साथिया - 91 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 91

माही ने अबीर और मालिनी की तरफ देखा और फिर से अक्षत की तरफ देखा। 

"लेकिन मैं आपको कैसे जानती हूं और आप मुझे कैसे जानते हैं? हमारा कोई रिश्ता है क्या आई मीन आपको कैसे जानती हूं मैं..?" माही ने कहा। 

इससे पहले की अक्षत कोई जवाब देता। 
अबीर ने  माही के कंधे पर हाथ रखा। 

"तुमने आज ही तो कहा था ना  ईशान  और शालू के रिश्ते के बारे में तुम्हें पता है। तो शालू और ईशान की सगाई हो चुकी थी  और  फिर  तुम्हारा एक्सीडेंट हो गया और हम लोग यहां चले आए तो उन दोनों की शादी नहीं हो पाई।" अबीर बोले। 

"और यह  ईशान के भाई है अक्षत चतुर्वेदी .!! दिल्ली में जज है।" अबीर ने कहा। 


" और तुम इन्हे जज साहब ही बुलाती थी।" शालू  ने कहा तो माही ने एक नजर अक्षत को  देखा  और और हल्का सा मुस्कुरा उठी। 

ना जाने क्यों पर  उसके दिल में एक अजीब सी हलचल और एक अजीब सी बेचैनी इस समय हो रही थी। उसे क्या हो रहा था वह नहीं समझ पा रही थी पर न जाने क्यों अक्षत को देखकर उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह उसे सालों से जानती हो बहुत गहरा रिश्ता हो दोनों के बीच में पर क्या रिश्ता है और कैसे जानती है उसे समझ नहीं आ रहा था। 

" सिर्फ इतना ही शालू दीदी या..!! " कहते कहते माही रुक गई। 


"मेरी शादी ईशान के साथ और तुम्हारी जज साहब के साथ तय हुई थी।" शालू ने हिम्मत करके बोल दीया तो माही ने आँखे बड़ी  करके उसे देखा। 


" आप मजाक कर रही हो न शालू दी..?? अगर इनके साथ रिश्ता होता तो ये कभी तो मुझसे मिलने आते? दो सालों से तो नही आये..?? अगर रिश्ता था तो कहाँ थे ये अब  तक??आप भी न..?? " माही बोली और अपनी बेचैनी और धड़कनो के शोर को सबसे छिपाती हुई वहाँ से घर चली गई। 

"चलो अक्षत बेटा घर चलते हैं आप आराम कर लो सफर की थकान हो रही होगी..!! मैं टिकट देखता हूं कल हम सब लोग इंडिया चल रहे हैं।  बाकी माही को शायद वक्त लगे पर कर लेगी एक्सेप्ट..!!" अबीर ने कहा तो  शालू ने भरी आंखों से  अबीर  की तरफ देखा। 

अबीर  ने शालू के सिर पर हाथ रख दिया और  घर आ गए


जैसे ही अबीर ने माही को जाने के बारे मे बताया वो अबीर के गले लग गई। 

"थैंक यू पापा आपने मेरी बात मान ली..!! अब वहां चलते ही शालू दी और ईशान जीजू के रिश्ते की बात कीजिएगा। मेरे एक्सीडेंट के कारण कितना कुछ बिखर गया। कितने लोगों की लाइफ डिस्टर्ब हो गई। अब सब कुछ सही कर देंगे हम लोग हैं ना  पापा। " माही बोली।


"शालू के साथ साथ तुम्हारा और अक्षत का भी रिश्ता..!!" अबीर बोले

"'आई नीड  सम टाइम पापा..!! प्लीज..!!" माही ने अक्षत की तरफ देख के कहा। उसकी धड़कने फिर से बेकाबू होने लगी थी। 

अक्षत की गहरी नजर उसके दिल पर असर कर  रही थी।


माही के जाते  ही  अक्षत ने गहरी सांस ली और अबीर की तरफ देखा। 

अबीर  ने उसके कंधे पर हाथ रखा


" माफी चाहूंगा  अनजाने तुम्हारा  गुनाहगार बन गया पर यकीन मानो मुझे नहीं पता था। अगर मुझे पता होता तो मैं तुम्हें उससे जरूर शुरुआत में ही इंट्रोड्यूस कर देता। और आज जो उसके दिल में सवाल उठ रहे हैं कि तुम पिछले दो सालों में कभी उससे मिलने क्यों नहीं आए फिर वह सवाल कभी नहीं करती। पर मुझे सच नहीं पता था क्योंकि तुम दोनों की शादी के बारे में मुझे तो क्या शायद किसी को भी नहीं पता है।" 

"जी राठौर साहब मेरे ट्रेनिंग पर जाने से पहले ही हम दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली थी..!! ना जाने क्यों दिल उसे छोड़कर जाने को नहीं हो रहा था। बहुत बेचैनी हो रही थी। नहीं समझ पाया मैं की यह बेचैनी क्यों हो रही थी? शायद साँझ के साथ इतना बड़ा हादसा होना था इसलिए मेरा दिल पहले से ही  बैचैन  था। और  मैंने  अपनी बेचैनी को कम करने के लिए यही उपाय बेहतर समझा कि हम दोनों की शादी हो जाए। क्योंकि कहीं ना कहीं मुझे इसी बात का डर था कि इसके घर वाले इसके साथ कोई जबरदस्ती ना करें शादी के लिए। इसीलिए हम दोनों ने कोर्ट में शादी कर ली थी और हमने तय किया था कि मेरी ट्रेनिंग से लौटने के बाद हम दोनों की शादी  हिंदू रीति रिवाज  के साथ हो जाएगी। 

अबीर  ने अक्षत के कंधे पर हाथ रखकर  थपका


" नहीं जानता था कि मेरी ट्रेनिंग से लौटने से पहले ही सब कुछ बिखर जाएगा..!! अगर ऐसा मुझे अंदाजा होता तो मैं उसे कभी गांव जाने नहीं देता। उसे अपने मम्मी और पापा के पास हमारे घर पर ही छोड़कर जाता। पर वही ना जब जब किस्मत ही खराब हो तो कोई क्या कर सकता है। और सब चीज मेरे हाथ से रेत की तरह  फिसल गई।" अक्षत ने  भावुक  होकर   कहा। 



"कुछ भी नहीं   फिसला है अक्षत भाई और ना ही कुछ बर्बाद हुआ है। आप अपने मन में कुछ भी नेगेटिव बात मत लाइए।  आपकी पॉजिटिविटी और आपका विश्वास ही है जो आज आप  सांझ  को ढूंढते हुए यहां तक आ गए हो। बस अब विश्वास रखिए अपने प्यार पर और अपने रिश्ते की मजबूती पर।आज  वह  भले  इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रही है कि आप दोनों का रिश्ता था। उसका कारण है क्योंकि पिछले दो सालों में आप उससे नहीं मिले हो, तो उसके लिए एक्सेप्ट करना आसान नहीं है  कि अगर आप दोनों का रिश्ता इतना गहरा था तो आप उससे मिलने क्यों नहीं आये। पर आप दोनों के एहसास बहुत स्ट्रॉन्ग है एक दूसरे  के लिए  तभी तो ना आप उसे मरा हुआ मन पाए और ना ही उसकी याददाश्त जाने के बाद भी उसके दिलों दिमाग से जज साहब का नाम मिटा। आज भले उसे याद नहीं है  पर उसे जल्दी याद आएगा  और जब तक उसे याद नहीं आता आपके पास समय है  नई  यादों को  बनाने का और  मैं जितना अपनी बहन को जानती हूं वह
आपको जल्दी ही एक्सेप्ट कर लेगी और  फिर आप लोग नई यादें बनाना। अगर पुरानी यादें वापस आती हैं तो ठीक है वरना दिल में प्यार है एहसास है तो  नई यादें  और भी खूबसूरत बनेगी।"  शालू  ने कहा। 

"पर आज उसकी आंखों में एक दर्द दिखा मुझे..!! एक तकलीफ की अगर मेरा उसके साथ रिश्ता था तो फिर मैं इतने दिनों तक कहां था??" अक्षत  दर्द के साथ  कहा। 

अबीर  ने अक्षत के दोनों कंधों पर हाथ रखा। 


"हम सब है ना उसे विश्वास दिलाने के लिए..!! जानता हूं कि मुझसे गलती हो गई पर मुझे नहीं पता था इसलिए फिर से तुमसे माफी मांग रहा हूं। अपनी बच्ची की जिंदगी के लिए जो  मुझे बेहतर लगा वह मैंने किया। यहां तक की  शालू  ने अपना और  ईशान  का रिश्ता भी सैक्रिफाइस किया, सिर्फ और सिर्फ  साँझ  के लिए क्योंकि उस वक्त  हम लोगों के लिए सबसे ज्यादा जरूरी था  साँझ की जिंदगी बचाना और उसे दुनिया और  उन लोगों से सुरक्षित करना। और उसके लिए हम तीनों से जो बन पड़ा वह हम तीनों ने किया। जानते हैं कि इस समय कई लोगों का दिल दुखाया है कई लोगों के गुनहगार बन गए हैं। और उनमें सबसे ज्यादा गुनहगार हम तुम्हारे और  ईशान  के हैं। पर बेटा हमारी स्थिति भी समझो।" अबीर बेहद दुःखी हो गए। 
अक्षत ने उनकी लाल होती आँखे देखी। 

"तीन बेटियां थी हमारी..!! सबसे बड़ी शालू और उसके बाद  साँझ और माही। उनमें से सिर्फ शालू हमारे पास रही। माही मेरी बहन के पास चली गई थी और  सांझ को मेरा दोस्त लेकर चला गया। 

सालों बाद माही हमारे पास वापस आ रही थी। वह हमसे नाराज रहती थी क्योंकि हमने उसे उसकी बुआ को दे दिया था। बड़ी मुश्किल से मनाया था मैंने और मालिनी ने उसे दिल्ली आकर रहने के लिए और उसका एक्सीडेंट हो गया। 

दूसरी तरफ  साँझ  के साथ इतना बड़ा हादसा हो गया।

मेरी दोनों जुड़वा बेटियों के बीच में एक बेटी की मौत हो चुकी थी और एक बेटी जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी। उस समय हमें सिर्फ एक बात समझ आई कि कैसे भी करके हमें साँझ  को बचाना है। 

मैं अपनी तीन बेटियों में से एक बेटी को खो चुका था दूसरी बेटी को अब नहीं खोना चाहता था तो बस किसी भी हाल में मुझे बचाना था। 
उस समय मुझे जो सही लगा वह मैंने किया और उसमें मेरा साथ दिया शालू और मालिनी ने। हो सके तो हम तीनों को माफ कर देना।" अबीर ने हाथ जोड़कर कहा तो अक्षत ने उनके हाथ थाम लिए। 


"नहीं राठौर साहब प्लीज आप माफी मत  मांगिये। मैं मानता हूं कि गुस्से में मैंने आपसे बहुत कुछ बोल दिया। पर सच बोलूं तो आपकी कहीं कोई गलती नहीं है। आपकी जगह कोई और होता तो  वह भी यही करता। शायद मैं होता तो मैं भी यही करता। मैं भी शायद सबसे पहले प्राथमिकता सांझ  की जिंदगी को बचाने को ही देता। उसके बाद किसी और चीज को। 

एक पिता होने के नाते आपको अपनी बेटी के बारे में निर्णय लेने का अधिकार था और आपने उसी  अधिकार का उपयोग करते हुए न सिर्फ  सांझ  की जिंदगी बचाई बल्कि मुझ पर भी उपकार कर दिया है। अगर उस दिन आप नहीं पहुंचते तो शायद वह मछुआरा और सुरेंद्र अंकल सांझ को नही बचा पाते।" अक्षत बोला तो सुरेंद्र की आँखों मे फिर से नमी उतर आई। 


"सारी बातों को एक तरफ रख दें तो यह बात मेरे लिए बहुत मायने रखती है कि अगर आज  सांझ  जिंदा है तो सिर्फ और सिर्फ आपके कारण। भले उसका चेहरा बदल गया है भले वह सब को भूल गई है पर फिर भी मेरे लिए इतना ही काफी है कि वह है और आज नहीं तो कल वह मुझे पहचान जायेगी। मुझे जान जाएगी और नहीं पहचाना तो जैसा  शालू ने कहा मैं फिर से उसके दिल में अपने लिए मोहब्बत जगा दूंगा। फिर से  नई   यादें  बना लूंगा, पर पर हार नहीं मानूंगा। और जब भगवान ने मुझ पर इतनी कृपा की है कि मेरी  साँझ  मुझे वापस लौटा दी है तो अब किसी भी सूरत में उसे खोने नहीं दूंगा।" अक्षत ने कहा तो  अबीर  मुस्कुरा उठे और अगले ही पल उन्होंने अक्षत को अपने सीने से लगा लिया। 

"किसी भी पिता के लिए यह बहुत ही खुशी और गर्व की बात होती है कि उसकी बेटी का पति उसे  उसके पिता से भी ज्यादा प्यार करें..!! और तुम्हारे इस इंतजार और  सांझ को ढूंढने के एफर्ट ने यह साबित कर दिया कि तुम सांझ को इस दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करते हो। शायद मुझसे और मालिनी से भी ज्यादा। इसलिए सबसे पहला हक  साँझ  के ऊपर तुम्हारा है और तुम्हारा यह हक तुम्हें कैसे दिलाना है यह मैं बहुत अच्छे से जानता और समझता हूं। बस अब हम इंडिया चलने की तैयारी करते हैं बाकी के सारे फैसले और काम  अब वहीं पर होंगे।" अबीर  ने कहा और फिर वह लोग इंडिया जाने की तैयारी में लग गए। 

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव