साथिया - 7 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 7

" सीनियर को गले लगाना है वो भी ऐसे कि सीनियर को सेटीफक्सन हो?" अक्षत बोला तो निखिल ने आँखे छोटी करके उसे देखा।

" सुपर सीनियर अक्षत चतुर्वेदी लॉ डिपार्टमेंट!" शालू के मुँह से निकला तो सांझ ने भी भरी आँखों से उसे देखा।

दूध सी सफेद रंगत, लम्बा कद, घुंघराले से बिखरे बिखरे बाल लम्बी सी नाक और बेहद आकर्षक चेहरा।

"प्रिंस...सिनरेला की स्टोरी वाला!" सांझ के दिल में आवाज उठी और उसने एक बार अक्षत के मुस्कान लिए चेहरे को देखा और फिर नजरे झुका ली।

" सीनियर आप इस मामले से दूर रहिये। ये आपका मामला नही है।" निखिल बोला।

" बात जहाँ सही गलत की हो वहाँ कानून का मामला मतलब की कानून के स्टूडेंट का मामला हो ही जाता है।" अक्षत ने तिरछी मुस्कान के साथ कहा।

" हम सिर्फ रैगिंग कर रहे है! ऐसा कोई बड़ा कांड नहीं।" निखिल ने कहा।

" रैगिंग करना मना है। फिर भी तुम्हारी तसल्ली के लिए तुम ने जो इस लड़की से कहा वो कर लेते है।" अक्षत बोला और उसने अपनी बाहों का घेरा इस तरीके से सांझ के चारों तरफ किया कि सांझ के शरीर को टच नहीं हो और निखिल की तरफ देखा।

"सुपर सीनियर हूँ और इसमें मुझे हग कर लिया और मुझे सेटीफक्सन भी है तो बात खत्म। आज के बाद अगर इसे परेशान किया तो समझ लेना।" अक्षत ने कहा उसके चेहरे के भाव बदल गए।

"यह गलत है सीनियर....! यह हमारे डिपार्टमेंट से है और इसकी रेकिंग लेने का अधिकार सिर्फ हमारे पास है और आप हमें नहीं रोक सकते।" निखिल भुनभुना उठा।

" रेकिंग करना गलत है और सबसे बड़ी बात सुपर सीनियर के पास सारे अधिकार होते हैं। और आज इसकी रेकिंग पूरी हो गई अब आज के बाद इस लड़की के आस पास भी दिखाई मत देना समझे।" अक्षत ने कहा तो सांझ ने नजर उठाकर उस इंसान को देखा जिसने आज उसे इस मुश्किल से बचाया था।

सांझ की आंखों में एक शुक्रिया का भाव आ गया ला।

"थैंक यू।" सांझ ने कहा।

" थैंक यू की नही हिम्मत की जरूरत है। हिम्मत लाओ अपने अंदर । घबराने और डरने की जरूरत नहीं है। जो डरते हैं उन्हें लोग ज्यादा डराते हैं इसलिए स्ट्रांग बनो। तुम कंफर्टेबल हो तो जो सामने वाला बोल रहा हैं वह कर दो...! पर अगर तुम कंफर्टेबल नहीं हो तो मना करना सीखो क्योंकि ना का मतलब सिर्फ ना होता है। और तुम्हारे ना करने के बाद कोई भी तुम्हारे साथ जबरदस्ती नहीं कर सकता। समझ रही हो ना?" अक्षत ने कहा तो साँझ ने गर्दन हिला दी और उसी के साथ अक्षत वहां से निकल गया।

सांझ की नजरों ने तब तक उसका पिछा किया जब तक कि वो आँखों से ओझल नही हो गया।

बाकी सिनियर्स भी जा चुके थे सिर्फ शालू वहाँ रुक गई थी।

" हैलो सांझ..! आई एम शालिनी फ्रॉम इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट और तुम मुझे शालू बोल सकती हो।" शालू ने हाथ आगे बढ़ाया तो सांझ ने तुरंत थाम लिया।

" थैंक्स..!" आज आपने बहुत हेल्प की।" सांझ बोली।

" दोस्ती मैं नो सॉरी नो थैंक यु और हँ नो आप भी।" शालू बोली तो सांझ ने उसकी तरफ अजीब सी नजरों से देखा।

" वैसे तो शालू इतनी जल्दी किसी से दोस्ती करती नही है पर तुम कुछ अलग हो। दोस्त बानोगी मेरी।" शालू बोली तो सांझ ने मुस्करा के गर्दन हिला दी।

दोनों यूनिवर्सिटी के अंदर चल दी।

" कहाँ रह रही हो?" शालू ने पूछा।

"होस्टल में..!" सांझ ने जबाब दिया।

" वाओ होस्टल...! हमेशा से हॉस्टल मे रहने की ख्वाहिश थी पर पापा कभी जाने नही देते।" शालू बोली तो सांझ मुस्करा उठी।

" अरे बाबा हँसने की बात नही है। बहुत अजीब है पापा। प्यार का नाम लेकर हमेशा अपनी आँखों के सामने रखते है। तंग आ गई हूँ मैं..! मन करता है भाग जाऊँ उनसे दूर सदा के लिए, ऐसे माँ बाप से तो अनाथ..।" शालू बोल ही रही थी कि सांझ ने रोक दिया।

"ऐसे नही बोलते शालू। तुम्हे ऐसे पेरेंट्स मिले है तो कद्र करो उनकी क्योकि किस्मत वाले होते है वो जिन्हे पेरेंट्स का साथ मिलता है वरना कुछ लोग तो अनाथ होते है और हमेशा प्यार के लिए तरसते है।" सांझ बोली और उसकी आँखे भर आई।

"ओके ओके नहीं जा रही हूं कहीं अपने मम्मी पापा को छोड़कर...! पर तू ही तरह से दुखी क्यों हो रही है?" शालू ने सांझ का हाथ पकड़कर कहा।

"इसलिए क्योंकि मेरे मम्मी पापा नहीं है। अनाथ हूँ मैं और जब भी तुम्हारे जैसी किसी को देखती हूं तो बड़ा ही अजीब लगता है। वह कहते हैं ना जिसके पास दांत है उसके पास चने नहीं और जिसके पास चने है उनके पास दांत नहीं।" सांझ बोली।

" अब यह दांत और चना क्या है?" शालू बोली

" एक कहावत है। जैसे मुझ जैसे लोगों को मां बाप की कदर होती है तो हमारे पास मां बाप नहीं है। भगवान ने हमसे छीन लिए है। और तुम्हें इतने अच्छी पेरेंट्स दिये है जो तुम्हें इतना प्यार करते हैं तुम्हारी इतनी केयर करते तो तुम्हें उनकी परवाह नहीं है।" सांझ बोली तो शालू को अपनी गलती का एहसास हुआ।

"सॉरी यार मेरे कहने का मतलब वो नहीं था। मैं भी अपने पेरेंट्स को प्यार करती हूँ। और आज तुम्हारी बातों से मुझे अंदाजा हो गया कि मैं उनके बारे में इतना अजीब सोचती थी और बात भी करती थी वो गलत है।मैं अब कभी भी ऐसा कुछ नहीं करूंगी जिससे कि मम्मी पापा को कोई भी तकलीफ हो।"
शालू ने कहा तो साँझ के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और फिर दौनो अपने क्लास की तरफ बढ़ गई।



अक्षत वापस आकर अपनी बाइक पर बैठ गया।

आंखों के आगे सांझ का सांवला सलोना खूबसूरत चेहरा आ गया और उसके चेहरे पर एक दिलकश मुस्कान।

" जादू है कोई उस लड़की में। पता नहीं क्यों आज तक कभी किसी के लिए ऐसे एहसास दिल में नहीं जागे पर यह लड़की पहली नजर में मानो दिल से उतर गई है। अब तो बस कैसे भी करके इसका दिल जीतना है और इसे अपनी मिसेज चतुर्वेदी बनाना है।" अक्षत खुद से बोला और फिर खुद ही हंस पड़ा।

"पर अभी नहीं जब मैं जज बन जाऊंगा तब इसे अपनी वाइफ अपनी मिसेज चतुर्वेदी बनाऊंगा। मिसेज सांझ अक्षत चतुर्वेदी। जज साहब की मिसेज चतुर्वेदी" अक्षत बोला और और फिर अपनी क्लास की तरफ निकल गया।

कॉलेज के बाद सांझ और सालू बाहर आए।

"अच्छा चल तेरे साथ तेरे हॉस्टल चलती हूँ , मुझे वैसे भी हॉस्टल देखने का और हॉस्टल में रहने का बहुत मन करता है। और अब तो तुमसे दोस्ती हो गई है तो तुम समझ लो कि मेरा आधा टाइम तो तुम्हारे हॉस्टल में ही बीतने वाला है।" शालू ने कहा तो सांझ मुस्कुरा उठी।

"तो मना किसने किया है? चलो ना।" सांझ बोली और शालू के साथ हॉस्टल निकल गई।

अक्षत अपनी बाइक लिए बाहर ही इंतजार कर रहा था। उसने सांझ और शालू को जाते देखा तो उसके चेहरे पर फिर से मुस्कान आ गई कि तभी उसकी पीठ पर आकर किसी ने धौल जमाई।

"आ गई तू...!" अक्षत बोला और पीछे मुड़कर देखा।

उसके पीछे मानसी खड़ी थी।

गोरी चिट्टी लंबी बेहद खूबसूरत लड़की।

" और कौन होगा होगा यार...! और मुझे तो इस बात का टेंशन है कि जब अभी कुछ महीनों बाद तुम कॉलेज आना बंद कर दोगे फिर मुझे पिक अप और ड्रॉप कौन करेगा?" मानसी बोली।

"डोंट वरी जब तक मैं इस शहर में हूं तुम्हें रोज मैं ही छोडूंगा मैं ही लूंगा। भले मैं कॉलेज में रहूं या ना रहूं पर तुझे पिक एंड ड्रॉप करना बंद नहीं करूंगा। हां पर एक बार जैसे ही मैं अपनी ट्रेनिंग पर जाऊंगा फिर तुझे खुद से मैसेज करना होगा।" अक्षत ने कहा तो मानसी मुस्कुराकर उसके पीछे बैठ गई।

तभी उनके पास आकर एक और बाइक रुकी। अक्षत और मनु ने उसकी तरफ देखा तो उस बाइक पर ईशान बैठा हुआ था।

" ओये भूतनी अपने ढूंढ ले कोई जो तुझे बाइक पर बैठा के घुमाये। कब तक मेरे भाई के कंधो पर बेताल की तरह लटकी रहेगी?" ईशान बोला।


मनु ने उसे घूर के देखा।

"सीख अपने भाई से कुछ। भी-कभार मुझे तू भी पिक एंड ड्रॉप कर दिया कर तेरी बाइक की सीट तो हमेशा खाली ही रहती है।" मानसी बोली।

"हां तो खाली रहती है तेरे जैसी भूतनी के लिए नही है मेरी बाइक। मेरी बाइक पर तो सिर्फ मेरी गर्लफ्रेंड बैठेगी और फिर बाद में मेरी वाइफ समझी। इसलिए मेरी बाइक पर बैठने का सपने देखना बंद कर दे।" ईशान बोला और उसने बाइक आगे बढ़ा दी।

"इस राक्षस को कोई गर्लफ्रेंड मिलेगी? क्या लगता है अक्षत? या इसके सपने सच में ही सपने रह जाएंगे? " मनु ने हंसकर कहा तो अक्षत भी मुस्कुरा दिया।

"हर किसी के लिए भगवान ने किसी ना किसी को बनाया है मनु..! बस समय है तो उनके मिलने का । देखो अगर इसके किस्मत में कोई लिखी होगी तो जल्दी ही इसको भी मिल जाएगी।" अक्षत बोला और उसी के साथ उसने भी ईशान के पीछे अपनी बाइक दौड़ा दी।

आधे घंटे में तीनो घर पहुंच गए।

अरविंद उस समय ऑफिस गए हुए थे तो घर पर केवल साधना ही थी ।

"आ गए तुम तीनों?" साधना ने उन तीनों के आते ही पूछा।

"नहीं मम्मी अभी तो हम कॉलेज यूनिवर्सिटी में ही है...थोड़ी देर बाद निकलेंगे और फिर घर आएंगे!" ईशान बोला तो साधना ने गुस्से से उसे घूर कर देखा।

"कभी सीरियस हो सकता है तू..? यूँ ही उल्टी बात ही करनी होती है तुझे? " साधना बोली।

"लो कर लो बात उल्टा सवाल आप पूछो और बोलो मुझे कि मैं उल्टी बातें करता हूं?" ईशान ने कहा।

"आंटी आप भी कहां पत्थर पर सिर फोड़ रही हो? जानती हो ना यह राक्षस है और यह कभी नहीं बदल सकता। दिमाग ही नहीं है इसमें कि ये कुछ बातें समझ सके और उनको सही कर सके।" मनु फ्रूट बास्केट से एक एप्पल उठाकर खाते हुए बोली।

"राक्षस मुझसे पूछे बोलती है और ठूंसती खुद रहती है। फ्री का जो मिलता है ना यहाँ इसलिए।" ईशान ने कहा और उसके ये कहते ही अक्षत और साधना ने ईशान को घूर कर देखा तो वही मनु ने एप्पल वापस से डाइनिंग टेबल पर रख दिया और अपने कमरे में चली गई।

ऊँट जितना लंबा हो गया है पर ना जाने बुद्धि कब आएगी तुझ में? दुखा दिया ना उसका दिल?" साधना बोली।

" मम्मी मैं बस मजाक...!" ईशान बोला।

"यह क्या लगा रखा है तूने...? फ्री क्या होता है? भूल क्यों जाता है वह तेरे पापा के दोस्त की बेटी है। तेरी बहन के जैसी है। फालतू नहीं है वह घर में समझा तू। और वह कुछ भी फ्री का नहीं खाती है।" साधना ने नाराजगी से ईशान को डांट लगाई तो वही अक्षत ने भी उसे नाराजगी से देखा।

" सॉरी यार ऐसा भी क्या बोल दिया..! उसकी तो आदत है यार सब है नाटक बनाने की। चलो आप लोग चिंता मत करो मैं मना लूंगा। " ईशान बोला और मनु के कमरे की तरफ चल दिया।

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव