साथिया - 8 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 8

ईशान मनु के कमरे में आया तो देखा मनु बालकनी में खड़ी

ईशान ने बालकनी में जाकर उसके बगल में खड़े होकर उसके कंधे पर हाथ रखा। पर मनु ने उसकी तरफ नहीं देखा।

"अब यार ऐसा भी कुछ नहीं बोल दिया भूतनी जो इतनी ज्यादा नाराज और दुखी हो रही है...! सेंटोले फेंक कर तू मुझे ब्लैकमेल नहीं कर सकतीं तो ये बेकार की कोशिशें भी मत कर।" ईशान बोला।

" ईशान प्लीज यार....! अभी ना मेरा मूड बिल्कुल ठीक नहीं है, तू निकल यहां से वरना कहीं तुझे दो चार चमेट न लगा दूं।" मनु चिढ़ते हुए बोली।


" ठीक है ना तो लगा दे ..! मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा बस तू ऐसे उदास मत हो और बुझी बुझी मत रह । तू न ऐसे बिलकुल भी अच्छी नहीं लगती। भगवान ने अच्छा खासा रूप दिया है तो जरा स्टाइल में रहा कर। ऐसे तो सच में तो भूतनी लगने लगती है।" ईशान ने कहा तो मनु ने उसे गुस्से से घूरा।

" मैं कह रही हूं ना...! तू जा रहा है यहां से।" मनु ने गुस्से से कहा।

" चला जाऊंगा पर पहले तू नाराजगी छोड़ दे।" ईशान ने कहा तो मनु ने उसे देखा और वापस दूसरी तरफ चेहरा घुमा कर खड़ी हो गई।


" अरे बाबा हो गई गलती बोल दिया तो क्या आप जान लेगी बच्चे की? और कोई पहली बार तो नहीं बोला है ना? हम दोनों का तो बचपन से चलता है और तू जानती है मैं कभी भी इंटेंशनली कुछ नहीं बोलता। बस जो मन में आता है बोल देता हूं उसके लिए क्या इतना बुरा मानेगी?" ईशान ने कहा।

मनु ने कोई जबाब नही दीया।

" अच्छा बाबा फिर से सॉरी...! कान पकड़ कर सॉरी बोल रहा हूं माफ कर दे।" ईशान बोला तो मनु के चेहरे पर हलकी मुस्कान आई।
जिसे ईशान ने देख लिया और उसके चेहरे पर शरारत आ गई।

"सॉरी यार गलत बोला। तू कुछ भी फ्री का नहीं खाती जो कुछ भी है सब मेरे हिस्से का खाती है। और मेरे ऊपर तो तू अधिकार लेकर ही पैदा हुई है। तो खा सकती है वो भी बिना टेंशन के" ईशान बोला तो मनु ने पलटकर उसकी तरफ देखा।

ईशान ने तुरंत कान पकड़ लिए और और सेड फेस बना लिया।

मनु के चेहरे पर मुस्कुराहट आई और वह एकदम से ईशान के गले लग गई।

ईशान ने मुस्कुरा कर उसकी पीठ पर हाथ रखा।


" तुझे सच में ऐसा लगता है कि मैं फ्री का खाती हूं ...? मतलब तेरे और अक्षत के हिस्से का खाती हूं।" मनु बोली तो ईशान ने उसके सिर को थपका।

"यहां बात खाने की नहीं कर रही हूं। तुझे ऐसा लगता है कि तेरे हिस्से का प्यार मुझे मिल गया?" मनु बोली।


" हां लगता तो है पर कोई बात नहीं अब मैंने तुझे एक्सेप्ट कर लिया है और अपनी बहन भी मानता हूं ना...! तो ठीक है बहन का हक होता है भाई की हर चीज पर फिर चाहे वह प्यार हो, आधिकार हो उसके हिस्से की पॉकेट मनी हो या उसकी कमाई का पैसा। बहन को पूछने की भी जरूरत नहीं होती है। पूरे अधिकार से ले सकती है, और भाई ना दे तो उससे लड़ झगड़ कर छीन भी सकती है ।इसलिए मेरी बातों का बुरा मत माना कर समझी। जब भी मन करे या मैं कुछ गलत बोलूं लड़ने झगड़ने का तो सोचना नही है। हमारा तो बचपन का यही काम है एक दूसरे से लड़ना झगड़ना एक-दूसरे की टांग खींचना पर इसका मतलब यह तो नहीं है ना कि तू इस तरीके से उदास होकर आ जाएगी और खुद को अलग समझने लगेगी।" ईशान ने कहा और मनु को खुद से अलग किया तो देखा उसकी आंखों में आंसू भरे हुए थे।


" पागल है क्या? इतनी सी बात के लिए रो रही है। एक एप्पल के लिए टोका न मैने। अभी एक दर्जन ला कर देता हूं तुझे। फिर ठूंस लियो सारे के सारे एप्पल। पग्ग्गल कहीं की एक एप्पल के लिए रो रही।" ईशान बोला तो मनु ने सिर पीट लिया।


" पग्गल मै नही तू है राक्षस। मैं एप्पल के लिए नही रो रही पर आज तूने जो इतनी सारी बातें कहीं उनके लिए रो रही हूं।" मनु बोली तो ईशान ने आंखे छोटी करके उसे देखा।

"मतलब तु मुझे अपनी बहन मानता है और इतना अधिकार देता है कि मैं तेरी हर चीज तूझसे बिना पूछे या लड़ झगड़ के ले सकती हूं।" मनु ने कहा।

" लो कर लो बात अब अधिकार देना ना देना कौन मेरी मर्जी में है! तू तो अधिकार जमा कर पहले ही बैठी है तो ले ही लेगी। इससे पहले कि तू हमेशा की तरह छीने अच्छा भाई और महान इन्सान बनकर मैंने भी बोल दिया कि ले ले जो लेना है।" ईशान ने मनु को तंग करते हुए कहा।

" मतलब तु नहीं सुधर सकता।" मनु मुंह बनाकर बोली।

" तो यह अपना स्टाइल है और इस स्टाइल को कोई नहीं बदल सकता। जब अब तक नहीं बदला तो अब क्या बदलूंगा और तुझे भी कुछ बताने की जरूरत है।" ईशान बोला।


" क्या?" मनु ने उसके कन्धे पर हाथ रखकर कहा।

"जब पापा तुझे लेकर आए थे तब अक्षत बहुत खुश हुआ था क्योंकि उसकी हमेशा से इच्छा थी कि उसकी बहन हो पर भगवान ने बहन की जगह मुझे दे दिया था। पर तेरा आना मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा था।" ईशान बोला तो मनु ने उसकी तरफ देखा।


" अरे यार घर में सबसे छोटा था मैं।।।! नॉटी था हरकतें कर सकता था कोई कुछ नहीं कहता था ये सोचकर कि छोटा हुं पर मुझसे छोटी तू आ गई थी तो सारा सबका प्यारा अटेंशन सब तेरी तरफ आ गया था। तो मुझे तेरा आना अच्छा नहीं लगाता था। धीरे-धीरे तू हम लोगों की लाइफ का हिस्सा बन गई। मेरी अक्षत की मम्मी और पापा की और और पता ही नहीं चला इस दिल ने कब तुझे अपनी बहन और हमारे परिवार का हिस्सा मान लिया।" ईशान बोला।

" सच्ची?" मनु का गला भर आया।


" ओर अब यह सब जो मैं बोलता हूं तुझे चिढ़ाने के लिए बोलता हूं, तंग करने के लिए बोलता हूं। पर आज तूने बात दिल पर ले ली और एप्पल को आधा ही खा कर छोड़ दिया। अब फोकट का मिल रहा है इसका मतलब यह तो नहीं है कि बर्बाद करें। खाने को तू सब कुछ खा सकती है पर मेरे पापा का पैसा एसे तु बर्बाद करेगी यह मुझसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं।" ईशान ने सीरियस होकर कहा तो मनु ने हंसकर उसके पेट में चार पांच मुक्के जड़ दिए।


ईशान ने अपना पेट पकड़ लिया।

"दिखने में एकदम मरियल सींख जेसी है तू और हाथ पहलवान जैसे । जाने कितने अंदरूनी अंग घायल कर दिए तूने मेरे।" ईशान बोला।

" अगली बार फिर से उल्टा सीधा बोला बोला ना तो समझ लेना ऐसा मारूंगी ना कि किसी लायक नहीं रहेगा।" मनु बोली तो ईशान ने आंखें बड़ी करके उसे देखा।


" यार मार लियो पर ऐसे नही कि किसी लायक न बचूं। चतुर्वेदी खानदान का वंश मुझे ही आगे बढ़ाना है तो जरा ध्यान से मारा कर भूतनी।" ईशान बोला।

" चल हट पागल कहीं का।" मनु बोली और आगे कमरे की तरफ बढ़ गई।


ईशान उसके पीछे आया और उसके बेड पर जा गिरा।


" तू न हमेशा ऐसे लड़ते झगड़ते ही अच्छी लगती है। जब यह कद्दू जैसा मुंह लटका कर खड़ी हो जाती है ना तो ऐसा लगता है ना जाने मैंने कौन सा गुनाह कर दीया और अब मुझे प्रायश्चित के लिए नंगे पांव के चारों धाम की यात्रा करने जाना पड़ेगा और शायद अंगारों पर भी चलना पड़े इसलिए प्लीज बुरा मत लगाया कर।" ईशान बोला।



मनु ने कोई जवाब नहीं दिया बस अपनी बुक्स जमाने लगी।

"और हां प्लीज जरा अक्षत और मम्मी को जाकर बोल दे कि तू मुझसे नाराज नहीं है वरना वह दोनों तो मुझे मार ही डालेंगे।" ईशान ने कहा तो मनु ने आंखें छोटी करके उसे देखा।


" मतलब तु आंटी और अक्षत के कारण मुझसे माफी मांगने आया था? अब तो बिल्कुल भी नहीं कहूंगी, जरा डांट पड़े तुझे तभी तो दिल को सुकून आयेगा।" मनु ने भी उसकी टांग खींची।

" तू न भूतनी थी , भूतनी है और भूतनी ही रहेगी। कितने प्यार से तुझे मनाया सारे अधिकार भी दिए और एक तू है इतना नहीं कर सकती मेरे लिए। मम्मी और अक्षत से बस यहीं कहना है न कि हम दोनों के बीच सब शॉट आउट हो गया है और तु मुझसे नाराज नहीं है।" ईशान बोला।

" नही...! क्योंकी जब तक तुझे जमकर डांट नहीं पड़ जाएगी तब तक मेरे कलेजे को ठंडक भी तो नहीं मिलेगी।" मनु शरारत से बोली तो ईशान पैर पटककर वहां से निकल गया।


मनु ने अलमारी खोली और एक फोटो निकाली जो उसके मम्मी पापा की थी, जिसमें वह उनके बीच में खड़ी थीं।

" थैंक यू पापा थैंक यू मम्मी। जानती हूं आपकी कमी कोई भी पूरा नहीं कर सकता पर आपने जाते-जाते मुझे इतना अच्छा परिवार दे दिया। अंकल आंटी जैसे मम्मी-पापा और ईशान अक्षत जैसे भाई और क्या चाहिए किसी लड़की को ?" मनु बोली और उसकी आंखें फिर से भर आई।
तभी उसके दोनों कंधों पर आकर साधना और अक्षत में हाथ रखा।

मनु एकदम से साधना के गले लग गई।

साधना ने उसकी पीठ पर हाथ फिराया।

" क्या हुआ? इशू ने फिर से कुछ कहा क्या ?" साधना बोली।

"नहीं आंटी उसने कुछ नहीं कहा... आप उसको कुछ मत कहना। भाई है वो मेरा और फिर हम दोनों का तो चलता रहता है। अब मेरा भाई है जब मुझे प्यार करता है तो लड़ाई झगड़े भी तो मुझसे मुझसे करेगान।" मनु ने कहा तो साधना और अक्षत मुस्करा उठे।


" फिर ये आंसू?" अक्षत ने कहा।

" यह तो खुशी के आंसू है। भगवान ने मुझसे एक फेमिली छीनी तो दूसरी फैमिली कितनी अच्छी दे दी । बहुत किस्मत वाली हूं मैं जो तुम इशू और अंकल आंटी मेरी जिंदगी का हिस्सा हो।" मनु बोली।

" किस्मत वाले हम लोग हैं जो तुम्हारे जैसी बेटी हमें मिली और जिनके घर में बेटियां होती है उनसे बड़ा सौभाग्यशाली तो कोई हो ही नहीं सकता।" साधना ने कहा तो मनु मुस्करा उठी।

" लड़ाई खत्म हो गई हो तो चलो चलो बाहर चलते हैं अभी तुम्हारे अंकल भी आने वाले होंगे।"साधना बोली।

" ठीक है आंटी आप चलिए मैं अभी फ्रेश होकर आती हूं!" मनु बोली तो अक्षत और साधना दोनों कमरे के बाहर निकल गए।

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव