साथिया - 119 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 119

थोड़ी थोड़ी देर में सब लोग तैयार होकर  हॉल में इकट्ठे हो गए थे। 

जहां पर ईशान  शालू  अक्षत और सांझ  की हल्दी की रस्म होनी थी। दोनों परिवार और दोनों तरफ के नाते रिश्तेदार सब लोग इस बड़े से  हॉल  में आ गए थे। खूबसूरती से सजाया हुआ यह हाल मेहमानों से पूरी तरीके से भरा हुआ था। 

हालांकि अक्षत  ईशान अरविंद और अबीर की आर्थिक स्थिति के हिसाब से ये सब उतना मेंहगा नही था क्योंकि अक्षत एक नॉर्मल शादी कम फिजूल खर्ची के साथ करना चाहता था। 


एक तरफ  ईशान  और अक्षत बैठे और उनकी हल्दी की रस्म शुरू हो गई। मनु भी नील के साथ आ गई थी और वह भी हर प्रोग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही थी, आखिर उसके दोनों भाइयों की शादी जो थी। 

अक्षत और ईशान की हल्दी की  रस्म हुई और  सब ने उन्हें एक-एक करके हल्दी लगाई। वहीं दूसरी तरफ बैठी शालू और सांझ  उन लोगों को देख रही थी और दोनों ही के चेहरे पर  खूबसूरत मुस्कुराहट बिखरी हुई थी। 

अक्षत  और ईशान   की हल्दी हुई उसके बाद सांझ और शालू की हल्दी की रस्म हुई। जहां पर सब ने उन दोनों को हल्दी लगाई। 

"वैसे ही मेरी दोनों भाभियों बेहद खूबसूरत है..!! अब यह हल्दी लगेगी तो और भी चमक जाएंगी।" मनु ने दोनों के  गालो  पर हल्दी लगाते हुए कहा। 
तो शालू  और  सांझ मुस्कुरा उठी। 


" वैसे चमक तो अभी तुम्हारे चेहरे की कुछ बता रही है..!!" शालू  ने कहा तो मनु ने आंखें छोटी कर उसे देखा। 

"मतलब हनीमून से  लौटे  हो तो चेहरे पर रौनक अलग ही  है।"  शालू  ने मनु को छेड़ते  हुए कहा तो मनु  खिलखिला उठी। 

"वाकई में भाभियों के होने का मजा ही कुछ और है, वरना लाइफ कितनी बोरिंग हो जाती अगर इंसान की लाइफ में भाभी  न   हो। और मेरी जो ये  भाभी है जब  इस तरीके के मजाक करती है ना तो सच्ची में मजा ही आ जाता है।" मनु बोली और ढेर सारी हल्दी लेकर शालू और  साँझ  के चेहरे पर मल दी। 


"बस बस कितना लगाओगी..!!" शालू  बोली। 

" अरे अब जो  चमक  अभी मेरे चेहरे पर है वही  चमक मुझे आप लोगों के चेहरे पर चाहिए और वह भी हनीमून  पर  जाने  से पहले ही। इसलिए रंग रही हूं। ऐसा चेहरा दमक जाएगा कि मेरे भाइयों की नजरे ही नहीं हटेगी मेरी भाभियों के चेहरे से।"  मनु ने हँसते हुए  कहा। 

हल्दी की रस्म होने के बाद सब लोग डांस करने डांस फ्लोर पर आ गए। 


मनु और नील  ने शुरुआत की और फिर एक-एक करके सभी लोग शामिल होते  गए। सांझ  वही एक तरफ खड़ी होकर मुस्कुराते हुए देख रही थी कि तभी अक्षत उसके पास आकर खड़ा हो गया। 

"क्या हुआ तुमको डांस नहीं करना क्या?" अक्षत ने कहा  तो सांझ ने ना में गर्दन हिला  दी। 

"क्यों खुशी का दिन है तो सेलिब्रेट करो ना..!! फाइनली पूरी  रस्मों के साथ अब हम दोनों हमेशा हमेशा के लिए एक हो जाएंगे।" अक्षत ने उसका हाथ पकड़ कर कहा तो सांझ ने   उसकी आंखों में देखा। 

"कितना इंतजार किया था इन लम्हों का हमने और आज फाइनली सब सही हो गया है तो खुश रहो और इंजॉय करो।" अक्षत बोला और उसे लेकर वह भी डांस फ्लोर पर आ गया। 


ढोल बजने लगे और सभी झूम कर नाचने लगे जब थक गए तो फिर सपने खाना खाया और आराम करने अपने अपने कमरों में चले गए


सांझ शॉवर  लेकर आई तो देखा कि फोन बज रहा है। 

" हां  जज साहब। " 

"तो कैसा  रहा  हमारा हल्दी का प्रोग्राम? कुछ कमी तो नही लगी न?? " 

"  नही जज साहब..!! हमने तो ऐसा ही सोचा था पहले भी। तो सब अच्छा बहुत शानदार रहा।   दिल में एक सुकून उतर गया..!!"  सांझ  बोली। 

"सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी खातिर यह सारे प्रोग्राम कर रहा हूं मैं..!!बाकी हम दोनों की शादी तो पहले ही हो चुकी है. पर तुम चाहती थी ना की शादी पूरी ट्रेडिशनल तरीके से हो इसलिए यह सब कुछ हो रहा है वरना तुम्हें अपने पास लाने के लिए मुझे इन सब चीजों की कोई जरूरत नहीं थी।" अक्षत ने कहा। 

" जानती हूँ जज साहब  कि आप इन सब चीजों को कम मानते हो। हमने कोर्ट मैरिज कर लिया आपके लिए वही काफी है। पर मेरा दिल था। बचपन से हमेशा अनाथों की तरह  रही। कोई खुशी सेलिब्रेट नहीं की कोई कोई त्यौहार इस तरीके से नहीं मनाया जहां मेरा परिवार हो। हमेशा दूसरों के ऊपर आश्रित  रही  और उनके एहसानों   तले दबी रही।
जब आप मेरी जिंदगी में आए तो आंखों ने नए-नए ख्वाब देखने शुरू किये। और उन्ही  ख्वाबों में था धूमधाम से हमारी शादी होना और हर रश्म  का बेहतर और पूरे सही तरीके से होना। 
थैंक यू जैसा  मेरा इतना ध्यान रखने के लिए और यह सब चीज ऑर्गेनाइज करने के लिए..!" सांझ ने हल्की मुस्कान के साथ कहा।



"तुम्हारे लिए कुछ भी  सांझ..!! बस तुम खुश रहो और कुछ नहीं चाहिए मुझे। और तुम सुरक्षित रहो। मुझे ज्यादा  इन सब चीजों पर पैसे खर्च करने पसंद नही। इन हल्दी मेंहदी की  और विवाह की  जरूरी  रस्मे  दिल और  खुशी से होनी चाहिए। और ये पैसा हम जरूरत मंद लोगो को दे सकते है अनाथ अश्रम मे दे सकते है।इसलिए मेरे  कहने पर ही मम्मी पापा ने सब समान्य और कम बजट के साथ किया ताकि हम कुछ बचत करके  कुछ  ऐसे लोगो की  मदद कर सकें  जिन्हे जरूरत है।" 

"जैसे वो बच्चे जिन्हे आप उस दिन लाये थे जब आपने मुझे प्रपोज किया और मेरा बर्थडे सेलिब्रेट किया।"

" हाँ सांझ..!! बाकी तुमसे सिर्फ एक बात कहना चाहता हूँ सांझ। जो बीत गया उसे भूल जाओ और आज को जियो। आज मे जियो। आज जहाँ मैं हूँ तुम हो और सिर्फ खुशियाँ।" अक्षत ने कहा। 

" जज साहब  यही मैं आपसे कहना चाहती थी।। कि जो बीत गया  सो बीत गया। जाने देते हैं ना। उसे भूल जाइए  मैं  भी भूल जाती हूं। और अब  किसी से कुछ भी कहने की जरूरत नहीं है।" सांझ बोली।।

"क्या मतलब क्या कहने की जरूरत नहीं है?" 

" मतलब जो भी  बीता  वह सब। कोई चर्चा करने से क्या फायदा नही। मैं सब कुछ भूल जाना चाहती हूं  जज साहब।" 

"  तुम यह सब बातें इसलिए कह रही हो क्योंकि तुम्हारे मन में डर है कि फिर से कहीं कुछ गलत ना हो। पर विश्वास रखो अपने जज साहब  पर। जितना  गलत  होना था   हो चुका। अब  कुछ गलत नहीं होगा और जिन्होंने गुनाह किया है उन्हें सजा मिलनी तो जरूरी है ना..!! वरना वह दोबारा फिर से वही करेंगे।" अक्षत ने मजबूती से कहा।


" उनको सजा देने में कहीं फिर से कुछ।।।..???" कहते कहते  सांझ  रुक गई। 

" कहां है ना कुछ नहीं होगा। विश्वास रखो  मुझ पर। तुम्हें कुछ भी नहीं होने दूंगा मैं।" अक्षत ने कहा। 

" बात यहां से मेरी नहीं है  जज साहब। आपकी भी है  , हमारे परिवार की भी है। वह लोग बहुत खतरनाक है और मैं नहीं चाहती कि मेरे कारण किसी को भी तकलीफ हो। किसी की भी जिंदगी पर कोई खतरा आए।" 

" डोन्ट वारि सांझ..!! कह रहा हूं ना कुछ भी नहीं होगा। पर क्रिमिनल  को यूँ   छोड़ा भी तो नहीं जा सकता। जब तक गुनहगार को उसके गुनाह  का एहसास नहीं होगा उसे सजा नहीं मिलेगी तब तक यह गुनाह होते रहेंगे। और यहां बात  सिर्फ  तुम्हारी नहीं है सांझ। बात है गलत मानसिकता की। गलत तरीकों की और गलत व्यवहार की जो कि उस गांव में हो रहा है यह सब मान्यताएं गलत है यह सब तरीके गलत  है और अगर  उन्हें नहीं रोका गया यूं ही कभी कोई नियति तो कभी कोई सांझ  इन मान्यताओं और कुरीतियों की बलि चढ़ती रहेगी इसलिए उन्हें रोकना जरूरी है जरूरी है और उन्हें सजा देना भी।" अक्षत बोला। 

सांझ खामोश ही रही। 


"बस हमारी शादी हो जाए उसके बाद उन लोगों की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी..!!' अक्षत ने कहा। 

सांझ  अब भी   खामोश रही। 


"कहा है ना तुमसे  डरने की जरूरत नहीं है.!! मैं हूं तुम्हारे साथ और कुछ भी गलत नहीं होने दूंगा। अब  जो भी होगा वह सिर्फ और सिर्फ सही होगा और उसकी शुरुआत मैंने कर  दी है।।" अक्षत ने कहा।


"शुरुआत कर दी है मतलब?" 


" तुम्हारी बहन नेहा और आनंद ..!!! शुरुआत उनसे हो चुकी है क्योंकि  हमारी जिंदगी में जो कुछ भी बदलाव हुआ है जो भी गलत हुआ उसकी शुरुआत नेहा और आनंद से ही हुई थी। तो सजा देने की शुरुआत भी नेहा और आनंद से ही हुई है।" अक्षत ने कहा।


" पर जज साहब  नेहा दीदी की कोई गलती नहीं थी।" सांझ  एकदम  से बोली। 



इतना  कुछ होने के बाद भी तुम्हारे दिल  नेहा के लिए सॉफ्ट कॉर्नर है।  समझता हूं मैं की बहुत चाहती हूं तुम अपनी बहन को   और मैं भी मानता हूं कि उसकी इतनी गलती नहीं है। पर फिर भी भूल तो  उससे हुई ना..?? उसने सिर्फ अपने बारे में सोचा सिर्फ अपना भला किया दूसरे के बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचा। इतना बड़ा डिसीजन लेने से पहले उसे तुम्हारे बारे में भी सोचना चाहिए था बस उसे उसकी गलती का एहसास कर रहा हूं और कुछ भी नहीं।" 

" जी जज  साहब।  ।। मैं जानती हूं कि आप कुछ भी गलत नहीं करोगे।  हां नेहा दीदी ने भी गलत किया उन्हें मुझे बता देना चाहिए था या मुझे भी सचेत कर देना चाहिए था बस इतनी ही गलती है उनकी पर फिर भी उस घर में जब तक मैं रही थी एक नेहा दीदी ही थी  जिन्होंने मुझे अपना माना। हां वह खुद का  सोचते  समय मेरे बारे में नहीं सोच  पाई  और  अपने लिए डिसीजन ले लिया यह उनकी गलती है। पर ऐसी स्थिति में जब इंसान होता है तो सिर्फ अपने बारे में ही सोचता है। उसे और कुछ भी दिखाई नहीं देता। इसलिए प्लीज उनके ऊपर ज्यादा सख्ती  मत कीजिएगा।" सांझ ने कहा तो अक्षत मुस्करा उठा। 

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव