साथिया - 5 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

श्रेणी
शेयर करे

साथिया - 5

सुबह सुबह सांझ का हॉस्टल।

सांझ का फोन पर मेसेज आया तो सांझ ने फोन उठाकर देखा

शालू का मैसेज था

"तबियत ठीक नही है सांझ तो आज यूनिवर्सिटी नही आ रही हुँ।"

" ठीक है ध्यान रख अपना। मैं आती हुँ शाम को मिलने।" सांझ ने कहा और रेडी होकर यूनिवर्सिटी के लिए निकल गई।

यूनिवर्सिटी के गेट पर पहुंची ही थी कि नजर अपनी बाइक से टेक लगाए खड़े अक्षत पर गई।

ब्लैक ट्राउजर पर डेनिम् की ब्लू शर्ट, पहने अक्षत बेहद आकर्षक लग रहा था

आज अक्षत के हाथ में फिर से उसकी वो छोटी सी स्केच बुक थी जोकि सांझ ने अक्सर उसके हाथ मे देखी थी।

सांझ नजर झुकाए आगे बढ़ने लगी हर कदम के साथ हर कदम के साथ दिल की धड़कन भी बढ़ती जा रही थी।

साथिया तुमसे ही है...
इश्क की सब साझेदारियाँ...!!
मोहब्बत की चाहत की..
ये सारी हिस्सेदारियाँ...!!
रूह मे बसे हो तुमसे ही..
अब अपनी रूहदारियाँ..!!

सांझ अक्षत के पास से जब निकलती थी तो उसकी दिल की धड़कन बढ़ जाती थी, पर वह कभी भी नजर उठाकर अक्षत की तरफ नहीं देखती थी।

आज ना जाने कैसे सांझ की नजरें अक्षत के चेहरे की तरफ उठी। ठीक उसी समय अक्षत ने भी उसे देखा और दोनों की नजरें मिल गई।

सांझ से नजर मिलते ही अक्षत के चेहरे पर एक दिलकश मुस्कान आ गई तो वही सांझ की धड़कने बेकाबू हो उठी। सांझ ने जल्दी से नजरें झुका ली और थोड़ा आगे बढ़ गई।

तभी उसकी फ्रेंड सांझ के पास आई और दोनों बातें करते हुए वही एक तरफ जाकर गार्डन के बेंच पर बैठ गई।

सांझ की फ्रेंड को उससे कुछ लेसन के बारे में डिस्कस करना था तो वो लोग करने लगे।

अक्षत स्केचबुक को लेकर वही एक बेंच पर बैठ गया और धीमे धीमे स्केच बनाने लगा।

अक्षत की नजर बार-बार सांझ की तरफ जा रही थी और सांझ भी इस बात को महसूस कर रही थी।

थोड़ी देर में सांझ उठकर अपने क्लास रुम में जाने लगी।

जाते जाते उसने एक नजर अक्षत पर डाली पर वो स्कैच नही देख पाई।

अक्षत वहीं बैठा बैठा स्कैच बनाता रहा फिर थोड़ी देर बाद वह भी उठ कर वहां से चला गया।

सांझ का ध्यान आज पढाई मे नही लग रहा था।

आँखों के आगे बार बार अक्षत की वो मुस्कराती हुई आँखे आ रही थी और दिल था कि बार बार जोरों से धड़क उठता था।

सांझ कॉलेज के बाद शालू से मिलने उसके घर जाने के लिए ऑटो रोकने लगी।।

अक्षत भी उसी समय मनु को लेने आया था।


"अक्षत मुझे जरा यहीं पर मॉल जाना है थोड़ी शॉपिंग करने के लिए..! तुम एक काम करो घर निकल जाओ। सॉरी तुम्हें बता नहीं पाई पहले पर मेरी फ्रेंड्स है उनके साथ जा रही हूं।" मनु ने कहा।

" इसमें सॉरी वाली कोई बात नहीं है? मैं निकल जाता हूं लेकिन तुम सेफली घर आ जाना और अगर कुछ भी बात हो तो मुझे कॉल कर देना।" अक्षत बोला।

"डोंट वरी मैं आ जाऊंगा..! मनु बोली और अपने दोस्तों की तरफ निकल गई जोकि यूनिवर्सिटी के बाहर उसका इंतजार कर रही थी

अक्षत की नजर वापस सांझ पर गई जोकि ऑटो लेकर जाने लगी थी।

"यह सांझ कहां जा रही है? यह तो इसके हॉस्टल का रास्ता नहीं है। " अक्षत ने उसे दूसरे रास्ते के लिए ऑटो लेते देखा तो मन ही मन सोचा।।

" देखना तो होगा न?" अक्षत बोला और अपनी बाइक चलानी शुरू कर दी ऑटो के पीछे।

ऑटो थोड़ी देर बाद जाकर एक बड़े से बंगले के बाहर रुका। सांझ ने ऑटो वाले को पैसे दिए और अंदर की तरफ बढ़ गई। उसका ध्यान नहीं था कि अक्षत से उसके पीछे पीछे आया है क्योंकि अक्षत थोड़ी दूरी बनाकर चल रहा था।

"अच्छा तो यह शालू से मिलने आई है।" अक्षत ने खुद से ही कहा और फिर वहीं थोड़ी दूर पर बाइक खड़ी कर एक ठेले के पास खड़ा हो गया और चाय पीने लगा।

सांझ अंदर आई तो हॉल मे ही शालू और उसकी मम्मी मालिनी बैठी दिख गई।

शालू मालिनी की गोद में सिर रखे लेटी हुई थी तो वही मालिनी उसके बालों को सहला रही थी।

उन दोनों को देख सांझ के चेहरे पर मुस्कान आ गई।

"हैलो ऑन्टी" सांझ बोली तो मालिनी और शालू ने पलटकर देखा।

सांझ को देखकर शालू उठ खड़ी हुई।

"आ गई तू...!" तेरा ही इंतजार कर रही थी मैं।" शालू बोली और सांझ का हाथ पकड़ उसे अपने पास बिठाया।

" और कैसी हो सांझ बेटा।" मालिनी ने सांझ के गाल से हाथ लगाया।

" ठीक हूँ ऑन्टी!" सांझ बोली।

" बहुत दिनों बाद आई..! कहा है न इस घर को भी अपना समझो और आती रहा करो।" मालिनी बोली।

" जी ऑन्टी वो हॉस्टल मे टाइम पर ही वापस जा सकते है न! " इसलिए नही आती।" सांझ बोली।

" तो हॉस्टल छोड़कर यहाँ आ कर रहने लगो।" मालिनी बोली

सांझ खामोश रही।

" आप फिर शुरू हो गई मम्मी। आ जायेगी वो यहाँ रहने फिर देखेंगे आपका प्यार भी।" शालू मुंह बनाकर बोली।

" मेरे प्यार पर शक...!" मालिनी भी उसी अंदाज में बोली।

" हाँ शक..!" शालू बोली और खिलखिला उठी।

" चलो तुम दोनों बात करो मैं कुछ नाश्ता भिजवाती हूँ।" मालिनी बोली और किचिन में चली गई।

" और बता आज आया था तेरा चतुर्वेदी?" शालू ने सांझ की आँखों मे झाँका।

" हाँ आया था।"'सांझ बोली और नजरे झुका लि।

" आये हाए... शरमा रही है मेरी भोली बलमा मतलब कि....!"शालू ने सांझ को छेड़ते हुए कहा।

" मुझे भी लगता है कि वो शायद मेरे लिए ही आते है।" सांझ बोली।

" लो जी कर लो बात..! अभी भी लगता है विश्वास नही।" शालू बोली।

" आज मैंने उनकी आँखों में देखा शालू.. उन गहरी काली आँखों मे कुछ तो था कि दिल बेचैन हो उठा।" सांझ ने कहा तो शालू मुस्करा उठी ।

" तेरे लिए प्यार था उन आँखों में। यकीन कर ले सांझ " शालू बोली।

" फिर वो कुछ कहते क्यों नही?" सांझ ने अपने मन की बात बताई।

" शायद किसी खास मौके के इंतजार में हो।" शालू बोली।

"खास मौका..?" सांझ ने नासमझी से कहा।

" हाँ उनका भाई ईशान मेरा दोस्त है, उसने बताया कि अक्षत मजिस्ट्रेट की तैयारी कर रहा है। शायद वो पहले कुछ बनना चाहता हो ताकि तेरी तरफ से इंकार की वजह न रहे।" शालू बोली।

" तुझे कैसे पता?" सांझ ने आँखे छोटी करके पूछा।

" कॉमन सेंस मेरी जान..! कॉमन सेंस।" शालू बोली तो सांझ मुस्करा उठी।

सर्वेंट आकर नाश्ता रख गया।

" वैसे तू इतनी भी बीमार तो नही जो तूने आज छुट्टी कर ली।" सांझ ने शालू को मस्त तरीके से ठूंसते हुए देखा तो बोली।

" हाँ तो बीमार हो मेरे दुश्मन...! बस सुबह थोड़ी थकान लग रही थी और इससे पहले कि बीमार होती मैंने छुट्टी करके आराम कर लिया।" शालू ने आई विंक करके कहा।



" चल अब निकलती हूँ, काफी टाइम हो गया।" सांझ बोली।

" हाँ निकल जा वरना रात हो जायेगी। आज पापा भी घर पर नही है और बाकी ड्राइवर भी छुट्टी पर है वरना तुझे ड्रॉप कर देते।" शालू बोली तो सांझ तुरंत निकल गई।

बाहर आकर देखा तो वहाँ ऑटो नही दिखा।

" आगे चलकर देखती हूँ ऑटो।" सांझ बोली और आगे बढ़ गई।

मौसम खराब होने लगा था और बरसात बस कभी भी हो सकती थी।

" हे भगवान ऑटो नही मिल रहा है और अब बरसात भी आने वाली है सांझ जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते हुए बोली।

अक्षत कुछ दूरी पर ही उसके साथ था अपनी बाइक पर।

" बोलूँ क्या इसे साथ चलने को?" अक्षत खुद से ही बोला।

" नही नही...! पता नही क्या सोचे।" अक्षत बोला और उसके पीछे चल दिया।

तभी अचानक से बारिस शुरू हो गई।

सांझ अपने कपड़े समेटते हुए आगे बढ़ने लगी कि तभी एकदम ठिठक गई।

नजर उठाई तो सामने दो लड़के खड़े ललचाइ आँखों से उसे ही देख रहे थे।

अक्षत के कदम भी ठहर गए।

सांझ ने उन दोनों को देखा और साइड से निकलने की कोशिश की तो वो फिर सामने आ गए।

सांझ ने डरकर अपना दुपट्टा हथेली मे भींच लिया और गहरी सांस ले दूसरी तरफ से निकलने लगी।

" इस भरी बरसात में हमारे दिलों मे आग लगाकर कहाँ चल दी जानेमन।" उन लड़कों ने फिर से रास्ता रोक लिया।

" जाने दीजिये मुझे प्लीज..!" सांझ बोली और आगे बढ़ने लगी कि तभी एक लड़के ने उसके कन्धे पर हाथ रख दिया।

सांझ एकदम से डरकर कांप गई।

सांझ कुछ बोलने को हुई ही थी कि तभी नजर अपने पास खड़े अक्षत पर गई जोकि जलती आँखों से उन दोनों लड़को को देख रहा था।

सांझ ने भरी आँखों से अक्षत की तरफ देखा तो अक्षत ने पलकें झपकाई।

" हाथ हटा..!" अक्षत की आवाज सख्त हो गई और नजर सांझ के कन्धे पर रखे उस लड़के के हाथ पर थी।

" अबे हीरो निकल यहाँ से...! दुसरो के पंगे में नही पड़ते बाबू।" वो लड़का बोला।

" मैं दूसरों के नही सिर्फ अपने मामले मे बोलता हूँ।" अक्षत बोला और अगले ही पल जो हाथ सांझ के कन्धे पर था उसे वहाँ से हटाकर मरोड़ दिया।

उस लड़के की चीख निकल गई।

अक्षत ने सांझ का हाथ पकड़ा तो सांझ एकदम से जम गई।

अक्षत ने उसे खुद के पीछे कर लिया और उसी के साथ एक जोरदार पंच उस लड़के को जड़ दिया।

" हिम्मत कैसे हुई तेरी मेरी सांझ के साथ बदतमीजी करने की।" अक्षत ने कहा और उन दोनों को मारने लगा।

सांझ के कानों में बस अक्षत के कहे शब्द गूंज रहे थे " मेरी सांझ "

" हाउ डेयर यू टू टच माय गर्ल।" अक्षत गुस्से से बोला और उसी के साथ दोनों लड़के सड़क पर पड़े कराह रहे थे।

अक्षत ने सांझ की तरफ देखा जोकि भरी हुई बड़ी बड़ी आँखों से उसे देख रही थी।

अक्षत ने उसका हाथ पकड़ा और अपनी बाइक की तरफ चल दिया।

सांझ भी बिना सवाल के उसके साथ चल दी। कानो में अक्षत के कहे शब्द गूंज रहे थे और भरी आँखे बस अक्षत के गुस्से से लाल होते चेहरे पर थी।

" बैठो।" अक्षत बाइक स्टार्ट करके बोला पर सांझ नही बैठी।

अक्षत ने सांझ की तरफ देखा जोकि न जाने क्या सोच रही थी।

"सांझ..!" अक्षत बोला तो सांझ ने नजर उठा उसकी तरफ देखा।

" विश्वास कर सकती हो...! कभी भी तुमको हर्ट नही कर सकता मैं... और न ही करूँगा।" अक्षत बोला तो सांझ की पलके झुक गई और दो बुँदे गालों पर बिखर गई।

" आंसू नही देख सकता इन आँखों में। घबराओ मत सब सही है और जब तक मैं हूँ साथ कुछ गलत नही होगा।" अक्षत ने कहा तो सांझ ने पलके उठाकर उसकी तरफ देखा।

" चलो तुमको हॉस्टल छोड़ देता हूँ।" अक्षत ने कहा तो सांझ उसके पीछे बाइक पर बैठ गई।

उसी के साथ अक्षत ने बाइक आगे बढ़ा दी।

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव