साथिया - 88 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 88

"कितना झूठ बोलेंगे राठौर साहब.. !! एक तो मुझसे बिना पूछे बिना बताये मेरी सांझ को यहाँ ले आये और उस पर झूठ बोले जा रहे है..!!" दर्द और नाराजगी से अक्षत बोला तो सबने उसकी तरफ आश्चर्य से उसकी तरफ देखा।

" तुमको कोई गलतफहमी हुई है अक्षत बेटा..!! सांझ का पता चला और बहुत दुःख हुआ पर यहाँ पर सांझ नही है। हम हमारी बेटी माही को लेकर आये है..!" अबीर की आवाज भी सख्त हो गई।

अक्षत की आंखें भी लाल हो गई मिस्टर अबीर राठौर की बात सुनकर।

"देखिए राठौर साहब आप बड़े हैं, मैं आपकी इज्जत करता हूं और अब जबकि मैं यह बात जानता हूं कि आप सांझ के पापा हैं मैं आपके साथ किसी भी तरह की कोई भी बदतमीजी नहीं करना चाहता। आप सांझ कहां है मुझे बता दीजिए इससे पहले की मेरी बर्दाश्त की हद खत्म हो जाए।" अक्षत ने कहा।

"लेकिन...??" अबीर ने कहना चाहा तो अक्षत ने अपनी हथेली सामने कर दी।

"मुझे सुरेंद्र अंकल ने सब कुछ बता दिया है..!! कुछ भी छुपाने का अब कोई फायदा नहीं और मैं अब बाकी का सच भी जानना चाहता हूं।"


" जब तुम्हें सुरेंद्र ने यहाँ के और सांझ के बारे में बता ही दिया है तो साथ ही साथ उन्होंने तुम्हें पूरी बात भी बता दी होगी?" अबीर ने संजीदगी से कहा।


अक्षत ने उनकी आँखों मे गहराई से देखा।

" सांझ की याददाश्त जा चुकी है वह अब अपना पुराना सब कुछ भूल चुकी है और सबसे बड़ी बात की डॉक्टर ने कहा है कि उसे कुछ भी जबरदस्ती याद नहीं दिलाया जाए। वह धीमे-धीमे याद कर लेगी। जब याद आना होगा तब उसे याद आ जाएगा पर हम उसे फोर्स नहीं कर सकते। यही कारण है कि हम लोग वापस से इंडिया नहीं जा पाए उसे लेकर।" अबीर ने शांत लहजे में कहा।


अक्षत ने उनकी तरफ देखा।

"यह इतना बड़ा हादसा था कि सांझ की पूरी जिंदगी उसकी पहचान सब कुछ बदल चुकी है। और उसे अब तक कुछ भी याद नहीं आया है और सच कहूँ तो हम चाहते भी नहीं है उसे कुछ भी याद आए..!! क्योंकि उसकी पुरानी जिंदगी में सिवाय दर्द के कुछ भी नहीं है।"

"और यह डिसाइड करने वाले आप कौन होते हैं कि उसके उसकी याददाश्त आनी चाहिए या नहीं आनी चाहिए..?? हाँ मैं मानता हूं कि उसकी लाइफ में दर्द और तकलीफें है। पर उन दर्द और तकलीफों की एक बहुत बड़ी वजह खुद आप है मिस्टर राठौर..??" अक्षत की नाराजगी बढ़ती जा रही थी।

"आपने अपनी बेटी को न जाने ऐसे किसी को भी गोद दे दिया और उसके बाद उसकी कोई खोज खबर नहीं ली..?? उसके बारे में कुछ पता नहीं किया उसे इस तरीके से छोड़ दिया जैसे कि वह आपकी बेटी ही नहीं है..?? ऐसा कोई करता है क्या भला..?? सांझ को उन लोगों ने कभी नहीं अपनाया बावजूद इसके आपको फर्क नही। आप अपना सकते थे ना उसे..?? आप उसे वापस से अपने घर ला सकते थे जब आपको पता चल गया था कि जिन लोगों को आपने सांझ दी है वह अब इस दुनिया में नहीं है। सांझ के ऊपर जो जुर्म हुए जो उसके ऊपर अत्याचार हुए उसके कहीं ना कहीं जिम्मेदार आप है..!! और सही बात है उसके जीवन में खराब यादें है पर कुछ यादें ऐसी हैं जो बेहद खूबसूरत है। जिन्हें सांझ कभी नहीं भूलना चाहती थी। और उन्ही यादों में है मेरा और सांझ का रिश्ता और मेरी और सांझ की शादी...!!"अक्षत ने कहा तो अबीर की आंखें बड़ी हो गई।

"शादी..?? तुम्हारी और सांझ की शादी..??" अबीर राठौर आश्चर्य से बोले।

"जी राठौर साहब जिस तरीके से एक सच यह है कि सांझ आपकी बेटी है उसी तरीके से एक सच ये भी है कि सांझ मेरी वाइफ है और मेरी वाइफ को मुझसे दूर करने का ना ही किसी कानूनी रूप से और ना ही किसी भी तरीके से अधिकार है। मैं मेरी वाइफ को वापस ले जाना चाहता हूं और आप मुझे नहीं रोक सकते।" अक्षत ने गुस्से से कहा।


"अच्छा बेटा प्लीज नाराज मत हो...!! हम शांति से बैठ कर बात करते हैं। मालिनी ने अक्षत के कंधे पर हाथ रखकर कहा और उसे सोफे पर बिठाया।

"देखो बेटा हमें नहीं पता था कि तुम्हारी और सांझ की शादी हो चुकी है। उस हिसाब से सांझ के बारे में कोई भी निर्णय लेने का उसका इलाज करने का उसके बारे में बेहतर सोचने का अधिकार उसके मां-बाप को था और इसी अधिकार से हम लोग सांझ को यहां ले आए। अगर हमें पता होता कि सांझ तुम्हारी पत्नी है और तुम दोनों शादीशुदा हो तो तुमने जरूर हम लोग सारी बातें बताते।" मालिनी बोली तो अक्षत ने गहरी सांस ली।

" फिर सांझ की हालत ऐसी नहीं थी कि उसे हम वहां रख सके..!! उसके साथ इतना बड़ा हादसा हुआ था। साथ ही साथ उसके हाथों अनजाने में ही सही पर एक इंसान की जान गई थी। और फिर वह निशांत और उसका पूरा परिवार पूरा गांव सांझ का दुश्मन बन चुका था। ऐसे में हम सांझ को वहां नहीं रख सकते थे। इसलिए हमें यहां लेकर आना पड़ा और सच मानो बेटा अगर सांझ को याद आ गया होता तो हम कौन होते हैं तुम दोनों के बीच आने वाले..?? पर इन दो सालों में सांझ को कुछ भी याद नहीं आया है तो मजबूर होकर हम भी उसे कुछ भी जबरदस्ती याद नहीं दिला सकते। बस इंतजार कर रहे हैं सांझ को सब कुछ याद आने का...!!" मालिनी बोली तो अक्षत के चेहरे का तनाव कुछ कम हुआ..

" तुम्हें क्या लगता है कि हम यहां आकर खुश हैं? हां मैं मानता हूं कि मेरी मैंने साँझ के मामले में एक तर फा सोचा पर तुम खुद सोचो...शालू भी मेरी बेटी है और साँझ से ज्यादा शालू मेरे साथ रही है... बावजूद इसके क्योंकि साँझ की जिंदगी के साथ खतरा था उस को यहां लाना मजबूरी था इसलिए हमने शालू और ईशान का रिश्ता भी एक तरफ रख दिया... शालू की खुशियों को भी अनदेखा कर दिया क्योंकि इस समय हम किसी को नहीं बता सकते थे कि साँझ जिंदा है और हमारे साथ जो आई है वह माही नहीं बल्कि सांझ है....!" अबीर ने कहा..

" तुम मुझे तो बता सकती थी शालू? तुम तो जानती थी हम दोनों का रिश्ता कितना खास है!" अक्षत ने शालू की तरफ देख कर कहा...

"आप बिल्कुल ठीक कह रहे हो अक्षत भाई...!! मैं जानती थी आप लोगों का रिश्ता बहुत खास है... पर तब तक आपकी शादी हो गई है यह मुझे भी नहीं पता था... और इस समय जब कि हमें किसी भी तरीके से साँझ को यहां लाना था और साथ ही साथ दुनिया को यह दिखाना था कि साँझ मर चुकी है और हमारे साथ जो आ रही है वह मेरी बहन माही तो फिर हम आपको भी कैसे बता सकते थे?? हम यह बात कहीं भी लिक नहीं होने दे सकते थे क्योंकि बातें एक कान से दूसरे कान में जाती हैं और इसी तरीके से सबको पता चल जाती है... आप एक बार मेरी स्थिति और मेरे परिवार की स्थिति समझने की कोशिश कीजिए इस तरीके से नाराज मत होइए...!" शालू ने अक्षत को समझना चाहा


"मैं सब समझ रहा हूं और सब करने को तैयार हूं पर अब सिर्फ एक बात आप लोगों से कहना चाहता हूं...जो हुआ सो हुआ पर मैं अब साँझ को वापस ले जाना चाहता हूं...!" अक्षत ने कहा...

" अभी पॉसिबल नहीं है... तुम इस बात को क्यों नहीं समझ रहे हो...?? जिस साँझ को तुमने चाहा था वह साँझ अब यह नहीं है....तुम नहीं स्वीकार कर पाओगे और शायद....? " कहते-कहते अबीर रुक गए
अक्षत ने नासमझी से उन्हें देखा..


"और शायद साँझ भी न एक्सेप्ट कर पाए इसलिए हम नहीं चाहते कि अब उसकी याददाश्त कभी वापस आए....मैं चाहता हूं कि वह ऐसे ही खुश रहे!" अबीर ने कहा.


"और यह चाहने वाले आप होते कौन है? और मैं क्यों नहीं एक्सेप्ट कर पाऊंगा आखिर हुआ क्या है ऐसा?" अक्षत ने बेचैन होकर वापस से उठते हुए कहा...

" तुम बैठो मैं तुम्हें सारी बात बताता हूं!" अबीर बोले और अक्षत को बताने लगे


" बहुत सालों पहले की बात है जिस समय चालू हमारे पास थी और मालिनी प्रेग्नेंट थी.. उसके उसके गर्भ में जुड़वा बच्चे थे यह बात डॉक्टर ने हमें बता दी थी...! इस समय मेरा खास दोस्त था अविनाश जो की यही दिल्ली में ही एक दूसरी कंपनी में काम करता था... वह समय मेरा भी स्ट्रगल का ही था... उस समय मैं दिल्ली का जाना माना बिजनेस में नहीं था बल्कि एक एक अपनी पहचान बनाता हुआ छोटा व्यवसाय था. मालिनी और अविनाश की वाइफ संध्या की गहरी दोस्ती थी. बातों बातों में ही संध्या ने बताया कि वह कभी मां नहीं बन सकती कुछ अंदरूनी परेशानी के करण
मालिनी के दिल को इस बात को सुनकर बेहद तकलीफ हुई और मन ही मन मालिनी ने कुछ तय कर लिया था..

कुछ महीनो बाद हमारे घर में जुड़वा बेटियों का जन्म हुआ एक का नाम हमने साँझ रखा और दूसरी का नाम माही.. दोनों एक दूसरे से काफी मिलती जुलती थी... आइडेन्टिकल ट्विंन्स थी दोनों.... डॉक्टर ने बताया था की वो मोनोजायगोटीक हैँ...कहना चाहिए उन दोनों के चेहरे में ज्यादा खास फर्क नहीं था... बेसिक फीचर्स उनके काफी मिलते थे.. एक दूसरे की झलक मिलती थी उनमे..बस रंग का थोड़ा फर्क था जहां माही एकदम साफ रंग की थी वही साँझ हल्के साँवले गेहूं में रंग की थी.. " अबीर बोले

अक्षत ध्यान से सुन रह था..


" क्योंकि एक साथ दो-दो बच्चों को संभालना मुश्किल होता है तो अक्सर ही संध्या मालिनी के पास रुकती थी और साँझ और माही को संभालने में मदद करती थी...

देखते देखते एक साल निकल गया और फिर एक दिन संध्या और अविनाश ने हमारे सामने एक हमारे सामने एक विनती रखी... वह हमारी साँझ को हमेशा हमेशा के लिए अडॉप्ट करना चाहते थे...

मालिनी को भी इस बात से कोई आपत्ति नहीं हुई क्योंकि मालिनी संध्या के दर्द को समझती थी तो हम लोगों ने अपने दोस्त समझ कर खुशी-खुशी उन लोगों को साँझ दे दी..!" अबीर भावुक होकर बोले तो अक्षत की आंखें छोटी हो गई


" पर वही हमारे जीवन के साथ सबसे बड़ी भूल थी,क्योंकि कई बार भावनाओं में बहकर हम गलती कर देते हैं... हम उन्हें बोल सकते थे कि वह किसी अनाथ आश्रम से बच्चे को गोद ले ले तो शायद चीज इतनी न बिगड़ती...पर हमने अपनी दोस्ती निभाते हुए और उन लोगों से अपने रिश्ते के बारे में सोचते हुए अपनी बच्ची दे दी..

संध्या अब साँझ को लेकर अपने घर में रहने लगी और मालिनी का दिल साँझ के लिए बेचैन होने लगा... आखिर अपनी संतान से लगाव तो ज्यादा होता है और यह जानते हुए कि वह पड़ोस के घर में किसी दूसरे के पास है उसके लिए दिल और भी ज्यादा बेचैन हो जाता हैँ..


संध्या के पास अब साँझ थी तो उसका यहां आना कम हो गया था.. अब वह हफ्ता हफ्तों तक मालिनी से नहीं मिलती और ना ही साँझ को हमारे घर ले के आती...जिसका नतीजा यह हुआ कि मालिनी का दिल बेचैन होने लगा और मालिनी अब संध्या से मिलने और साँझ से मिले उनके घर जाने लगी जो की संध्या को पसंद नहीं आता था और उसकी बेरुखी को मालिनी भी बहुत अच्छे से समझने लगी।

क्रमशः


डॉ. शैलजा श्रीवास्तव