह मेहंदी लगाना तुम्हारे, बाल बनाना और कपड़े सेलेक्ट करना यह मुझसे नहीं हो पाएगा। थोड़ा सा अलग हूं मैं अपने भाई से।" इशान ने कहा तो शालू की मुस्कुराहट और भी बड़ी हो गई।
"जानती हूं और तुम जैसे भी हो मुझे वैसे ही पसंद हो..!! सबकी अपनी- अपनी चॉइस। उन दोनों का नेचर मिलता है। दोनों की पसंद नापसंद मिलती है तो दोनों का मेल भी अच्छा लगता है। और हम दोनों हैं ही अतरंगी तो हमारी आदतें भी अतरंगी है। मैं तो बस टेस्ट कर रही थी कि शायद अपने भाई को देखकर तुम्हारी अंतरात्मा जाग जाए और तुम भी आड़ा टेड़ा ही सही पर चीन का नक्शा मेरे हाथ पर बना दो!" शालू ने उसे देखते हुए कहा।
"चीन और पाकिस्तान को इतनी इंपॉर्टेंस क्यों देना यार..!! अगर नक्शा भी बनवाना है तो अपने इंडिया का बनवाओ अपने हाथ पर। लाओ मैं बना देता हूं।" ईशान ने कहा और शालू का हाथ पकड़ना चाहा तो शालु ने हथेली पीछे कर ली।
"उन दोनों की शादी एक बार हो चुकी है पर मेरी पहली बार हो रही है, और मुझे हर चीज ना एकदम परफेक्ट चाहिए समझे तुम..!! तो बैठो संगीत चल रहा है तो डांस को एंजॉय कर मेहंदी मैं खुद से लगवा लूंगी।" शालू ने कहा और मेहंदी वाली को इशारा किया तो वह उसके हाथों पर मेहंदी लगाने लगी।
"बाय गॉड तुम लड़कियां भी न यह सजना संवरना मेहंदी महावर के लिए इतनी क्रेजी क्यों होती है..??" नील ने मनु के पास बैठते हुए कहा जो कि अपने हाथों पर मेहंदी लगवा रही थी तो मनु ने खा जाने वाली नजरों से उसे देखा।
"मतलब अभी तक पुरानी मेहंदी का रंग नहीं उतरा है जो कि तुमने अपनी शादी में लगवाई थी और फिर से हथेलियां आगे कर कर बैठ गई..!मतलब गजब जबरदस्त क्रेज है?" नील बोला।
"तुम ना बेवकूफ थे और बेवकूफ ही रहोगे । इसे क्रेज नहीं कहते समझे। यह तो औरत का श्रृंगार होता है। और शादीशुदा लड़कियों मेहंदी महावर लगाती है । इनफैक्ट अनमैरिड लड़कियां भी लगाती है। और लड़कियों के यह सारे शौंक और श्रृंगार होते हैं इनमें कोई मौका नहीं देखा जाता और ना ही दिखावे के लिए किया जाता है। और न ही समय देख कर कि एक हफ्ते पहले किया था तो अब क्यों करना..??" मनु ने कहा।
"बिल्कुल ठीक कह रही है..!! और अब थोड़ा सा सुधर जा और थोड़ा चीजों को सीख जा। शादी हो गई है तेरी और तु इस तरीके की बेतुकी बातें करेगा तो ऐसे ही पत्नी से डांट खाएगा।" सुजाता ने मनु के पास बैठते हुए कहा तो मनु ने उनकी तरफ देखा।
"सॉरी मम्मी पर मेरा मतलब इसका इंसल्ट करने का नहीं था वह तो उसने बात ही ऐसी बोल दी इसलिए मेरे मुंह से निकल गया।"
"जानती हूं और तुम दोनों पति-पत्नी हो..! एक दूसरे से प्यार करो, तकरार करो, एक दूसरे से कैसे भी बोलो। हम कौन होते हैं। हम तो सिर्फ इतना चाहते हैं चाहे कैसे भी रहो पर साथ रहो और एक दूसरे के साथ खुश रहो।" सुजाता ने कहा तो मनु ने नील को देखा और फिर मुस्कुराकर मेहंदी लगवाने लगी।
मेहंदी और संगीत का प्रोग्राम पूरा हुआ उसके बाद छोटी-मोटी और रस्मे हुई और फिर सब अपने अपने रूम में आराम करने चले गए क्योंकि अगले दिन सुबह से ही शादी की रस्में शुरू हो जाने थी और शाम तक विदाई हो जानी थी तो बहुत सारे काम थे।
अबीर मालिनी अरविंद और साधना तो कामों में ही बिजी थे बाकी लोग उनकी मदद कर रहे थे तो वही शालू और सांझ आराम से बिस्तर पर लेटी अपनी-अपनी मेहंदी देख रही थी।
क्रमश:
डॉ. शैलजा श्रीवास्तव