सुबह के 9 बज चुके थे और आज "अभि" का दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था। और धड़के भी क्यों न ,उसका आज सी ए का रिजल्ट जो आने वाला था।
मन में अनगिनत सवालो से "अभि" का जी जरा सा बेचैन था ।
और इन्ही सब के सोच विचार के बीच में सी ए का रिजल्ट भी आ गया।
घड़ी की सुई के समान "अभि" की दिल की धड़कनें भी तेजी से ऊपर नीचे हुए जा रही थी।
फिर भी "अभि" चाहते हुए भी खुद को समान्य नहीं कर पा रहा था।
किसी तरह दिमाग में चल रहे अनगिनत सवालो को दरकिनार कर "अभि" ने जैसे ही अपना रोल नम्बर इंस्टिट्यूट की साईट पर डाला, क्षणभर में ही अभी का दिमाग सुन्न हो गया।
इसके आगे अब अभी को कुछ सूझ नही रहा था कि, वो आखिर करे भी तो क्या करे ।
तमाम कोशिशों के बावजूद इस बार भी असफलता अभी के हाथ ही लगी।
अब वो क्या करे , मन मसोस के रह जाता की आखिर वही क्यों हर बार असफल हो जाता है।
मन में इसी उधेड़बुन के साथ निराश मन से अभी घर की ओर बेमन से जाते हुए बार बार यही सोचता क़ि, घर वालो को क्या बताऊँ की उनका लड़का किसी काम का नहीं है।
या फिर ये बताऊँ क़ि, सब के लाख मना करने के बावजूद सी ए में एडमिशन करवाने के बावजूद वही ढाक के तीन पात यानी हमने पहले ही मना किया था।
पर बच्चू नहीं माने अब भुगतो। यही सब सोचता हुआ अभी न चाहते हुए घर की ओर चला जा रहा था.....
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घर पहुँचते ही सबसे पहले अभी के पापा ने उससे पूछा की रिजल्ट का क्या हुआ।
"अभि" ने भर्राये हुए आवाज में कहा नहीं हुआ,
"अभि" की बात सुन कर भी न सुनने का ढोंग करते हुये एक बार तेज आवाज में फिर अभी के पापा ने पूछा क्या हुआ रिजल्ट का,
एक बार फिर दबी आवाज में "अभि" ने कहा नहीं हुआ।
नहीं हुआ मतलब कैसे नहीं हुआ, जब सारा दिन पढ़ते थे तो आखिर पास क्यों नहीं हुए।
मैंने तो पहले ही कहा था कि, सी ए उ ए तुम्हारी बस की बात नहीं पर साहब को हमारी कँहा सुननी थी, नहीं जी सी ए करेंगे।
लो कर ली सी ए । तुम जैसे इंसान जिंदगी में कुछ नहीं कर सकते ।
पिछले पांच सालों से सिर्फ पागल बना रहे हो हमे।
मैंने पहले ही कहा था कि, बड़े बड़े ख़्वाब मत पालो लेकिन हम तो दुश्मन है ।
अगर मेरी मान कर सरकारी नौकरी कर रहे होते तो आज चैन की जिंदगी जी रहे होते।
तुम्हारे साथ के सब आज अच्छे खासे सेटल हैं, और एक तुम हो जो अभी भी हमारी छाती पर मूंग दर रहे हो, न खुद चैन से जी रहे हो न हमे चैन से जीने दे रहे हो।
आखिर तुम चाहते क्या हो, कब तक तुम्हे हम यूँ ही झेले।
रिजल्ट की खबर से घर में मातम सा पसरा हुआ था , रात को किसी ने अन्न का एक दाना भी नहीं डाला.....
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रात के करीब साढ़े नौ बजे थे । "अभि" अचानक जाने क्या सोच के घर से निकल दिया।
मन में अजीब अजीब से ख्याल आ रहे थे क़ि, अचानक "अभि" ने सोचा की अब बहुत हुआ अब मैं और कुछ करने में असमर्थ हूँ,
मुझ जैसा इंसान कुछ भी नहीं कर सकता बस परिवार वालो को दुःख दर्द दे सकता है।
यही सब सोचता हुआ वो दिल्ली मेट्रो में चढ़ कर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ चला।
बस यही सोचता हुआ की , अब वो इन सब से कँही दूर बहुत दूर चला जाएगा।
इतनी दूर की चाहते हुए भी न लौट सके।
पर मन बार बार यही कहता कि, ऐसे ही एक झटके में तू सब कुछ खत्म नहीं कर सकता, पर कम्बख़त दिमाग बार बार यही कहता की बस अब और नहीं ।
दिमाग और दिल की इसी कश्मकश के बीच "अभि" न चाहते हुए भी सब कुछ ख़त्म करने पर आमादा था।
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और, इसी बीच अभी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर एक जनरल टिकट लेकर प्लेटफॉर्म पर ट्रेन का इंतज़ार करने लगा।
जैसे ही ट्रेन आई अभी तुरंत ट्रेन के बोगी में चढ़ गया।
कुछ देर बाद जब ट्रेन चलने लगी तो अभी यही सोच रहा था कि, ट्रेन में बैठे सभी यात्री कितने खुश है बस एक मुझको छोड़कर ।
सब लोग अपने अपने मंजिल की ओर जा रहे है, बस एक मैं ही हूं जिसका कोई मंजिल और कोई ठिकाना नहीं... और इन्ही सब के बीच अचानक कब अभी की आँख लग गई इसका उसको पता भी नहीं लगा।
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.....एकाएक अभी की निद्रा भंग हुई तो उसने अपने को पसीने से तरबतर पाया ।
जनवरी की इस कंपकपाती सर्दी में भी "अभि" का पूरा शरीर गर्म तवे की भांति भभक रहा था,
मानो कोई अदृश्य शक्ति उससे ये कह रही हो क़ि, "अभि" तुम ये क्या कर रहे हो आखिर कँहा तक भागोगे और कब तक भागोगे।
तुम दुनिया से तो भाग लोगे पर अपने आप से कब तक भागते फिरोगे ।
क्या इसी दिन के लिए तुमने सीए ज्वाइन किया था।
घरवालों से लड़ कर तुमने सीए ज्वाइन किया था, अब इसी से भाग रहे हो।
आखिर कब तक .....
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अरे! ये मैं क्या ग़जब कर रहा था। आखिर मैं क्या इतना गया गुजरा हूँ ...
नहीं नहीं ये मैं तो हरगिज़ नहीं हो सकता।
इस बार असफल हुआ तो क्या, दुबारा कोशिश करूँगा।
अरे ये अंत तो नहीं...
यही सब सोच कर "अभि" सीट से उठा और ट्रेन के चेन को एक झटके में ही खींच दिया, इधर ट्रेन रुकी उधर "अभि" फिर चल दिया अपनी मंजिल की ओर....
यही गुनगुनाता हुआ क़ि,