साथिया - 101 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 101

ईशान के  इस तरीके से नाराजगी दिखाने और इग्नोर करने के कारण शालू  को बेहद तकलीफ हो रही थी और उसकी आंखें रह रहकर भर रही थी तो  उसने विंडो से बाहर देखना बेहतर समझा ताकि कोई उसके आंसू ना देख सके। 

माही और अक्षत के साथ-साथ  ईशान  से भी उसके दर्द और आंसू छिपे हुए नहीं थे। माही  को बेहद बुरा लग रहा था शालू  के लिए।  पर साथ ही साथ वह समझ रही थी ईशान की नाराजगी भी और साथ ही साथ उसे खुद के लिए भी बुरा लग रहा था कि आज  ईशान और  शालू के बीच जो भी प्रॉब्लम है उसका कारण  वो है। 

थोड़ी देर में सब लोग अक्षत के घर पहुंच गए।  सब फ्रेश हुए और वापस से  हॉल  में आ गए ताकि चाय नाश्ता साथ में कर सकें। 

ईशान और अक्षत भी आकर  बैठ गए  तो वही  शालू और माही भी फ्रेश होकर वापस से आ गए थे। 

अक्षत ने पहले ही घर में बता दिया था की पुरानी बातों का कोई भी  जिक्र माही के सामने ना हो, उस पर गलत असर पड़ सकता है। उसे धीमे-धीमे खुद ब खुद सब कुछ  याद करना होगा। हम उस पर कोई भी प्रेशर नहीं डाल सकते। 

"बड़ी ही खुशी हुई राठौर साहब आपको इतने दिनों बाद देखकर..!!" अरविंद ने कहा। 

"जी चतुर्वेदी साहब माफी चाहूंगा पर माही की हालत ऐसी थी कि किसी को कुछ भी खबर नहीं कर सका  और हमें तुरंत तुरंत इसे लेकर अमेरिका जाना पड़ा और फिर इसकी मेमोरी लॉस हो गई थी तो किसी को पहचानती नहीं थी। इसलिए आप लोगों को हमने फिर आगे कुछ भी बताना  मुनासिब नहीं समझा क्योंकि शायद वह सब चीजे माही के दिमाग पर गलत असर  डाल सकती थी और उसकी रिकवरी  धीमी हो सकती थी।" अबीर  बोले। 

"राठौर साहब समझता हूं मैं एक पिता होने के नाते आपने जो किया ठीक किया..!! अक्षत ने मुझे सब कुछ बता दिया है और मुझे आपसे किसी भी तरह की कोई शिकायत नहीं है। बस इतना ही कहना चाहता हूं कि जो काम पहले रुक गए थे अधूरे में छूट गए थे उन्हे किया जाए। मेरा मतलब है कि अक्षत और माही की शादी और  ईशान शालू  की शादी।"  अरविंद जी ने  कहा। 

"जी चतुर्वेदी साहब  मैं  पूरी तरीके से तैयार हूं। आप जब कहें तब शादी की जा सकती है। और मैं तो कहूंगा  कि ईशान  और  शालू की शादी जितनी जल्दी हो सकती है उतनी जल्दी कर देते हैं। बाकी माही और अक्षत जब चाहे तब उनके भी  फेरे  डलवा देंगे। इनका रिश्ता तो पहले ही..!! " अबीर  बोले तो  ईशान एकदम से उठ खड़ा हुआ। 

"मुझे आप लोगों से बात करनी है..!!"  ईशान  ने कहा.!! 

" हां बेटा बोलो क्या कहना चाहते हो..??" अबीर बोले। 

" राठौर साहब आपकी अपनी वजहें होगी अपने कारण होंगे यहां से जाने के और हम लोगों को ना बताने के। पर मेरे अपने कारण है और मैं भी आप लोगों को  कोई भी कारण और कोई भी वजह नहीं बता सकता पर मैं आपकी बेटी के साथ शादी नहीं कर सकता।" ईशान ने कहा। 

"  ईशु क्या बोल रहे हो? " अरविंद बोले। 

"प्लीज पापा समझने की कोशिश कीजिए । आप लोग भूल सकते हैं या भूल चुके हैं पर मैं ना ही भूल सकता हूं और ना ही भूलना चाहता हूं। मुझे अबीर  राठौर की बेटी शालिनी राठौर के साथ कोई रिश्ता नहीं रखना। मुझे नहीं करनी उनके साथ शादी।" 

" सब लोग शोक्ड  होकर उसकी तरफ देख रहे थे तो वही शालू  की नजरे झुक गई थी और उसकी आंखों में आंसू भर आए थे। 

माही आंखें फाड़े बस  ईशान  और शालू को देख रही थी पर उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह इस समय क्या करें? वही हाल अक्षत का था वह समझता था  ईशान  की हालत और उसके दिल की तकलीफ इसलिए कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं था। 

"और एक बात मैं आप लोगों से किसी को मिलवाना चाहता हूं..!!" ईशान ने कहा तो अक्षत की आंखें छोटी हो गई। 


" वीना  अंदर आ जाओ।" ईशान ने आवाज लगाई  तो एक लड़की अंदर आ गई। 

"यह तो? " अरविंद कहते कहते रुक गए। 

"जी  पापा  यह मेरी पर्सनल सेक्रेटरी है। और मैं इससे शादी करना चाहता हूं। जितनी जल्दी का मुहूर्त निकल  सकता है   निकलवा दीजिए। मानसी की शादी के बाद  मैं वीना  के साथ शादी करना चाहता हूं।"  ईशान ने कहा। 


" लेकिन बेटा?" साधना बोली। 

"प्लीज मम्मी..!! अपनी लाइफ का डिसीजन लेने का हर किसी को अधिकार होता है। जब दूसरे लोग  अपना अधिकार प्रयोग करके अपना डिसीजन ले सकते हैं। बिना किसी से पूछे बिना किसी से  सलाह मशवरा  किये, बिना किसी को इन्फॉर्म किये जा सकते है और जब मर्जी हो आ सकते है  तो मुझे भी मेरा डिसीजन लेने का अधिकार है।" 


" इशू..!!" अक्षत ने कहना चाहा।

"और फिर आप लोगों को तो मेरी शादी से मतलब है ना? मेरी खुशी से मतलब है? और  मेरी खुशी शालिनी राठौर के साथ नहीं बल्कि वीना  के साथ है। और मैं शादी शालिनी के साथ नहीं वीना  के साथ करना चाहता हूं। ईशान ने कहा। 

" अब किसी के पास कुछ भी  कहने  के लिए नहीं बचा था। 

शालू की आंखों में रुके आंसू उसके गालों पर आ गए पर वह वहां से नहीं उठी। मुझे नहीं लगता कि किसी को कोई ऑब्जेक्शन होना चाहिए..!!" ईशान बोला और अबीर की तरफ देखा।

"क्यों राठौर साहब आपने अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं। आपकी बेटी अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है तो फिर मुझे नहीं लगता कि आप लोग मुझ पर कोई भी प्रेशर डालेंगे क्योंकि मैं भी अपने डिसीजन लेने के लिए फ्री हूं।"  ईशान ने कहा तो शालू  उठ खड़ी हुई। 

उसने ईशान की तरफ भरी आंखों से देखा और फिर  फीकी  मुस्कुराहट उसके होठों पर आ गई। 

"बिल्कुल ठीक कहा आपने  ईशान चतुर्वेदी जी..!! आपको आपका डिसीजन लेने का पूरा-पूरा अधिकार है। बाय द वे  कॉंग्रेट्स..!! आप हमेशा खुश रहें और इस रिश्ते में आपको ना ही कोई धोखा मिले और ना ही बेवफाई  यही भगवान से प्रार्थना करूंगी।" शालू  ने कहा और तुरंत वहां से निकलकर अपने कमरे में चली गई जहां पर वह  अबीर और मालिनी के साथ  ठहरी  हुई थी। 


"पापा मैं  वीना  को छोड़कर आता हूं। आप लोग अक्षत और माही भाभी के रिश्ते की बात आगे बढ़ा सकते हैं। बाकी मैं अपना फैसला ले चुका हूं।" ईशान ने कहा और वीना को लेकर वहां से निकल गया। 

किसी ने उसे कोई सवाल नहीं किया। कुछ कहने और सुनने के लिए शायद बाकी ही नहीं था क्योंकि अब  जो कुछ भी होना था वह  ईशान  और शालू  के बीच था। शालू ने जो  ईशान को दर्द दिया था वह ईशान ने अपने सीने में दफन कर लिया था पर इसका मतलब यह नहीं कि उसको तकलीफ नहीं हुई थी और उसी  तकलीफ का यह फल था जो आज  ईशान का यह रूप सामने आया था। अब वह क्या चाहता था क्या नहीं यह तो  ईशान ही जाने पर इतना  तय था  कि वह शालू को आज की तारीख में माफ करने के लिए  हरगिज  तैयार नहीं था। 


चतुर्वेदी जी ने  अबीर की तरफ देखा। 


"माफ कीजिएगा राठौर साहब पर वही बात है बच्चों के आगे किसी की नहीं चलती है..!! फिर भी मैं आपसे यही कहूंगा कि मैं समझाने की पूरी कोशिश करूंगा। इन फैक्ट मैंने और साधना ने   उसे समझाने की कोशिश भी की है, पर कुछ जख्म ऐसे होते हैं जो  भरते भरते  ही भरते हैं।और किसी के कितने भी कहने से ठीक नहीं होते। वही  ईशान  के साथ हो रहा है। उसकी तकलीफ का हम लोग अंदाजा भी नहीं लगा सकते। मैं यह नहीं कहता कि शालू गलत है उसकी अपनी मजबूरी रही होगी पर आज  मैं  यही  कहूंगा कि  ईशान  भी गलत नहीं है। क्योंकि किसी भी रिश्ते में विश्वास और ट्रांसपेरेंसी होना बहुत जरूरी है। माही के लिए आप लोगों ने जो डिसीजन लिया मैं उसका सम्मान करता हूं। पर  ईशान  और शालू का रिश्ता जितना गहरा था उस  हिसाब से अगर शालू  एक बार  ईशान  को विश्वास में लेकर बताती तो शायद आज बात इतनी ना बिगड़ती। " अरविंद ने कहा तो अबीर  के चेहरे पर भी कठोरता आ गई। 


"मैं बिल्कुल आपकी बात मानता हूं पर  कभी मां-बाप बच्चों के लिए मजबूर हो जाते हैं तो कभी बच्चे मां-बाप के लिए मजबूर हो जाते हैं   यहां अगर गलत है कोई तो वह मैं हूं। मैं मजबूर हुआ अपनी बेटी के लिए। अपनी बेटी की जिंदगी बचाने के लिए मुझे जो सही लगा मैंने वह किया। मैं जानता हूं इन सब में मैंने आपके दोनों बेटों को तकलीफ  दी। पर सिर्फ बात यहाँ  बेटों की नहीं है। जितनी तकलीफ आपके बेटों को दी है मैने  उतनी ही तकलीफ मैंने शालू को भी दी है। पर वह मेरी बेटी है तो मेरे विरोध नहीं गई और मुझसे शिकायत नहीं की पर उसका दर्द और उसके आंसू मुझसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता। जिस तरीके से अक्षत और ईशान का दर्द आपने महसूस किया है उसी तरीके से इन  दो  सालों में शालू  का दर्द और उसके अंदर का गिल्ट मैंने महसूस किया है। पर अपने मां-बाप और अपनी बहन के कारण वह भी मजबूर हो गई थी और नहीं बता पाई। जानता हूं आसान नहीं है  ईशान  के लिए यह समझना पर अगर वह समझ जाए तो बेहतर होगा  क्योंकि इतना तो हम लोग जानते ही हैं कि दोनों का रिश्ता बहुत  गहरा  रहा है। वरना आज जिस लड़की को ईशान ने  सामने खड़ा किया है वह शायद आपके यहां एक साल पहले या डेढ़ साल पहले ही आ चुकी होती? आज अगर वह उसे लेकर आया है तो सिर्फ और सिर्फ इसलिए ताकि शालू को तकलीफ दे सके पर अब मैं भी अपनी तरफ से कोई  प्रेशर  नहीं डालूंगा। उन दोनों का आपस  का मामला है आपस में सोच लेंगे।" 


" जी राठौर साहब मैं भी यही कहना चाहता था..!!  हम उन दोनों को समय देते हैं। अभी आजकल में तो शादी हुई नहीं जा रही है ना ईशान की  न शालू की। बस थोड़ा सा समय एक दूसरे की नाराजगी दूर करने के लिए हमें देना होगा। वह हम दे देंगे और मुझे विश्वास है कि सब ठीक होगा।" अरविंद बोले। 

"बस  अब आप अक्षत और माही की रिश्ते की बात तय कीजिए, क्योंकि मैं नहीं चाहती कि अब माही  बिल्कुल भी हमसे या हमारे बेटे से दूर रहे। वो  जल्द से जल्द विदा होकर हमारे घर आ जाए तो हमारी सारी टेंशन खत्म हो जाएगी।" साधना ने माही की तरफ देख के  कहा। 

"हमें कोई दिक्कत  कोई परेशानी नहीं है। आप जब का चाहे तब का मुहूर्त  निकलवा  लें। अब माही आपकी अमानत है और उसे आपके घर विदा करने में हमें कोई भी आपत्ति नहीं है।" अबीर  बोले। तभी अक्षत का ध्यान  माही  की तरफ गया जिसके चेहरे पर अजीब से भाव आ गए थे और वह वहां से उठकर बाहर गार्डन की तरफ निकल गई। 

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव