ख्वाबों के पार Abhijeet Yadav द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

ख्वाबों के पार

अमित—एक नाम जो कॉलेज की भीड़ में हमेशा खोया रहा। साधारण चेहरा, मध्यम कद-काठी और बेहद संकोची स्वभाव। कॉलेज की क्लास में वह हमेशा सबसे पीछे की बेंच पर बैठता, जहां से न तो किसी की नज़र उस तक पहुंचती, और न ही कोई उसे देखता। वह कभी किसी से खुलकर बात नहीं करता था, न ही उसे किसी ने पहल करते देखा। क्लास के दोस्तों के लिए वह ऐसा चेहरा था, जो नज़रअंदाज करने के लायक था। उसकी मौजूदगी उतनी ही अदृश्य थी, जैसे कोई परछाई।

कभी-कभी अमित अपने अकेलेपन में खो जाता था। कॉलेज के हर कोने में, हर गलियारे में वह अपनी तन्हाई से बातें करता था। उसे ऐसा लगता, जैसे उसे कोई समझता ही नहीं, और शायद वह खुद भी अपनी भावनाओं को ठीक से व्यक्त नहीं कर पाता। उसकी आत्मा में एक अजीब सा दर्द था, एक अधूरापन, जिसे उसने कभी किसी से साझा नहीं किया।

उसकी जिंदगी में सबसे ज्यादा दर्द देने वाली बात यह थी कि वह कभी उस लड़की से बात भी नहीं कर पाता, जो कभी उसके दिल के बेहद करीब थी। अवनी—वही लड़की जिसने कभी उसकी जिंदगी में रंग भरे थे, अब उसके लिए बस एक अजनबी थी। स्कूल के दिनों में दोनों के बीच की दोस्ती को दुनिया की कोई भी ताकत तोड़ नहीं सकती थी। अवनी उसके हर दर्द को समझती थी, और अमित उसे पढ़ाई में हमेशा मदद करता था। वह उसकी हर मुश्किल का हल ढूंढता, उसे हंसाता, उसे खुश रखने की कोशिश करता। लेकिन कॉलेज के माहौल ने उनके रिश्ते में एक अनकही दीवार खड़ी कर दी।

अवनी अब बदल गई थी। उसने नए दोस्त बना लिए थे, जिनमें वह खुद को खो चुकी थी। कॉलेज के रंग-बिरंगे माहौल में उसने अमित को अपने दिल से दूर कर दिया। वह अब उसकी मदद की मोहताज नहीं थी, और शायद अब उसे अमित की भी जरूरत नहीं थी। घर के पास रहते हुए भी, वे दोनों ऐसे अजनबी बन गए थे, जिनके रास्ते कभी टकराते नहीं थे।

अमित ने कभी अवनी से यह नहीं पूछा कि उसने उससे दूरी क्यों बना ली। वह जानता था कि कुछ सवाल पूछने से बेहतर है कि उन्हें वक्त पर छोड़ दिया जाए। लेकिन यह दर्द उसके दिल में बसा हुआ था। कई बार जब वह घर से कॉलेज की बस पकड़ता था, तो उसे अवनी की कार सड़क पर गुजरते हुए दिखती। उसकी माँ ने एक बार अवनी से कहा भी था कि अमित को साथ ले लिया करे, लेकिन अवनी जानबूझकर अमित को नजरअंदाज कर देती। वह कभी उसे अपने साथ नहीं ले गई, कभी उसकी तरफ दोस्ती का हाथ नहीं बढ़ाया।

अमित के लिए यह सब सहना आसान नहीं था, लेकिन उसने अपने दर्द को अपने भीतर दबाए रखा। रातों को जब दुनिया सो जाती, तो अमित अपने कमरे की बंद खिड़की के पास बैठकर लिखता। उसके शब्द उसके साथी बन गए थे, और उसकी कलम उसकी आवाज़। वह लिखता गया, और उसकी रचनाएं गहरी होती गईं। उसने अपना हर दर्द, हर अधूरापन, हर टूटे हुए सपने को शब्दों में पिरो दिया।

वह अब 'आश्क' बन चुका था—एक ऐसा लेखक जिसे उसकी लेखनी के लिए पहचान मिल रही थी। लेकिन इस पहचान को उसने कभी अपने कॉलेज के दोस्तों के सामने उजागर नहीं किया। वह अपनी पहचान को एक रहस्य की तरह छिपाकर रखता। उसकी किताब 'ख्वाबों के पार' ने उसे साहित्य की दुनिया में नाम दिलाया था, लेकिन अमित के लिए यह नाम भी एक छाया के पीछे छिपा था।

फिर आया कॉलेज का वार्षिक उत्सव, जिस दिन अमित की पहचान बदलने वाली थी। डीन ने मंच पर आते हुए गर्व से घोषणा की, "आज हमारे कॉलेज के लिए गर्व का दिन है। हमारे कॉलेज के एक छात्र को साहित्य में अद्वितीय योगदान के लिए पद्म श्री से नवाजा जा रहा है। साथ ही, उनकी किताब 'ख्वाबों के पार' को बुकर पुरस्कार भी मिल चुका है।"

सारा हॉल शांत हो गया। सबकी नजरें मंच पर टिकी थीं। कौन था यह छात्र जिसने इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल की थी? हर कोई अचंभित था। तभी डीन ने नाम पुकारा, "अमित उर्फ़ आश्क।"

सन्नाटा छा गया। अवनी की आँखों में जैसे अंधेरा छा गया। वह पूरी तरह से स्तब्ध थी। यह वही अमित था, जिसे वह अपने दोस्तों की भीड़ में पीछे छोड़ आई थी। वही अमित, जिसके लिए उसने कभी पलटकर नहीं देखा। और अब वही अमित पूरी दुनिया के सामने खड़ा था, एक चमकते सितारे की तरह।

अमित मंच पर आया, उसकी आँखों में वही दर्द था, जो उसने कभी किसी के साथ साझा नहीं किया था। उसने माइक उठाया और कुछ पंक्तियाँ कहने लगा, जो सीधे अवनी के दिल तक पहुँचीं:

"कभी हम भी तुम्हारे करीब थे, तुम्हारी हर मुश्किल का जवाब थे। मगर अब ये फासले जो हैं, वो शायद हमारी तन्हाई का इनाम हैं। वक्त ने बदल दीं हैं सूरतें, पर मेरे जख्म वही हैं, जो आज भी ताज़ा हैं।"

अमित की बातें हॉल में गूंज रही थीं, और अवनी की आँखों में आँसू उमड़ पड़े। उसे अपने सभी फैसलों पर पछतावा होने लगा। उसने अपने सबसे अच्छे दोस्त को खो दिया था, और अब उसे कोई रास्ता नहीं दिख रहा था।

अमित की पंक्तियाँ उसकी आत्मा को चीरकर निकल गईं। अवनी समझ चुकी थी कि उसने अमित को कभी नहीं समझा। वह उसकी ताकत थी, पर उसने उसे कभी पहचाना ही नहीं। आज वह अमित एक सितारा बन चुका था, और अवनी के पास सिर्फ पछतावा था।

अमित ने अपनी जिंदगी में जो खोया, वह उसकी रचनाओं में ढल गया। उसका हर शब्द उसकी उस तन्हाई की गवाही देता था, जिसे उसने अवनी से दूर होकर जिया था। अब वह तन्हाई उसकी सबसे बड़ी ताकत बन चुकी थी, और उसकी लेखनी ने उसे वो पहचान दी थी, जिसे वह दुनिया से छुपाकर रखता था।

अमित अब कोई साधारण छात्र नहीं था—वह अब एक सितारा था, जिसकी रौशनी सबकी आँखों को चौंधिया रही थी। उसकी कहानी सिर्फ उसकी किताबों में नहीं थी, बल्कि उसके अंदर छुपे उस दर्द में थी, जिसे वह हर दिन जीता था।

अवनी अब पछतावे के सागर में डूबी थी। उसने अपने सबसे खास दोस्त को खो दिया था, और अब उसके पास सिर्फ यादें थीं—'यादों के उस canvas पर', जहाँ अमित की तस्वीर हमेशा के लिए अंकित हो चुकी थी।