साथिया - 90 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 90

"यह आपने ठीक नहीं किया मिस्टर राठौर..!! यह आपने ठीक नहीं किया। उसका नाम बदल देना उसकी याददाश्त चले जाना अलग बात है। पर आपने तो उसकी पहचान ही बदल दी।"


मैने कहा था न तुम बर्दास्त नही कर पाओगे..!"

"यह बात सही नही है। मेरे बर्दाश्त करने की छोड़िये राठौर साहब..!! जिस दिन सांझ को सब याद आ जाएगा क्या वह बर्दाश्त कर पाएगी?? अपनी पहचान से अलग किसी और के चेहरे और नाम के साथ जीना उसके लिए आसान होगा क्या?? हर इंसान का चेहरा उसकी पहचान होती है। आपने सिर्फ सांझ से उसका नाम नहीं छीना आपने उसकी पहचान भी छीन ली। आपने उसका चेहरा छीन लिया राठौर साहब..!!" अक्षत ने दुखी होकर कहा।



" हाँ मानता हूँ मुझसे गलती हुई पर इसके दो कारण थे। एक तो सांझ का ओरिजिनल फोटो हमारे पास था नहीं, क्योंकि इतना सब हुआ था तो हमारे पास सांझ का ऐसा कुछ भी समान नहीं था कुछ डॉक्यूमेंट के अलावा कि हम डॉक्टर को फोटो दे सके। दूसरा वही जो मैंने कहा कि मैं स्वार्थी हो गया था। और मैं क्या करता?? उस समय नदी मे गिरी सांझ को चार दिन बाद जब होश आया तब वह किसी को नहीं पहचान पाई थी और डॉक्टर ने बताया कि इसकी याददाश्त चली गई है और कब आएगी कुछ नहीं कहा जा सकता।

डॉक्टर ने सांझ से हमारा परिचय कराया और हमें उसके मां-बाप बताया तो उसने हमें अपने मां और पापा स्वीकार कर लिया। शालू को उसकी बहन बताया तो उसने एक्सेप्ट कर लिया। मुझे उस समय नहीं पता था कि तुम दोनों की शादी हो चुकी है वरना मैं तुम्हें बुलाकर डॉक्टर के जरिए ही तुम्हारा भी इंट्रोडक्शन करा देता तो शायद वह तुम्हें स्वीकार कर लेती। पर उस समय मुझे जब मुझे लगा कि उसे दुनिया की नजरों से बचाने का और सांझ को सुरक्षित रखने का यही उपाय है कि अब नाम के साथ-साथ उसकाे चेहरा भी माही का दे दिया जाए। और अब तुम मुझे गलत कहो या सही कहो पर सच यही है और इसीलिए तुमसे कह रहा था मैं की अब तुम उससे न हीं मतलब रखो तो बेहतर होगा। क्योंकि तुम जितना उसके करीब जाने की कोशिश करोगी तुम्हे उतनी ही ज्यादा तकलीफ होगी। और सबसे बड़ी बात की सिर्फ कागजों पर रिश्ते बनाने से रिश्ते नहीं बन जाते हैं। दिल के रिश्ते खत्म हो चुके हैं अक्षत..!! अक्षत वह तुम्हें भूल चुकी है और तुम भी उसके बिना रह रहे हो। अब एक दूसरे के लिए एहसास खत्म हो गए हैं तो फिर इस रिश्ते को ढोने का क्या फायदा है..? जिस इंसान को तुम आज भीड़ में पहचान नहीं सकते उस इंसान के साथ में रिश्ता निभाकर क्या ही हासिल हो जाएगा।" अबीर बोले।

"राठौर साहब आपने अभी हम दोनों के रिश्ते को जाना नहीं है। भले उसे कुछ भी याद ना हो तब भी वह मुझे नहीं भूल सकती..!! उसके जज साहब उसके दिल से कभी नहीं जा सकते। मैं यह सिर्फ कहने के लिए नहीं कह रहा हूं। आपके साथ तो वो दो साल से है। आपने कभी महसूस नहीं किया कि वह मुझे अभी याद करती है..?? या उसके दिल में अभी मेरी यादें कहीं ना कहीं छपी हुई है.??" अक्षत ने कहा तो मालिनी और शालू ने एक दूसरे की तरफ देखा और और फिर अबीर की तरफ देखा।

"हां अक्षत भाई आप ठीक कह रहे हो..!! सांझ आज भी जब डर कर उठ जाती है तो अक्सर उसकी जुबान पर जज साहब का नाम होता है। और वह मुझसे कई बार पूछ चुकी है कि जज साहब कौन है..?" शालू ने कहा तो अक्षत भरी आंखों के साथ मुस्कुरा उठा।

" यह तो रही उसकी बात अब आप कहते हैं कि उसे पहचान नही पाऊंगा। तो चाहे कितने चेहरे बदल जाए चाहे कितने नाम बदल जाए चाहे कितने भी पर्दों के बीच आप छुपा लो पर मैं पहचान लूंगा। मैं इस दुनिया भीड़ में से सांझ को जब ढूंढ सकता हूं तो फिर...!! जिस इंसान के लिए पूरी दुनिया में यह चीज थी कि वह अब जिंदा नहीं है। हर इंसान ने मुझसे कहा कि वह इस दुनिया में नहीं है। जब मैं उसे ढूंढते हुए यहां तक आ गया तो उसे पहचान भी लूंगा। चाहे उसे आपने कैसा भी चेहरा क्यों न दिया हो। हम दोनों के दिल एक दूसरे से जुड़े हैं राठौर साहब। हमारा रिश्ता चेहरे का मोहताज नहीं।" अक्षत ने फुल कॉन्फिडेंस के साथ कहा।

"ठीक है तो पीछे के दरवाजे से चले जाओ..!! पीछे एक पब्लिक गार्डन है जहां पर वह वॉक करने गई है। अगर उसे पहचान लोगे तो हम तुम्हारे साथ इंडिया चलने के लिए तैयार है तुरंत। आगे क्या होगा यह हम मिल बैठ कर डिसाइड करेंगे..!! कैसे होगा यह भी हम मिलकर डिसाइड कर लेंगे..!! पर उससे पहले जरूरी है कि तुम जो दावा कर रहे हो सांझ को पहचानने का। तुम उसे जाकर पहचान लो। अगर तुम उसे पहचान लेते हो तो हम सब लोग वापस से इंडिया चलने को तैयार है क्योंकि हम भी चाहते हैं कि हमारी दोनों बेटियां खुश रहे।

अगर सांझ तुम्हारी पत्नी है तो तुम दोनों का एक दूसरे का हक है। पर हक जमाने से पहले एक दूसरे को जानना और समझना भी जरूरी है। अब जो तुम्हारे सामने आएगी वह सांझ नहीं बल्कि माही है और माही को तुम कितना समझते यह भी समझना हमारे लिए जरूरी है।"अबीर ने कहा।

"हालांकि मैं उसका कानूनी हस्बैंड हूं कोई भी दुनिया कोई भी ताकत मुझे उससे दूर रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकती..!! मैं आज चाहूं तो आज कानून का सहारा लेकर उसे यहां से ले जा सकता हूं पर अपने जैसा बताया उसे कुछ भी याद नहीं और मैं कोई भी जोर जबरदस्ती करके उसे हर्ट नहीं करना चाहता इसलिए आपकी बात का मान रखते हुए मैं आपको साबित कर देता हूं कि मैं उसे पहचान सकता हूं दुनिया के भीड़ में भी। आप दूर खड़े होकर देखिएगा बाकी मुझ पर छोड़ दीजिए।" अक्षत बोला और पीछे के रास्ते से बाहर निकल गया।

उसके पीछे अबीर मालिनी और शालू भी निकल गए।


अक्षत बाहर गार्डन में पहुंचा जहां कई सारे लोग घूम रहे थे। कोई दौड़ रहा था कोई एक्सरसाइज कर रहा था कई सारे फॉरेनर्स थे तो कई सारे इंडियन भी थे कुछ लड़कियां थी कुछ लड़के थे।

अक्षत उन सबमे मे सांझ को ढूँढने लगा।
पर उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। दिल बेचैन था और दिमाग जैसे काम करना बंद कर गया था।

जैसा कि राठौर साहब ने बताया था सांझ का चेहरा आप पूरी तरीके से बदल चुका था। उसके नाम के साथ-साथ उसे पहचान भी माही की दी जा चुकी थी और माही को अक्षत ने पहले कभी नहीं देखा था।
हालांकि जैसा कि राठौर साहब ने कहा कि बेसिक फीचर्स लगभग मिलते-जुलते थे पर फिर भी हर इंसान अलग होता है और जरूरी नहीं की आईडेंटिकल ट्विंस एक जैसे ही दिखें, क्योंकि अगर सांझ और माही का चेहरा एक दूसरे से इतना ही मिलता हुआ होता तो अबीर शालू और मालिनी उसे बहुत पहले ही पहचान चुके होते।

पर कुछ समानतायें होने के अलावा उन दोनों के चेहरे में बहुत ही ज्यादा अंतर था तो पहचानना इतना आसान नहीं था।

अक्षत बेचैनी से उन लोगों के बीच में सांझ को ढूंढ रहा था।

उनमें जो इंडियन चेहरे की लड़कियां थी उनमें सांझ को पहचानने की कोशिश कर रहा था।

वहीं दूर कुछ दूरी पर खड़े अबीर मालिनी और शालू बस अक्षत को देख रहे थे।

जब अक्षत को समझ नहीं आया तो आखिर में उसने आंखें बंद कर ली और गहरी सांस ली।


"मेरा दिल जानता है कि कभी भी तुम्हारे चेहरे को देखकर तुम्हें नहीं चाहा है ..! मैंने तुम्हारे दिल तुम्हारी आत्मा को प्यार किया है सांझ और तुम्हारा चेहरा चाहे कितना भी बदल जाए पर तुम्हारे दिल तुम्हारी आत्मा और तुम्हारे अपने आसपास होने के एहसास को मैं कभी नहीं भूल सकता।" अक्षत ने खुद से ही कहा और आंखें बंद करके सांझ के एहसास को महसूस करने लगा।

कुछ ही पल बीते होंगे कि उसे एहसास हुआ कि सांझ उसके करीब है।

अक्षत ने एकदम से हाथ पकड़ लिया और आंखें खोलकर देखा तो सामने एक लड़की खड़ी हुई थी।

छोटे-छोटे बाल रंग साफ रंग देखने में खूबसूरत।


उधर अबीर शालू और मालिनी भी सांस रोके देख रहे थे।

अक्षत ने भरी आंखों से उस लड़की को देखा जो कि अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से अक्षत की तरफ देख रही थी और अपने अक्षत के हाथ मे थमे हाथ को।

"कुछ हेल्प चाहिए थी क्या आपको? किसी को ढूंढ रहे हैं आप..??" तभी वह लड़की बोली।

"हां माही ..!! आपको ही ढूंढ रहा था।" अक्षत ने कहा।

" जी मैं माही राठौर हूँ। कहिये क्या काम है..??" माही ने जैसे ही कहा अक्षत अपनी तरफ से पूरा कंफर्म हो गया।

उसे वैसे भी एहसास हुई गया था आंखें बंद करके वह माही को पहचान गया था पर उसकी आवाज सुनने के बाद उसे पूरा यकीन हो गया कि सामने खड़ी हुई लड़की उसकी सांझ है।

" जी आपको ही ढूंढ रहा था।"

"लेकिन आप मुझे क्यों ढूंढ रहे थे? आई मीन क्या हम एक दूसरे को जानते हैं? वह क्या है ना कि मेरी मेमोरी लॉस हो गई है। मैं पुराना सब कुछ भूल चुकी हूं इसलिए आपसे पूछ रही हूँ। क्या हम पहले मिल चुके हैं..??आप मुझे जानते हैं ..??" माही ने कहा तो अक्षत की आंखों में नमी उतर आई।

"वह आपकी फैमिली आपके बारे में पूछ रही थी.!" अक्षत ने दूर खड़े अबीर की तरफ इशारा किया।

"थैंक्स..!!" माही बोली और अबीर की तरफ बढ़ने लगी तभी बढ़ते हुए अचानक से रुकी और उसने पलट कर अक्षत की तरफ देखा।

अक्षत भरी आंखों से उसे ही देख रहा था।

तब तक अबीर मालिनी और शालू भी माही के पास आ गए थे।

माही धीमे-धीमे अक्षत की तरफ बढ़ने लगी और उसके साथ ही अबीर मालिनी और शालू भी।


"आपने कहा कि मेरी फैमिली मुझे ढूंढ रही थी इसलिए आपने मेरा नाम लिया और इसलिए आप मुझे ढूंढ रहे थे। पर मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि आप मुझे जानते हैं। और मैं भी आपको बहुत अच्छे से जानती हूं।" माही ने कहा तो अक्षत ने कोई जवाब नहीं दिया।

माही उसके थोड़ा और पास आई और ध्यान से उसके चेहरे को देखा फिर दो कदम पीछे हट गई और शालू का हाथ कसकर पकड़ लिया।

शालू ने माही की तरफ देखा।

" आप बताओ न जो मुझे महसूस हो रहा है वह सच है ना शालू दी..?? इन्हें मैं जानती हूं ना.??" माही ने कहा तो शालू की आंखें भी भर आई।


माही ने फिर से अक्षत की तरफ देखा और आंखें बंद कर ली।


"जज साहब...!!" माही के मुंह से निकला और एकदम से उसे हल्का चक्कर आ गया।

इससे पहले कि वह गिरती अबीर और शालू ने उसे संभाल लिया,
कुछ ही पलों में तुरंत ही माही की चेतना वापस लौटी और उसने अक्षत की तरफ देखा।


" शालू दी यह जज साहब है ना?? वही जो मुझे अक्सर सपने में दिखाई देते हैं। जिनका चेहरा मुझे धुंधला सा दिखाई देता है। जिनकी आवाज मुझे कई बार सुनाई देती है। ..!!आपको तो पता है ना शालू दीदी..?? अक्सर ही मैं नींद में उठती हूं तो जज साहब बोलती हूं। यह वही जज साहब है ना शालू दी..?" माही ने कहा तो शालू ने भरी आँखों के साथ हाँ में गर्दन हिला दी।

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव