इंतजार की सदा Abhijeet Yadav द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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इंतजार की सदा

यह कहानी रवि और काशी की है, दो दिलों की दास्तान जो बरसों से अधूरी थी। रवि, 30 साल का एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर, बेंगलुरु में एक नामी MNC में काम करता है। वो अपने गांव एक महीने के लिए आया है, क्योंकि उसकी मां बीमार है। रवि के पिता तीन साल पहले एक लंबी बीमारी के चलते इस दुनिया से चले गए थे। गांव में रवि की मां अकेली रहती हैं, और उनके पास नौकर-चाकर भी हैं। रवि के पास 128 बीघे में फैला आंवले का बाग है, इसके अलावा आम और अमरूद के छोटे-बड़े बाग और कई बीघे की खेती भी है। परंतु, रवि गांव की इस संपन्नता को छोड़ बेंगलुरु में अपने करियर पर ध्यान दे रहा था। उसकी मां कई बार उसे गांव में आकर स्थायी रूप से बसने के लिए कहती रही थीं, लेकिन रवि हर बार इनकार कर देता। दूसरी तरफ, काशी, 28 साल की सुंदर और सुसंस्कृत लड़की है, जो रवि के गांव से 2 किलोमीटर दूर के गांव की रहने वाली है। काशी रवि के बिरादरी की है और दोनों का संबंध वर्षों पुराना है। जब रवि 15 साल का था, तभी उसके पिता ने काशी के पिता से उसका हाथ मांग लिया था। लेकिन वक्त के साथ रवि अपने करियर और पढ़ाई के चलते बेंगलुरु चला गया, और काशी के लिए उसके दिल में कोई खास जगह नहीं रही। रवि के पिता की मौत के बाद, काशी के माता-पिता ने रवि के कारोबार और उसकी मां की देखभाल में मदद की।

काशी को बचपन से ही यह सिखाया गया था कि वह रवि की होने वाली पत्नी है। इस विचार ने उसके मन में एक अटूट विश्वास पैदा कर दिया था। रवि जब गांव आया, तो अक्सर उसकी मुलाकात काशी से हो जाती, जो अब गांव के प्राथमिक स्कूल में शिक्षिका थी। काशी रवि की मां की बहुत देखभाल करती थी, मानो वह पहले से ही उस घर की बहू हो। रवि की मां हमेशा काशी को समझाती, "सब कुछ ठीक हो जाएगा। रवि तुमसे शादी करेगा।" लेकिन रवि और काशी के बीच एक दूरी थी जिसे रवि ने हमेशा बनाए रखा। एक शाम, जब बारिश हो रही थी और चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था, काशी रवि के घर से लौटने की तैयारी कर रही थी। तभी रवि ने उसे कहा, "मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं।" काशी ने झिझकते हुए कहा, "अंकुश (उसका छोटा भाई) आ रहा है, वो मुझे ले जाएगा।" लेकिन रवि ने फिर कहा, "मैं उसे मना कर देता हूं, मैं छोड़ देता हूं।" इस पर काशी ने लगभग चिल्लाते हुए कहा, "मैंने एक बार मना किया है, तो समझ लो। मेरा भाई आ रहा है।" इस घटना के बाद दोनों के बीच की दूरी और बढ़ गई। रवि ने भी अपनी "वर्क फ्रॉम होम" की अवधि बढ़ा ली थी। लेकिन एक दिन, रवि के मामा की बेटी की शादी में दोनों को साथ जाना पड़ा। रवि की मां ने काशी को भी साथ चलने को कहा। शादी के घर में हल्दी की रस्म हो रही थी, और काशी इतनी खूबसूरत लग रही थी कि हर कोई उसे निहार रहा था। रवि ने जब उसे देखा, तो जैसे पहली बार उसकी सुंदरता को महसूस किया। उसकी आंखों में एक नया एहसास जाग उठा। शाम को जब रवि की मां ने कहा कि वे गहने घर पर भूल आई हैं, रवि और काशी को उन्हें लाने भेजा गया। दोनों गाड़ी में बैठ गए, बाहर जोरदार बारिश हो रही थी। रात के सन्नाटे में बारिश की बूँदें जैसे धड़कनों की तरह जमीन पर गिर रही थीं। आकाश में बादल घुमड़ रहे थे, और उस घने अँधेरे में  कार रास्ते पर आगे बढ़ रही थी। कार के अंदर बैठे थे रवि और काशी, दोनों एक ही गाड़ी में, पर जैसे अनजान राहगीर। रवि ने कार को किनारे लगाकर धीरे से देखा काशी की ओर। काशी खिड़की के बाहर देख रही थी, मानो उस बारिश में कुछ ढूंढ रही हो, या शायद खुद को छिपाने की कोशिश कर रही हो। रवि ने आहिस्ता से कहा, "काशी, आज तुम बहुत थकी सी लग रही हो। शायद इस सफर ने थका दिया है तुम्हें?" काशी ने बिना उसकी ओर देखे ही कहा, "राह तो वो थकाती है जो मंजिल तक पहुँचाए... हमारी मंजिल तो शायद अलग-अलग है।" रवि उसकी बातों में छिपे दर्द को महसूस कर चुका था। उसे एहसास हुआ कि ये वही काशी नहीं है, जो बचपन में उसके साथ हंसती-खेलती थी। अब काशी के शब्दों में इंतजार का बोझ और दिल के टूटने की कसक थी। "तुम्हें ऐसा क्यों लगता है काशी?" रवि ने थके हुए स्वर में पूछा। काशी की आँखों में आंसू छलक आए, उसने रवि की ओर एक नज़र डाली और फिर बोली, "क्यों रवि? क्यों मुझे ऐसा लगता है? तुम खुद बताओ। कितनी बार मैंने तुम्हारा साथ दिया, हर दर्द, हर मुश्किल में तुम्हारी माँ के साथ खड़ी रही। पर तुम्हारे लिए, मैं कभी कुछ भी नहीं रही। क्या कभी तुमने मुझे एक पल के लिए भी महसूस किया?" रवि ने गहरी सांस ली, पर उसकी खामोशी उस वक्त बहुत भारी हो गई थी। काशी की आवाज में अब वो सख्त किनारा था जो दर्द से पैदा होता है। "काशी, मैंने कभी तुम्हें जानबूझकर नजरअंदाज नहीं किया। शायद मैं समझ ही नहीं पाया कि क्या सही है और क्या गलत। लेकिन मैं ये मानता हूँ कि तुम हमेशा मेरे साथ रही हो, और मैंने कभी उसकी कदर नहीं की।" काशी ने गुस्से में कहा, "कदर? रवि, कदर तो तुम तब करते जब एक बार, सिर्फ एक बार मुझे ये अहसास कराते कि तुम्हारे दिल में मेरे लिए कोई जगह है। पर नहीं... तुम्हारे लिए तो मैं बस तुम्हारे घर का एक हिस्सा हूँ, एक जिम्मेदारी, जिसे निभाने का तुमने कभी सोचा ही नहीं।" बारिश अब तेज हो गई थी। काशी की आँखों में आँसू और बारिश की बूँदें मिलकर रवि को गहरे अफसोस में डुबो रही थीं। रवि ने उसका हाथ पकड़ना चाहा, लेकिन काशी ने उसे दूर कर दिया। "रवि, बहुत देर हो चुकी है," काशी ने रोते हुए कहा। "तुम्हें अब मेरी जरूरत नहीं है। मैं अब सिर्फ तुम्हारी माँ के लिए यहाँ हूँ। हमारे बीच कुछ बचा ही नहीं।" रवि ने अब उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में अनकही बातें और वो सारी भावनाएँ थीं जिन्हें उसने कभी व्यक्त नहीं किया था। उसने कहा, "काशी, शायद मैंने देर कर दी। पर मैं तुम्हारे बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता। तुम मेरे घर का हिस्सा नहीं, मेरी जिंदगी हो।" काशी ने हंसते हुए कहा, "जिंदगी? रवि, जिंदगी वो होती है जिसमें इंसान के पास एक-दूसरे के लिए वक्त और अहसास हो। तुमने हमेशा मुझसे दूरियाँ बनाकर रखीं, और अब जब सब खत्म हो चुका है, तब ये कह रहे हो कि मैं तुम्हारी जिंदगी हूँ?" रवि ने उसकी ओर गहरी नजरों से देखा और धीरे से कहा, "काशी, शायद तुम्हारे बिना मैं ये जिंदगी जी तो सकता हूँ, पर वो जिंदगी नहीं होगी... बस सांसों की गिनती होगी।" ये सुनते ही काशी का दिल पिघल गया। उसने रवि की ओर देखा, उसकी आँखों में वही पुराने सपने लौट आए थे। वो खामोशी, जो दोनों के बीच दीवार बन चुकी थी, अचानक से टूट गई। "तुम जानते हो रवि," काशी ने धीरे से कहा, "मैंने हर पल तुम्हारा इंतजार किया, बस इस उम्मीद में कि एक दिन तुम मेरे दिल की बात समझोगे। और अब जब मैं ये सब पीछे छोड़ने का सोच रही हूँ, तुम वापस आ गए हो। क्यों?" रवि ने उसका हाथ थामते हुए कहा, "क्योंकि मैं अब जानता हूँ कि तुमसे दूर रहकर मैंने अपने जीवन का सबसे बड़ा हिस्सा खो दिया था। मुझे माaf कर दो, काशी।" दोनों एक-दूसरे को देखते रहे, बारिश की बूँदें अब धीमी हो गई थीं, और उस रात की काली चादर के नीचे दोनों के दिल एक हो गए। शायद ये उनका मिलन नहीं था, बल्कि उस अनकही दास्तान का इकरार था जो बरसों से दबी थी। काशी का सिर अब रवि के कंधे पर था, और उसकी आंखों से बहे आंसू रवि के दिल में उतरते जा रहे थे। उस पल में, दोनों के दिलों के बीच की सारी दूरियां मिट चुकी थीं। रवि ने काशी को अपने दिल से लगाया और उसकी धड़कनें महसूस कीं—वो धड़कनें, जो सालों से बेमन और अकेली चल रही थीं, अब एक नए लय में गूंज रही थीं।

रात का अंधेरा अब धीमा पड़ चुका था। बाहर बारिश की बूँदें हल्की हो गई थीं, लेकिन रवि और काशी के बीच की बारिश अब एक नयी सुबह की ओर बढ़ रही थी। वो दोनों अब खामोश थे, लेकिन उनकी आंखों में सारे शब्द थे, जो कभी कहे नहीं गए थे। दोनों के बीच वो सफर, जो अजनबियों की तरह शुरू हुआ था, आज प्रेमियों की तरह खत्म हो रहा था।  यह रात अब केवल रात नहीं रही, बल्कि प्यार की वो बारिश बन गई, जो दिलों के बंजर खेतों को सींच कर, फिर से नई उम्मीदों की फसल खिला गई। प्यार की ये कहानी, शायद किसी दिन फिर से बारिश की बूंदों में बहेगी, लेकिन अब वे दोनों जानते थे कि उस बारिश में सिर्फ दर्द नहीं, बल्कि एक नई उम्मीद भी होगी।

 

रात का अंधेरा अब धीमा पड़ चुका था। बाहर बारिश की बूँदें हल्की हो गई थीं, लेकिन रवि और काशी के बीच की बारिश अब एक नयी सुबह की ओर बढ़ रही थी। वो दोनों अब खामोश थे, लेकिन उनकी आंखों में सारे शब्द थे, जो कभी कहे नहीं गए थे। दोनों के बीच वो सफर, जो अजनबियों की तरह शुरू हुआ था, आज प्रेमियों की तरह खत्म हो रहा था।  यह रात अब केवल रात नहीं रही, बल्कि प्यार की वो बारिश बन गई, जो दिलों के बंजर खेतों को सींच कर, फिर से नई उम्मीदों की फसल खिला गई। प्यार की ये कहानी, शायद किसी दिन फिर से बारिश की बूंदों में बहेगी, लेकिन अब वे दोनों जानते थे कि उस बारिश में सिर्फ दर्द नहीं, बल्कि एक नई उम्मीद भी होगी।