साथिया - 89 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 89

संध्या अब इस कोशिश में रहती थी की मालिनी सांझ से ना मिल पाए। वह मालिनी की बच्ची को ही मालिनी से दूर करना चाहती थी। उसका सोचना था कि अब सांझ को उसने गोद ले लिया है तो अब सांझ पर सिर्फ उसका अधिकार है। क्यों मालिनी अपना प्यार जताती है..? और इधर मालिनी को भी यह बात बर्दाश्त नहीं हो रही थी तो एक दिन दोनों के बीच बहस हो गई और मालिनी ने कहा कि उसकी बच्ची उसे वापस कर दे और अनाथ आश्रम से कोई दूसरी बच्चा ले ले।

यही शायद मालिनी से भी भूल हो गई जो उसने इतना सब कह दिया।

संध्या ने भी कह दिया कि वह बात कर लेगी और वापस दे देगी पर कानूनी रूप से सब कुछ हुआ है इसलिए सब कुछ कानूनी रूप से ही होगा।" अबीर आगे बोले


मालिनी और शालू भरी आँखों से अबीर को सुन रहे थे तो वही अक्षत शोक्ड था।


मालिनी घर आ गई पर मालिनी ने नहीं सोचा था कि अब बहुत कुछ बदलने वाला है।

उसी रात में संध्या और अविनाश ने वह घर छोड़ दिया। वह नौकरी छोड़ दी यहां तक की दिल्ली शहर भी छोड़ दिया और कहीं और चले गए। हम लोगों ने उन्हें ढूंढने की बहुत कोशिश की पर कहीं कुछ पता नहीं चला। क्योंकि अविनाश एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे और उनके एड्रेस पर भी यही घर एड्रेस रजिस्टर था जो की एक किराए का घर था। तो हमें उनके बारे में कोई भी जानकारी नहीं मिल सकी। हमें यह भी नहीं पता था कि उनका गांव कहां है और वह कहां से हैं? बस उनके उनके कुछ फोटो हमारे पास थे और सांझ के कुछ फोटो उनके साथ।।" अबीर बोले और गहरी सांस ली।

"हर किसी को मैं मेरी परवरिश गलत लगी..?? और आप लोगो ने मेरे पिता होने पर प्रश्न चिन्ह ने लगा दिए..!! पर कोई भी यह नहीं समझा कि मैं भी मजबूर था तभी सांस के लिए कुछ नहीं कर पाया क्योंकि मुझे नहीं पता था। और आज के समय जैसा पुराना समय नहीं था। इतना हाईटेक नहीं था की चीजे इतनी आसानी से पता चल जाए। कि आप किसी को इतनी आसानी से ढूंढ सके। बहुत कोशिश की लेकिन जब कहीं से कुछ पता नहीं चला तो थक हार कर आखिर हम लोगों ने इसे नियति मान लिया और सांझ के बिना जीना सीख लिया। " अबीर बोले।


"पर हमारी किस्मत में अभी और इम्तहान बाकी थे...!!" मालिनी ने आंसू पोंछते हुए कहा।


"क्योंकि सांझ और माही आईडेंटिकल ट्विंस थे। दो जिस्म एक जान जैसा रिश्ता था उनमे। तो सांझ के दूर होने के बाद से माही अब बीमार रहने लगी। अक्सर ही उसकी तबीयत खराब हो जाती थी।

हम इलाज कराते..! कुछ महीनों ठीक रहती फिर बीमार हो जाती। उसे दिल्ली का वेदर दिल्ली का एटमॉस्फेयर कुछ भी सूट नहीं कर रहा था। कई तब डॉक्टरों को दिखाया।

और माही जब पांच छः साल की थी तो बहुत सिरियस हो गई। तब डॉक्टर ने कहा कि इसे पहाड़ी एरिया में ले जाओ। जहां पर खुली हवा में शायद यह बेहतर हो सके। हरियाली में शायद दिल खुश हो। ठीक उसी समय पर मेरी बहन मीनाक्षी के पति के एक्सीडेंट में डेथ हुई थी और वह अकेली हो गई थी। डिप्रेशन में चली गई और इधर माही को भी जरूरत थी तो हम लोगों ने माही को अपनी बहन मीनाक्षी को दे दिया जो कि उसे अपने साथ हिल स्टेशन लेकर चली गई जहां पर वह रहती थी।" अबीर बोले।


" माही इस समय तक अपने मां-बाप और बुआ में फर्क समझना सीख गई थी। उसे यह सब चीजें सही नहीं लगी पर उसकी जिंदगी बचाने के लिए हमारे पास भी कोई उपाय नहीं था। अब हम दिल्ली में सेटल हो चुके थे। नहीं छोड़ कर जा सकते थे तो हमने माही को मीनाक्षी को दे दिया। इस तरीके से वह दो बेटियां एक साथ हमारे घर में आई थी पर किस्मत से दोनों ही हमसे दूर हो गई। एक को तो हम कभी देख सकते थे मिल सकते थे जानते थे समझते थे पर सांझ के बारे में हमें कुछ भी नहीं पता था।" अबीर बोले।।


"फिर आपने सांझ को माही की आइडेंटिटी कैसे दे दी..?? आई मीन माही का नाम कैसे दे दिया? क्योंकि कहीं ना कहीं आपकी बेटी माही भी तो अभी यहां है..? क्या उसे इस बात से ऑब्जेक्शन नहीं है?? या दुनिया वाले जब सवाल करेंगे कि आपके घर में दो माही कैसे हैं तो आप क्या जवाब देंगे? " अक्षत ने कहा।

"यहां पर भी किस्मत का खेल कम नहीं था..!! जिस दिन सांझ के साथ वह हादसा हुआ उसी दिन उस टाइम पर हम लोग भी यूपी के ही एक गांव में अपने मित्र के यहां गए थे। वहां पर हम प्रोग्राम में बिजी थे कि तभी मेरे पास कॉल आया। माही और मीनाक्षी वहां अपने शहर से दिल्ली आ रहे थे और रास्ते में उनका रोड एक्सीडेंट हो गया था। यह उसी समय की बात है जब सुरेंद्र मुझे लगातार कॉल कर रहे थे और मैं उनका कॉल नहीं ले पाया था क्योंकि मैं यहां लगातार डॉक्टर से बात कर रहा था और यहां पर अरेंजमेंट करवा रहा था ताकि मेरी बच्ची और मेरी बहन की जान बचाई जा सके। हम लोग जब वहां पहुंचे तब तक उन लोगों को अस्पताल में एडमिट कर दिया गया था।

मेरी बहन मीनाक्षी की डेथ हो चुकी थी और माही जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी। डॉक्टरों ने जवाब दे दिया था। पर मेरे प्रेशर में आकर फिर भी कोशिश कर रहे थे।" अबीर ने आँखों की नमी साफ की।

"तभी फिर से फोन बजा और इस बार मैंने बात की और मुझे सुरेंद्र से सांझ के बारे में सब कुछ पता चला।

उस एक पल में ऐसा लगा था जैसे दुनिया खत्म हो गई हो। एक तरफ मेरी बेटी माही जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी। दूसरी तरफ उसकी जुड़वा बहन यानी कि मेरी बेटी सांझ भी जिंदगी और मौत से लड़ रही थी। उसके घर वालों ने उसका सौदा कर दिया था और जिन लोगों ने उसे खरीदा था वह उसको यातनाएँ दे रहे थे। मैं तुरंत यहां से निकल गया था माही को मालिनी और शालू के भरोसे छोड़कर पर तब भी देर से पहुंच पाया सांझ के पास।" अबीर दुखी हो गए।

मालिनी ने उनके कन्धे पर हाथ रखा।


"यह सब कुछ इस कदर उलझा हुआ था और उस समय हम लोग इतने परेशान थे कि हमने किसी से भी बात नहीं की। किसी को बताया।

ईशान उस समय किसी फॉरेन ट्रिप पर था और तुम अपनी ट्रेनिंग पर थे। अरविंद जी भी उस समय दिल्ली में नहीं थे तो तुम लोगों से भी बातचीत नहीं हो पाई। शायद यह किस्मत का ही कोई इशारा था जो किसी को कुछ भी इस बारे में नहीं पता चला।

मैं वहां से सांझ को लेकर इस अस्पताल पहुंचा और वहां पहुंचते ही मुझे पता चला कि माही की डेथ हो गई है। एक तरफ माही की डेथ से मैं पूरी तरह बिखर गया था दूसरी तरफ सांझ के भी उपर खतरा था। वो भि जिंदगी के लिए जंग लड़ रही रही थी।


मैंने डॉक्टर को बोल दिया की पूरी की जान लगाओ और कैसे भी करके मेरी बच्ची को बचाओ। इस समय मेरे दिमाग में एक ख्याल आया और मैंने पेपर्स में सांझ की जगह माही का नाम लिखवा दिया क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि अब फिर से सांझ के साथ कोई हादसा हो। दुनिया वाले लोग समझ रहे थे कि वह मर चुकी है तो मैंने भी यही दिखाया कि सांझ मर चुकी है और जो मेरी बेटी माही की डेथ हुई थी उसको मैंने सांझ शो कर दिया। दोनों ही मेरी बेटियां थी। जुड़वा थी और उनके डॉक्यूमेंट मेरे पास थे तो यहां पर कोई प्रॉब्लम नहीं हुई। वहां गांव वाले सब सोचते रहे कि सांझ मर चुकी है। किसी भी तरह की कोई इंक्वारी कुछ भी नहीं हुआ।" अबीर ने आगे कहा।


"मैं मान गया आपकी सारी बात..!!आपने जो किया सांझ की भलाई के लिए किया। पर अब तो मुझे सांझ से मिला दीजिए। अगर उसे याद नहीं आएगा तो मैं जबर्दस्ती नहीं करूंगा। पर मैं कोशिश तो कर सकता हूं। हो सकता है मुझे देखकर उसे याद आ जाए या कम से कम मेरे दिल को तो तसल्ली मिल जाएगी उसे देखने के बाद..!!" अक्षत ने बेचैन होकर कहा।


" उसका तुम्हें देखकर कुछ भी याद आना मुश्किल है, क्योंकि उसे हम लोगों के साथ रहते रहते कुछ भी याद नहीं आया। और रही बात तुम्हारी तो तुम्हें तकलीफ ना हो इसीलिए कह रहे हैं कि ना मिलो सांझ से तो ही बेहतर होगा।" मिस्टर राठौर बोले।

"वह क्यों? ऐसा क्या हो गया है? " अक्षत ने कहा तो मिस्टर राठौर ने गहरी सांस ली और मालिनी की तरफ देखा।

"तुम्हें सुरेंद्र ने बताया ही होगा कि सांझ की क्या हालत हो गई थी जब उसे नदी से निकाला था। उसके पूरे शरीर की त्वचा को मछलियों ने नोच खाया था। और कई जगह गहरी गहरी चोटों के निशान थे। पत्थरों से टकराने के कारण और रगड़ने के कारण उसका पूरा चेहरा भी बिगड़ गया था। हम उसे लेकर यहां आ गए ताकि उसको बेस्ट से बेस्ट ट्रीटमेंट दिलाया जा सके। साथ ही उसका कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट भी हो सके।

यहां उसका कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट हुआ। शरीर पर तो अभी भी कई जगह बहुत गहरे निशान मौजूद हैं। पर उसका चेहरे को डॉक्टर ने बहुत ही बेहतर तरीके से ठीक कर दिया है पर..??" कहते- कहते अबीर रुक गए।

" पर क्या??" अक्षत बोला।

"पर आज की तारीख में उसका चेहरा सांझ से नहीं बल्कि माही से मिलता है।" अबीर ने कहा तो अक्षत एकदम से उठ खड़ा हुआ और उनकी कॉलर पकड़ ली।

"अब यह मत कहिएगा की यह सब कुछ भी इत्तेफाक से हुआ है...!!" अक्षत गुस्से से बोला।।


"नहीं यह इत्तेफाक नहीं है..!! जब कॉस्मेटिक सर्जन ने फोटो मांगा था तब मैंने उसे सांझ के फोटो की जगह माही का फोटो दिया। हालांकि दोनों का दोनों के बेसिक फीचर्स मिलते जुलते थे। दोनों का नाक नक्श एक सा था पर थोड़ा बहुत अंतर था जोकि दोनों को अलग करता था। उनमे से ही एक था उनका रंग और और कुछ थोड़े बहुत चेहरे के एक्सप्रेशन..!! जो कि जब कॉस्मेटिक सर्जन ने सांझ का चेहरा सही किया तो अब उसका चेहरा पूरी तरीके से माही का चेहरा बन चुका था।" अबीर बोला तो अक्षत की आँखे भर आई।

"यहां मैं मानता हूं मैंने गलत किया। पर मेरे दिल में स्वार्थ आ गया था। स्वार्थ इस बात का कि अब मेरी बेटी मुझसे दूर ना हो..!! कभी कोई भी उसे यह ना कहे कि वह सांझ है और उसे दूर ले जाना चाहे। मैं अब उसे हमेशा माही बनाकर अपने पास रखना चाहता था। हमारे साथ रखना चाहता था ताकि ना ही उसे कोई तकलीफ हो ना ही कोई उसे नुकसान पहुंचा सके। ना ही कोई उसे हमसे दूर कर सके।" अबीर बोले।


अक्षत की आंखें लाल होकर भर आई और वह एकदम से सोफे पर बैठ गया।


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव