साथिया - 100 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

साथिया - 100












ड्राइवर गाड़ी चला रहा था और अक्षत ने कार की सीट से सिर टिकाकर  आंखें बंद कर  ली। आंखों के आगे डॉक्टर के दिखाएं वह फोटोस फिर से घूम गए और अक्षत की बंद आंखों में फिर से नमी उतर आई। 

"जो बीत गया उसे नहीं बदल सकता  मै साँझ पर तुम्हारा आने वाला समय बेहद खूबसूरत होगा जहां पर किसी दर्द की किसी तकलीफ की कोई जगह नहीं होगी। और मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता इन सब चीजों से। बस तुम मुझे वापस मिल गई और मुझे कुछ भी नहीं चाहिए। 

"जितना दर्द सहा है तुमने उन लोगों के कारण एक-एक को  इसका हिसाब चुकाना पड़ेगा किसी को भी इस तरीके से नहीं छोड़ने वाला मै सबको सजा मिलेगी और तुम्हें न्याय वादा है मेरा...!"  अक्षत ने खुद से ही कहा। 


शाम की फ्लाइट से वह लोग इंडिया के लिए निकल गए। 

जहां अक्षत  खुश था की उसे उसकी  मिसेज चतुर्वेदी वापस मिल गई तो वहीं माही को तो कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह खुश हो या ना हो। एक तरफ  वो खुश थी ये जानकर कि उसका अक्षत का रिश्ता है और वह लोग इंडिया जा रहे हैं और  अब शालू और ईशान का रिश्ता भी आगे बढ़ेगा तो दूसरी तरफ बेहद कंफ्यूज भी थी कि आगे सब कैसे होगा? क्या होगा क्योंकि अभी तक अक्षत को उसने ठीक तरीके से जाना और समझा नहीं था और अब  अक्षत के साथ-साथ और भी अनजान लोग मिलने वाले थे उसे  तो वही  शालू के दिल में अजीब सी  कशमकश  थी  कि वो कैसे वह ईशान का सामना करेगी और कैसे  ईशान को  बनाएगी?  कैसे अपना पक्ष उसके सामने रखेगी...? क्या ईशान  उसे माफ कर पाएगा अगर माफ नहीं किया तो....?? "


आगे का सोचते हुए सबने आंखे बंद कर ली क्योंकि सफर लम्बा था। 


उधर इंडिया में ईशान आपने कमरे की 
बालकनी में खड़ा उगते सूरज को देख रहा था। आंखों में अजीब सा सूनापन था और चेहरे पर भी तनाव था। 

"जानता हूं कि तुम वहां से निकल चुकी हो और जल्दी ही मेरे सामने आ जाओगी। समझ नहीं आ रहा कि इस बात के लिए खुशी  मनाउ  कि तुम वापस आ रही हो मेरी जिंदगी में।  या इस बात का अफसोस  करूँ कि तुम्हारी गलती के कारण हमारी लाइफ के  दो  साल बहुत ही बुरे निकल। स्पॉइल हुए दो साल। मैं यह नहीं कह रहा कि तुम्हारा प्यार कम हो गया या तुम मेरे लिए परेशान नहीं रही होगी या  मेरे लिए नहीं तड़प नही होगी पर मेरे दर्द का तुम  अंदाजा भी नहीं लगा सकती  शालू। तुमने मुझसे दूर होना खुद से चुना था। तुम्हारी इच्छा से तुम मुझसे दूर हुई थी। तुम्हारी सहमति थी इसमें पर मुझे यह जुदाई का दर्द तुमने दिया बिना मेरी मर्जी जाने, बिना मेरा गुनाह बताएं दिया। 

शायद हम दोनों भाइयों की किस्मत में ही दर्द था पर कम से कम अक्षत  उसके मन में यह बात तो नहीं है कि सांझ  भाभी ने उसे धोखा दिया। उसे छोड़कर चली गई। वह तो मजबूर थी इसलिए गई उन्हें कुछ याद नहीं था। पर तुमने तो सब कुछ याद होते हुए भी मुझसे  दूरी बनाई। मुझे कुछ बताना जरूरी नहीं समझा। सब कहते हैं कि मैं तुम्हें समझने की कोशिश  करूँ  तुम्हारी मजबूरी को समझने की कोशिश  करूं पर क्या कोई मुझे समझता है? 
क्या किसी ने मुझे समझने की कोशिश की? क्या तुमने मुझे समझने की कोशिश की? 

नहीं..!! 

फिर मुझसे ही क्यों उम्मीद की जा रही है कि मैं तुम्हें समझूँ। तुम्हारी स्थिति को समझूँ  तुम्हारी मजबूरी को  समझूँ  और तुम्हें माफ कर  दूँ।क्या तुम मुझे माफ करती  अगर ऐसा मैंने किया होता?? तो अब बस मुझे तुमसे सिर्फ जवाब चाहिए मेरे सवालों के जवाब और कुछ भी नहीं चाहिए। 

जाने क्यों प्यार में इतने  इम्तिहान देने होते हैं।  मैंने तो इम्तिहान दिया और खुद के प्यार को साबित भी कर दिया। पहले भी तुम्हें चाहता था और आज भी तुम्हें चाहता हूं बिना किसी उम्मीद से बिना तुम्हारे किसी  वादे  के इंतजार किया है मैंने। अब बारी तुम्हारी है अपना प्यार साबित करने की। मैं तुम्हारा कोई इम्तिहान नहीं ले रहा पर इंसान हूं तो सवाल करने का जवाब लेने का और तुम्हें सजा देने का अधिकार मुझे है। वह दर्द जो मैंने महसूस किया है तुम्हें महसूस  कराने  का अधिकार है मुझे। अब इसके लिए कोई मुझे गलत कहे  तो बेशक कहता रहे।" ईशान  खुद से ही बोला और फिर कमरे के अंदर आ गया। 
***
घर में मनु की शादी की तैयारी चल रही थी और  ईशान  अरविंद और साधना का पूरा-पूरा साथ दे रहा था। वैसे भी अक्षत यहां पर नहीं था तो उसकी जिम्मेदारी दुगनी हो गई थी, वरना ज्यादातर इस तरीके के काम अक्षत संभाल लेता था और ईशान का पूरा फोकस सिर्फ और सिर्फ ऑफिस और बिजनेस पर रहता था। 

नील  के घर में भी तैयारियां जोरों शोरों पर थी। सुजाता और दिवाकर वर्मा  किसी भी तरीके की कोई कमी नहीं रखना चाहते थे नील की शादी में। आखिर इस घर की पहली शादी थी और फिर नील की खुशी देखते बनती थी। कहते हैं ना जब इंसान को मनचाही चीज मिलती है तो उस की खुशी संभाले नहीं संभालती। 
वही आजकल नील के साथ हो रहा था। पिछले दो-तीन सालों से वह अक्सर तनाव में रहता था। खुशी उसके चेहरे पर ज्यादा नहीं दिखती थी कारण था उसके और रिया के बीच के बीच के  कई सारे मुद्दे और साथ ही साथ मनु का उसे गलत समझना। 

पर जब से सब बातें  क्लियर हुई थी तब से नील के चेहरे पर अलग की चमक आ रही थी। 

"देखा मम्मी मैं नहीं कहती थी कि इतने भी भैया  नासमझ नहीं है..!! वह उनके अंदर क्या-क्या चल रहा था हम लोगों से शेयर नहीं करते थे और अब देखो कितने खुश हैं।" निशि ने सुजाता के साथ समान एक जगह रखते हुए कहा। 

"हां बेटा मुझे तो समझ ही नहीं आया था...!!वह तो अच्छा है जो तुमने उसे समझ लिया बाकी मुझे पूरा विश्वास था कि मेरा बेटा गलत कुछ कर ही नहीं सकता..!" सुजाता बोली। 

" विश्वास मुझे भी था, पर जब सामने सबूत होते हैं तो कोई कैसे न माने।" तभी दिवाकर ने उन लोगों के पास आकर कहा।।

"वैसे रिया के बारे में  कुछ पता चला? वह और मिस्टर मल्होत्रा फिर से तो कोई प्रॉब्लम क्रिएट नहीं करेंगे.?" सुजाता  अब भी टेंशन मे थी। 

"तुम इतना चिंता क्यों करती हो...।सब पता है मुझे  रिया  वापस से एब्रॉड चली गई है और मल्होत्रा  भी धीमे-धीमे करके अपने बिजनेस यहां से समेटना शुरू कर दिया है। शायद अब वो   लोग हमेशा हमेशा के लिए विदेश ही  सेटल होना चाहते हैं। वैसे भी उन लोगों की भी यहां से काफी कड़वी यादें जुड़ी हुई है   कहते हैं ना इंसान की औलाद ही उसको  उसे स्वर्ग और नरक यही दिखला देती है। और वही मल्होत्रा के साथ हुआ है। उसकी रिया ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा पर औलाद है तो उसे छोड़ नहीं सकते इसलिए उसके साथ वह भी एब्रॉड शिफ्ट हो रहे हैं।"मिस्टर दिवाकर वर्मा बोले।और फिर तीनों मिलकर काम में लग गए तो वहीं सोफे पर फैला  नील मनु के साथ चैटिंग करने में बिजी था। उन लोगों ने उसे देखा और उनके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। 


*****

अठारह  घंटे की लंबी-लंबी यात्रा के बाद आखिर में फ्लाइट ने  दिल्ली एयरपोर्ट पर लैंड किया और उसी के साथ अक्षत ने मुस्कुराकर माही की तरफ देखा जो की शालू के साथ बैठी हुई थी और उसके चेहरे पर  एक्साइटमेंट अलग ही समझ आ रही थी। इंडिया आने की खुशी भी दिख रही थी। 

अक्षत  ने माही की तरफ अपनी हथेली कर दी तो माही ने उसकी तरफ देखा। 

"घर आ गया है माही..!! हमारे देश हमारे शहर में तुम्हारा स्वागत है। " अक्षत ने कहा तो माही  ने उसकी हथेली के ऊपर अपना हाथ रख दिया और सब लोग बाहर आ गए। 

बाहर निकलते ही अक्षत की नजर अरविंद साधना मनु और ईशान पर गई जो की हाथों में बुके  लिए अक्षत और सांझ  के स्वागत के लिए खड़े थे। 

अक्षत ने सब की तरफ देखा और उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। उसने  माही का हाथ थाम रखा और उसके फोटो भी वह अब तक सबको भेज चुका था तो सब तुरंत पहचान गए कि वह सांझ है   अरविंद और साधना, मनु और  ईशान अक्षत और माही  के पास आ गये। 

अबीर और मालिनी ने उन लोगों को नमस्ते किया और फिर साधना और अरविंद ने सांझ को बुके  दिया। 

"स्वागत है बेटा वापस से अपने शहर में!" साधना और अरविंद ने उसके सिर पर हाथ रखकर कहा तो माही ने अक्षत की तरफ देखा। 

"मेरे मम्मी और पापा है तुम्हें बहुत प्यार करते हैं और तुम भी उन्हें बहुत मानती थी।" अक्षत ने कहा तो माही  ने एक पल  को अक्षत की तरह देखा और तुरंत अरविंद और साधना के पैर छू लिए। 

"खुश रहो भगवान तुम्हें हर बुरी बला से बचाए!" साधना ने  भावुक होकर कहा और माही को सीने से लगा लिया। 

माही  उन्हें नहीं पहचानती थी पर  उनका अपनापन देख  व महसूस कर उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।" 

"थैंक यू..!!" माही ने धीमे से  कहा। 

"वेलकम बैक भाभी! "  ईशान ने  माही की तरफ देखकर  कहा तो माही   ने   वापस से अक्षत की तरह देखा। 

" ईशान  मेरा भाई..!!"  अक्षत ने कहा तो  माही  के चेहरे पर बड़ी  सी मुस्कान आ गई।

"थैंक यू सो मच जीजू ..!!" माही ने कहा तो ईशान की आँखे  बड़ी हो गई। 

" अरे हैरान क्यों है..?? मुझे सब पता है आपकी और शालू दीदी की इंगेजमेंट हो चुकी है ना..? तो हुए ना आप मेरे जीजू।" माही  ने खुश होते हुए कहा तो  ईशान  ने पीछे  खड़ी शालू  की तरफ देखा जो कि भरी  आंखों से उसे ही देख रही थी। 

"अभी तो मैं आपका देवर बनकर आपका स्वागत करने आया हूं भाभी..!! तो बस यही रिश्ता रहने दीजिए। आगे का किसने देखा है। वक्त और इंसान कभी भी बदल जाते हैं इसलिए जो आज है वही सच है न हीं पुराने की कोई कोई कीमत है और ना ही आगे का कोई  भरोषा।"  ईशान  ने कहा और फिर वह उन  लोगों  को लेकर घर निकल गए। 


अरविंद के कहने पर मालिनी और अबीर ने अभी सीधे चतुर्वेदी हाउस चलने का ही फैसला कर लिया था। वैसे भी वह लोग सफर के थके हुए थे और इसलिए उन्होंने मना भी नहीं किया और साथ ही साथ में वह  चाहते थे कि माही भी अक्षत और उसके घर के साथ फैमिलयर  हो। 


अरविंद और साधना की गाड़ी में मनु के साथ मालिनी और अबीर बैठे थे तो वही  ईशान  की गाड़ी में अक्षत के साथ माही और शालू बैठे थे। 

पूरे रास्ते  ईशान  ने  शालू से कोई बात नहीं कि न हीं उसकी तरफ देखा जबकि  शालू  की नजर लगातार उस पर टिकी हुई थी। 

वह बस माही से बातचीत करता रहा और यह बात  माही और अक्षत दोनों ही समझ रहे थे। 

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव